महाश्वेता देवी का उपन्यास है. 1084वीं की मां. ये नंबर एक शव का था. एक मां को पता चलता है कि उसका बेटा पुलिस मुर्दाघर में लाश नंबर 1084 के रूप में पड़ा है. महाकुंभ हादसे के बाद मुर्दाघर में शवों की पहचान कुछ ऐसे ही नंबर हैं. शव नंबर-54 की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. हादसे में 30 लोगों की मौत हुई तो नंबर-54 क्या है? उमेश सराठे को सरकारी एंबुलेंस नहीं मिली तो करीब 40 हजार रुपए लगाकर शव घर ले गए. ऐसे ही कुछ केस के जरिए बताते हैं कि सरकार ने जो दावे किए और हादसे के बाद सच बताया उसपर क्या-क्या बड़े सवाल उठते हैं?
जिस महाकुंभ में हेलिकॉप्टर से फूलों की बारिश कराई गई. वहां हुई मौत के बाद परिजनों को शव ले जाने के लिए सरकारी एंबुलेंस तक नहीं मिली. जिस महाकुंभ को रेत पर बसा सबसे बड़ा हाईटेक मेला कहा गया. वहां मृतकों के परिजनों को डेथ सर्टिफिकेट देने की बजाय हाथ से लिखा कागज का एक टुकड़ा पकड़ा दिया गया. जिस महाकुंभ में 50 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए. चप्पे-चप्पे पर नजर रखने के लिए AI बेस्ड 360 डिग्री हाईटेक कैमरे लगाए गए. वहां भगदड़ होने का दावा किया गया लेकिन पुलिस अधिकारी कहते हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी तक नहीं. जिस महाकुंभ में रीयल टाइम में श्रद्धालुओं की गिनती बताई गई. वहां मौत का आंकड़ा बताने में 17 घंटे क्यों लग गए?
महाकुंभ की भव्यता और दिव्यता के साथ ये सब भी दर्ज हो गया. 29 जनवरी की भगदड़ में कई जिंगदियां खत्म हो गईं. सरकारी आंकड़े तो 30 के हैं, लेकिन चश्मदीदों और द क्विंट को मिले कुछ कागज के टुकड़े बताते हैं कि संख्या इससे बहुत ज्यादा है. लापता लोगों की भी लंबी लिस्ट है.
सांसों के उखड़ने और अपनों से बिछड़ने की कितनी कहानियां कहीं जाएं? सवाल अब इससे आगे का है. जिम्मेदारों की जिम्मेदारी तय करने और दावों के बीच हकीकत की परत उधेड़ने का है. सवाल की शुरूआत महाकुंभ के जिम्मेदारों के जवाब से ही करेंगें. लेकिन उससे पहले कागज का ये टुकड़ा देखिए.
"मेरी मृत मां के हाथ पर भी नंबर 54 लिखा था"
आजमगढ़ के महेंद्र मिश्रा को उनकी पत्नी रवि कला मिश्रा के शव के साथ कागज का टुकड़ा दिया गया. इसपर आधार नंबर और तारीख दर्ज है. कागज के नीचे लिखे नंबर पर गौर कीजिए. नंबर 54. कागज को देखने से दो सवाल उठते हैं. पहला, इसपर किसी डॉक्टर या अधिकारी का सिग्नेचर क्यों नहीं है? दूसरा और महत्वपूर्ण सवाल.....नंबर 54 क्या है? द क्विंट ने इसे लेकर मृतका रवि कला के बेटे से बात की, उन्होंने कहां,
"कागज के अलावा मेरी मां के हाथ पर भी यही नंबर लिखा था. इतना ही नहीं.जिस कवर से मां के शव को लपेटा गया उसपर भी यही नंबर था."
नहीं पता कि ये नंबर क्या है. शव नंबर है या कुछ और? सरकार ने 30 की मौत का जिक्र किया. लेकिन अगर ये शव नंबर है तो क्या मौत का आंकड़ा 54 या फिर उससे ज्यादा है?
परिजनों को नहीं दिया गया डेथ सर्टिफिकेट
परिजनों को डेथ सर्टिफिकेट नहीं देने का मामला सिर्फ आजमगढ़ के महेंद्र का नहीं बल्कि कोलकाता के रहने वाले सुरजीत पोद्दार को मां और पश्चिम मेदिनीपुर के दुलाल भुनिया को उनकी बहन का भी डेथ सर्टिफिकेट नहीं दिया गया. महेंद्र मिश्रा को अपने लोकल थाने से कागज का एक और टुकड़ा मिला. लेकिन उसपर भी किसी आधिकारिक का सिग्नेचर नहीं था. हां. साफ तौर पर भगदड़ का जिक्र किया गया. लिखा गया कि रवि कला की मौत प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ में हुई.
"किसी सरकार ने मदद नहीं की, खुद 40 हजार रु लगाए"
मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम में रहने अनिल ने अपने भाई उमेश सराठे को खो दिया. शव लेने प्रयागराज पहुंचे तो उन्हें सरकारी एंबुलेंस तक नहीं मिली. अनिल ने द क्विंट को बताया कि न ही यूपी और न ही एमपी की सरकार ने मदद की. सबकुछ खुद से ही अरेंज किया. अपनी जेब से 40 हजार रुपए लगाए. तीन बार एम्बुलेंस बदलनी पड़ी. तब कहीं जाकर भाई का शव लेकर घर पहुंच सके.
