"हमारे मदरसे में 60-70 बच्चे पढ़ते थे. एक दिन पटवारी साहब आए. साथ में करीब 10-15 पुलिसवाले थे. उन्होंने मदरसे को सील कर दिया. हमने स्थायी मान्यता और रजिस्ट्रेशन रिन्यूअल का कागज दिखाया, लेकिन पटवारी साहब ने कहा, हमको आगे से आदेश मिला है. हम ताला लगाएंगे."
"पहले ध्वस्तिकरण का कोई नोटिस नहीं दिया. कार्रवाई वाले दिन पहले दीवार पर नोटिस चिपकाया, फोटो लिया फिर बुलडोजर से मदरसा गिरा दिया. हमें पास तक नहीं जाने दिया."
जाफर खां और मोहम्मद शफीक की तरह ही श्रावस्ती के कई मदरसों के प्रबंधक और टीचर परेशान हैं. यहां 40 फीसदी मदरसों को सील या फिर बुलडोजर से गिरा दिया गया. प्रशासन के मुताबिक, जो मदरसे सरकारी जमीन पर बने हैं या जिनकी मान्यता नहीं है उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. लेकिन द क्विंट की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में कुछ और ही तस्वीर सामने आई. कई ऐसे लोग सामने आए जिन्होंने डॉक्यूमेंट्स दिखाते हुए दावा किया कि उनके पास स्थायी मान्यता है फिर भी मदरसा सील कर दिया गया. कुछ ने कहा कि कार्रवाई के दिन ही नोटिस चिपकाया और फिर बुलडोजर से मदरसा गिरा दिया. मदरसे की मान्यता को रीन्यू कराने को लेकर जिला और प्रदेश स्तर पर भी कुछ खामियां सामने आईं.
श्रावस्ती में 297 मदरसे, लगभग आधे सील/गिराए गए
अल्पसंख्यक विभाग के मुताबिक, यूपी के श्रावस्ती में कुल 297 मदरसे हैं, जिनमें 192 गैर मान्यता प्राप्त हैं. स्थायी और अस्थायी मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 105 है. स्थानीय पत्रकार के मुताबिक, प्रशासन ने मई महीने में कार्रवाई शुरू की. करीब 17 दिनों में 20 मदरसे गिरा दिए और 110 मदरसों को सील कर दिया. श्रावस्ती के डीएम अजय कुमार द्विवेदी ने द क्विंट को बताया,
"मदरसों को दो तरह की मान्यता मिलती है. स्थायी और अस्थायी. अस्थायी मान्यता होने पर 5 साल में सभी जरूरी आवश्यकता पूरी कर अप्रूवल कराना होता है. डेमोलिशन सिर्फ उन्हीं मदरसों का किया गया जो सरकारी जमीन पर बने थे. इसके अलावा अस्थायी और गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को सील किया जा रहा है."अजय कुमार द्विवेदी, डीएम, श्रावस्ती
लेकिन प्रशासन की बातों और जमीन पर हुई कार्रवाई में फर्क दिखता है. कुछ मदरसा प्रबंधकों के दावे चिंतित और हैरान करने वाले हैं.
"मदरसे की स्थायी मान्यता, कागज भी दिखाया- फिर भी सील"
श्रावस्ती के जमनहा में रजिया गौसुल उलूम मदरसा है. उसके प्रधानाचार्य मोहम्मद नईम ने द क्विंट को बताया, "हमारे मदरसे की मान्यता पहले अस्थायी थी लेकिन साल 2012 में स्थायी करा लिया. रजिस्ट्रेशन भी साल 2027 तक है. मदरसा सरकारी जमीन पर नहीं है. फिर भी हमारे मदरसे को सील कर दिया गया." मोहम्मद नईम ने बताया कि 1 मई को जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी की तरफ से नोटिस आया, जिसमें लिखा था,
"मदरसा अस्थायी मान्यता प्राप्त करके चलाया जा रहा है. 5 साल के बाद नवीनीकरण कराना आवश्यक है. लेकिन 5 साल बाद भी मान्यता नवीनीकरण नहीं कराया गया. इसलिए मदरसे की शैक्षिक गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है."
