ADVERTISEMENTREMOVE AD

हरियाणा में 'जलेबी' की तरह उलझी कांग्रेस, 5 फैक्टर की वजह से जीतते-जीतते हार गई

Haryana Election Result 2024: जो कांग्रेस ओपीनियन पोल से लेकर एग्जिट पोल में सरकार बनाती दिख रही थी वो क्यों हवा को भांप नहीं पाई?

Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

हरियाणा में एक पत्रकार ने एक ताऊ से पूछा कि– कौन सी पार्टी की हवा चल रही.. ताऊ ने जवाब दिया- कांग्रेस की.. पत्रकार ने फिर दो कदम की दूरी पर बैठे दूसरे ताऊ की तरफ माइक किया, तभी दूसरे ताऊ ने तपाक से कहा– इतनी दूर में हवा बदल गई के? अब क्या बताएं ताऊ, कांग्रेस के लिए तो हवा खराब हो गई और बीजेपी ने तीसरी बार भी हवा का रुख अपनी ओर मोड़ लिया.

दरअसल, एंटी इनकंबेंसी की हवा के सामने बीजेपी ने पहले अपना मुख्यमंत्री बदला, विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटे, जाट-दलित पॉलिटिक्स के सामने ओबीसी और नॉन जाट की टीम बनाई और फिर नतीजा सामने है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन सवाल है कि जो कांग्रेस ओपीनियन पोल से लेकर एग्जिट पोल में सरकार बनाती दिख रही थी वो क्यों हवा को भांप नहीं पाई? 2019 लोकसभा चुनाव में हरियाणा में जीरो सीट लाने वाली कांग्रेस 2024 लोकसभा चुनाव में 10 में से 5 सीट जीत जाती है फिर तीन महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में ऐसा क्या हुआ कि जीत कांग्रेस के 'हाथ को आया पर मुंह ना लगा'..

इस आर्टिकल में हम 5 प्वाइंट में आपको बताएंगे कि कांग्रेस ने क्या गलती की जो उसे तीसरी बार भी हरियाणा की सत्ता से दूर रहना पड़ रहा है.

1. 'हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था'

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था

हमारी कश्ती वहां डूबी जहां पानी कम था..

ये कहावत कांग्रेस पर फिट बैठती है.. मध्य प्रदेश (कमलनाथ vs ज्योतिरादित्य सिंधिया), राजस्थान (सचिन पायलट vs अशोक गहलोत), छत्तीसगढ़ (भूपेश बघेल vs टीएस देव) से भी कांग्रेस ने कुछ नहीं सीखा.. हरियाणा में भी वही सब कुछ होता नजर आया. कहते हैं कांग्रेस को दुशमन (बीजेपी) की क्या जरूरत.. क्योंकि हरियाणा में कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सबके सामने थी. कई गुट बन चुके थे. भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट, दलित चेहरा कुमारी शैलजा, राहुल के करीबी रहे रणदीप सुरजेवाला. हाल ये था कि पार्टी की सीनियर लीडर कुमारी शैलजा करीब 13 दिन चुनाव प्रचार से लापता रहीं.. खबर आई कि वो टिकट बंटवारे से नाराज थीं... क्योंकि हुड्डा गुट के ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट मिल गया.

हसीन सपने में खोई कांग्रेस के नेता जीत से पहले ही मुख्मंत्री पद के लिए अपनी अपनी दावेदारी करने में जुट गए.. यही नहीं एक दूसरे के गुट के उम्मीदवारों के लिए मिलकर वोट मांगने तक से परहेज करने लगे. नतीजा सबके सामने है..

2. जाति की सोशल इजीनियरिंग में 'फॉल्ट'

हरियाणा में तीन जातियों ने पारंपरिक रूप से सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई है. ये जाति हैं, ओबीसी- करीब 35 प्रतिशत, जाट- 20 से 22 फीसदी और दलित करीब 20 फीसदी. हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं, जिनमें अनुसूचित जाति की 17 सीटें हैं. वहीं 47 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कम से कम 20 प्रतिशत दलित हैं.

हरियाणा में कांग्रेस के पास जाट के रूप में भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दिपेंद्र हुड्डा हैं, दलित के रूप में कुमारी शैलजा और चुनाव से दो दिन पहले घर वापसी करने वाले अशोक तंवर. लेकिन ओबीसी, पंजाबी और नॉन जाट समाज से कोई बड़ा चेहरा नहीं है. साथ ही कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर जाट उम्मीदवारों पर दांव लगाया और इस समुदाय से करीब 28 उम्मीदवारों को टिकट दिया, जबकि बीजेपी ने हमेशा की तरह नॉन-जाट राजनीति पर फोकस रखा और सिर्फ 16 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया. वहीं बीजेपी ने करीब 22 ओबीसी कैंडिडेट को टिकट दिया.