महाकुंभ के लिए 7000 बसें चलाने का दावा किया गया, लेकिन सतना के 70 साल के बलिकरण सिंह और उनकी 60 साल की पत्नी देवी सिंह को भगदड़ के बाद घर पहुंचने के लिए 60 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा.
कुंभ हादसे के बाद जिम्मेदारों के जवाबों से उठते सवाल
अब वापस अपने मूल सवाल पर आते हैं. मैंने पहले ही कहा था कि सवालों की शुरूआत उन जवाबों से करेंगे, जो महाकुंभ के जिम्मेदारों ने हादसे पर दिए. एक-एक कर उनकी बात करते हैं. पहला जवाब आया कुंभ मेले के एसएसपी राजेश द्विवेदी का. उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि कोई भगदड़ भी हुई है. कहा कि भीड़भाड़ ज्यादा थी, जिसकी वजह से कुछ श्रद्धालु घायल हो गए.
मेले की ओएसडी आकांक्षा राणा ने कहा है कि संगम नोज पर कुछ बैरियर टूटने पर भगदड़ जैसी स्थिति बन गई थी. कुछ लोग घायल हैं. कोई गंभीर स्थिति नहीं है. योगी सरकार के मंत्री संजय निषाद कहते हैं कि इतने बड़े आयोजन में छोटी-मोटी घटना हो जाती है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ट्वीटर हैंडल से ट्वीट किया गया कि संगम के सभी घाटों पर शांतिपूर्वक स्नान हो रहा है. किसी भी अफवाह पर बिल्कुल भी ध्यान न दें.
रात में हादसा हुआ. सुबह हुई. दोपहर के बाद शाम हुई. मौनी अमावस्या पर शंकराचार्यों ने अमृत स्नान किया. नागा साधुओं ने तलवारें लहराईं. हेलिकॉप्टर से संतों और श्रद्धालुओं पर फूलों की बारिश की गई. पूरे दिन ये सबकुछ चला. लेकिन कहीं से भी किसी ने मौत का कोई आधिकारिक डाटा जारी नहीं किया. ये तक पता नहीं चला कि किसी की मौत हुई है या नहीं.
अमृत स्नान खत्म होने यानी करीब 17 घंटे बाद महाकुंभ मेले के DIG वैभव कृष्ण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि 30 श्रद्धालुओं की मौत हुई है. 60 घायल हैं. ऐसे में सवाल कि आखिर मौतों की संख्या बताने में इतना वक्त क्यों लग गया? हादसे की वजह पर डीआईजी वैभव कृष्ण ने जवाब दिया...
"मेला क्षेत्र में अखाड़ा मार्ग पर भारी भीड़ का दबाव बना. इस भीड़ के दबाव के कारण दूसरी ओर के बैरिकेड्स टूट गए. भीड़ के लोग बैरिकेड फांदकर दूसरी तरफ स्नान का इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं को कुचलना शुरू कर दिया."
भीड़ को ही हादसे की जिम्मेदार बता दिया. लेकिन सवाल है कि भीड़ को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी किसकी थी? क्या जब बैरिकेड्स टूटे तो वहां पुलिस मौजूद नहीं थी?
हादसे से पहले VIP पास रद्द करते तो शायद स्थिति कुछ होती?
महाकुंभ मेले में वीआईपी ट्रीटमेंट को लेकर लगातार सवाल उठते रहे. निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी ने कहा था, प्रशासन आम तीर्थयात्रियों की सुरक्षा की चिंता करने की बजाय वीआईपी लोगों की सेवा पर ज्यादा ध्यान दे रहा है. हादसे के बाद आखिरकार योगी सरकार ने अमृत स्नान और अन्य प्रमुख स्नान पर्वों पर वीआईपी प्रोटोकॉल पर रोक लगा दी. वीआईपी पास रद्द करने पड़े.
महाकुंभ में ड्रोन और सीसीटीवी कैमरे से निगरानी की जा रही थी.ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों को साफ-साफ क्यों पता नहीं चला कि महाकुंभ में किन-किन जगहों पर भगदड़ जैसे हालात बने? उनके पास इस बात का जवाब क्यों नहीं था कि हादसा सिर्फ एक जगह संगन नोज पर हुआ या फिर दूसरी जगह झूंसी में भी?
मौत की संख्या 30, 54 या उससे भी बहुत ज्यादा?
इन सबके बीच सबसे ज्यादा सवाल लापता, घायल और मौतों की संख्या को लेकर उठ रहे हैं. कागज और शव के हाथ पर लिखा नंबर 54 क्या है? क्या जब सरकार की तरफ से 30 मौतों का आंकड़ा दिया गया तब उनके पास ये जानकारी नहीं थी? चश्मदीदों के बयानों का क्या किया जाए? उनके मुताबिक, संख्या 30 से बहुत ज्यादा शायद 100-150 तक हो सकती है. तमाम वीडियो और दावे हैं, ऐसे में सरकार की तरफ से क्यों नहीं स्पष्ट किया जाता कि शव के हाथ पर लिखा ये नंबर या चश्मदीदों के दावे सही हैं या फिर सरकारी आंकड़े? सवाल अभी भी जस का तस है. किसकी गलती से इतना बड़ा हादसा हुआ? इतनी मौतों का जिम्मेदार कौन है.