पिछले हफ्ते दो खबरें सुर्खियों में थी. पहली- भारतीय मूल की अमेरिकी एस्ट्रोनॉट सुनीता विल्यिम्स 9 महीने बाद धरती पर लौटीं. दूसरी तस्वीर 318 साल पहले मर चुके मुगल साम्राज्य के बादशाह औरंगजेब की कब्र खोदने की मांग उठाने वालों की. आप कहेंगे ये क्या कंपेरिजन है. दरअसल, जहां दुनिया अंतरिक्ष से धरती का सफर कुछ घंटो में तय करने पर फोकस कर रही है, जहां ग्रोक, चैटजीपीटी, डीपसीक जैसे AI टूल बनाकर इतिहास बनाया जा रहा है, वहीं भारत में कुछ लोग गड़े मुर्दे उखाड़ने में लगे हैं.
औरंगजेब की मौत के बाद करीब 110 साल तक मराठा साम्राज्य था, फिर भी वहां मराठाओं ने अपने कट्टर दुशमन औरंगजेब की महाराष्ट्र में बनी कब्र को खोदने का टेंडर नहीं निकाला, लेकिन लोकतंत्र में जन्मे राजतंत्र की याद में लड़ने वाले कुछ लोग औरंगजेब की कब्र को मिटाने के लिए 'बुलडोजर' पर सवार हैं.
जिसका नतीजा ये हुआ कि नागपुर शहर जल उठा. कई घायल हुए, कई गाड़ियां जलाई गईं. अब सवाल है कि 10 साल से सेंटर और करीब 8 साल महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार है, फिर इन नेताओं को अब औरंगजेब की कब्र खोदने की याद क्यों आ गई? औरगंजेब की कब्र खोदकर क्या मिलेगा? क्या औरंगजेब की कब्र खोदने से इतिहास बदल जाएगा?
इस आर्टिकल में हम बताएंगे कि जिस महाराष्ट्र में सीएम से लेकर भड़काऊ बयान के सहारे खबरों में बने रहने वाले नेता औरंगजेब पर जुबानी 'तलवार' चला रहे हैं, उस महाराष्ट्र का हाल क्या है? एजुकेशन से लेकर हेल्थ सिस्टम और किसानों की जिंदगी, सॉरी उनके मौत के आंकड़े क्या हैं? या फिर ऐसा तो नहीं है कि औरंगजेब बहाना है, कहीं और निशाना है?
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नागपुर हिंसा के पीछे की कहानी?
17 मार्च 2025 को विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल के सदस्यों ने नागपुर के महल इलाके में प्रदर्शन किया, 'जय श्री राम' और 'जय भवानी, जय शिवाजी' के नारों के बीच औरंगजेब का पुतला जलाया और औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग रखी. और इसी बीच औरंगजेब के पुतले के साथ कथित कुरान की आयत वाली हरी चादर जलाने की खबरें फैलीं. जिसके बाद नागपुर में तनाव बढ़ गया.
ये सब शुरू हुआ है मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज के ऊपर बनी बॉलिवुड एक्टर विक्की कौशल और अक्षय खन्ना की फिल्म ‘छावा’ की रिलीज के बाद. कभी फिल्म के सहारे औरंगजेब की कब्र तोड़ने की बात हो रही है तो कभी मुसलमानों को नसीहत दी जा रही है. कोई औरंगजेब को अक्रांता कह रहा है और हिंदू मंदिरों को तोड़ने वाला तो कोई ऐसा शासक बता रहा जिसने मंदिरों के लिए भी पैसे दिए थे. लेकिन इन सबके बीच सवाल है कि क्या औरंगजेब के सहारे नफरत फैलाने की कोशिश हो रही है, क्या मुद्दों से भटकाने की कोशिश हो रही है?
