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'लव जिहाद', फर्जी हिंदू नाम, POCSO एक्ट.. मजहब देखकर झूठे FIR? ये एक पैटर्न है?

भारत की निचली अदालतों में कुल 4 करोड़ 54 लाख केस पेंडिंग हैं.

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एक सवाल का जवाब दीजिए- हिंसक भीड़ किसी बेगुनाह को पीटे तो बताइए जेल कौन जाएगा? आम जवाब होगा. हिंसा करने वाला. लेकिन ये है गलत जवाब. आप कहेंगे ऐसे कैसे? ठीक है ये बयान पढ़िए.

''हमारी बहन बेटियों के हाथ-पांव पकड़ेगा''

''किसी भी हिंदू क्षेत्र में दिख मत जाना''

''अरे एक-एक तो सब मारो यार''

दरअसल, ये सारे भड़काऊ और नफरती बातें साल 2021 में इंदौर में एक भीड़ के मुंह से निकली थी. जिसकी वीडियो सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल पर चली थी. साल 2021 में इंदौर में तस्लीम चूड़ी बेचने गया था. तब वहां कुछ हिंदूवादी संगठन के लोगों ने तस्लीम के साथ मारपीट की. धमकी दी गई कि चूड़ी बेचने हिंदुओं के इलाके में न आए. लात, घूंसे, थप्पड़ मारे. फर्जी आधार कार्ड और नाम बदलकर हिंदू मोहल्ले में हिंदू लड़कियों को फंसाने का आरोप लगाया. वीडियो बनाए गए.

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आसपास के लोगों को भी पीटने के लिए उकसाया. लेकिन कहानी सिर्फ इतनी नहीं थी. तस्लीम की पिटाई का वीडियो इंदौर की पुलिस ने भी देखा. जिस बाणगंगा थाना इलाके में ये सब हुआ वहां के थाना प्रभारी ने तर्क दिया कि अभी तक किसी ने शिकायत नहीं की है इसलिए हमने कार्रवाई नहीं की.

फिर जब तस्लीम शिकायत करने खुद थाना पहुंचा तो पुलिस ने 14 धाराओं के तहत पीटने वाले आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. लेकिन यहां कहानी में ट्विस्ट आ गया.

अबतक कहीं भी महिला या बच्ची के साथ छेड़छाड़ के आरोप नहीं थे. लेकिन तस्लीम की शिकायत के बाद उसपर उल्टा केस कर दिया गया. तस्लीम पर पॉक्सो एक्ट समेत 9 गंभीर धाराओं में केस दर्ज हो गया. तस्लीम पर IPC की धारा 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना ), 354-ए (यौन उत्पीड़न), 467 (जालसाजी), 468, 471, 420 (धोखाधड़ी), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 7 और 8 (यौन उत्पीड़न) के तहत आरोप लगाए गए.

तस्लीम को 4 महीने जेल में रहना पड़ा. साढ़े तीन साल अदालत में अपनी इज्जत और इंसाफ के लिए लड़ना पड़ा. तब जाकर उसे अदालत ने दोषमुक्त कर दिया.

बच्ची ने तस्लीम पर लगाए गए आरोपों से किया इनकार

जिस 13 साल की बच्ची के नाम पर एफआईआर दर्ज कराई गई थी उसने कोर्ट में आरोपी तस्लीम को पहचानने से इनकार कर दिया. उसने इस सवाल से भी इनकार कर दिया कि आरोपी उसके पास चूड़ी बेचने आया था. मतलब ये सब कुछ एक साजिश थी.

तस्लीम पर दो आधारकार्ड रख गुमराह करने और अपनी पहचान छिपाने के भी आरोप लगे थे, लेकिन कोर्ट में ये भी साबित नहीं हुआ कि उसने किसी को धोखा देने के मकसद से आधार कार्ड में नाम सही कराए थे.

तबके कुछ बयान पढिए कि कैसे किसी के धर्म के आधार पर उसे बदनाम करने की साजिश रची जाती है. कैसे कुछ नेता और कथित पत्रकार मुसलमान का नाम सुनते ही आतंकी और पाकिस्तान का कनेक्शन की कहानी गढ़ते हैं.

तब के मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था,

‘गृह विभाग की रिपोर्ट है कि इंदौर में चूड़ी बेच रहे व्यक्ति (तस्लीम अली) ने स्वयं का हिंदू नाम रखा हुआ था, जबकि वह दूसरे समुदाय का है. उसके पास से इस तरह के दो (संदिग्ध) आधार कार्ड भी मिले हैं.’

