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बिहार: कांग्रेस की सीट घटी-12 पर आपस में ही टक्कर, महागठबंधन की कंप्लीट पिक्चर

महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री चेहरा और मुकेश सहनी को डिप्टी CM कैंडिडेट घोषित किया है.

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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन में सीटों को लेकर चल रही खींचतान के बीच गुरुवार, 23 अक्टूबर का दिन अहम रहा. गठबंधन के सभी सहयोगी दल एक साथ एक मंच पर जुटे और एकता का संदेश दिया. हालांकि, प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो पोस्टर लगा था, उस पर सिर्फ तेजस्वी की तस्वीर थी, महागठबंधन के किसी अन्य नेता की नहीं. जिससे एकजुटता पर सवाल भी उठे.

2025 के चुनाव के लिए महागठबंधन ने औपचारिक रूप से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया है. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख मुकेश सहनी के नाम का ऐलान डिप्टी सीएम कैंडिडेट के रूप में हुआ है. कांग्रेस के सीनियर नेता अशोक गहलोत ने कहा कि अन्य सामाजिक वर्गों में से एक और उपमुख्यमंत्री भी बनाया जाएगा.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीट शेयरिंग को लेकर कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई. हालांकि, ये साफ है कि महागठबंधन में सबसे ज्यादा सीटों पर आरजेडी चुनाव लड़ रही है, जबकि पिछले बार के मुकाबले कांग्रेस की सीटें घटी हैं.

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डैमेज कंट्रोल या फिर नया नैरेटिव सेट करने की कोशिश?

बिहार महागठबंधन में इस बार कुल 7 पार्टियां शामिल हैं. आरजेडी, कांग्रेस, विकाशील इंसान पार्टी (वीआईपी), सीपीआई(एमएल), सीपीआई, सीपीआई(एम), इंडियन इंकलाब पार्टी (आईआईपी) गठबंधन का हिस्सा हैं.

चुनाव ऐलान के बाद से ही महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर मनमुटाव की खबरें आने लगी. कांग्रेस की डिमांड 70 सीटों की थी. पार्टी पिछली बार जीती हुई सीटों के अलावा 8 ऐसी जिताऊ सीटें भी चाहती थी, जहां 2020 में हार का मार्जिन कम था. दूसरी तरफ मुकेश सहनी ने भी कम से कम 20 सीटों की डिमांड कर दी. अन्य पार्टियां भी अधिक सीटें मांगने लगी. जिसकी वजह से सीट शेयरिंग का मामला फंस गया.

विवाद सुलझाने के लिए तेजस्वी दिल्ली पहुंचे, लेकिन राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से उनकी मुलाकात नहीं हुई.

13 अक्टूबर को आरजेडी सांसद मनोज झा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय. टूटे से फिर न मिले, मिले गांठ परिजाय. हर अवसर के लिए प्रासंगिक." इस पर कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने लिखा, "पानी आंख में भर कर लाया जा सकता है, अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है."

सोशल मीडिया पर बयानबाजी के बीच कयास लगाए जाने लगे कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है.

इन कयासों को तब और बल मिला जब बिना किसी औपचारिक ऐलान के पार्टियों ने उम्मीदवारों का ऐलान करना शुरू कर दिया और सिंबल बांटने लगे. कई सीटों पर सहयोगी दल खुद आमने-सामने हो गए.

पॉलिटिकल कमंटेटर अमिताभ तिवारी कहते हैं कि नंबर दो पार्टी तब तक चुनाव नहीं जीत सकती जब तक वो नंबर एक पार्टी के वोट शेयर में डेंट न मारे. इस तरह के विवाद से फ्लोटिंग वोटर्स (अनडिसाइडेड, असंतुष्ट और अन्य) पर असर पड़ता है.

"फ्लोटिंग वोटर्स जो महागठबंधन की तरफ अगर शिफ्ट करने की सोच भी रहा होगा, अब उसके मन में सीट विवाद से सवाल खड़ा हो सकता है. इन फ्लोटिंग वोटर्स के बिना जीतना मुश्किल है. इस वजह से इनका इम्पैक्ट थोड़ा ज्यादा है."

