नॉर्मलाइजेशन (Normalisation) ये शब्द आपने सुना है? अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के मुंह से ये नॉर्मलाइजेशन का दर्द सामने आ जाता है.
ये शब्द है तो नॉर्मलाइजेश लेकिन इतना नॉर्मल भी नहीं है. तो आखिर ये है क्या? जिसे लेकर कभी उत्तर प्रदेश तो कभी बिहार में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र धरना देने लगते हैं. आखिर इसमें ऐसा क्या है? चलिए बताते हैं नॉर्मलाइजेशन का A टू Z.
अभी हाल ही में बिहार में BPSC के अभ्यर्थी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन के विरोध में सड़कों पर उतरे थे. बीपीएससी 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू करने के खिलफ विरोध प्रदर्शन हुआ. इस दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज किया. इससे पहले UP PCS और RO/ARO भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों ने नॉर्मलाइजेशन मेथड लागू करने का विरोध किया था. हालांकि विरोध के बाद यूपीपीएससी ने नॉर्मलाइजेशन के फैसले को वापस लिया.
नॉर्मलाइजेशन क्या होता है?
एक नौकरी के लिए एग्जाम दिया गया. किसी को 100 में से 80 नंबर मिले तो किसी को 70. तो किसे नौकरी मिलनी चाहिए. आप कहेंगे 80 नंबर वाले को. लेकिन आप गलत है. क्योंकि ये नॉर्मलाइजेशन का खेल है.
दरअसल, नॉर्मलाइजेशन एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल अलग-अलग शिफ्ट में होने वाले एग्जाम के नंबर को सामान्य यानी नॉर्मलाइज करने के लिए किया जाता है. मान लीजिए कि एक परीक्षा दो शिफ्ट में होती है. पहली शिफ्ट का पेपर दूसरी शिफ्ट के पेपर से कठिन है.
ऐसे में शायद पहली शिफ्ट में बैठे अभ्यर्थी के नंबर दूसरी शिफ्ट वाले से कम हो. तब शिकायत की जा सकती है तो दूसरी शिफ्ट का पेपर आसान था और पहली शिफ्ट का कठिन. ऐसे में नॉर्मलाइजेशन सिस्टम के जरिए पहली शिफ्ट के छात्रों के नंबर्स को बढ़ाया या दूसरी शिफ्ट के कैंडिडेट्स का नंबर कम किया जाता है. इसे ही नॉर्मलाइजेशन कहते हैं.
नॉर्मलाइजेशन का फॉर्मूला क्या है?
उदाहरण के लिए मान लीजिए अगर किसी अभ्यर्थी को परीक्षा में सबसे ज्यादा 75 प्रतिशत अंक मिले हैं और 75 फीसदी या उससे कम मार्क्स लाने वाले अभ्यर्थियों की कुल संख्या 10,000 है, जबकि ग्रुप में कुल अभ्यर्थियों की संख्या 15000 थी.
तो पर्सेंटाइल ऐसे निकालेंगे-100x15000/18000=66.66% (यह प्रतिशत ही उस छात्र का पर्सेंटाइल होगा जिसने 75% अंक प्राप्त किए हैं.)
क्यों किया जाता है नॉर्मलाइजेशन?
अलग-अलग शिफ्टों में पेपर का लेवल अलग-अलग होने के कारण, बिना नॉर्मलाइजेशन के एक ही अंक प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों का प्रदर्शन समान नहीं हो सकता है. नॉर्मलाइजेशन मेथड की मदद से सभी उम्मीदवारों को समान अवसर देने की कोशिश होती है, ताकि किसी भी कैंडिडेट को सिर्फ इसलिए नुकसान न पहुंचे क्योंकि उसने एक कठिन शिफ्ट में परीक्षा दिया था.
नॉर्मलाइजेशन का विरोध क्यों ?
अब सवाल उठता है कि अगर नॉर्मलाइजेशन इतना सही है तो फिर कैंडिडेट्स इसका विरोध क्यों करते हैं? दरअसल छात्रों का कहना है कि PCS परीक्षाओं में अक्सर ऐसा होता है कि गलत सवाल भी पूछ लिए जाते हैं. ऐसे में पहली शिफ्ट की तुलना में दूसरी शिफ्ट में पूछे गए सवाल ज्यादा गलत हो गए तो कैंडिडेट्स को कैसे पता चलेगा कि उन्हें कितने नंबर मिले, क्योंकि परसेंटाइल तो किसी शिफ्ट में शामिल हुए छात्रों की संख्या के आधार पर निर्भर करेगा. छात्रों का कहना है कि ऐसी स्थिति में अधिक अंक लाने वाले कैंडिडेट्स का भी परसेंटाइल कम हो सकता है.