यही नहीं तबके बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर कई पत्रकार और मीडिया संस्था ने झूठी खबर फैलाई थी. क्या अब ये लोग माफी मांगेगे? झूठ फैलाने वाले मीडिया के वो लोग माफी मांगेगे तस्लीम से?

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पिटाई से लेकर मानसिक पीड़ा, बदनामी, जेल. तस्लीम ने ये सब झेला. लेकिन फिर भी वो क्या कह रहे आप खुद पढ़िए.

"मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. मैं अब इस मामले को खत्म करना चाहता हूं और किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराना चाहता.”

धर्म के आधार पर झूठे केस का एक और मामला

साल 2022 में हिंदू जागरण मंच ने गोरखपुर के रहने वाले अभिषेक गुप्ता पर धर्मांतरण का आरोप लगाया था. हिमांशु पटेल ने दावा किया कि अभिषेक गुप्ता अपने आठ लोगों की टीम के साथ लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दे रहे थे. फिर क्या था, धर्म परिवर्तन का नाम सुनते ही पुलिस एक्टिव.

30 मई 2022 को अभिषेक गुप्ता को नामजद बनाते हुए अन्य 8 लोगों के खिलाफ यूपी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5(1) के तहत मामला दर्ज किया. अभिषेक 2007 से रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज में एमआरआई और सीटी स्कैन टेक्नीशियन थे. लेकिन एफआईआर दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर ही उन्हें नौकरी छोड़ने और अपना मकान खाली करने का आदेश मिल गया. 6 अक्टूबर 2022 को अभिषेक की गिरफ्तारी हुई और उन्हें 40 दिन बरेली जेल में गुजारने पड़े.

EMI का बोझ था फिर नौकरी छूटी. जान का खतरा था. भीड़ कब उनपर हमला कर दे. अब पुलिस के कामकाज पर अदालत ने भी सवाल उठाए. अदालत ने दोनों को दोषमुक्त करार देते हुए, मामले में दोनों को झूठा फंसाने के लिए पुलिसकर्मियों, शिकायतकर्ता और गवाहों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का आदेश दिया है.

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6 साल बाद 17 लोग बेकसूर साबित हुए

18 जून 2017 को, चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में लंदन में पाकिस्तान की क्रिकेट टीम ने भारत की टीम को 180 रनों से हरा दिया था. इस मैच के बाद मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के मोहद कस्बे के मुस्लिम लोगों पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने, मिठाई बांट रहे थे और पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने के आरोप लगे. तनावपूर्ण स्थिति का हवाला देकर पुलिस ने 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया.

पुलिस ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 124-A (देशद्रोह) व 120 -B (आपराधिक षडयंत्र) के तहत मामला दर्ज किया. बाद में राजद्रोह की धारा हटा दी गई और दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने की धारा जोड़ दी गई. 6 साल बाद मध्य प्रदेश की एक अदालत ने पाया कि ये मामला मनगढ़ंत था, क्योंकि शिकायतकर्ता और सरकारी गवाहों ने माना कि पुलिस ने उन्हें झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया. यही नहीं इन लोगों ने आरोप लगाया था कि पुलिस हिरासत में उन्हें पीटा गया और अपशब्द कहे गए.  सभी 17 आरोपियों को अदलात ने बरी कर दिया.

यहां भी यही सवाल है बार-बार झूठे केस में लोगों को फंसाया जाता है फिर भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं. क्या बरी कर देना ही सिर्फ इंसाफ है?

भारत की अदालतों में 5 करोड़ केस पेंडिग

भारत की निचली अदालतों में कुल 4 करोड़ 54 लाख केस पेंडिंग हैं. जिनमें से 3 करोड़ के करीब आपराधिक मामले और 11 करोड़ सिविल मामले हैं.

देश के हाईकोर्ट्स की बात करें तो 61 लाख केस पेंडिंग हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट में- 82511 केस पेंडिंग हैं.

यही नहीं देशभर के 25 हाईकोर्ट में जजों के टोटल स्वीकृत पद 1122 में  364  जजों यानी लगभग 30% जजों की पोस्ट खाली हैं. वहीं जिला अदालतों में जजों के 5246 पद खाली हैं.

सवाल यही है कि जब अदालतों पर केस का बोझ है फिर इस तरह के फर्जी केस लगाने वालों को कड़ी सजा क्यों नहीं मिल रही, ताकि वो फर्जी मुकदमा करने की हिम्मत न कर सकें. नहीं तो देश पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?

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