महागठबंधन में मतभेदों को लेकर NDA नेताओं ने भी निशाना साधा. चिराग पासवान ने एक बयान में कहा, "जो गठबंधन अपने घटक दलों को नहीं संभाल सकता, जो 5-6 दलों को एक साथ नहीं रख सकता, वो बिहार और बिहारियों को एक साथ कैसे रख सकता है. ये सवाल आज की तारीख में जनता पूछ रही है."

उम्मीदवारों के नामांकन दाखिल करने की तारीख खत्म होने के बाद भी महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फाइनल फॉर्मूला सामने नहीं आया. सीट शेयरिंग की गुत्थी और मतभेद को सुलझाने के लिए 22 अक्टूबर को अशोक गहलोत पटना पहुंचे. उन्होंने लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी से मुलाकात की. इसके अगले दिन सभी घटक दलों की मौजूदगी में तेजस्वी को सीएम फेस घोषित किया गया.

वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के मुताबिक अब परिदृश्य बदल गया है. वे कहते हैं,

"महागठबंधन में जो भी कन्फ्यूजन और मतभेद था, अशोक गहलोत ने उसे दूर कर दिया है. महागठबंधन एक बार फिर यूनाइट हो गया है. सीएम फेस के रूप में तेजस्वी के नाम के ऐलान से आरजेडी कार्यकर्ताओं में भी जोश बढ़ेगा. अब मुकाबला और कड़ा होगा."

तेजस्वी के नाम के ऐलान के साथ ही महागठबंधन ने एक नई नैरेटिव सेट करने की भी कोशिश की है. अशोक गहलोत ने कहा, "हम पूछना चाहते हैं, अमित शाह जी से, इनकी पार्टी के अध्यक्ष से, हमारे नेता तो हो गए तेजस्वी यादव, आपके नेता कौन हैं? इससे काम नहीं चलेगा कि नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. अगला मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन है, ये उनको बताना पड़ेगा. ये हमारी मांग है."

तेजस्वी यादव ने कहा, "हमारा ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हो गया. कई राउंड हम लोग साथ भी बैठे. नीतीश जी के साथ एनडीए में अन्याय हो रहा है. एक बार भी कोई ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कई गई और न ही ऑफिशियली मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया है."

महागठबंधन में 12 सीटों पर फ्रेंडली फाइट

प्रदेश की 243 विधानसभा सीटों पर महागठबंधन की तरफ से 255 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ. आरजेडी ने सबसे ज्यादा 143 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं तो कांग्रेस ने 61 प्रत्याशियों का ऐलान किया था. इसके अलावा सीपीआई (एमएल) 20 सीट पर, सीपीआई 9 सीट, सीपीएम चार सीट, वीआईपी 15 सीट और आईपी गुप्ता की आईआईपी ने 3 सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की.

दूसरे और अंतिम चरण के लिए 122 सीटों पर नाम वापस लेने की अंतिम तारीख 23 अक्टूबर थी. इसी के साथ महागठबंधन में प्रत्याशियों की तस्वीर भी साफ हो गई है.

आरजेडी और कांग्रेस में 5, कांग्रेस और सीपीआई में 4, आरजेडी और वीआईपी में 2, कांग्रेस और आईआईपी में एक सीट पर फ्रेंडली फाइट होगा. इसका मतलब है कि कांग्रेस का सबसे ज्यादा 10 सीटों पर महागठबंधन के ही सहयोगी दलों के साथ मुकाबला है.

पहले चरण में इन सीटों पर आपसी मुकाबला:

  • वैशाली: कांग्रेस के संजीव सिंह के सामने आरजेडी के अजय कुशवाहा.

