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I Love Muhammad विवाद से किसे फायदा?

क्या आई लव मोहम्मद के नाम पर एक पूरे समाज को निशाना बनाया जा रहा है?

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इश्क़ हो जाये किसी से कोई चारा तो नहीं,

सिर्फ मुस्लिम का मुहम्मद पे इजारा तो नहीं..

(इजारा - एकाधिकार, monopoly)

अगर आज मशहूर शायर और सिविल सर्वेंट कुंवर महेंद्र सिंह बेदी सहर होते तो शायद मोहम्मद साहब के लिए उनकी बोली ये लाइन उन्हें सलाखों के पीछे करा देती. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में कहीं आई लव मोहम्मद का पोस्टर लगाने पर एफआईआर हो रहा है तो कहीं स्टीकर, बैनर छापने भर से गिरफ्तारी हो रही है. देशभर में 2000 से ज्यादा लोगों के खिलाफ FIR हुई है, 100 से ज्यादा गिरफ्तारी और आई लव मोहम्मद से जुड़े विवाद के ठीक बाद लोगों के मकानों, दुकानों को अवैध बताकर बुलडोजर इनजस्टिस का खेल फिर से शुरू है.

इस स्टोरी में हम 3 सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करेंगे-

  • 1. आई लव मोहम्मद पर विवाद कैसे शुरू हुआ?

  • 2. क्या आई लव मोहम्मद के नाम पर एक पूरे समाज को निशाना बनाया जा रहा है?

  • 3. आई लव मोहम्मद के नारों के सहारे नफरत फैलाने से किसे फायदा होगा?

स्टोरी को आगे पढ़ने से पहले एक अपील.. हम यानी क्विंट लगातार बुलडोजर इनजस्टिस से लेकर जॉब्स, हेल्थ, इलेक्शन प्रोसेस से जुड़ी इनवेस्टिगेटिव स्टोरी कर रहे हैं, ऐसे में हमें आपके साथ की जरूरत है. क्विंट के मेंबर बनकर आप हमारा साथ दे सकते हैं, ताकि सच्ची पत्रकारिता की आवाज बची रहे.

अब आपको पहले कुछ बयान दिखाते हैं फिर इस पूरे मामले के तह में जाएंगे.

"छोटे-छोटे बच्चों को जिनके हाथों में कलम होनी चाहिए, जिनके हाथों में नोटबुक होनी चाहिए, विज्ञान और गणित की पुस्तकें होनी चाहिए, उनके हाथों में I Love Muhammad का पोस्टर देकर के अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं."
योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री (उ. प्र.)

योगी आदित्यनाथ ने 28 सितंबर को ये बयान दिया है. बरेली में 'आई लव मोहम्मद' कैंपेन के समर्थन में प्रशासन को ज्ञापन देने का ऐलान के बाद भड़के विवाद के दो दिन बाद. ऐसे में सवाल है कि क्या मतलब है इस बयान का? क्यों कलम और अपने धर्म को आदर्शों का पोस्टर साथ नहीं हो सकता है क्या?

एपीजे कलाम जिन्हें बीजेपी वाले आदर्श भारतीय मुसलमान मानते हैं वो जब नमाज पढ़ते थे तो मोहम्मद का दरूद पढ़ते थे. तो क्या एपीजे कलाम की कलम मोहम्मद का नाम लेने से कमजोर हो गई थी?

आप एक और बयान सुनिए

इन मुर्खों को ये भी नहीं पता कि आस्था के प्रतीकों को प्यार नहीं सम्मान दिया जाता है. आस्था चौराहे पर प्रदर्शन की वस्तु नहीं, आस्था अंत:करण का विषय होता है.
योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री (उ. प्र.),

ये आस्था पर ज्ञान सिर्फ मुसलमानों के लिए है या सभी धर्मों के लोगों के लिए. तो क्या देशभर और उत्तर प्रदेश में चौराहे और सड़कों पर अलग-अलग धर्म और आस्था से जुड़े कार्यक्रम बंद हो गए? नहीं न.

कैसे शुरु हआ पूरा विवाद?

आई लव मोहम्मद विवाद पर पूरी कहानी जानने से पहले आपका बैकग्राउंड जानना जरूरी है और ये भी देखना जरूरी है कि कैसे इस मामले को भड़काया गया.

