हाल ही में प्रयागराज कुंभ (Kumbh Stampede) और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (NDLS Stampede) पर हुए हादसों ने एक बार फिर विक्टिम ब्लेमिंग और भगदड़ जैसी स्थितियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. 15 फरवरी 2025 को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मची, जिसमें 18 लोगों की जान चली गई. इसके बाद सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी तय करने के बजाय, कुछ लोगों ने बढ़ती जनसंख्या को दोषी ठहराया. यह विक्टिम ब्लेमिंग का स्पष्ट उदाहरण है, जहां पीड़ितों को ही दोषी मान लिया जाता है.
कुंभ मेले में भी भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हुई, जहां सरकारी आंकड़ों के अनुसार 37 लोगों की मौत हुई. हालांकि, कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक होने की आशंका है. अधिकारियों ने शुरू में भगदड़ को नकारा और इसे "भगदड़ जैसी स्थिति" बताया. यह एक नया ट्रेंड बन गया है, जहां हादसों की गंभीरता को कम करके दिखाया जाता है.
मेले में भीड़ जुटाने के लिए 144 साल जैसे मिथकों का प्रचार किया गया. असहमति जताने वालों को उलटा सनातन विरोधी और देशद्रोही कहा जाने का एक और ट्रेंड चल रहा है. लेकिन सवाल यह है कि कुंभ में हादसे को रोकने की जिम्मेदारी किसकी है? क्रेडिट चाहिए, लेकिन हादसों पर जवाबदेही नहीं?
क्राउड मैनेजमेंट की विफलता इन हादसों की मुख्य वजह है. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, भीड़ प्रबंधन के लिए स्पष्ट योजना, समन्वय और जिम्मेदारियों का निर्धारण जरूरी है. लेकिन कुंभ और दिल्ली रेलवे स्टेशन पर यह नहीं हो पाया. कुंभ मेले में सीसीटीवी कैमरों से भीड़ को गिना जा रहा था, लेकिन भगदड़ को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए.
आंकड़ों की बात करें तो साल 2022-23 में 1,42,897 यात्री ट्रेनें देरी से चलीं. साल 2019-20 से लेकर 2023-24 तक 1,16,060 मेल और एक्सप्रेस ट्रेनें रद्द की गईं. मतलब हर घंटे करीब 3 ट्रेनें कैंसिल हुईं.
रेल हादसों की बात करें तो मोदी सरकार के 10 सालों में, यानी 2014 से 2024 के बीच, करीब 1100 लोगों की मौत हुई है.
सवाल यह है कि कब तक हादसों की जिम्मेदारी लेने के बजाय, नेहरू, विपक्ष, पत्रकार, अफवाह, धर्म विरोधी, देशद्रोही, भगदड़ जैसी स्थिति, विक्टिम ब्लेमिंग और सिविक सेंस को दोष देकर असली सवाल को छिपाया जाएगा? देश पूछ रहा है, जनाब, ऐसे कैसे?