ADVERTISEMENTREMOVE AD

रूस-यूक्रेन युद्ध: आपदा में भारतीय स्टूडेंट, अवसर तलाश रहे नेता!

क्यों भारत में मेडिकल की पढ़ाई इतनी महंगी है जिसकी वजह से भारतीय छात्रों को बाहर जाना पड़ता है?

Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large
ADVERTISEMENTREMOVE AD

'क्या सरकार ने कहा था यूक्रेन में जाकर पढ़ो?'

'पढ़ाई में फिसड्डी हैं इसलिए दूसरे देश में जाकर पढ़ाई करते हैं..'

'जिस हमले को चीन और अमेरिका नहीं रोक पाया.. उसे हमारी सरकार ने कर दिखाया.. भारतीयों के लिए 6 घंटे तक रूस ने युद्ध रोक दिया… देखा कमाल…'

ये वो डायलॉग हैं जो भारत के कुछ बयान-वीरों के मुंह से निकल रहे हैं.. राजनीतिक दल से लेकर पत्रकारिता को दल-दल में धकेलने वाले आपदा में तारीफों का अवसर तलाश रहे हैं. रूस और यूक्रेन (Ukraine) के बीच जारी युद्ध से अपनी जान बचाकर भारत लौटे छात्रों से कोई जयकारे लगवा रहा है तो कोई वीडियो बनवा रहा है. लेकिन ये नहीं पूछ रहा कि क्यों भारतीयों को युद्ध के मैदान यूक्रेन से लाने में इतना वक्त लग रह है? क्यों नहीं हमने जंग से पहले ही एवैक्यूशन मिशन शुरू किया? क्यों भारत में मेडिकल की पढ़ाई इतनी महंगी है जिसकी वजह से भारतीय छात्रों को बाहर जाना पड़ता है? इन सवालों का जवाब देने के बजाय अपने मुंह मियां मिट्ठू बनेंगे तो तो हम तो पूछेंगे जरूर-जनाब ऐसे कैसे?

पिछले कई दिनों से यूक्रेन में तबाही का मंजर देखने को मिल रहा है. रूसी सेनाएं लगातार यूक्रेन पर हमले कर रही हैं. आम लोगों की जान जा रही है.

मोदी सरकार ने अपने मंत्रियों की टीम को भारत पहुंचने वाले छात्रों से मिलने के लिए फ्लाइट से लेकर एयरपोर्ट पर तैनात किया है. इसी बीच जब कुछ छात्र हंगरी के बूडापेस्ट के रास्ते भारत लौटे तो केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी इनसे मिलने एयरपोर्ट पहुंचे थे. इसी दौरान छात्र अपनी तकलीफ और नाराजगी जाहिर करने से खुद को रोक नहीं पाए. ऐसी ही तकलीफ यूक्रेन के खारकीव शहर पर रूसी हमले में मारे गए भारतीय नवीन शेखरप्पा के पिता के मन में भी है. मेडिकल की पढ़ाई करने गए नवीन रूसी हमले में मारे गए हैं. नवीन के पिता कह रहे हैं कि छात्रों के पास भारतीय दूतावास से कोई नहीं पहुंचा था. फिर सवाल है कि अगर सरकार कह रही है कि भारतीय दूतावास बहुत काम कर रही है तो फिर क्या नवीन के पिता गलत बोल रहे हैं? क्या यूक्रेन से लौट ये छात्र गलत बोल रहे हैं?

डिप्लोमैटिक मिशन ने पहली एडवाइजरी 15 फरवरी को जारी की थी. जबकि यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते तनाव की खबरें इंटरनेशनल मीडिया में चल रही थीं. पश्चिमी इंटेलिजेंस हफ्तों से कहा रहा था कि यूक्रेन पर एकदम से हमला होगा. फिर भी भारत ने अपने लोगों को वहां से समय पर क्यों नहीं निकाला? क्या एडवाइजरी जारी करते वक्त 20 हजार छात्रों के भारत लौटने के लिहाज से जरूरी एयर ट्रैफिक की व्यवस्था की गयी थी? अगर की गई थी तो अबतक छात्र क्यों बेबस हैं? जब युद्ध की खबरें आने लगीं तो क्यों एअर टिकट रातों रात कई गुणा महंगे हो गये और सरकार देखती क्यों रही?

मुझसे बात करते हुए यूक्रेन में रह रहे बिहार एक छात्र महताब ने कहा कि आना तो चाहते थे लेकिन अचानक 50 हजार रुपये नहीं जुटा पाए. महताब की मां टीचर हैं, पिता कोविड में चल बसे. तो आखिर वहां अचानक से 50 हजार रुपए कहां से लाता.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या वक्त रहते ही ऑपरेशन गंगा शुरू नहीं किया जा सकता था?

छात्रों की सुरक्षित वापसी के लिए भारत सरकार की तरफ से ऑपरेशन गंगा चलाया जा रहा है, जहां यूक्रेन के पड़ोसी मुल्कों हंगरी, स्लोवाकिया, पोलैंड और रोमानिया सेभारत के लिए फ्लाइट्स चलाई जा रही हैं.

