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Ground Report: जर्जर बिल्डिंग, स्टाफ की कमी- बिहार की PHC का डरावना सच

बिहार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुद इलाज के मोहताज हैं- न डॉक्टर, न दवाइयां, न सुविधा. देखिए ग्राउंड रिपोर्ट.

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बिहार (Bihar) के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य व्यवस्था खुद "इलाज" की मोहताज है. राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) स्टाफ की भारी कमी, जर-जर इमारतों और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. इसका सीधा बोझ गांव के आम लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है. कई PHC में आपातकालीन सेवाएं बंद हैं, मरीज बरामदों पर पड़े हैं, और प्रसूति सेवाओं के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर दूर जाने को मजबूर होना पड़ रहा है.

लगभग 2 साल से बंद है डिलीवरी सेवा

शिवहर जिले के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक, पुनहिया PHC में लगभग दो सालों से इमरजेंसी और गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी सेवाएं पूरी तरह बंद हैं. इस PHC को हर महीने 40 से 50 प्रसूति महिलाओं को संभालना चाहिए, लेकिन अब लोगों को 10 से 15 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल या निजी क्लीनिकों की ओर रुख करना पड़ता है.

स्थानीय निवासी सुनील राम बताते हैं, “अभी डिलीवरी या किसी भी इमरजेंसी की स्थिति में हम लोग पिपराही या शिवहर जाते हैं, जो यहां से करीब 9 किलोमीटर दूर है. हमारे घर के पास वाला PHC दो साल से नए भवन के निर्माण के कारण बंद पड़ा है, इसलिए वहां कोई डिलीवरी नहीं होती. ऊपर से, यहां का एम्बुलेंस भी फिहाल खराब है.”

आशा वर्कर बिंदू देवी चिंता जताते हुए कहती हैं, “अस्पताल दूर होने की वजह से कई बार गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी रास्ते में या घर पर ही हो जाती है. जब कोई साधन बीच रास्ते में नहीं मिलता, तो हम क्या कर सकते हैं? PHC बंद है, दूरी ज्यादा है — ऐसे में कभी रास्ते में, कभी घर पर ही डिलीवरी हो जाती है. उसका रिस्क कौन लेगा? डॉक्टर को वहां से बुलाकर लाना भी संभव नहीं है.”

पुनहिया PHC के प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक ठाकुर विवेक सिंह ने स्वीकार किया कि यहां फिलहाल सेवाएं बंद हैं. उन्होंने बताया, “यहां डिलीवरी मार्च 2024 से बंद है. वजह यह है कि PHC को CHC में अपग्रेड किया जाना है और भवन निर्माण का काम जारी है. इसी कारण इमरजेंसी, आकस्मिक सेवाएं और प्रसव का कार्य मार्च 2024 से ठप है.

वह आगे कहते हैं, “फिलहाल मरीजों को सदर अस्पताल शिवहर या निकट के पिपराही CHC में रेफर किया जाता है. स्टाफ की भी कमी है — अभी केवल दो डॉक्टर ही पदस्थापित हैं.”

CAG की 2023 की ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि यह हाल सिर्फ पुरणहिया का नहीं, बल्कि पूरे बिहार का है.

  • राज्य के 1,932 PHC और APHC में से 44% चौबीसों घंटे संचालित नहीं होते.

  • सिर्फ 29% में प्रसूति सेवाएं उपलब्ध हैं.

  • महज 14% केंद्रों में ऑपरेशन थिएटर है.

यानि, गंभीर मरीजों और गर्भवती महिलाओं को इलाज के लिए कई बार कई किलोमीटर दूर जिला अस्पताल का रुख करना पड़ता है.

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बदहाली बयान करते आंकड़े 

सीतामढ़ी जिले के मुख्य शहर में स्थित डुमरा PHC में भी स्थिति कम चिंताजनक नहीं है. यह PHC लगभग 4 लाख आबादी को कवर करता है, लेकिन यहां उनकी सेहत का ख्याल रखने के लिए केवल एक डॉक्टर मौजूद है. विजिट के दौरान, कई इमरजेंसी मरीज़ों के लिए बरामदे पर ही बेड लगाए गए थे.

मरीजों ने शिकायत की कि उन्हें जरूरी दवाइयां भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं, और भर्ती मरीज को चढ़ाने के लिए स्लाइन तक नहीं मिल रहा.

गनौर साह, जो अपने घायल परिजन को लेकर आए थे, बताते हैं कि “यहां लाने पर एक सलाइन चढ़ाया गया और अब बोल रहे कि सलाइन नहीं चढ़ाएंगे. जबकि मरीज इतना कमजोर है कि सिर तक नहीं उठा पा रहा. डॉक्टर काम करना नहीं चाहती हैं."

PHC डुमरा के दस्तावेजों के मुताबिक, कुल 42 स्वीकृत पदों में से सिर्फ 12 कर्मचारी तैनात हैं, यानी 30 पद लंबे समय से खाली हैं.

CAG की 2023 रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में, 12.49 करोड़ (मार्च, 2022) की अनुमानित जनसंख्या के मुकाबले, विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश को पूरा करने के लिए 1,24,919 डॉक्टरों की आवश्यकता थी. हालांकि, राज्य में केवल 58,144 एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध थे (जनवरी 2022 तक), जो डब्ल्यूएचओ के अनुशंसित मानदंडों से 53 प्रतिशत कम और राष्ट्रीय औसत से 32 प्रतिशत कम था.

स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के तहत, एक PHC को ग्रामीण इलाकों में 30,000 और पहाड़ी क्षेत्रों में 20,000 लोगों को कवर करना चाहिए. लेकिन बिहार में हालात बदतर हैं. हेल्थ डॉसियर 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में 3,597 PHC की जरूरत थी, जबकि सिर्फ 1,702 PHC ही काम कर रहे हैं— यह 52% की भारी कम है.

कहीं प्रसव सेवाएं ठप हैं, कहीं दवाइयों की किल्लत है, कहीं डॉक्टर नहीं, तो कहीं पूरा भवन ही जर्जर है. यह कहानी सिर्फ सीतामढ़ी या शिवहर की नहीं, बल्कि पूरा बिहार अपनी टूटी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं से कराह रहा है. चुनाव से पहले जब सियासत में वादों की गूंज है, जमीनी हकीकतें सवाल पूछती हैं: जनता के स्वास्थ्य का जिम्मा कौन लेगा?

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