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‘लॉकडाउन की हीरो’ साइकिल गर्ल ज्योति कुमारी आज किस हाल में हैं?

लॉकडाउन की हीरो’ साइकिल गर्ल ज्योति कुमारी से किए गए वादे 5 साल बाद भी अधूरे क्यों रह गए?

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कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान अपने बीमार पिता को साइकिल पर बिठाकर दिल्ली से दरभंगा के सिरुल्ली गांव तक 1200 किलोमीटर का सफर तय करने वाली बिहार की बेटी ज्योति कुमारी आज भी संघर्ष कर रही हैं. ज्योति की यह कहानी साल 2020 में राष्ट्रीय सुर्खियां बनी थी, जिसके बाद मीडिया से लेकर नेताओं तक ने उन्हें 'साइकिलिस्ट बनाने' और ओलंपिक भेजने तक के वादे किए थे.

लेकिन 2025 में, कोरोना को गए हुए करीब 5 साल से ज्यादा हो चुके हैं, और 'द क्विंट' की रिपोर्ट में सामने आया कि ज्योति कुमारी की जिंदगी में हालात नहीं बदले हैं. पैसे की कमी के कारण ज्योति ने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी है.

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"पढ़ना चाहती हूं, लेकिन पैसा नहीं है"

ज्योति कुमारी ने अपनी इंटरमीडिएट की पढ़ाई दूसरे साल में ही छोड़ दी. पढ़ाई छोड़ने का मुख्य कारण पैसों की कमी है. ज्योति बताती हैं कि जब वह दिल्ली से आईं थीं, तब जो थोड़े-बहुत पैसे थे, उनसे पढ़ाई कर ली थी. लेकिन पिता के निधन के बाद इलाज में सारे पैसे लग गए.

अब, परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि पांच सदस्यों वाले परिवार का भरण-पोषण करने के लिए, ज्योति की मां फुलो देवी आंगनबाड़ी में साहिका (खाना बनाने वाली) के रूप में काम कर रही हैं.

फुलो देवी बताती हैं कि साहिका के तौर पर उन्हें ₹4500 रुपये महीने मिलते हैं. पहले यह राशि ₹4000 थी, जिसे हाल ही में ₹500 बढ़ाकर ₹4500 किया गया है.

ज्योति का कहना है कि वे अभी पढ़ाई करने की बजाय अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाना चाहती हैं.

अधूरे वादे और नेताओं की बेरुखी

जब ज्योति सुर्खियों में थीं, तब उन्हें कई तरह के उपहार और पांच-छह साइकिलें मिलीं, साथ ही किताबें और कॉपियां भी मिलीं. इसके अलावा, नेताओं ने उनसे कई बड़े वादे किए थे जो आज तक पूरे नहीं हुए.

ज्योति के अनुसार, नेताओं ने जमीन, रहने की व्यवस्था और पढ़ाने-लिखाने का वादा किया था. नौकरी देने का भी वादा किया गया था.

तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव ने ₹1 लाख या ₹51,000 जैसी आर्थिक मदद दी थी, वहीं चिराग पासवान ने भी ₹51,000 दिए थे. लेकिन इन पैसों से कर्जा चुकाया गया जो पिता के इलाज में लिया गया था.

ज्योति की मां फुलो देवी बताती हैं कि..

अब जब वह उन लोगों को फोन करती हैं जिन्होंने मदद का वादा किया था और नंबर दिए थे, तो वे पूछते हैं, "कौन ज्योति? कहां से ज्योति?" पहचानने से इनकार कर देते हैं.

'द क्विंट' की इस रिपोर्ट ने पाया कि कैसे एक वक्त 'पीपली लाइव' जैसा माहौल बन गया था, लेकिन कुछ सालों बाद एक परिवार को भुला दिया जाता है और वादे पूरे नहीं किए जाते.

जातिगत भेदभाव का दंश

आर्थिक तंगी के अलावा, ज्योति को अपने गांव-समाज में भेदभाव का सामना भी करना पड़ रहा है.

ज्योति कुमारी, पासवान जाति से आती हैं. उनकी मां का कहना है कि वे छोटे जात से हैं, इसलिए लोग उनसे जलते हैं और उनके साथ जातिगत भेदभाव करते हैं.

उनका आरोप है कि समाज, मुखिया, या जिला पर्सन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की. यहां तक कि उनके बड़े जात के पड़ोसी इस बात से जलन रखते हैं कि ज्योति का इतना नाम हुआ.

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