वाराणसी (Varanasi) की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) में शिवलिंग है या फव्वारा, ये विवाद तो अभी खत्म नहीं हुआ है, इस बीच मथुरा (Mathura) में श्रीकृष्ण के जन्मस्थल को लेकर एक और मामला उठ रहा है. वैसे तो यह विवाद भी काफी पुराना है, लेकिन मौजूदा माहौल को देखते हुए ये फिर गरमा गया है. लेकिन इस विवाद की जड़ में क्या है, ये जानने के लिए क्विंट हिंदी की टीम मथुरा पहुंची और वहीं के लोगों से जाना कि आखिर इस विवाद के पीछे क्या है. क्या यहां वाकई उसी जगह भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, जहां विवाद है.
पहले जानिए क्या है पूरा मामला
मथुरा का यह मामला साल दो साल या 10 साल पुराना नहीं बल्कि करीब 400 साल पुराना है. हिंदू पक्ष का दावा है कि कटरा केशव मंदिर (Keshav Temple) के ठीक बगल में बनी शाही ईदगाह मस्जिद (Shahi Eidgah Mosque) की जगह पर ही श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है और औरंगजेब ने मंदिर का हिस्सा तोड़ कर मस्जिद बनवाई थी. ये 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक का मामला है.
आपको बता दें कि 19 मई 2022 को मथुरा की अदालत ने श्रीकृष्ण भूमी के एक हिस्से के स्वामित्व वाले मुकदमे को एक फिर खोलने की इजाजत दे दी है. हिंदू पक्ष के याचिकाकर्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने दावा किया है कि श्रीकृष्ण का जन्मस्थान आज जहां मंदिर है वहां नहीं बल्कि जहां मस्जिद है वहीं पर है. उन्होनें आगे कहा कि 13.77 एकड़ जमीन है वो पूरी भगवान की ही जमीन है और जब रिपोर्टर ने पूछा की ये कहा लिखा की जहा पर मस्जिद है ठीक उसी जगह पर मंदिर है? तो महेंद्र ने आगे कहा कि शास्त्रों में वर्णन है और कई पुस्तकें गिनवाते हुए वही असली जगह बताई हैं.
1968 में क्या हुआ था फैसला?
1968 में अदालत ने दोनों पक्षों के बीच एक समझौता कराया था जिसमें मंदिर ट्रस्ट को ही मालिकाना हक मिला था जबकि मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार ईदगाह समिति पर ही छोड़ दिए गए थे.
समझौते में कहा गया था कि मंदिर ट्रस्ट के पास शाही ईदगाह पर कोई कानूनी दावा करने का अधिकार नहीं होगा. हालांकि कुछ याचिकाकर्ताओं ने साल 1968 के इस समझौते की वैधता को चुनौती दी है.
लेकिन 13.77 एकड़ जमीन का मालिक कौन है?
मुगलों से लेकर मराठाओं तक और उसके बाद फिर अंग्रेजों तक ये 13.77 एकड़ की जमीन कई हाथों में रही है, 1944 में जुगल किशोर बिड़ला ने 13.77 एकड़ जमीन 13,400 रुपये में खरीदी थी और फिर श्रीकृष्ण जन्मभूमी की स्थापना की. जिसने मंदिर का स्वामित्व हासिल कर लिया था.
जबकी साल 1977 में इसका नाम बदल कर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान रख दिया गया. लेकिन कुछ याचिकाकर्ताओं ने जमीन के स्वामित्व को चुनौती दी है. हिंदूत्ववादी समूह एक बार फिर ये मामला अदालत ले गये हैं.
वहां के निवासियों का क्या कहना है?
जब हमारी टीम ने वहां पहुंच कर लोगों से बातचीत की तो मुस्लिम पक्ष के शमीम का कहना है कि “ जो ये असल जन्मभूमी का मामला चला है 90 दशक के बाद से शुरू हुआ है उससे पहले यहा न को सिक्योरिटी और न ही कोई पुलिस वाला होता था और अब देखो गर्वमेंट का अरबों रुपये खर्च होता है सिक्योरिटी के नाम पर और कहा कि अगर इस तरह के बयानबाज़ी न हो इस तरीके के मुद्दे न चले. आगे कहा कि आजादी के बाद जितनी इमारते है वो चाहे किसी भी धर्म की हो जिस हालत में बै उसी हालत में रहे. उनसे कोई छेड़छाड़ न हो और न ही कोई अपील की जाए. अब देखो ईदगाह का भी केस दर्ज हो गया है.
वहीं जब औरतों से बात की गई तो उन्होनें कहा कि "छोटे-छोटे बच्चों के दिमाग में ये बात आ रही है कि लड़ाई होगी लड़ाई होगी". वहीं दूसरी औरत ने कही कि "कुछ हिंदू भाई-बहन हैं जो पहले जैसे ही है लेकिन कुछ लोगों में अब फर्क आ गया है. जब पूछा गया कि क्या फर्क आ गया है तो उन्होंने कहा कि पहले हम सभी एक साथ ही त्योहार और खुशियां मनाते थे उसमें थोड़ा फर्क आ गया है.”