भीषण गर्मी के बीच उत्तर प्रदेश में बिजली कटौती से लोगों के पसीने छूट रहे है. लगातार बिजली कटने से जनता बेहाल है. प्रदेश में बिजली संकट ने आम लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.
बिजनौर जिला अस्पताल में बिजली कटौती और जनरेटर में डीजल की कमी के कारण 26 वर्षीय मरीज का डायलिसिस रुक गया, जिससे उसकी मौत हो गई. वहीं ग्रेटर नोएडा के मकनपुर खादर गांव में लोगों को 40 दिनों तक बिना बिजली के रहना पड़ा. बिजली नहीं रहने की वजह से लोगों को बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ा.
'जनाब ऐसे कैसे' के इस एपिसोड में हम उत्तर प्रदेश की बिजली व्यवस्था की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश करेंगे. साथ ही सरकार के वादों की भी पड़ताल करेंगे.
करीब डेढ़ महीने तक अंधेरे में रहा गांव
द क्विंट से बातचीत में मकनपुर खादर गांव के प्रधान संजय कुमार ने बताया कि आंधी के कारण गांव के कई ट्रांसफॉर्मर खराब हो गए थे. कुछ ट्रांसफॉर्मर तो टूटकर नीचे गिर गए थे. वे कहते हैं, "2 मई को आई आंधी के बाद हमने ट्रांसफॉर्मर की शिकायत की और इस विषय में जेई (जूनियर इंजीनियर) और एसडीओ (सब-डिविजनल ऑफिसर) को जानकारी दी. हमने अपनी शिकायत मुख्यमंत्री हेल्पलाइन नंबर के जरिए भी ऊपर तक पहुंचाई. लेकिन 12 जून तक हमारी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ."
"हमने हर अधिकारी से बात की, लेकिन हमें सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा. लगभग 44 दिनों तक गांव बिजली में बिजली देखने को नहीं मिली... ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. जब भी गांव में बिजली से जुड़ी कोई समस्या आती है, तो विभाग कई-कई दिनों तक उस पर ध्यान नहीं देता."
नीतू कहती हैं, "लगभग एक महीने से गांव में बिजली नहीं आने के कारण पानी की बहुत समस्या हो रही थी. हम गरीब लोग हैं, हमारे पास इनवर्टर या कोई और इंतजाम नहीं था. बच्चे ठीक से सो नहीं पा रहे थे. उनकी पढ़ाई-लिखाई में भी दिक्कत हो रही थी."
शिकायत के बावजूद नहीं दूर हुई समस्या
मकनपुर बांगर गांव का भी हाल खादर गांव की ही तरह है. यहां के एक व्यक्ति ने बताया कि गांव में लगे 4-5 ट्रांसफॉर्मर पिछले एक-डेढ़ महीने से खराब हैं. उनका आरोप है कि कई बार शिकायत के बावूजद कोई सुनवाई नहीं हुई है. द क्विंट से उन्होंने कहा, "एक डेढ़ महीना हो गया है. लाइट नहीं होने की वजह से बच्चे परेशान हैं. मोबाइल और लैपटॉप बंद पड़े हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई ठप हो गई है. घरों में लाइट नहीं होने से कुलर-पंखे भी नहीं चल रहे हैं."
"हमारे गांव में एक महीने से भी ज्यादा हो गया है, लेकिन अब तक बिजली नहीं आई है. हमारे घर के पंखे और फ्रिज सब बंद पड़े हैं. आप खुद सोचिए, गांव के लोग ऐसे हालात में अपना गुजारा कैसे कर रहे होंगे?"राजकुमारी, मकनपुर बांगर
बिजनौर में बिजली कटने से मरीज की मौत
जहां दिवाली पर 25 लाख से ज्यादा दीये जलाने का रिकॉर्ड बनाया जाता है, उसी उत्तर प्रदेश में आरोप है कि बिजली कटने और जनरेटर में तेल न होने की वजह से एक मरीज का डायलिसिस रुक गया और उसकी मौत हो गई. मामला बिजनौर का है.
मृतक सरफराज की मां सलमा कहती हैं, "सरफराज पिछले एक महीने से जिला अस्पताल में नियमित रूप से डायलिसिस करा रहे थे. इस दौरान डायलिसिस के बीच कई बार बिजली चली जाती थी, जिससे इलाज रुक जाता था." उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि "अस्पताल के जनरेटर में पिछले एक महीने से डीजल नहीं था."
जिलाधिकारी जसजीत कौर ने माना कि "बिजली जाने की स्थिति में जनरेटर में डीजल होना जरूरी था, ताकि मशीनें चलती रहें, लेकिन वहां ऐसा कोई इंतजाम नहीं था. जिसकी वजह से एक मरीज की जान चली गई."
उन्होंने कहा, "संजीवनी प्राइवेट एजेंसी पीपीपी मोड पर डायलिसिस सेंटर चला रही थी. एजेंसी को 2020 में टेंडर मिला था, लेकिन कामकाज में कई गड़बड़ियां पाई गई हैं."
बिजली कटौती का व्यवसाय पर भी असर
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लेकर इटावा, मैनपुरी, लखनऊ, लखीमपुर खीरी तक के लोग बिजली कटौती की समस्या से परेशान हैं. कई जगहों पर लोगों का आरोप है कि दिन में 10-10 बार बिजली कट रही है.
इतना ही नहीं बिजली कटौती से छोटे व्यवसायों पर भी असर पड़ रहा है. मऊ के रहने वाले मोहम्मद कासिम अंसारी, पेशे से बुनकर हैं. द क्विंट से बातचीत में वे कहते हैं, "बुनकरों को बिजली जितनी पर्याप्त मात्रा में मिलनी चाहिए, उतनी नहीं मिल पा रही है. काम के वक्त ही बिजली काट दी जाती है."
लखीमपुर खीरी के बेकरी व्यापारी धर्मेंद्र तोमर कहते हैं, "हमारे यहां सारी चीजें गर्मा या फिर ठंडी देनी होती है, इसलिए बिजली बहुत जरूरी है. ट्रिपिंग की समस्या बहुत ज्यादा है. इस वजह से बिजली सप्लाई में दिक्कत आती है. इसका सेल पर भी असर पड़ता है."
इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी और बिजली कटौती की दोहरी मार झेल रही जनता पूछ रही है, जनाब ऐसे कैसे?