  • बिहारशरीफ: कांग्रेस के उमैर खान और सीपीआई के शिव प्रकाश यादव आमने-सामने

  • राजापाकर: कांग्रेस की प्रतिमा कुमारी और सीपीआई के मोहित पासवान में फ्रैंडली फाइट

  • बछवाड़ा: कांग्रेस के शिव प्रकाश गरीब दास के सामने सीपीआई के अवधेश कुमार राय

  • बेलदौर: कांग्रेस के मिथिलेश निषाद और आईआईपी की तनीषा चौहान में टक्कर

  • गौरा बौराम: आरजेडी के अफजल अली और वीआईपी के संतोष सहनी के बीच में मुकाबला

    दूसरे चरण में इन सीटों पर आपसी मुकाबला:

  • नरकटियागंज: कांग्रेस के शाश्वत केदार और आरजेडी के दीपक यादव महागठबंधन से ताल ठोक रहे हैं

  • कहलगांव: कांग्रेस के प्रवीण कुशवाहा के सामने आरजेडी के रजनीश भारती

  • सुल्तानगंज- कांग्रेस के ललन यादव और आरजेडी के चंदन सिंह में दोस्ताना मुकाबला

  • सिकंदरा (सु)- कांग्रेस के विनोद चौधरी और आरजेडी के उदय नारायण चौधरी के बीच टक्कर

  • करगहर- कांग्रेस के संतोष मिश्रा के सामने होंगे सीपीआई के महेंद्र गुप्ता

  • चैनपुर- आरजेडी के टिकट पर पूर्व मंत्री बृजकिशोर बिंद और वीआईपी के प्रत्याशी गोविंद बिंद उर्फ बाल गोविंद बिंद भी मैदान में हैं

फ्रैंडली फाइट के सवाल पर महागठबंधन की ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीपीआई(एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि कुछ सीटों पर आस में रणनीतिक मुकाबला होगा. एक-दो प्रतिशत इधर-उधर होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा, एक-दो प्रत्याशी को पीछे हटना चाहिए. इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं है.

इससे पहले गहलोत ने कहा था कि 5-10 सीटों पर फ्रेंडली फाइट हो सकती है, इसमें कोई दिक्कत नहीं है.

हालांकि, जानकारों की मानें तो इससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है. प्रवीण बागी कहते हैं, "फ्रैंडली फाइट से सिर्फ एक सीट पर नुकसान नहीं होगा, बल्कि उसके आस-पास की सीटों पर भी असर पड़ेगा. चुनाव में कोई फ्रैंडली नहीं होता. सभी जीतने के लिए लड़ते हैं. एक सीट पर गठबंधन के दो उम्मीदवारों के आने से कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय नहीं होगा और वे एक-दूसरे खिलाफ दिखेंगे."

इसके साथ ही वे कहते हैं, "जो कटूता उस एक सीट पर होगी, वो अन्य सीटों पर भी दिखेगी. ये इतना सरल और आसान नहीं, जितना ये लोग बता रहे हैं. ये बहुत घातक होगा. इन सीटों पर प्रचार में भी दिक्कत आएगी. जिससे वोटर्स में एक गलत संदेश जाएगा."

महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद और फ्रैंडली फाइट को अमिताभ तिवारी कुछ इस तरह से देखते हैं, "पिछली बार 15 सीटों का ही फासला था और अगर 10-12 सीटों पर फ्रैंडली फाइट है तो नुकसान तो होगा ही. वोट बटेंगे. नजदीकी मुकाबले में 10-12 सीट बहुत होता है. अगर यूपी की तरह 400 का विधानसभा होता तो ये चलता, लेकिन यहां तो 243 सीटें हैं. बिहार के परिपेक्ष्य में 10-12 सीटें बड़ा नंबर है."

बता दें कि पिछले बार के मुकाबले आरजेडी सिर्फ 1 सीट कम पर चुनाव लड़ रही, जबकि नामांकन वापसी के बाद कांग्रेस के 60 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार पार्टी ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 19 पर जीत दर्ज की थी.

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आरजेडी ने 40% विधायकों के टिकट काटे, कांग्रेस ने 12 पर भरोसा जताया

वर्तमान में विधानसभा में आरजेडी के 70 विधायक हैं. तेजस्वी यादव ने आरजेडी के 42 यानी 60 फीसदी मौजूदा विधायकों पर फिर से भरोसा जताया है, जिनमें पूर्व मंत्री आलोक मेहता, चंद्रशेखर, समीम अहमद, अवध बिहारी चौधरी, अनीता देवी जैसे प्रमुख नेता शामिल हैं. वहीं 28 या 40 फीसदी मौजूदा विधायकों का टिकट काटकर नए चेहरों और युवाओं को मौका दिया है. परफॉर्मेंस और स्थानीय स्तर पर नाराजगी को देखते हुए कई विधायकों के टिकट कटे हैं.