दरअसल, विवाद की शुरुआत कानपुर से होती है. 4 सितंबर 2025 को, ईद मिलादुन्नबी यानी प्रौफेट मोहम्मद साहब का जन्मदिन. इस दौरान मुस्लिम समाज के लोग Rawatpur, Saiyad Nagar इलाके में एक लाइट बोर्ड और "I Love Mohammad" का पोस्टर लगाते हैं. यहीं पर विवाद होता है. कुछ लोग आपत्ति जताते हैं कि सजावट के लिए आई लव मोहम्मद का लाइट बोर्ड पहले कभी नहीं लगा था तो अब क्यों. ये एक नया चलन है.

मतलब कि पिछले साल मैंने बर्थडे पर बलून लगाया था इसलिए अब मैं लाइट नहीं लगा सकता, नहीं तो ये नया चलन हो जाएगा?

इस मामले पर कानपुर के डीसीपी वेस्ट दिनेश त्रिपाठी का दावा है कि

मोहल्ले के लोगों ने परंपरागत स्थान से हटकर एक टेंट और आई लव मोहम्मद का बैनर लगा दिया. एक पक्ष ने इसका विरोध किया. बाद में दोनों पक्षों में आपसी सहमति से बैनर को परंपरागत स्थान पर लगवा दिया गया था.
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"FIR बेबुनियाद और फर्जी है" – इमाम

वहीं द क्विंट से बातचीत में वहां की मस्जिद के इमाम शबनूर आलम ने पुलिस के दावों को खारिज करते हुए कहा,

न तो वहां टेंट लगाया गया और न ही कोई धार्मिक पोस्टर फाड़ा गया. ये FIR बिल्कुल बेबुनियाद और फर्जी है.

हालांकि कानपुर के डीसीपी वेस्ट दिनेश त्रिपाठी ने दावा किया कि FIR 'आई लव मोहम्मद' के लिखने या बैनर को लेकर नहीं की गई है, बल्कि जुलूस के दौरान एक पक्ष की ओर से दूसरे पक्ष के पोस्टर फाड़ने को लेकर हुई है. लेकिन सवाल यही है कि अगर आई लव मोहम्मद के पोस्टर से जुड़ा ये विवाद नहीं था तो फिर एफआईआर में इसका जिक्र क्यों? एफआईआर में नए चलन का जिक्र क्यों? सीधा दूसरे धर्म के पोस्टर को फाड़ने को लेकर एफआईआर करते.

इसी एफआईर के बाद देशभर में मुसलमानों में नाराजगी देखने को मिली. मुसलमानों में संदेश गया कि आई लव मोहम्मद लिखने की वजह से एफआईआर हुई. और फिर बरेली में भी प्रशासन को इसी के खिलाफ ज्ञापन देने की बात कही गई थी. लेकिन वहां माहौल खराब हो गया.

बरेली के एसएसपी अनुराग आर्या के मुताबिक, 30 सितंबर तक 10 एकआईआर दर्ज कर 73 आरोपियों को अरेस्ट कर जेल भेजा जा चुका है. इस गिरफ्तारी में इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष और इस्लामी विद्वान अहमद रजा. खान के वंशज मौलाना तौकीर रजा खान भी हैं. इन्हीं के ऐलान को देखते हुए बरेली में अलग-अलग मस्जिदों के बाहर मुस्लिम समाज के लोग हाथों में आई लव मोहम्मद का बैनर और पोस्टर लिए जमा हुए थे. पुलिस ने लोगों को इस्लामिया ग्राउंड में जाने से रोका फिर पुलिस ने ताबड़तोड़ लाठीचार्ज किया. आंसू गैस के गोले दागे. कई लोग और पुलिस वाले घायल हुए.

अब सवाल है कि जब तौकीर रजा खान आई लव मोहम्मद से जुड़े मामले पर ज्ञापन देने की बात कह रहे थे तो क्या प्रशासन ने शांति के साथ ज्ञापन लेने का रास्ता निकाला? क्या प्रशासन को नहीं पता कि मोहम्मद साहब से मुसलमानों की आस्था जुड़ी है. क्या प्रशासन ने मौलाना तौकीर रजा से कहा कि आप 2-4 लोगों के साथ आइए और ज्ञापन दे दीजिए क्योंकि अभी दूसरे धर्म का त्योहार है. सब शांति से त्योहार मनाते हैं. अगर सच में समाज में शांति और विकास की फिक्र है तो क्यों नहीं इस पूरे मामले को सेंसिटिव तरीके से हैंडल करने की कोशिश हुई?

ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक कर के देखें ‘जनाब ऐसे कैसे’ का पूरा एपिसोड.

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