"घुसपैठियों को चुन-चुनकर बाहर निकालेंगे"
"यह चुनाव बिहार से घुसपैठियों को बाहर निकालने का चुनाव हैं"
Exclusive: अमित शाह ने ये बयान अररिया में दिया था. उसी अररिया में जो बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल के 4 जिलों में से एक है. अब सीमांचल सहित पूरे बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया खत्म होने के बाद 'घुसपैठियों' पर तस्वीर साफ हो चुकी है. सीमांचल के कुल 4 जिलों अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया में नागरिता को लेकर सिर्फ 106 आपत्तियां दर्ज कराई गईं. ये आपत्तियां चुनाव आयोग के फॉर्म-7 के जरिए दर्ज हुईं. वोटर लिस्ट से किसी व्यक्ति का नाम कटवाने के लिए फॉर्म-7 का इस्तेमाल किया जाता है. 106 आपत्तियों के बाद चुनाव आयोग ने कुल 40 लोगों के नाम मतदाता सूची से काटा. हालांकि चुनाव आयोग ने नाम काटने की वजह 'अयोग्य' बताया है, लेकिन जिन लोगों के नाम 'अयोग्य' की वजह से काटे गए, उनके नाम पर 'Not Indian Citizen' के नाम से आपत्ति दर्ज है. ऐसे में बताते हैं कि सीमांचल में 'घुसपैठिए' को लेकर बिहार SIR के दौरान किए तमाम दावों का सच क्या निकला? क्या सीमांचल में नागरिकता साबित न कर पाने वालों में हिंदू ज्यादा है? सभी का एक-एक कर विश्लेषण करेंगे.
'Not Indian Citizen' को लेकर अररिया जिले में कुल 84 आपत्तियां
बिहार का सीमांचल, मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है. यहां किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68%, कटिहार में 44%, अररिया में 43% और पूर्णिया में 38% है. कुल 24 विधानसभा सीटें हैं.
विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान 'भारत के नागरिक नहीं' (Not Indian Citizen) का तर्क देकर किशनगंज में महज 2 आपत्तियां (फॉर्म-7 के जरिए वोटर लिस्ट से नाम काटने के लिए) दर्ज हुईं. वहीं अररिया में 84, पूर्णिया में 12 और कटिहार में 8 आपत्तियां नागरिकता को लेकर दर्ज हुईं.
अगर सीमांचल की 24 विधानसभाओं में नागरिकता को लेकर SIR में दर्ज आपत्तियों को देखा जाए तो अररिया विधानसभा सीट पर 29 आपत्तियां दर्ज कराई गईं.
106 आपत्तियों में से 59 में साबित हुई भारतीय नागरिकता
चुनाव आयोग के मुताबिक, सीमांचल के चारों जिलों में नागरिकता को लेकर कुल 106 आपत्तियां दर्ज हुईं, जिनमें जांच के बाद 59 लोगों के नाम फाइनल मतदाता सूची में शामिल किए गए. यानी इन 59 लोगों ने कागज दिखाकर अपनी नागरिकता साबित की. हालांकि 59 में से 35 नाम ही इलेक्शन कमीशन की साइट पर सर्च (एपिक नंबर के जरिए) करने पर दिख रहे हैं. 24 नाम इलेक्शन कमीशन की साइट पर नहीं दिख रहे हैं, लेकिन मतदाता सूची में इन 24 लोगों के नाम हैं. जबकि दोनों जगहों पर एपिक नंबर एक है. उदाहरण के लिए नीचे स्क्रीन शॉट देख सकते हैं.
'गैर नागरिकता' की वजह से 25 हिंदू और 15 मुसलमानों के नाम कटे
सीमांचल में नागरिकता को लेकर कुल 106 आपत्तियां दर्ज कराई गईं, जिसमें 59 लोगों ने अपनी नागरिकता साबित कर दी और फाइनल वोटर लिस्ट में जगह बना ली, लेकिन 47 नाम ऐसे थे, जिनके नाम वोटर लिस्ट से काट दिए गए. इसमें से 28 हिंदू और 19 मुस्लिम हैं.
नागरिकता को लेकर आपत्ति किए गए 47 नामों में से 7 की मृत्यु हो चुकी है, जिनमें 3 हिंदू और 4 मुस्लिम हैं. यानी अगर जिंदा ऐसे व्यक्तियों की संख्या पता लगानी हो, जो सीमांचल के वोटर थे और SIR के दौरान नागरिकता न साबित कर पाने की वजह से फाइनल वोटर लिस्ट से बाहर हो गए तो ऐसे लोगों की कुल संख्या 40 है, जिनमें 25 हिंदू और 15 मुसलमान हैं.
जिलावार देखें तो अररिया में 24, पूर्णिया में 9, कटिहार में 7 और किशनगंज में 0 लोगों के नाम नागरिकता साबित न कर पाने की वजह से काटे गए.
सीमांचल में 'नागरिकता' पर सबसे कम आपत्तियां, माइग्रेशन पर ज्यादा
सीमांचल में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान वोटर लिस्ट से नाम काटने/कटवाने के लिए कुल 64,050 आपत्तियां दर्ज कराई गईं. जिसमें माइग्रेशन (स्थायी रूप से स्थानांतरित) को लेकर 26993 (42%) हैं. इसके अलावा 0.17% आपत्तियां 'भारतीय नागरिक नहीं' होने की वजह देकर दर्ज कराई गई. मृत्यु को लेकर 20% आपत्तियां दर्ज कराई गईं.
सीमांचल में नाम काटने के लिए 14% आपत्तियों में वजह का जिक्र क्यों नहीं?
ऊपर जहां-जहां भी आपत्तियों का जिक्र किया गया है वह सभी फॉर्म-7 के जरिए वोटर लिस्ट से नाम काटने/कटवाने के लिए दर्ज कराई गई हैं.
चुनाव आयोग के फॉर्म-7 में नाम काटने की वजह बतानी होती है, लेकिन सीमांचल में दर्ज कुल आपत्तियों में से 9567 यानी 14% आपत्तियां तो ऐसी हैं जिनमें नाम काटने की वजह का जिक्र ही नहीं है. कहीं-कहीं तो नाम कटवाने वाले और किसका नाम काटना है उसका भी जिक्र नहीं है, सिर्फ 'undefined (Other)' लिखकर छोड़ दिया गया है.
अररिया में बिना वजहों की 6692 आपत्तियां दर्ज हैं. इसके अलावा पूर्णिया और कटिहार में भी कुछ जगहों पर बिना वजह बताए फॉर्म-7 भरकर आपत्ति दर्ज कराई गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब अन्य जगहों पर वजहों का जिक्र है तो इन 14% आपत्तियों में क्यों नहीं?
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