अब ये इत्तेफाक कहें या प्रचार कि उत्तर प्रदेश में चुनाव जारी है और यूक्रेन में फंसे लोगों को निकालने के लिए गंगा के नाम से मिशन चलाया जा रहा है. एक तरफ तो युद्ध छिड़ने के इतने दिन बाद भी हमारे हजारों लोग यूक्रेन में फंसे हैं जबकि दूसरी जोर चुनावी रैलियों में ऑपरेशन गंगा के लिए नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं जबकि ये पहली बार नहीं है जब युद्ध के बीच में फंसे भारतीयों को बचाने के लिए सरकार ने मिशन चलाया हो.

  • साल 1990 में भारतीय वायु सेना ने कुवैत में फंसे भारतीय नागरिकों को एयरलिफ्ट कराने के लिए ऑपरेशन चलाया था. इस ऑपरेशन में लगभग 1,70,000 नागरिकों को सुरक्षित रूप से एयरलिफ्ट किया गया था.

  • 2006 में इज़राइल–लेबनान युद्ध के दौरान लेबनान से भारतीयों, श्रीलंकाई, नेपाली और लेबनानी नागरिकों को निकालने के लिए भारतीय नौसेना द्वारा ऑपरेशन सुकून, शुरू किया गया था.

  • लीबिया में गृह युद्ध के दौरान 15,400 से ज़्यादा भारतीय नागरिकों को बचाने के लिए भारत सरकार ने 26 फरवरी 2011 को ऑपरेशन सेफ होमकमिंग शुरू किया था.

  • साल 2015 में हौथी विद्रोही लड़ाकों की वजह से यमन की राजधानी सना में अशांति फैल गई थी. ऐसे में वहां से भारतीयों को निकालने के लिए 'ऑपरेशन राहत' चलाया गया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक तरफ बढ़ा चढ़ा कर किए जा रहे दावे हैं तो दूसरी तरफ फेक न्यूज चल रही है. जैसे कि भारत ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए 6 घंटे युद्ध डिले करा दिया. बाद में विदेश मंत्रालय ने बताय कि ये दावा झूठा है. वैशाली यादव नाम की एक लड़की जो यूक्रेन से मदद मांग रही थी, उसके बारे में दावा कर दिया गया कि वो तो भारत में ही है और सरकार को बदनाम करने के लिए वीडिया बना रही है. लिहाजा उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. बाद में यूपी पुलिस ने खुद साफ किया कि ऐसी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है. खुद वैशाली ने क्विंट से बात की जिसमें उसने बताया कि वो यूक्रेन से रोमानिया पहुंच गई हैं. उन्होंने हमें लाइव लोकेशन भी भेजी हैं

अब आते हैं बड़े सवाल पर

क्यों भारत के बच्चों को मेडिकल की पढ़ाई के लिए दूसरे देशों में जाने को मजबूर होना पड़ता है? 26 फरवरी, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के प्राइवेट सेक्टर से आग्रह किया कि वे भारत में मेडिकल एजुकेशन सिस्टम को मजबूत करने के लिए कदम बढ़ाए. लेकिन बता दें कि ये प्राइवेट सेक्टर की ही देन है कि बच्चे देश के प्राइवेट कॉलेजों में पढ़ने की बजाय यूक्रेन-फिलीपींस जैसे छोटे देश जाने को तरजीह देते हैं. क्योंकि भारत में प्राइवेट कॉलेज से डॉक्टर बनने के लिए 50 लाख से एक करोड़ रुपए फीस लगते हैं. जबकि यूक्रेन जैसे देशों में 20-25 लाख रुपये में डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो सकता है.

दिसंबर 2021 में लोकसभा में स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि भारत में बैचलर ऑफ मेडिसिन बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) की 88,120 सीटें और और बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) 27,498 सीटें ही हैं. वहीं 2021 में इन सीटों के लिए 16 लाख उम्मीदवारों ने नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट दिया था. साल 2020 में यह आंकड़ा 13 लाख था. तो फीस तो ज्यादा है ही, सीटें भी कम हैं.

जिस छात्र नवीन की मौत हुई है उसके पिता ने भी कहा है कि 90% से ज्यादा नंबर लाने पर भी उसे यहां दाखिल नहीं मिला.

तो ये मौका बचाए गए लोगों को चुनाव में भुनाने का नहीं है. इन सवालों के स्थाई जवाब तलाशने की जरूरत है. भारत सरकार ने यूक्रेन और रूस के जंग को भांपने में देर क्यों लगाई? एवैक्यूशन मिशन में देरी क्यों? भारत में मेडिकल की पढ़ाई इतनी महंगी क्यों? युद्ध जैसे हालात में जान बचाने की जद्दोजेहद के बीच में भी प्रचार वाली राजनीति क्यों? इन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे तो हम हम पूछेंगे-जनाब ऐसे कैसे?

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×