अनुभवी नेताओं के साथ-साथ नए चेहरों को लाकर तेजस्वी ने वोटर्स के सामने नया विकल्प पेश करने की कोशिश की है. युवा-आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश यादव को पार्टी ने दिनारा से मैदान में उतारा है. रघुनाथपुर के मौजूदा विधायक हरिशंकर यादव की जगह शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा को प्रत्याशी बनाया गया है.

पिछली बार कांग्रेस ने जिन 16 सीटों पर चुनाव लड़ा था, आरजेडी ने उनपर इस बार अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. इनमें से 2 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी, जबकि 13 सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी. हालांकि, इन सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए का दबदबा रहा है. ऐसे में इन सीटों पर आरजेडी का प्रदर्शन महागठबंधन के लिए अहम होगा.

आरजेडी ने हसनपुर सीट पर तेजप्रताप यादव की जगह माला पुष्पम को उम्मीदवार बनाया है. वहीं जहानाबाद से विधायक सुदय यादव को इस बार कुर्था से टिकट मिला है.

2020 में आरजेडी ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 पर जीत हासिल की. पार्टी का वोट शेयर करीब 5 फीसदी बढ़कर 23 फीसद तक पहुंच गया, लेकिन 2015 के मुकाबले 5 सीटों का नुकसान हुआ. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी 23 में से 4 सीटें जीतने में कामयाब रही. पार्टी का वोट शेयर सबसे ज्यादा 22% रहा.

दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने 12 मौजूदा विधायकों पर भरोसा जताया है. पार्टी ने कुटुंबा से प्रदेश अध्यक्ष और लगातार दो बार के विधायक राजेश राम को टिकट दिया है. भागलपुर से तीन बार के विधायक अजीत शर्मा को मैदान में उतारा है. पिछली बार वे मात्र 1,113 वोटों से जीते थे. पार्टी ने उन्हें 2024 लोकसभा चुनाव में भी उतारा था, लेकिन उन्हें 1 लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.

इसके अलावा कांग्रेस ने कदवा, मनिहारी, मुजफ्फरपुर, राजापाकर, बक्सर, राजपुर, करगहर, हिसुआ, अररिया और औरंगाबाद के मौजूदा विधायकों पर दांव लगाया है.

किशनगंज से मौजूदा विधायक इजहरुल हुसैन का टिकट कट गया है. उनकी जगह पूर्व AIMIM विधायक कमरुल हुदा पर पार्टी ने भरोसा जताया है. डेढ़ महीने पहले ही वे पार्टी में शामिल हुए थे. मुस्लिम बहुल सीट पर वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने और AIMIM के प्रभाव को कम करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. इसके अलावा पार्टी ने कस्बा, खगड़िया, बिक्रम और चेनारी सीट पर भी चेहरा बदला है.

पिछले चुनाव में 70 सीटों पर कांग्रेस लड़ी थी, लेकिन 51 पर हार गई थी. पार्टी के वोट शेयर में करीब 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन 2015 के मुकाबले 8 सीटों का नुकसान हुआ. 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 9 में से 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पार्टी का वोट शेयर और सीट दोनों बढ़ा था.

प्रवीण बागी कहते हैं, "उम्मीदवारों को लेकर ज्यादा विरोध नहीं हुआ, लेकिन कुछ जगहों पर लोगों में नाराजगी है. बांका में आरजेडी ने जेडीयू सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश रंजन को टिकट दिया है, जो पार्टी में बिल्कुल नए हैं. ऐसी गड़बड़ियां कांग्रेस की ओर से भी हुई हैं. बरबीघा सीट पर गजानंद शाही का टिकट काट दिया गया, पिछली बार वो मात्र 113 वोटों से चुनाव हारे थे."

बरबीघा से कांग्रेस ने त्रिशुलधारी सिंह को टिकट दिया है.

वीआईपी का बढ़ा कद, आईआईपी को भी मौका

सीपीआई(एमएल) सहित लेफ्ट की अन्य पार्टियों ने अपने मौजूदा विधायकों पर भरोसा जताया है. पिछली बार वाम दलों ने 16 सीटों पर कब्जा जमाया था.

