देश भर में पिछले 5 सालों में 37 हजार से अधिक स्कूल कम हो गए हैं. इनमें से लगभग 23 हजार से अधिक सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल शामिल हैं. साल 2021 में भारत में कुल 15,09,136 स्कूल थे, जो अब घटकर 14,71,473 रह गए हैं.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शैक्षणिक वर्ष 2024-25 के लिए जारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) के आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ पिछले एक साल यानी 2024-25 में ही 5,303 सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में कमी आई है. इसके बाद साल 2024-25 में सरकारी स्कूलों की संख्या घटकर 10.13 लाख रह गई, जबकि 2023-24 में यह 10.18 लाख थी.
सरकारी स्कूलों पर 'ताला', लेकिन प्राइवेट स्कूलों की संख्या बढ़ी
जहां एक तरफ सरकारी स्कूलों की संख्या घटती जा रही है वहीं प्राइवेट स्कूलों की बात करें तो पिछले दो सालों से लगातार उनकी संख्या में वृद्धि हुई है. साल 2024-25 में लगभग 8,475 नए प्राइवेट स्कूल खोले गए, जबकि 2023-24 में 7,678 नए प्राइवेट स्कूल शुरू हुए थे. देश भर में प्राइवेट स्कूलों की संख्या 2023-24 के 3.31 लाख से बढ़कर 2024-25 में 3.39 लाख हो गई है.
बिहार में जितने सरकारी स्कूल कम हुए, उससे कहीं अधिक प्राइवेट स्कूल खुले
जब क्विंट ने UDISE+ की रिपोर्ट को खंगाला तो पता चला कि सरकारी स्कूलों की संख्या कम होने वाले राज्यों में सबसे ऊपर बिहार है, जहां साल 2024-25 में 1,800 स्कूल कम हुए हैं. वहीं दूसरी तरफ इस दौरान बिहार में 2,107 प्राइवेट स्कूल खुले हैं.
इस लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर क्रमशः हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक हैं, जहां साल 2024-25 के दौरान 492 और 462 सरकारी स्कूल कम हुए हैं.
नए प्राइवेट स्कूल खोले जाने की लिस्ट देखें तो सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में प्राइवेट स्कूल खुले हैं, जिनकी संख्या 7,873 है. दूसरे नंबर पर बिहार है, जबकि तीसरे नंबर पर असम है, जहां 755 नए प्राइवेट स्कूल खुले हैं.
दूसरी तरफ, इसी साल 2025 में यूपी सरकार की बेसिक शिक्षा परिषद ने एक आदेश जारी कर कहा था कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 50 से कम होगी उन्हें नजदीकी स्कूल में मर्ज किया जाएगा. इस आदेश की चपेट में लगभग 5,000 स्कूल आने वाले थे, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने फिलहाल इसे रोक दिया है.
उत्तर प्रदेश में ही लगभग 9.5 हजार ऐसे स्कूल हैं, जहां केवल एक ही शिक्षक हैं, और इन स्कूलों में 6.24 लाख से अधिक छात्र पढ़ते हैं. हालांकि इस रिपोर्ट में कहीं भी स्कूल बंद होने या मर्जर का डेटा नहीं बताया गया है.
लगातार तीसरे साल सरकारी स्कूल में एनरोलमेंट में गिरावट
आंकड़ों के मुताबिक 2023-24 की तुलना में 2024-25 में स्कूलों में नामांकन (एनरोलमेंट) 11 लाख कम हुआ है. यह लगातार तीसरा साल है जब स्कूल एनरोलमेंट में गिरावट दर्ज की गई है. यह कमी ज्यादातर सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में देखने को मिली है, जबकि इसी दौरान प्राइवेट स्कूलों में नामांकन बढ़ा है. 2024-25 में कुल एनरोलमेंट घटकर 24.69 करोड़ रह गया, जो 2023-24 में 24.80 करोड़ और 2022-23 में 25.18 करोड़ था.
सरकारी स्कूलों के आंकड़े देखें तो पिछले तीन वर्षों में नामांकन में लगातार गिरावट आई है. 2022-23 में सरकारी स्कूलों में नामांकन 13.62 करोड़ था, जो 2023-24 में घटकर 12.75 करोड़ और 2024-25 में और गिरकर 12.16 करोड़ रह गया. इसके उलट, निजी स्कूलों में नामांकन लगातार बढ़ रहा है. 2022-23 में जहां यह 8.42 करोड़ था, वहीं 2023-24 में बढ़कर 9 करोड़ और 2024-25 में 9.59 करोड़ हो गया.
