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RSS में दोस्त,बिहार में 40 सीट,Left की गलती?- दिपांकर भट्टाचार्य से बेबाक बातचीत

'हिंदुस्तान हम सबका है.' CPI (ML) L चीफ ने देशभक्ति, गठबंधन और मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर रखी अपनी बात.

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"बिहार विधानसभा चुनाव में पिछली बार हमने 12 जिलों की 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इस बार 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की हमारी तैयारी चल रही है. हालांकि अभी तक हमने कोई अंतिम आंकड़ा तय नहीं किया है. " यह कहना है कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का.

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. चुनाव आयोग से लेकर सभी प्रमुख राजनीतिक दल अब एक्टिव मोड में आ गए हैं. जहां चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के संशोधन, बूथ स्तरीय तैयारियों और जागरूकता अभियानों को लेकर तेजी दिखाई है, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन, एनडीए और अन्य दलों ने भी संभावित सीटों, गठबंधन रणनीति और उम्मीदवार चयन को लेकर बैठकों का सिलसिला शुरू कर दिया है.

इसी बीच द क्विंट ने भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य के साथ एक खास इंटरव्यू किया है. इस बातचीत में बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे से लेकर चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में किए जा रहे संशोधन, लेफ्ट की राजनीति, बीजेपी-आरएसएस जैसे मुद्दों को लेकर कई महत्वपूर्ण चर्चाएं हुईं. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा,

"दक्षिण बिहार में हमारा प्रदर्शन अच्छा रहा, और हमारे साथ-साथ अन्य दलों का प्रदर्शन भी संतोषजनक था. लेकिन अगर उत्तर बिहार की बात करें, तो वहां हमारा प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा. पश्चिम चंपारण की 12 सीटों में से केवल हमारी पार्टी एक सीट जीत सकी थी."

उन्होंने आगे कहा, "इन्हीं अनुभवों के आधार पर हमने यह विचार किया है कि हम किन-किन सीटों पर चुनाव लड़ें, जिससे इंडिया गठबंधन को अधिक से अधिक लाभ मिल सके. इसी रणनीति के तहत हमने संभावित सीटों की एक सूची तैयार की है."

क्या AIMIM को महागठबंधन में मिलेगी जगह?

दीपांकर भट्टाचार्य ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को लेकर द क्विंट से बातचीत में कहा:

"AIMIM एक राजनीतिक पार्टी है, जो कहीं भी चुनाव लड़ सकती है. पिछली बार बिहार विधानसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन अच्छा रहा था, लेकिन लोकसभा चुनाव में वैसा प्रदर्शन नहीं हुआ.इसलिए यह देखना होगा कि अब स्थितियां क्या बनती हैं. AIMIM महागठबंधन का हिस्सा बनेगी या नहीं — इस पर अभी कोई स्पष्ट राय देना मुझे सही नहीं लगता."

चुनाव आयोग की प्रक्रिया में हड़बड़ी से गड़बड़ी तय

दीपांकर भट्टाचार्य ने द क्विंट से बातचीत में चुनाव आयोग की मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कहा:

"चुनाव आयोग 8 करोड़ लोगों को महज एक महीने में कवर करना चाहता है. जाहिर है, इसमें बहुत से लोग छूट जाएंगे. कम समय के चलते सारा काम हड़बड़ी में होगा — और लोग कहते हैं, हड़बड़ी में गड़बड़ी होना स्वाभाविक है."

उन्होंने कहा, "जैसा पहली बार बिहार में हो रहा है, वैसा देश में पहले कभी नहीं हुआ. कुछ लोग कह रहे हैं कि 23 साल पहले भी ऐसा हुआ था, लेकिन जो अब हो रहा है, वह उससे बिल्कुल अलग है. वोट संशोधन के नाम पर लोगों को नोटबंदी की याद आ रही है. नोटबंदी को याद कीजिए—रात में अचानक मोदी जी टेलीविजन पर आए और कहा कि आज से 1000 और 500 रुपये के नोट बंद. कुछ वैसा ही कदम अब चुनाव आयोग ने उठाया है. किसी को कुछ पता नहीं था."

चुनाव आयोग ने बिहार की सभी पार्टियों के नेताओं को बुलाकर एक वर्कशॉप किया था, लेकिन उस समय भी वोट संशोधन जैसी कोई बात सामने नहीं आई थी.
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दीपांकर भट्टाचार्य कहते हैं, "जो कदम चुनाव आयोग ने अचानक उठाया है, वो बिल्कुल नया और चौंकाने वाला है. अगर इसकी गहराई में जाएं, तो पता चलता है कि आज की तारीख में बिहार में कोई वोटर लिस्ट मौजूद ही नहीं है. अब तक सिर्फ एक ही वोटर लिस्ट थी, जिसके आधार पर 2024 का लोकसभा चुनाव कराया गया. लेकिन अब चुनाव आयोग कह रहा है—वो वोटर लिस्ट खत्म माना जाएगा, और नया वोटर लिस्ट बिल्कुल शुरुआत से तैयार किया जाएगा."

वह आगे कहते हैं,

"बिहार की लगभग 8 करोड़ एडल्ट पापुलेशन में से कम से कम 5 करोड़ नौजवानों को अपनी नागरिकता फिर से साबित करनी होगी. लोगों को लगता है कि नागरिकता साबित करना कोई बड़ा काम नहीं है. हमारे पास आधार कार्ड है, वोटर ID है वही दिखा देंगे. लेकिन जो लोग ये सोच कर चल रहे हैं, चुनाव आयोग ने उन सभी दस्तावेजों को अप्रासंगिक (इनवैलिड) कर दिया है. अब चुनाव आयोग कह रहा है कि जन्म प्रमाण पत्र, मैट्रिक की मार्कशीट, जमीन के कागजात दिखाओ. मैं पूछना चाहता हूं — बिहार के कितने लोगों के पास ये सब दस्तावेज होंगे? धीरे-धीरे लोगों को समझ आएगा कि चुनाव आयोग ने इलेक्शन प्रोसेस को पूरी तरह उलझा दिया है, बल्कि कहें तो तबाह कर दिया है."

दीपांकर भट्टाचार्य कहते हैं, "देश में सन 1952 से चुनाव हो रहे हैं. पहले नियम यह था कि अगर कोई 18 साल का हो गया है, तो उसे सिर्फ एक फॉर्म भरकर लिखकर देना होता था कि 'हम भारत के नागरिक हैं और वोटर लिस्ट में शामिल होना चाहते हैं. किसी को यह साबित नहीं करना पड़ता था कि वह भारत का नागरिक है."

पूरा इंटरव्यू आप क्विंट के YouTube चैनल पर देख सकते हैं.

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