बीजेपी के वोट शेयर में बढ़ोतरी गैर-जाट वोटों, खासकर पंजाबी, ओबीसी, अहीर, ब्राह्मण, राजपूत और बनिया वोटों के एकजुट होने का संकेत देती दिख रही है. पार्टी ने उन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है जहां गैर-जाट बड़ी संख्या में हैं - जैसे जीटी रोड बेल्ट जहां पंजाबियों का प्रभुत्व है, अहीरवाल बेल्ट जहां अहीरों की अच्छी संख्या है, और फरीदाबाद जहां गुज्जरों का प्रभाव है.

3. दलित-जाट वोट बंट गया?

कांग्रेस की वोट में सेंध लगने के पीछे एक अहम फैक्टर दलित और जाट वोट का बंटना भी माना जा रहा है. हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और बहुजन समाज पार्टी साथ चुनाव लड़ रही थी, वहीं जननायक जनता पार्टी ने भीम आर्मी वाले चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया. दोनों ही क्षेत्रीय दल जाट और दलित वोटर्स के भरोसे हैं. ऐसे में दलित और जाट यानी कांग्रेस का कोर वोट इन क्षेत्रिय और जाति आधारित पार्टियों में बंटता दिखा.

बेशक, कांग्रेस का वोट शेयर काफी बढ़ा है- 2019 में 28.1 प्रतिशत था और अब 2024 में 39 प्रतिशत. लेकिन अबतक के आंकड़ों को देखेंगे तो लगता है कि ये बढ़त जेजेपी, आईएनएलडी, बीएसपी और निर्दलीय उम्मीदवारों की कीमत पर हुआ है, न कि बीजेपी की. बीजेपी का वोट शेयर 2019 में 36.5 प्रतिशत से बढ़कर 2024 में लगभग 39 प्रतिशत हो गया. कांग्रेस, बीजेपी के समर्थकों को अपने पाले में लाने में कामयाब नहीं हो सकी.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

4. अहिरवाल-जीटी बेल्ट क्षेत्र में बीजेपी का काट नहीं ढूंढ़ पाई कांग्रेस

अब बात अहिरवाल क्षेत्र की. जहां कभी कांग्रेस मजबूत हुआ करती थी. अहिरवाल क्षेत्र यानी रेवाड़ी, सोहना, बावल, नांगल चौधरी, बादशाहपुर, अटेली, कोसली, नारनौल, गुड़गांव, महेंद्रगढ़, और पटौदी. इन जिलों में अहीर जाति मतलब यादव (ओबीसी समाज) का असर है.

इस इलाके से आने वाले पूर्व मुख्मंत्री राव बीरेंद्र सिंह के बेटे राव इंद्रजीत एक समय में कांग्रेस की राजनीति का चेहरा थे. लेकिन 2014 के चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा से नाराजगी के वजह से राव इंद्रजीत ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए.

अब राव इंद्रजीत के बाद इन 11 सीटों पर कांग्रेस के पास कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जो बीजेपी का काट ढूंढ़ पाए. राव इंद्रजीत के जाने से उलटा बीजेपी को ही फायदा हुआ. 2014 में बीजेपी ने अहीरवाल की सभी 11 सीटें जीतीं. वहीं 2019 में 11 में से 8 सीटें पार्टी के खाते में गईं, अब 2024 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी आगे और और कांग्रेस पिछड़ गई.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

5. ओवर कॉन्फीडेंस

कॉन्फीडेंस अच्छा है लेकिन ओवरकॉन्फीडेंस.. न जी न.. लोकसभा चुनाव में 5 सीट जीतने वाली अति उत्साहित कांग्रेस के लिए ओपीनियन पोल सोने पर सुहागा निकला. अपीनियन पोल में कांग्रेस की जीत के दावे होने लगे. फिर क्या था INDIA गुट की सर्वेसर्वा कांग्रेस किसी के भी साथ गठबंधन करने को राजी नहीं हुई. आम आदमी पार्टी से नामंकन की तारीख से दो दिन पहले तक बात चलती रही लेकिन आखिर में बात बनी नहीं. वहीं सोशल मीडिया पर एग्रैसिव कांग्रेस का बूथ मैनेजमेंट कमजोर दिखा.

Published: 
Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×