इस बार महागठबंधन के सहयोगी के रूप में वीआईपी ने 15 उम्मीदवारों का ऐलान किया था. हालांकि, मधुबनी की बाबूबरही सीट से पार्टी प्रत्याशी बिंदु गुलाब यादव ने नामांकन वापस ले लिया है. तारापुर से सकलदेव बिंद ने पार्टी छोड़ दी है.

दरभंगा की गौरा बौराम हॉट सीट मानी जा रही है. यहां से मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी मैदान में हैं. वहीं आरजेडी के सिंबल पर अफजली अली भी चुनाव लड़ रहे हैं. दरअसल, आरजेडी ने पहले अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला कर लिया था. पार्टी नेतृत्व ने उम्मीदवार भी घोषित कर दिया, लेकिन बाद में ये सीट वीआईपी के खाते में चली गई. आरजेडी उम्मीदवार के पीछे नहीं हटने से यहां भी त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है.

2020 में वीआईपी पार्टी एनडीए का हिस्सा थी. पार्टी ने चार सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2022 में तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, जबकि एक की मौत हो गई.

पूर्व कांग्रेस नेता आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सहरसा से खुद आईपी गुप्ता मैदान में है. जमालपुर से नरेंद्र तांती और बेलदौर से तनीषा चौहान. दरअसल, गुप्ता लंबे समय से तांती-ततवा (पान) समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं. अप्रैल महीने में पटना में पान महारैली का आयोजन कर वे सुर्खियों में आए थे.

आईआईपी को गठबंधन में शामिल करने का सबसे बड़ा कारण कास्ट फैक्टर को माना जा रहा है. जाति सर्वेक्षण के मुताबिक, पान समुदाय की आबादी करीब 1.7 फीसदी है. आईआईपी के जरिए महागठबंधन की नजर ईबीसी जातियों पर है. गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तांती-ततवा को अनुसूचित जाति की सूची से बाहर कर दिया गया था.

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38 सवर्ण, 32 कुर्मी-कुशवाहा प्रत्याशी उतारे

महागठबंधन में टिकट देने में पार्टियों ने सोशल इंजीनियरिंग का भी दिया है. यादवों और मुसलमानों जैसे अपने पारंपरिक वोट बैंक को साधने के लिए आरजेडी ने करीब 36 फीसदी टिकट यादव समुदाय के उम्मीदवारों को दिया है. वहीं पार्टी ने करीब 13 फीसदी मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं.

आरजेडी ने आगामी चुनावों में 18 कुर्मी-कुशवाहा, 51 यादव, 8 वैश्य, 14 अपर कास्ट, 33 ईबीसी, 19 एससी और 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इनमें 24 महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं.

आरजेडी गैर-यादव ओबीसी यानी कुर्मी-कुशवाहा वोटर्स पर भी फोकस कर रही है. पार्टी ने करीब 13 फीसदी टिकट इन दो जातियों के उम्मीदवारों को दिया है. लोकसभा चुनाव में तेजस्वी ने दो सीटों औरंगाबाद और नवादा से क्रमशः अभय कुशवाहा और श्रवण कुमार कुशवाहा को टिकट दिया था. आरजेडी का यह दांव सटीक बैठा और अभय कुशवाहा ने जीत दर्ज की. ऐसे में पार्टी एक बार फिर दांव लगा रही है.

जाति सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार में कुशवाहा जाति आबादी 4.27% और कुर्मी की 2.87% फीसदी है. कुर्मी-कुशवाहा यानी लव-कुश को पारंपरिक रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कोर वोटबैंक माना जाता है.

पिछड़ी जातियों में यादव 14.26% और धानुक 2.13% हैं.

कांग्रेस ने करीब एक-तिहाई यानी 19 उम्मीदवार सवर्ण समुदायों से उतारे हैं. पार्टी के उम्मीदवारों में 14 ओबीसी, 6 अति पिछड़ी जाति, 10 अनुसूचित जाति के उम्मीदवार भी शामिल हैं. कांग्रेस ने 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. सबसे ज्यादा सवर्णों को टिकट देना दिखता है कि कांग्रेस बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाकर अपनी खोई जमीन हासिल करने की फिराक में है.