नोटिस मिलने के 3-4 दिन बाद लेखपाल और कानूनगो पुलिसवालों के साथ आए और मदरसे को सील कर दिया. मोहम्मद नईम ने बताया,
"कार्रवाई से पहले हमने लेखपाल को सारे कागज दिखाए. उन्होंने कहा कि कागज सही है लेकिन ऊपर से आदेश है. फिर हमनें उसी वक्त एसडीएम साहब से फोन पर बात की. कहा कि हमारे कागज दुरस्त हैं. मदरसा सील न किया जाए. तब एसडीएम साहब ने कहा कल आकर कागज दिखाओ. अगले दिन एसडीएम से मिलो तो उन्होंने कहा कागज ठीक है, लेकिन आपने देर कर दी."मोहम्मद नईम, प्रधानाचार्य, रजिया गौसुल उलूम मदरसा
मोहम्मद नईम ने कहा, "इसके बाद जिले के अल्पसंख्यक विभाग के पास गए तो उन्होंने लखनऊ में रजिस्ट्रार साहब को लेटर लिखा. अब शायद लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा. तब तक मदरसा बंद रहेगा. बच्चों का बहुत नुकसान हो रहा है."
"10-15 पुलिसवाले थे, हमें फोटो लेने में भी डर लग रहा था"
जमनहा में रजिया गौसुल उलूम मदरसे के प्रबंधक जाफर खां ने बताया, "कार्रवाई के दौरान 10-15 पुलिसवाले थे. वह कुछ बोल तो नहीं रहे थे लेकिन हम डर के मारे मदरसा सील करने का फोटो तक नहीं ले सके. हमारे मदरसे में करीब 70 बच्चे पढ़ते हैं. कागज पूरे होने के बाद भी हमें ये सब झेलना पड़ रहा है. अब बताइए इसमें हमारी क्या गलती है?"
"अधिकारी ने कहा- हमें कागज मत दिखाइए, हम तो सील करेंगे"
श्रावस्ती के ही एक अन्य मदरसे अहलेसुन्नत राजाउल उलूम को भी सील कर दिया गया. जबकि यहां के प्रबंधक अब्दुल हक का दावा है कि उनके पास भी स्थायी मान्यता और रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण का पूरा कागज है. द क्विंट ने मदरसे के टीचर रमजान अली से बात की. उन्होंने बताया कि जब मदरसे को सील किया जा रहा था तब वे वहीं पर थे, "5 मई को लेखपाल अनिल आर्या और कानूनगो आए थे. जब हमने उन्हें कागज दिखाया तब उन लोगों ने कहा कि 'सील करने का ऑर्डर है और हम तो सील करेंगे'."
मदरसे के प्रबंधक अब्दुल हल बताते हैं कि अधिकारियों ने उनकी भी नहीं सुनी और कहा,
"आप हमें कागज मत दिखाइए. हमने कहां कि देख लीजिए इसमें कोई गलती है? उन्होंने कहा कि आपका सबकुछ सही है लेकिन हमारे पास सील करने का आदेश है."अब्दुल हक, प्रबंधक, अहलेसुन्नत राजाउल उलूम मदरसा
सभी को एक ही दिन एक जैसा नोटिस, सिर्फ मदरसे का नाम बदला
अहलेसुन्नत राजाउल उलूम मदरसे के प्रबंधक अब्दुल हक को भी ठीक जाफर खां की तरह ही नोटिस मिला. सब कुछ ठीक वैसे का वैसा ही लिखा था सिर्फ मदरसे का नाम बदला था. किसी भी नोटिस में कार्रवाई की स्पष्ट वजह नहीं लिखी थी. मदरसे के प्रबंधक अब्दुल हक ने द क्विंट को बताया,
"हमारे पास स्थायी मान्यता है. पूरा कागज भी है फिर भी पता नहीं क्यों सील कर दिया? नोटिस में साफ-साफ नहीं लिखा कि किस कमी की वजह से कार्रवाई की गई."
स्थायी मान्यता होने पर भी सील की कार्रवाई पर द क्विंट ने श्रावस्ती के डीएम अजय कुमार द्विवेदी से बात की. उन्होंने बताया,
"सीलिंग कोई सस्पेंशन नहीं है. सिर्फ ऑपरेशन क्लोज किया गया है. अगर किसी के पास पूरे डॉक्यूमेंट हैं तो वह जिला अल्पसंख्यक अधिकारी या मेरे पास आ सकता है उसे रिफर कर चेक किया जाएगा."अजय कुमार द्विवेदी, डीएम, श्रावस्ती
अल्पसंख्यक अधिकारी ने खुद माना, नोटिस निरस्त करने योग्य
मदरसा प्रबंधक अब्दुल हक ने बताया, "नोटिस मिलने के बाद हम श्रावस्ती के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पास गए. उन्हें स्थायी मान्यता, रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण और जमीन से जुड़े सभी कागज दिखाए और सील हटाने का अनुरोध किया. तब 15 मई को उन्होंने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा और 1 मई को जारी की गई नोटिस को निरस्त करने योग्य बताया."
