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राम-गांधी दोनों से दूर हुआ है देश
प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में गांधी जयंती और विजयादशमी एक ही दिन मनाए जाने की स्थिति पर अपनी कलम चलायी है. वे लिखते हैं कि गांधी जयंती औपचारिक श्रद्धांजलियों तक सिमट गई है, जो हमारी गांधी से दूरी की याद दिलाती है. विजयादशमी सतही तौर पर अच्छाई-बुराई की विजय का उत्सव है, लेकिन साहित्यिक चित्रणों (वाल्मीकि, तुलसीदास, कंब) में उदासी की छाया है. विजय सहन की कठिनाइयों से ग्रस्त रहती है; मंदोदरी का विलाप कंब में काव्यात्मक ऊंचाई पाता है. धर्म की जीत मानवीय पीड़ा को मिटा नहीं पाती. कृतिबास रामायण में यह सत्ता की क्षणभंगुरता और राजत्व के दुख पर चिंतन जगाती है—विजय मोक्ष नहीं लाती.
आजादी पर विभाजन की छाया पड़ी. हिंसा ने गांधी की नैतिकता को विडंबनापूर्ण बनाया. वे बेघर, पूज्य-घृणित-असुविधाजनक बने. उनकी मृत्यु ने गणराज्य को बचाया. आरएसएस अवैध हुआ. राम का न्याय सीता-वनवास से हिल जाता है. विद्यानिवास मिश्र कहते हैं, वन रामायण का आध्यात्मिक केंद्र है. राम की शिक्षा वन में होती दिखती है ठीक महाभारत के वन पर्व की भांति. तीन आयाम दिखते हैं- आंतरिक संघर्ष, ब्रह्मांड-सापेक्षता, संसार-शत्रुता. राम कम बोलते हैं लेकिन सत्य बोलते हैं. राम और गांधी दोनों नैतिक उदाहरण हैं लेकिन सत्ता से बाहर दिखते हैं. प्रायश्चित करते हैं. सद्गुण की परीक्षा सहनशीलता है, जो उत्सव बन गयी है. आरएसएस के सौ वर्षों के द्वंद्वों पर राम-गांधी की एकाकी उदासी अधिक पर ध्यान देना जरूरी है.
नमिता भंडारे ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए घोषणा की है कि बिहार की 75 लाख महिलाओं को आजीविका गतिविधियां शुरू करने के लिए 10,000 रुपये की एकमुश्त राशि दी जाएगी. योजना का नाम भले ही 'मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना' हो, लेकिन इसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नहीं, बल्कि खुद पीएम ने ही लॉन्च किया.
बीजेपी नीतीश की जेडयू के साथ गठबंधन में छोटी साझेदार है, जो आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी हुई है. प्रोफेसर मनीषा प्रियम का कहना है कि बीजेपी बिहार के विकास मॉडलपर केंद्रीय हस्तक्षेप बढ़ाना चाहती है, ताकि पीएम की छाप मजबूत हो.
नीतीश कुमार ने 20 सालों तक सत्ता की कुर्सी संभाली है, मुख्य रूप से महिलाओं के वोटबैंक और उनकी भलाई वाली योजनाओं के दम पर. इनमें माध्यमिक स्कूल की लड़कियों को ड्रॉपआउट रोकने के लिए मुफ्त साइकिलें, पंचायतों व शहरी निकायों में महिलाओं को 50% आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35% कोटा और 'जीविका' जैसी स्वयं सहायता समूह योजना शामिल हैं, जिसमें 1.2 करोड़ महिलाएं जुड़ी हैं.
लोकनीति-सीएसडीएस के विश्लेषण से पता चला कि 2020 की कांटे की टक्कर वाली जीत में 18-29 साल की युवा महिलाओं के 40% वोट निर्णायक साबित हुए, जबकि पुरुषों में सिर्फ 33% ने एनडीए को समर्थन दिया. पीएम मोदी ने कभी इन्हें 'रेवड़ी' या मुफ्तखोरी कहा था, लेकिन अब ये नकद हस्तांतरण राज्य चुनावों की प्रमुख रणनीति बन चुके हैं—मध्य प्रदेश से हिमाचल प्रदेश तक. 11 राज्यों में 11.3 करोड़ महिलाएं हर महीने 1,000 से 2,500 रुपये पा रही हैं, और पांच अन्य राज्य भी ऐसी योजनाओं का ऐलान कर चुके हैं.
