"मैंने प्रमोशन के लिए अप्लाई किया था, 2 जून को इंटरव्यू हुआ. इस दौरान डीन, एचओडी और वाइस चांसलर के बीच कुछ बात हो रही थी. जो मैंने सुना वो मेरे कास्ट को लेकर हो रही थी कि ये अनुसूचित जाति (SC) का कैंडिडेट है, हालांकि मेरा जो रिक्रूटमेंट असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए हुआ था वो अनरिजर्वड कैटेगरी में हुआ था. एससी का एंगल तब आता है जब आप कहीं डिस्कस कर रहे हैं, इंटरव्यू के दौरानी ऐसी चीजों को क्यों डिस्कस कर रहे थे."
दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोफिजिक्स में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार का आरोप है कि उन्हें प्रोफेसर पद के लिए प्रमोट नहीं किया गया, विश्वविद्यालय की चयन समिति ने उन्हें "उपयुक्त नहीं" (Not Found Suitable) करार दिया, जबकि उनके दो जूनियर साथियों को प्रमोशन दे दिया गया. हालांकि डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रमुख (HOD) प्रोफेसर देबज्योति चौधरी ने डॉ. अशोक कुमार के जातिगत टिप्पणी और भेदभाव के आरोपों को खारिज किया.
द क्विंट से बात करते हुए डॉक्टर अशोक कुमार कहते हैं कि उन्होंने सभी शैक्षणिक मानक पूरे किए थे — रिसर्च पेपर, पीएचडी गाइडेंस, टीचिंग एक्सपीरियंस और अंतरराष्ट्रीय योगदान तक — फिर भी उन्हें सिर्फ इसलिए रोका गया, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से आते हैं. उनका आरोप है कि चयन प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और जातिगत भेदभाव से प्रभावित थी.
अब इस फैसले पर न केवल सवाल उठ रहे हैं, बल्कि जातिगत भेदभाव के आरोपों ने यूनिवर्सिटी की चयन प्रक्रिया पर गंभीर शक खड़ा कर दिया है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, दिल्ली यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोफिजिक्स में तीन एसोसिएट प्रोफेसरों ने करियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत प्रमोशन के लिए आवेदन किया था. विश्वविद्यालय ने इसके लिए एक चयन पैनल गठित किया था जिसकी अध्यक्षता कुलपति (वाइस चांसलर) योगेश सिंह ने की थी. इस पैनल में चार सब्जेक्ट एक्सपर्ट, एससी समुदाय से एक फैकल्टी मेंबर और विजिटर के नामित प्रतिनिधि (Designated Representative of the Visitor) शामिल थे.
चयन पैनल ने 2 जून को उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया और कुमार से जूनियर दो फैक्टी मेंबर के प्रमोशन की सिफारिश की.
डॉ. कुमार CERN जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में वैज्ञानिक के तौर पर काम कर चुके हैं और उनके साथियों के अनुसार उनके पास 120 का h-इंडेक्स है, जो भारत के अधिकतर प्रोफेसरों से कई गुना ज्यादा है. उन्होंने अप्रैल 2021 में प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन 2 जून 2025 को हुई इंटरव्यू प्रक्रिया के बाद विश्वविद्यालय की चयन समिति ने उन्हें "उपयुक्त नहीं" करार दिया.
'इंटरव्यू के दौरान जातिगत टिप्पणियां'
डॉक्टर अशोक कुमार दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप 10 साइंटिस्टों में 5 वे नंबर पर आते हैं. 17 साल से दिल्ली यूनिवर्सिटी में है. लेकिन जब उन्हें प्रोफेसर पद के प्रमोशन के लिए इंटरव्यू में बुलाया गया, तो उनके मुताबिक, माहौल बिल्कुल भी अनुकूल नहीं था. अशोक कुमार ने बताया, "2 जून 2025 को मेरा इंटरव्यू हुआ, तीन एक्सपर्ट्स थे साथ में वाइस चांसलर, हेड ऑफ डिपार्टमेंट कम डीन थे. इंटरव्यू में बहुत अच्छा माहौल नहीं था. इंटरव्यू काफी प्रेशर वाला था. मुझे ज्यादा परेशान किया और मेरा बहुत शॉर्ट इंटरव्यू हुआ 20 मिनट के करीब और उसमें मतलब एक्सपर्ट्स बहुत ज्यादा एक्साइटेड थे.
चयन प्रक्रिया पर सवाल
डॉ. अशोक कुमार ने इंटरव्यू पैनल में शामिल विशेषज्ञों की योग्यता और निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि तीन में से दो एक्सपर्ट्स का रवैया बेहद पक्षपातपूर्ण था.
"इंटरव्यू के दौरान जो बातें वो मुझसे कह रहे थे, उन्हीं बातों के ठीक उलट चीजे उनके अपने सीवी में दर्ज हैं. ऐसे विशेषज्ञ हर बार हमारे विभाग के इंटरव्यू पैनल में शामिल होते हैं, जिससे प्रक्रिया की निष्पक्षता पर संदेह होता है." डॉ. कुमार ने कहा.
उन्होंने आगे कहा कि जिन दो लोगों को प्रमोशन मिला है, उनके मुकाबले मेरी शैक्षणिक योग्यता और उपलब्धियां कई गुना ज्यादा हैं.