द क्विंट के पास पत्र की कॉपी है जिसे श्रावस्ती के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने रजिस्ट्रार लखनऊ को लिखा. उसमें लिखा है,
मदरसा प्रबंधक ने अवगत करा दिया है कि उनका मदरसा स्थायी मान्यता प्राप्त है. ऐसी स्थिति में अस्थायी मान्यता प्राप्त मदरसे के रूप में शैक्षणिक गतिविधि रोके जाने से जुड़ा नोटिस निरस्त करने योग्य है.
पत्र से स्पष्ट है कि अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी इस बात को मानते हैं कि मदरसा स्थायी है. लेकिन 23 मई यानी खबर लिखे जाने तक दोबारा मदरसा खोलने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई.
ऊपर के दोनों मदरसों को स्थायी मान्यता का दावा किए जाने के बाद भी नोटिस देकर सील कर दिया गया. अब कुछ ऐसे केस बताते हैं जहां कार्रवाई वाले दिन नोटिस चिपकाया और फिर बुलडोजर से मदरसा गिरा दिया.
"पहले 'नोटिस' चिपकाया फिर फोटो लिया और मदरसा तोड़ दिया"
श्रावस्ती के एक अन्य मदरसे रिजविया गौसिया गौसुल उलूम खलीफतपुर को बुलडोजर से गिरा दिया गया. यहां के टीचर मोहम्मद शफीक ने माना कि हां मदरसा सरकारी जमीन पर बना था, लेकिन बुलडोजर कार्रवाई से पहले तोड़ने का कोई नोटिस नहीं दिया गया. 1 मई को एक नोटिस आया था, लेकिन उसमें मदरसा तोड़ने का जिक्र नहीं था. नोटिस में शैक्षिक गतिविधियों को रोकने की बात कही गई थी. मदरसा गिराने की नहीं. उन्होंने द क्विंट को बताया,
"4 मई को कार्रवाई की गई तब मैं वहीं पर था. जब तोड़ने आए तो कोई कागज नहीं दिखाया. मदरसे के करीब भी नहीं आने दिया. मदरसे के गेट पर पता नहीं कौन सा एक कागज चिपकाया. फोटो लिया और फिर कागज निकाल लिया और मदरसा गिरा दिया."मोहम्मद शफीक, टीचर, रिजविया गौसिया गौसुल उलूम मदरसा
पहले नोटिस न देने को लेकर द क्विंट ने एसडीएम संजय राय से बात की. उन्होंने कहा कि सरकारी जमीन पर बने जितने भी मदरसों का ध्वस्तीकरण किया गया है उन्हें नोटिस देकर ही कार्रवाई की गई है.
क्या ध्वस्तीकरण के नोटिस में पुरानी तारीख डाली गई?
अब सवाल उठता है कि क्या ध्वस्तीकरण के नोटिस में पुरानी तारीख डाली गई? क्योंकि ऊपर रिजविया गौसिया गौसुल उलूम मदरसे के नाम नोटिस में 17 अप्रैल की तारीख है. जबकि यहां के टीचर मोहम्मद शफीक ने कहा कि उन्हें ये नोटिस मिला ही नहीं.
अलजामे अतुल कादरिया मसुदुल उलूम मदरसे के टीचर सईद कादरी ने भी ऐसा ही नोटिस दिखाया और कहा कि 5 मई को मदरसे पर बुलडोजर चला और 4 मई को ध्वस्तिकरण का नोटिस मिला. उसमें भी 17 अप्रैल की ही तारीख पड़ी थी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नोटिस में पुरानी तारीख डाली गई? इसे लेकर द क्विंट ने कार्रवाई करने पहुंचे लेखपाल से संपर्क करने की कोशिश की. उनका रिप्लाई आने पर खबर को अपडेट किया जाएगा.
"पहले नोटिस देते तो हम खुद तुड़वा लेते, सामान बर्बाद नहीं होता"
रिजविया गौसिया गौसुल उलूम खलीफतपुर के प्रबंधक कुर्बान अली ने बताया, मदरसे में करीब 150 बच्चे पढ़ते थे. आधुनिक टीचर भी थे. दो कमरा था. पूरा हॉल था. बड़ा सा गेट था. नोटिस उसी वक्त मिला जब गिराया गया.
"नोटिस पहले मिलता तो हम खुद से गिरा देते. अपने हिसाब से ईंट, खिड़की, बाथरूम की शीट बचाकर निकलवा लेते. बुलडोजर से तो सब टूट गया. बर्बाद हो गया. सब चंदे से बना था. कम से कम इतनी तो मोहलत देनी चाहिए थी. यहां तक कि मदरसा गिराने के दौरान का वीडियो या फोटो तक नहीं लेने दिया. कहा कि इतना मारेंगे कि लाल हो जाओगे."