साल 2024-25 में ही, जहां सरकारी स्कूलों में 59 लाख छात्रों की कमी दर्ज की गई, वहीं निजी स्कूलों में 58.20 लाख छात्रों की बढ़ोतरी हुई है. कुल नामांकन में निजी स्कूलों का योगदान 2024-25 में 39% तक पहुंच गया है, जो 2018-19 के बाद से सबसे अधिक है. उस समय यह हिस्सा 33 से 37% के बीच था.
अगर इसे राज्यवार देखें तो सबसे अधिक गिरावट पश्चिम बंगाल में दर्ज हुई है, जहां 9.34 लाख एनरोलमेंट घटा. इसके बाद तमिलनाडु (4.74 लाख), राजस्थान (4.21 लाख), आंध्र प्रदेश (2.87 लाख) और बिहार (2.21 लाख) का स्थान है. इसके विपरीत, उत्तर प्रदेश(11.26 लाख), झारखंड (2.93 लाख) और हरियाणा (1.69 लाख) शीर्ष तीन राज्य रहे हैं, जहां एनरोलमेंट में वृद्धि दर्ज की गई है.
लिंग के हिसाब से देखें तो 2024-25 में लड़कियों का एनरोलमेंट मामूली रूप से 32,925 बढ़ा है, जो 11.93 करोड़ से बढ़कर 11.933 करोड़ हो गया. वहीं लड़कों का एनरोलमेंट 12.87 करोड़ से घटकर 12.76 करोड़ हो गया — यानी 11.46 लाख की कमी दर्ज हुई है.
प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5) पर लड़कों का एनरोलमेंट 5.62 करोड़ से घटकर 5.43 करोड़ रह गया, यानी लगभग 19.2 लाख की कमी आई है.
एक लाख से अधिक स्कूल में सिर्फ एक टीचर
आंकड़ों के अनुसार, 1,04,125 ऐसे स्कूल हैं जहां सिर्फ एक ही शिक्षक है और इनमें 33.76 लाख छात्र नामांकित हैं. सबसे ज्यादा 12 हजार स्कूल आंध्र प्रदेश में हैं, जबकि उत्तर प्रदेश (9.5 हजार) और झारखंड (9.1 हजार) क्रमशः दूसरे और तीसरे नंबर पर है.
वहीं देश में 7,993 स्कूलों में एक भी एनरोलमेंट नहीं हुआ है, यानी वहां एक भी स्टूडेंट नहीं पढ़ता है. इन स्कूलों में लगभग 20,817 शिक्षक कार्यरत है.
डिजिटल इंडिया, पर स्कूलों में डिजिटल अभाव
"डिजिटल इंडिया" के नारे के बीच देश के स्कूलों की हकीकत चौंकाने वाली है. जिस दौर में सरकार हर स्तर पर टेक्नोलॉजी को शिक्षा का भविष्य बता रही है, उसी दौर में आज भी 5.19 लाख स्कूलों में कंप्यूटर तक नहीं हैं. यानी कुल 14.71 लाख स्कूलों में से केवल 9.51 लाख में ही कंप्यूटर उपलब्ध हैं.
हालत यह है कि मेघालय (19.7%), पश्चिम बंगाल (25.1%), बिहार (25.2%), मणिपुर (38%) और जम्मू-कश्मीर (43.1%) जैसे राज्यों में आधे से ज्यादा स्कूल अब भी डिजिटल शिक्षा से कटे हुए हैं. यह आंकड़ा बताता है कि 'डिजिटल भारत' का सपना कागज पर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन स्कूलों की हकीकत जमीन पर कहीं पीछे छूट गई है.
स्कूलों का बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर अब भी अधूरा
सरकार भले ही डिजिटल एजुकेशन और स्मार्ट क्लासरूम का दावा करे, लेकिन देश के लाखों स्कूल अब भी सबसे बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर से जूझ रहे हैं. लाइब्रेरी, शौचालय, पीने का पानी, बिजली और खेल का मैदान— ऐसी जरूरी सुविधाओं की भारी कमी आज भी बच्चों की पढ़ाई और उनके विकास पर सवाल खड़े करती है.
भारत के स्कूलों में लाइब्रेरी, बुक बैंक या रीडिंग कॉर्नर जैसी सुविधाओं की भी बड़ी कमी है. देशभर में 1.54 लाख स्कूल ऐसे हैं जहां ये सुविधाएं मौजूद ही नहीं हैं.
