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चरखी दादरी : कैसे फैली गौकशी की अफवाह, जिसने ली साबिर की जान?

द क्विंट की इस खास सीरीज में जानिए वो कहानियां, जहां अफवाह का असर लोगों की जिंदगी पर पड़ा

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Camera :Athar Rather
Producer :Zijah Sherwani
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साल 2015 में गौरक्षा के नाम पर हुई हत्या पहली बार मीडिया में सुर्खी बनी. अखलाक की बर्बर हत्या हुई, जिनके परिवार को आज भी न्याय का इंतजार है. इस घटना को पूरा एक दशक होने को है पर अफवाहों के आधार पर होने वाली हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं.

इन घटनाओं के पीछे एक बड़ी वजह सोशल मीडिया पर गौकशी को लेकर फैलने वाली अफवाहें और नफरत भरा कंटेंट है. Centre for the Study of Organised Hate (CSOH) ने खुद को गौरक्षक बताने वाले 1023 इंस्टाग्राम अकाउंट्स का विश्लेषण किया. इसमें सामने आया कि 30 precent कंटेंट में मवेशियों का व्यापार करने वाले मुसलमानों के साथ हुई हिंसा दिखाई जाती है. 121 रील के जरिए शेयर हुए ऐसे कंटेंट को लगभग 85 लाख बार देखा जा चुका है.

यूपी के दादरी से लेकर हरियाणा के चरखी दादरी तक, गौ रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा की घटनाओं की लिस्ट लंबी है.

  • अप्रैल 2024 : हरियाणा के सोनीपत में सिख ट्रक ड्राइवर को गौकशी के शक में रोककर उसके साथ बदसुलूकी की गई.

  • अगस्त 2024 : फरीदाबाद में कार से जा रहे आर्यन मिश्रा की गौकशी के शक में हत्या कर दी गई.

  • अगस्त 2024 : चरखी दादरी के हंसबास खुर्द गांव में बंगाल से आए प्रवासी मजदूर साबिर मलिक की गौकशी की अफवाह के चलते हत्या हो गई.

  • नवंबर 2024 : अंबाला के मोहरा में मवेशी ले जा रहे 2 मुस्लिम ड्राइवरों को गौरक्षकों ने पकड़ा और उनके साथ गाली-गलोच, बदसुलूकी की.

  • दिसंबर 2024 : हरियाणा के नूह में मवेशी ले जा रहे अरमान खान को पकड़कर उनसे मारपीट की गई, उठक-बैठक लगवाने का वीडियो बनाया इंटरनेट पर शेयर किया गया.

मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है, पर ऐसे में सवाल उठता है कि

गौरक्षा क्या है ?

ज़ाहिर है इसका मतलब है गाय की रक्षा करना. पर जब भीड़ कानून अपने हाथ में लेने लगे तो गौरक्षा के मायने भी बदलने लगे हैं. खासकर हरियाणा जैसे राज्यों में. जहां सरकार ने ना सिर्फ गौरक्षकों को कानूनी मान्यता दे रखी है बल्कि हाल में राज्य के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को ये भी निर्देश दिए कि वो गौरक्षकों को रिवॉर्ड देने के लिए कोई सिस्टम लाने पर विचार करें.

हरियाणा के चरखी दादरी में बंगाल और असम से कई प्रवासी मजदूर रोजगार की तलाश में आते हैं. ज्यादातर दलित और मुसलमान हैं. बंगाल से आए हुए ऐसे ही शख्स थे साबिर, जो चरखी दादरी के हंसबास खुर्द गांव में कबाड़ बेचने का काम करते थे. 27 अगस्त 2024 के दिन खुद को गौरक्षक बताने वाली एक भीड़ साबिर के घर आती है, इस शक में की उनके घर गाय का मीट पका है. साबिर के घर से खाना निकलवाया जाता है और चेक किया जाता है.

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कुछ देर बाद साबिर और असम से आए एक अन्य प्रवासी मजदूर सिराजुद्दीन के साथ बेरहमी से मारपीट होती है. सिराजुद्दीन बुरी तरह घायल होते हैं और साबिर की मौत हो जाती है. 2 महीने बाद उस खाने की जांच रिपोर्ट आती है, जो साबिर के घर से मिला था, सामने आया की वो गोमांस नहीं था. एक अफवाह ने साबिर की जान ले ली. द क्विंट की फैक्ट चेकिंग टीम वेबकूफ चरखी दादरी पहुंची, ये जानने के लिए कि कैसे इस तरह की अफवाहें उड़ती हैं, जिनका सीधा असर लोगों की जिंदगी पर पड़ता है.