कार्रवाई का मौखिक आदेश और मान्यता को लेकर कुछ सवाल
श्रावस्ती में मदरसों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार को पत्र लिखे, जिसमें लिखा है कि "श्रावस्ती जिला प्रशासन स्तर से प्राप्त मौखिक निर्देश". द क्विंट ने जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी देवेंद्र राम से बात की तो उन्होंने कहा कि अधिकारी तो मौखिक आदेश ही देगा ना. मदरसा प्रबंधकों के पास अब आगे क्या विकल्प है इसपर देवेंद्र राम ने कहा,
"जिनकी स्थायी मान्यता हैं उन लोगों ने हमारे यहां कोई कागज पत्रावली नहीं दी. अब वो लोग अपना कागज लाकर दे रहे हैं, जिसके आधार पर रजिस्ट्रार को लेटर भेज रहे हैं. वहां से जो दिशानिर्देश देंगे उसी पर कार्रवाई करेंगे. आदेश आएगा तो सील मदरसे खोल दिए जाएंगे. अस्थाई मान्यता वाले मदरसों के लिए भी लेटर भेजा है."
मदरसों ने अस्थायी मान्यता को स्थायी क्यों नहीं कराया?
इस सवाल को लेकर द क्विंट ने मदरसा आधुनिकरण शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष समीउल्ला खां (शुएब) से बात की. उन्होंने कहा, मदरसों को लेकर 2016 में नई नियमावली बनी. इससे पहले 2003 की नियमावली प्रभावी थी, जिसके मुताबिक, अस्थायी मान्यता वाले मदरसों को भी आसानी से चलाया जा सकता था. 2016 में बदलाव हुआ और अस्थायी मान्यता वाले मदरसों को 5 साल के अंदर स्थायी कराना था.
"विडंबना देखिए कि 2015 के बाद से सरकार ने कोई मान्यता ही नहीं दी. कई लोगों ने अस्थायी से स्थायी करने के लिए जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी को पत्रावली दी. उन्होंने चेक कर रजिस्ट्रार के पास भेजा. लेकिन आज तक उनकी पत्रावली लखनऊ में ही पड़ी है."
वे आगे कहते हैं, "हां ये भी सही है कि करीब 80% मदरसा प्रबंधकों ने स्थायी मान्यता के लिए अप्लाई भी नहीं किया. क्योंकि उन्हें पता ही नहीं था. ऐसे ही चलता था कोई दिक्कत ही नहीं हुई थी. नोटिस के बाद कुछ टाइम देते तो जरूर बाकी लोग स्थायी मान्यता के लिए अप्लाई करते. लेकिन यहां तो अचानक नोटिस दिया फिर बिना सुनवाई एक तरफ से ताला लगाना शुरू कर दिया."
मान्यता देने के सवाल पर जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने द क्विंट से कहा, "2016 के बाद से मान्यता देना बंद है. मान्यता के लिए जब पोर्टल खुलेगा तब मान्यता दी जाएगी."
समीउल्ला खां (शुएब) के तर्क को मदरसा बैतुल उलूम के प्रबंधक इब्राहिम के जरिए समझ सकते हैं. उन्होंने बताया, "हमारे मदरसे की अस्थायी मान्यता है. स्थायी मान्यता के लिए साल 2017 में सभी कागज दिए. अगर अस्थायी मान्यता गैर कानूनी है तो उसे तभी खत्म कर देना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साल 2023 तक तो 3000 रुपए भी मिलते रहे."
सील मदरसों को कब खोला जाएगा- सरकार की क्या पॉलिसी?
अरबी फारसी बोर्ड उत्तर प्रदेश के रजिस्ट्रार आरपी सिंह ने कहा, "हमारे पास मदरसों को लेकर कोई रिपोर्ट आएगी तब नियम के तहत कार्रवाई की जाएगी. किसी न किसी आधार पर ही कार्रवाई की गई होगी."
अस्थायी मान्यता वाले मदरसों के पास क्या विकल्प है इसके जवाब में उन्होंने कहा, "अभी हम लोग सारी नियमावली के परिवर्तन की प्रक्रिया में हैं. अंतिम परिवर्तन के बाद जब फाइनल नियमावली बन जाएगी उस आधार पर आगे काम किया जाएगा. 2016 के बाद नियमावली बदली थी. 2016 के बाद भी मान्यताएं (कितनी मान्यताए दी गईं इसका जवाब नहीं मिला) हुई हैं. लेकिन अब पूरे नियमों को रिव्यू किया जा रहा है. जब फाइनल हो जाएगा तो उसके आधार पर काम करेंगे. समय-समय पर प्रस्ताव आए हैं. परिषद के सामने रखे गए हैं. लेकिन किसी न किसी कमी की वजह से मान्यता नहीं दी गई होगी."