पवन के वर्मा ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि पिछले सप्ताह कोलंबो में उन्होंने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत के सांस्कृतिक प्रभाव पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उद्घाटन भाषण दिया. भारत विश्व इतिहास में सांस्कृतिक विस्तारवाद का अनुपम उदाहरण है. छठी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी ई. तक यानी डेढ़ सहस्राब्दी तक बिना सैन्य विजय के यह विस्तारवाद चला. बौद्ध धर्म के उदय से एशिया में दार्शनिक निर्यात देखा जा सकता है. अमरावती काल से गुप्त, पल्लव, पाल, चोल साम्राज्य के माध्यम से हिंदू संस्कृति का प्रसार हुआ. इसके प्रमाण कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में दिखते हैं.
लेखक उल्लेख करते हैं कि तमिल भाषा मलेशिया-सिंगापुर में मान्य है. प्रतीक (कमल, गरुड़, अप्सराएं), मुद्राएं (नमस्ते), त्योहार, वस्त्र, भोजन, ज्योतिष, गणित, अर्थशास्त्र भारत भूमि से प्रसारित हुए. इसका कारण व्यापार और प्रवास रहे. लेकिन, मुख्यतः प्राचीन भारत की खुली, समावेशी, बहुलवादी वैचारिकता ही सकी वजह थी. ऋग्वेद जिज्ञासा निमंत्रित करता है तो उपनिषद्, गीता, ब्रह्मसूत्र संवाद बढ़ाते हैं. हिंदू दर्शन सत्य की खोज है. सनातन धर्म ने चार्वाक, तंत्र, बौद्ध-जैन को स्थान दिया.
हेली देसाई ने हिन्दू में लिखा है कि मई 2025 में पाकिस्तान के साथ गतिरोध खत्म हुआ लेकिन उसके बाद की घटनाक्रम ने समुद्री रंगमंच की ओर दुनिया का ध्यान मोड़ दिया है. भारत और पाकिस्तान दोनों की प्रमुख नौसैनिक गतिविधियों से यह स्पष्ट होता है. शक्ति प्रदर्शन और आधिकारिक बयान भी इसकी तस्दीक करते हैं.
देसाई उल्लेख करते हैं कि ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान को इस क्षेत्र में सैन्य श्रेष्ठता का भ्रम रहा है. नौसेना स्टाफ के प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी के अगस्त का बयान उल्लेखनीय है जिसमें उन्होंने कहा था कि भविष्य के किसी भी संघर्ष में पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई सबसे पहले होगी. ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए कहा गया कि नौसेना को अधिक सक्रिय भूमिका में देखा जा सकेगा. स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए पहले डाइविंग सपोर्ट वेसल, आईएनएस निस्तार का शामिल होना, और दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के साथ भारत की पहली संयुक्त गश्तें, दोनों क्षमता निर्माण और व्यापक इंडो-पैसिफिक रणनीति के साथ संरेखण को दर्शाती हैं, जहां कराची और ग्वादर में चीनी उपस्थिति एक प्रमुख कारक बनी हुई है. भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष क्षेत्र का विस्तार अब समुद्र में देखने को मिलेगा, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए.
विनायक चटर्जी ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारत में एक नया विशाल बुनियादी ढांचा उभर रहा है, जो अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) और नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रमों की तरह बदल देगा—यह है हाई-स्पीड रेल (HSR). क्रय शक्ति समानता (PPP) आधार पर प्रति व्यक्ति जीडीपी अब उन देशों के बराबर है, जिन्होंने दशकों पहले हाई स्पीड रेल शुरू किया. इसलिए, पारंपरिक रेल से HSR की ओर कूदना अब सबसे सही समय है. 18 अगस्त को प्रधानमंत्री ने वित्त, वाणिज्य, रेलवे मंत्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक कर आर्थिक विकास एजेंडा तैयार किया, जिससे हाई स्पीड रेल और महत्वपूर्ण हो गया.
साथ ही, लक्जरी बसों और लो-कॉस्ट एयर से प्रतिस्पर्धा के लिए तत्काल कदम जरूरी उठाए जाने जरूरी हैं. अलग ट्रैक, स्टैंडर्ड गेज अपनाना प्राथमिकता है जो वैश्विक मानकों के अनुरूप टेक्नॉलजी ट्रांसफर और निर्यात के द्वार खोलेगा. राज्य-शहर भागीदारी से फंडिंग सुनिश्चित हो. रेलवे की रूढ़िवादी पदानुक्रमिता को तोड़कर हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन बनाए जाएं. उदाहरण के लिए NHAI ने PWD को साइडलाइन किया. स्वदेशीकरण से आयात कम होगा, आपूर्ति चेन मजबूत होंगे. हाई स्पीड रेल की क्षमता पारंपरिक रेल से 5 गुना अधिक है. इससे मझोले शहरों का विकास होगा, मेट्रो पर दबाव कम होंगे. अगले 15 वर्षों में 10 कॉरिडोर (700 किमी औसत) पर 20 लाख करोड़ निवेश होगा और इससे 60 लाख करोड़ का फायदा होगा.