'मेरे पास अबतक अपना ऑफिस नहीं'
डॉ. कुमार ने प्रमोशन से वंचित किए जाने को अपने खिलाफ जातिगत भेदभाव बताया. उन्होंने कॉलेज प्रशासन पर यह भी आरोप लगाया कि उन्हें अब तक कभी स्थायी ऑफिस नहीं दिया गया, और जब 2021 में उन्होंने शोध अवकाश के लिए आवेदन किया, तो उन्हें हाई कोर्ट का रुख करने के बाद ही बिना वेतन का अवकाश मिला.
वो आगे कहते हैं, "आप कुछ भी कर लीजिए दुनिया को सबसे बड़ा प्राइज भी जीत लीजिए, लेकिन आपको (जाति की वजह से) छोटा ही रखा जाएगा."
HOD ने आरोपों को नकारा: चयन में जाति का कोई रोल नहीं
डिपार्टमेंट ऑफ फिजिक्स एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रमुख (HOD) प्रोफेसर देबज्योति चौधरी ने डॉ. अशोक कुमार के जातिगत टिप्पणी और भेदभाव के आरोपों को खारिज किया. उन्होंने कहा कि चयन प्रक्रिया विश्वविद्यालय के तय मानकों और नियमों के अनुसार ही पूरी की गई.
"इंटरव्यू के दौरान जाति की कोई चर्चा नहीं हुई. डॉ. अशोक का आवेदन सामान्य श्रेणी की पोस्ट पर था, तो जाति का सवाल ही नहीं उठता. सभी उम्मीदवारों को बराबर मौका दिया गया. पैनल का निर्णय पूरी तरह सामूहिक था और किसी एक व्यक्ति की राय पर आधारित नहीं था. अगर किसी पैनल सदस्य के मन में किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह हो, तो मुझे कैसे पता चलेगा?"
प्रो. चौधरी ने कहा कि चयन का अंतिम फैसला बाहरी विशेषज्ञों पर निर्भर करता है. "अगर डॉ. अशोक को लगता है कि उनकी अच्छी प्रोफाइल होने के बावजूद उन्हें सिलेक्ट नहीं किया गया, तो यह तो यह सवाल बाहरी विशेषज्ञों से पूछा जाना चाहिए. पैनल में चार बाहरी विशेषज्ञ थे, जिन्हें विश्वविद्यालय द्वारा नियुक्त किया गया था और वे अपने अनुभव के आधार पर फैसला लेते हैं."
उन्होंने आगे कहा, "इसी कमिटी ने 21 ओपन पोस्ट के उम्मीदवारों में से 11 लोग बैकवर्ड और एससी समुदाय से चुने हैं. ऐसे में पक्षपात का आरोप लगाना सही नहीं है."
डॉ. अशोक के आरोपों को खारिज करते हुए प्रोफेसर देबज्योति चौधरी ने कहा कि यह बिल्कुल सही नहीं है कि उन्हें स्थायी ऑफिस नहीं मिला. उन्होंने कहा, "डॉ. अशोक को विभाग में स्थायी ऑफिस और लैब दोनों ही आवंटित किए गए हैं."
हालांकि डॉक्टर अशोक का कहना है कि पिछले 19 सालों से उन्हें ऑफिस स्पेस नहीं मिला. "मैं इतने सालों से क्यूबिकल में बैठ रहा हूं. मुझसे जूनियर्स को ऑफिस स्पेस मिला लेकिन मुझे टेंपरेरी स्पेस मिला."
NFS को लेकर लगातार उठ रहे हैं सवाल
यह मामला ऐसे समय सामने आया है जब आरोप लग रहे हैं कि 'एनएफएस' (Not Found Suitable) को उच्च शिक्षा संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी संकाय सदस्यों को अवसर से वंचित रखने के औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पिछले महीने एक्स पर पोस्ट किया था कि 'Not Found Suitable' अब नया मनुवाद है.
राहुल गांधी ने 27 मई को पोस्ट किया था, "SC/ST/OBC के योग्य उम्मीदवारों को जानबूझकर ‘अयोग्य’ ठहराया जा रहा है - ताकि वे शिक्षा और नेतृत्व से दूर रहें."
'नॉट फाउंड सूटेबल' पर विवाद?
2022 में एससी और एसटी के कल्याण के लिए गठित संसद की एक समिति ने भी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पात्र उम्मीदवारों को अवसर से वंचित करने के लिए एनएफएस के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताई थी.
दिल्ली विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले शिक्षकों के संगठन सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) और नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित ऑर्गनाइजेशन (NACDOR) ने विश्वविद्यालय के इस निर्णय में जातिगत पक्षपात का आरोप लगाया है और कुलपति से इस्तीफे की मांग की है.
NACDOR के अध्यक्ष अशोक भारती ने कहा कि विश्वविद्यालयों में 90% एनएफएस मामले एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों से जुड़े होते हैं.
उन्होंने कहा, "ब्यूरोक्रेसी और अकादमिक जगत में राजनीति चरम पर है. इंटरव्यू बोर्ड में ज्यादातर अगड़ी जातियों के लोग होते हैं, जो गैर-सवर्ण उम्मीदवारों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हैं। इंटरव्यू की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य होनी चाहिए."