वीआईपी ने 3 यादव, 1 कुर्मी-कुशवाहा, 2 अपर कास्ट, 1 एससी और विशेष मतदाता समूहों को ध्यान में रखते हुए 8 ईबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया है.

लेफ्ट पार्टियों ने भी क्षेत्रवार जातिगत समीकरण का ध्यान रखा है. कोइरी 7, यादव 8, वैश्य 2, सवर्ण 3 और 10 दलित प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं.

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बिहार में क्या और कमोजर हुई कांग्रेस?

महागठबंधन में जिस तरह से समीकरण बने हैं, उसके बाद से कांग्रेस की रणनीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं. महागठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस से डिप्टी सीएम कैंडिडेट के नाम की घोषणा नहीं हुई. जबकि, डिप्टी सीएम का एक पद मुकेश सहनी को दे दिया गया. वीआईपी का फिलहाल न कोई सांसद है और न ही विधायक.

प्रवीण बागी कहते हैं, "ये कांग्रेस का इतिहास रहा है. 2010 में भी इसी तरह से सीटों को लेकर तनातनी हुई थी. तब सोनिया गांधी अध्यक्ष थीं. आरजेडी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस ने सरेंडर करते हुए आरजेडी का समर्थन किया था."

"कांग्रेस ने उसी तरह इस बार भी शुरू में तेवर दिखाया. तेजस्वी जब दिल्ली गए तो राहुल गांधी मिले तक नहीं. पटना लौटने के बाद तेजस्वी ने भी तेवर कड़े कर लिए. प्रदेश स्तर पर बातचीत बंद हो गई थी. फिर कांग्रेस ने स्थिति का मूल्यांकन किया होगा और देखा होगा कि ये उनके लिए घाटे का सौदा हो सकता है. जिसके बाद तनाव दूर करने के लिए अशोक गहलोत को भेजा गया था. लालू, तेजस्वी और राबड़ी से गहलोत ने अकेले में मुलाकात की. कांग्रेस प्रदेश स्तर का कोई नेता मौजूद नहीं था. जहां उन्होंने तेजस्वी की बातें मान ली और सरेंडर कर दिया."
प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस से उपमुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं होने पर प्रवीण कहते हैं कि इस पर आरजेडी ने आपत्ति जताई होगी. "डिप्टी सीएम पोस्ट के लिए कांग्रेस की ओर से अगर राजेश राम के नाम की घोषणा की जाती तो उससे पार्टी को फायदा मिल सकता था. राजेश राम रविदास समुदाय से आते हैं और प्रदेश में फिलहाल रविदासों का कोई बड़ा नेता नहीं है," वे आगे कहते हैं.

जाति सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार में रविदास समुदाय की आबादी करीब 5.25 फीसदी है.

मनीष आनंद कहते हैं, "बिहार में कांग्रेस की इमेज भूमिहारों की पार्टी की है. जबकि राहुल गांधी मंडल की राजनीति कर रहे हैं. वे आरक्षण बढ़ाने की बात कर रहे हैं. दूसरे प्रदेश में मजूबत लीडरशिप की भी कमी है. इस वजह से थोड़ा अलगाव था और जो 70 सीटें मांग रहे थे वो नहीं मिल पाया."

साथ ही वे कहते कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि बिहार से रिवाइवल का रास्ता शुरू हो सकता है. 1924 के बेलगाम अधिवेशन के शताब्दी समारोह में पार्टी के रिवाइवल से जुड़ा प्रस्ताव पारित किया गया था. इसके लिए कांग्रेस ने बिहार पर फोकस किया था.

अगस्त में राहुल गांधी ने प्रदेश में वोट अधिकारी रैली निकाली थी. 2 हफ्ते में उन्होंने 20 से ज्यादा जिलों में 1300 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की थी. राहुल की रैलियों में भारी संख्या में लोग भी जुटे थे. जिसके बाद से चुनावों में कांग्रेस की कमबैक की उम्मीद की जा रही थी.

बिहार में दो चरणों में 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होगी. पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान होगा, जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. चुनाव का नतीजा 14 नवंबर हो आएगा.

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