इस रिपोर्ट में समझेंगे कि वो अफवाह कैसे उड़ी जिसने साबिर की जान ली ? और इस अफवाह का असर क्या हुआ ?
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अफवाह उड़ाने वाले कौन थे ?

द क्विंट ने मृतक साबिर की पत्नी शकीला से बात की. उन्होंने बताया कि 27 अगस्त 2024 को उनके घर में घुसने वाली भीड़ खुद को गौरक्षक बता रही थी. शकीला का आरोप है कि पुलिस ने हत्या के बाद ना तो उनको FIR की कॉपी उपलब्ध कराई ना ही केस की कोई जानकारी दी. शकीला को पश्चिम बंगाल सरकार ने अब सरकारी नौकरी उपलब्ध कराई है. शकीला को इस बाद का अफसोस है कि जिस राज्य में उनकी पति की हत्या हुई, उस राज्य सरकार ने यानी हरियाणा ने उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई.

साबिर की हत्या की वजह हमारा मुसलमान होना है. हमारे धर्म की वजह से हमें निशाना बनाया गया.
शकीला, मृतक साबिर की पत्नी

जब हम चरखी दादरी के बड़हरा बस स्टॉप पहुंचे तो इलाके में रहने वाले लोगों ने इस घटना पर कुछ भी बोलने से साफ इनकार कर दिया. ज्यादातर लोग तो ये कहते नजर आए कि उन्हें पता ही नहीं कि इलाके में कोई हत्या भी हुई है. क्या वाकई ये संभव है ?

पूर्व प्रोफेसर और वर्तमान में सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर लोगों को जागरुक करने के लिए काम कर रहे एक्टिविस्ट विपिन त्रिपाठी साबिर की हत्या के एक हफ्ते बाद चरखी दादरी गए थे. उस वक्त तक बंगाल के प्रवासी मजदूर चरखी दादरी में ही थे. बिपिन त्रिपाठी ने हमें घटना के बारे में विस्तार से बताया.

साबिर और असीरुद्दीन के साथ पहले बड़हरा बस स्टॉप पर मारपीट हुई फिर उन्हें बाइक पर टांगकर कुछ दूर ले जाया गया. असीरुद्दीन ने मुझे बताया कि जब वो होश में आया तो उसे गंभीर चोटें आई हुई थीं. वो घिसटते-घिसटते पास में स्थित गौशाला तक गए. गौशाला में मौजूद शख्स ने असीरुद्दीन की मदद की और तुरंत पुलिस को फोन किया, जिससे असीरुद्दीन की जान बच सकी.
विपिन त्रिपाठी, एक्टिविस्ट

बड़हरा बस स्टॉप से कुछ ही दूरी पर साबिर के परिवार को साबिर की लाश मिली.

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अफवाह का असर क्या हुआ ?

जाहिर है गौकशी के आरोप झूठे निकले. पर जब तक सच सामने आया, लैब रिपोर्ट में साबित हुआ कि गाय के मांस की बात झूठ है, अफवाह का नुकसान हो चुका था. ना सिर्फ साबिर की जान गई. ब्लकि हंसावस खुर्द में रहने वाले सभी मुस्लिम प्रवासी मजदूरों को वो इलाका छोड़कर जाना पड़ा.

साबिर अपनी पत्नी 1 साल की बच्ची के साथ चरखी दादरी में रहते थे. साबिर की पत्नी का परिवार, उनके ससुर सुजाउद्दीन भी यहीं रहा करते थे. जिस वक्त साबिर के साथ मारपीट हो रही थी, उनके ससुर को पूछताछ के लिए थाने ले जाया गया था.

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अफवाह के चलते इलाके से हुए मुस्लिम मजदूरों के पलायन पर चरखी दादरी के एसपी अर्श वर्मा कहते हैं.

घटना के तुरंत बाद आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था. चरखी दादरी के सभी अल्पसंख्यकों को सुनिश्चित कराया गया है कि उनकी सुरक्षा की जाएगी. जो लोग गए, वो चरखी दादरी के मूलनिवासी नहीं थे, वो पीढ़ियों से यहां नहीं रह रहे थे. हम इलाके के लोगों को लगातार जागरुक कर रहे हैं कि फेक न्यूज या अफवाहों पर यकीन न करें.
अर्श वर्मा, पुलिस अधीक्षक, चरखी दादरी.
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द क्विंट की इस खास सीरीज में हम वो कहानियां आप तक पहुंचा रहे हैं. जहां अफवाहों का सीधा असर लोगों की जिंदगी पर पड़ा. सीरीज का नाम है 'एक अफवाह की कीमत'. इस काम में आप हमारी मदद भी कर सकते हैं हमारे मेंबर बनकर.

(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर  9540511818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं.)

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