"रमजान साल में एक ही बार आता है, मुसलमान रोजा रखते हैं, तो एक महीने तक बाकी लोग भी दिन में बाहर न खाएं. दिन में रेस्टोरेंट बंद रहे. और जिसे दिक्कत है वो अपने घर में खाए, बाहर खाने की गलती न करे."
"गोल्ड, डायमंड पहनकर घर से बाहर निकलने की जरूरत क्या है, अब अगर कोई चोर सड़क पर चोरी करेगा तो गलती आपकी हुई न?"
"होली पर लड़कियों को बुरा मानना है, छेड़छाड़ से बचना है तो अपने घर रहो, बाहर क्यों निकलना?"
अगर ये सारी बातें कोई आपसे कहेगा तो आप कहेंगे क्या बकवास है, ये कैसी जबरदस्ती है, पुलिस क्या कर रही है? सरकार क्या कर रही है?
देखिए क्या कर रही है.
"तो मेरा स्पष्ट संदेश है कि जिस भाई को होली खेलनी हो, उस दिन वो बाहर निकले और जिसमें कैपेसिटी हो रंग झेलने की, जिसका बड़ा मन हो.. वो बाहर निकले.. नहीं तो अनावश्यक कोई भी आदमी बाहर न निकले.."
ये बयान हैं उत्तर प्रदेश के संभल के सीओ अनुज चौधरी के. आप शब्द देखिएगा.. 'रंग झेलने कैपेसिटी', 'क्षमता', आपके मन में भी सवाल होगा क्या पुलिस के शब्द ऐसे होने चाहिए?
पुलिस के लिए कोड ऑफ कंडक्ट क्या है? क्या किसी एक धर्म का फेस्टिवल या पूजा दूसरे धर्म से ज्यादा मायने रखता है? क्या पुलिस वालों की ट्रेनिंग में संवेदनशीलता यानी sensitivity, भाषा, language की कोई ट्रेनिंग होती है?
इस स्टोरी में हम आपको बताएंगे कि सरकारी कर्मचारियों के कामकाज को लेकर क्या नियम हैं. पुलिस का 'धर्म' क्या होता है? इससे पहले मामले का बैकग्राउंड समझते हैं.
क्या है पूरा मामला?
6 मार्च 2025 को उत्तर प्रदेश के संभल कोतवाली पुलिस स्टेशन में शांति समिति की बैठक हुई. जिसका मकसद होली और रमजान को देखते हुए सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना था, क्योंकि इस साल 14 मार्च को होली और रमजान का जुमा है.
इसी मीटिंग में पहलवान रह चुके स्पोर्ट्स कोटा से डीएसपी बने सर्किल ऑफिसर अनुज चौधरी ने लोगों को नसीहत दे डाली. उन्होंने कहा-
"साल में 52 के करीब जुम्मे आते हैं एक साल में और इस बार यह जुम्मा अपना रंग के दिन आया है तो ये बहुत छोटी सी बात है भाई यदि आपको लगता है. मैं तो चाहता हूं सब मिलकर होली खेलो. मेरे भी रंग लगाएं, मैं तुम्हारे रंग लगाऊंगा. ठीक है हिंदू मुस्लिम सब होली खेल रहे हैं. मेरी सोच ये है कि रंग से कोई छोटा बड़ा नहीं होता यदि आपके ऊपर कोई रंग गिर गया तो इसका मतलब नहीं यदि रंग गिर गया तो वो जगह आपको लगता है इतना खराब होगा तो उसे कटवा दो ना. रंग आप आपकी आत्मा पर नहीं गिरना चाहिए ना काला रंग काला रंग आत्मा पर नहीं होना चाहिए काला रंग नहीं होना चाहिए ठीक."
आप शब्दों को देखिए. एक तरफ आपस में मिलकर होली खेलने की बात और अगले ही पल कहना कि जहां रंग लगे हैं वो जगह कटवा लो. एक तरफ कहना कि मन में गंदगी नहीं होनी चाहिए, फिर कहना कि अगर आपत्ति है तो बिल्कुल भी बाहर निकलने की गलती न करें.
यहां एक अहम बात, सीओ अनुज चौधरी ऐसा बयान क्यों दे रहे हैं, ये समझने के लिए आप एक और बयान देखिए. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ टीवी चैनल आज तक के एक कार्यक्रम में थे. तब एंकर ने सीओ अनुज चौधरी को लेकर सवाल पूछा- तब उनका जवाब था.
"होली साल में एक बार पड़ती है और जुम्मे की नमाज तो हर सप्ताह तो पढ़नी है. स्थगित भी हो सकती है, कोई बाध्यकारी तो है नहीं कि होना ही होना है. लकिन अगर कोई व्यक्ति पढ़ना ही चाहता है तो अपने घर में पढ़ सकता है. आवश्यक नहीं है कि वो व्यक्ति मस्जिद में ही जाए. या तो जाना है फिर रंग से परहेज न करे. पुलिस अधिकारी ने यही बात समझाई."
बता दें कि कुरान में जुमे की नमाज का जिक्र है और हदीस में भी. यहां मस्जिद में नमाज लोगों के साथ जमा होकर पढ़ने की बात कही गई है. हदीस यानी जिसे पैगंबर मोहम्मद साहब ने बताया. घर में जुमे की नमाज पढ़ने की बात सिर्फ इस्ट्रीम कंडीशन में है.
सही बुखारी की हदीस नंबर 883 में लिखा है कि जुमे की नमाज के लिए मस्जिद जाएं. और खुतबा सुनें. यानी नमाज पढ़ाने वाले इमाम की स्पीच सुनें. स्पीच के दौरान आपस में बात न करें.
खुतबा सिर्फ जुमे और ईद की नमाज में ही होता है.
हदीस की एक और किताब अबू दाऊद में हदीस नंबर 1067 में भी लिखा है कि जुमा की नमाज जमात के साथ हर मुस्लिम पर फर्ज है, सिवाय चार लोगों के: एक गुलाम, एक महिला, एक बच्चा, या कोई बीमार व्यक्ति. फर्ज मतलब अनिवार्य.
एक मुख्यमंत्री जिसने संविधान की शपथ ली हो कि वो भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करेगा. वो एक धर्म के फेस्टिवल के लिए दूसरे धर्म की पूजा को टालने जैसी बात कहे तो ये कहां से सही है?
पूरी स्टोरी के लिए आप ऊपर दिए गए वीडियो को देखें.