आप कहेंगे कौन सा मुद्दा. पहले ये बयान देखिए-
"कानून की बात हो रही है तो फिर जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, तब किसी ने किसी से पूछकर काम नहीं किया था. कारसेवक अपने काम में लगे थे, और राज्य सरकार अपने काम में. अब बाबरी मस्जिद जैसी कार्रवाई दोहराने का सही समय आ गया है."
ये बयान फडणवीस साहब की सरकार में मंत्री नितेश राणे का है. 17 मार्च यानी जिस दिन नागपुर में हिंसा हुई है उसी दिन नितेश राणे ने ये बयान दिया था.
तो कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सीएम फडणवीस अपने बड़बोले मंत्री पर एक्शन लेंगे क्या?
औरंगजेब के सहारे क्या छिपाया जा रहा है?
औरंगजेब की बात हो रही है लेकिन आपके जेब की नहीं. नहीं समझे? दरअसल, कर्जदार राज्यों में महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर है. महाराष्ट्र का मौजूदा कर्ज 9 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है. अगर महाराष्ट्र के कर्ज को लोगों के हिसाब से देखा जाए तो हर नागरिक पर 72,761 रुपये का कर्ज है. यह जानकारी हर साल राज्य के बजट का विश्लेषण करने वाली एनजीओ समर्थन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है.
हालांकि मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने दावा किया कि सिर्फ महाराष्ट्र और कुछ राज्यों ने सरकारी ऋण-जीएसआई अनुपात को इस स्तर पर बनाए रखा है, जबकि अन्य सभी राज्यों में सरकारी ऋण-जीएसआई अनुपात बहुत अधिक है.
अब सवाल क्या औरंगजेब की कब्र खोदने से किसानों की जमीन पर खेती लहलहाएगी?
पिछले 10 सालों में ढाई साल को छोड़ दें तो महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार में है. और इन 10 सालों में यानी 2015 से 2024 के बीच महाराष्ट्र में 27,866 किसानों की suicide से मौत हुई है. तो इन किसानों की मौत की वजह औरंगजेब को मान लिया जाए क्या?
अब जब नेता धर्म और जाति के चश्मे से इतिहास को देख रहे हैं तो फिर पढ़ाई की बात भी होनी चाहिए. जिस महाराष्ट्र में औरंगजेब पर बयानों से थेसिस लिख रहे हैं उस महाराष्ट्र के स्कूलों का हाल भी जानते हैं.
शिक्षा मंत्रालय के अंदर वाली Unified District Information System for Education (UDISE) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में 8196 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक टीचर हैं. और इन 8196 स्कूलों में 167534 बच्चों के एडमिशन हैं. देश की बात करें तो देशभर में 1471891 स्कूल हैं, इनमें से 110971 स्कूलों में सिर्फ एक टीचर हैं.
2024 के जनवरी में सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन टीचर एजुकेशन (CETE) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में सिर्फ 46% प्राइमरी स्कूल के टीचर के पास उचित योग्यता है. मैथ्स पढ़ाने वाले 35-41 फीसदी टीचर ऐसे हैं जिन्होंने अंडर ग्रैजुएट लेवल पर मैथ्स नहीं पढ़ा था.
महाराष्ट्र की 'सेहत' खराब?
दिसंबर 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा में कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी कैग की रिपोर्ट आई थी. इसके मुताबिक, राज्य स्वास्थ्य विभागे अंदर आने वाले प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों की 22 फीसदी, नर्सों की 35 फीसदी और पैरामेडिकल स्टाफ की 29 प्रतिशत कमी है, जबकि स्पेशल डॉक्टरों के कैडर में यह कमी 42 प्रतिशत है.
वहीं स्त्री रोग विशेषज्ञ के 41%, एनेस्थेटिस्ट के 50%, रेडियोलॉजिस्ट के 48%, और छाती विशेषज्ञ के 74% पद खाली हैं.
अगर इतिहास को आज की कसौटी पर रखेंगे तो सवाल कई होंगे.