शौचालय और स्वच्छता की स्थिति भी चिंता का विषय है. कुल 14.21 लाख स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय मौजूद हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 13.72 लाख ही कार्यरत (functional) हैं. यानी 48,324 स्कूलों में लड़कियों का शौचालय या तो है ही नहीं या काम नहीं कर रहा.
लड़कों के मामले में भी स्थिति अलग नहीं है. 13.90 लाख स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय मौजूद हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 13.34 लाख ही फंक्शनल हैं. यानी 55,503 स्कूलों में शौचालय तो हैं लेकिन उपयोग के लायक नहीं.
इसी तरह अन्य बुनियादी सुविधाओं में भी खामियां साफ दिखाई देती हैं. आंकड़ों के अनुसार, देशभर में अब भी 14,432 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है.
बिजली की स्थिति देखें तो 13.77 लाख स्कूलों में बिजली कनेक्शन है, लेकिन इनमें से केवल 13.52 लाख में ही बिजली फंक्शनल है. यानी 25,884 स्कूलों में बिजली है लेकिन वह काम नहीं कर रही.
खेल और शारीरिक गतिविधि की दृष्टि से भी स्थिति संतोषजनक नहीं है. देशभर में अब भी 2,48,822 स्कूल ऐसे हैं जिनमें प्लेग्राउंड नहीं है. कुल 14.71 लाख स्कूलों में से सिर्फ 12.21 लाख स्कूलों में ही बच्चों के खेलने के लिए मैदान मौजूद हैं.
ड्रॉपआउट रेट और छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार
UDISE+ 2024-25 के आंकड़ों के मुताबिक भले ही नए नामांकन में गिरावट आई हो, लेकिन एक सकारात्मक रुझान यह है कि अब पहले की तुलना में कम बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं और रिटेंशन में सुधार हुआ है. 2023-24 से 2024-25 के बीच ड्रॉपआउट दर में गिरावट दर्ज की गई है.
ड्रॉपआउट रेट वह प्रतिशत छात्र है जो किसी निर्धारित शैक्षिक स्तर (जैसे हाई स्कूल) को पूरा करने से पहले स्कूल छोड़ देते हैं. यह दर यह दिखाती है कि छात्रों का स्कूल में टिके रहने का स्तर और शिक्षा की गुणवत्ता कैसी है.
प्रिपरेटरी स्तर (कक्षा 3-5) में ड्रॉपआउट 3.7% से घटकर 2.3% पर आ गया है, मिडिल स्तर (कक्षा 6-8) में यह 5.2% से घटकर 3.5% हो गया है और सेकेंडरी स्तर (कक्षा 9-10) में 10.9% से घटकर 8.2% रह गया है.
इसी तरह रिटेंशन दर भी सभी स्तरों पर बेहतर हुई है. फाउंडेशनल स्तर पर यह 98.9%, प्रिपरेटरी स्तर पर 92.4% और मिडिल स्तर पर 82.8% दर्ज की गई है. सेकेंडरी स्तर पर जहां ऐतिहासिक रूप से ड्रॉपआउट दर अधिक रही है, वहां भी सुधार हुआ है और रिटेंशन 45.6% से बढ़कर 47.2% पर पहुंचा है.
UDISE+ 2024-25 के आंकड़ों के मुताबिक देशभर में शिक्षकों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है. 2023-24 में देशभर में कुल 98.07 लाख शिक्षक थे, जो 2024-25 में बढ़कर 1.01 करोड़ हो गए. इनमें पुरुष शिक्षकों की संख्या 45.77 लाख से बढ़कर 46.40 लाख हो गई है, जबकि महिला शिक्षकों की संख्या 52.30 लाख से बढ़कर 54.81 लाख हो गई. यानी कुल वृद्धि का बड़ा हिस्सा (79.74%) महिला शिक्षकों से आया है.
शिक्षक बढ़ने का असर छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) में भी दिखा है. पिछले तीन वर्षों में इसमें मामूली सुधार हुआ है. मूलभूत स्तर पर 2022-23 में PTR 11 था, जो 2023-24 और 2024-25 में घटकर 10 हो गया. प्रारंभिक स्तर पर यह 2022-23 में 14 था, जो अगले दो वर्षों (2023-24 और 2024-25) में 13 पर स्थिर रहा.
मध्य स्तर पर भी सुधार दर्ज हुआ है, जहां 2022-23 और 2023-24 में PTR 18 था, जो 2024-25 में घटकर 17 हो गया. वहीं माध्यमिक स्तर पर PTR 2022-23 में 23 था, जो 2023-24 में घटकर 21 हुआ और 2024-25 में भी 21 पर कायम रहा.