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बिहार SIR: जीवित वोटर मृत घोषित- क्या चुनाव आयोग ऑब्जेक्शन फॉर्म पर झूठ बोल रहा?

चुनाव आयोग की डेली बुलेटिन के अनुसार 21 अगस्त तक किसी भी राजनीतिक दल ने SIR में गड़बड़ी को लेकर शिकायत दर्ज नहीं की.

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"हम जीवित हैं लेकिन हमको मृत घोषित कर दिया."

"जिंदा हैं अभी, सबूत है सरकार के पास. एक सबूत नहीं कई सबूत हैं."

ये कहना जिंदा लोगों की है जिन्हें बिहार में हो रहे Special Intensive Revision- SIR यानी वोटर लिस्ट के पहले ड्राफ्ट में मृत कहा गया.

लेकिन सवाल यही है कि ये कैसे हुआ? चुनाव आयोग बार-बार दावा कर रहा है कि सब चंगा सी तो फिर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी क्यों? आपके मन में भी सवाल होगा कि क्या किसी जिंदा इंसान को वोटर लिस्ट में मरा हुआ बता देना इतना आसान है? किसी का नाम वोटर लिस्ट से हटाने के लिए कुछ तो नियम होगा. हां, है तो. फिर जिंदा को मरा हुआ कैसे घोषित कर दिया गया. क्या SIR में इन नियमों को दरकिनार कर दिया गया है?

जनाब ऐसे कैसे के इस एपिसोड में हम बताएंगे कि चुनाव आयोग के उस दावे में क्या झोल हैं, जिसमें कहा जा रहा है कि 20 दिन बीत जाने के बाद भी किसी राजनीतिक दल ने  वोटर ड्राफ्ट पर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई. किसकी गलती है. चुनाव आयोग की या फिर राजनीतिक दलों की? बताएंगे पूरा सच.

"पत्नी का नाम मृतक लिस्ट में है."

ऊपर दिए गए फोटो में इमरती देवी हैं. पटना के फुलवारी के धरायचक की वोटर. कह रही हैं "हम जिंदा हैं". इनके पति कह रहे हैं कि "जब SIR प्रोसेस शुरू हुआ तो बीएलओ को पति पत्नी दोनों का फॉर्म और डॉक्यूमेंट्स जमा किया था. लेकिन पत्नी का नाम मृतक लिस्ट में है."

इसी तरह अररिया के वार्ड 6 में रहने वाले रामदेव पासवान और जीवछी देवी. इन दोनों का नाम भी मरे हुए लोगों की लिस्ट में है. जब हमने रामदेव पासवान से बात की तो उन्होंने बताया कि अब नाम वापस जोड़ने के लिए फॉर्म 6 भरा जा रहा है.

"हम हर चुनाव में वोट देते हैं, 2024 का चुनाव हो या मुखिया का चुनाव सब में वोट दिए हैं. एक बार भी नहीं छोड़े हैं. हम काम से बाहर थे, फॉर्म नहीं भर पाए, ड्यूटी वाले आदमी हैं. कोई नहीं होगा तो मास्टर (बीएलओ) आया होगा और लिखकर चला गया. बाकी लोग का नाम है लिस्ट में."
रामदेव पासवान, अररिया के वार्ड 6 के वोटर

अब सवाल ये है कि क्या किसी के गैरहाजिर रहने भर से उसका नाम वोटर लिस्ट से तुरंत हटाया जा सकता है? जवाब है नहीं. रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपल ऐक्ट, 1950 का सेक्शन 22 हो या द रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्ट्रर्स रूल्स, 1960 के सेक्शन 19 से 21सबमें यही प्रावधान है कि किसी भी नाम को हटाने से पहले संबंधित व्यक्ति को नोटिस देना और उसकी सुनवाई करना ज़रूरी है.

तो फिर बीएलओ और ईआरओ ने किस आधार पर इन लोगों को मृतक के लिस्ट में डाला?  क्या ये गड़बड़ी नहीं है?

इसी तरह का एक और केस सितामढ़ी से हमें मिला. जहां एक 22 साल के जीवित युवक के मृत घोषित कर दिया गया. हमने सीतामढी के एक बीएलओ से बात की तो उसने कहा कि "वोटर घर पर नहीं होगा या किसी ने कहा होगा कि उसकी डेथ हो चुकी है इसलिए हमने डेथ मान लिया." जब हमने डेथ सर्टिफिकेट को लेकर सवाल कहा तो उन्होंने कहा-

हम लोगों को डेथ सर्टिफिकेट के लिए नहीं कहा गया है. अगर नाम कट गया है तो फॉर्म 6 आकर भर दीजिए.
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20 अगस्त तक राजनीतिक दलों से नहीं आई कोई शिकायत: चुनाव आयोग

अब आते हैं एक अहम प्वाइंट पर. चुनाव आयोग हर दिन बिहार SIR 2025: डेली बुलेटिन निकालता है, जिसमें लिखा होता है कि अब तक कुल कितने दावे और आपत्तियां (claims and objections) मिली हैं. इसमें दावे और आपत्तियों के लिए राजनीतिक दल का भी एक बॉक्स होता है, जिसमें ‘शून्य’ लिखा है. मतलब, 20 अगस्त तक राजनीतिक दलों की तरफ से एक भी शिकायत नहीं पहुंची.

चुनाव आयोग ने लिखा है- आपत्तियों के लिए निर्धारित घोषणा-पत्र (प्रिस्क्राइब्ड डिक्लेरेशन) के साथ ही आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है. बिना निर्धारित फॉर्म या घोषणा-पत्र के की गई शिकायतों को नहीं माना जाएगा.

चुनाव आयोग की डेली बुलेटिन में ये लाइन पहली बार 18 अगस्त 2025 को दिखा. इससे पहले के बुलेटिन में निर्धारित फॉर्म या घोषणा पत्र के साथ शिकायत दर्ज कराने को लेकर जिक्र नहीं था.

अब आते हैं पॉलिटिकल पार्टी के सवालों पर- जब हमने राजनीतिक दल के लोगों से सवाल पूछा कि चुनाव आयोग तो बार-बार कह रहा है फिर आप लोग शिकायत क्यों नहीं कर रहे. जिसके जवाब में आरजेडी से लेकर सीपीआईएमएल ने हमें शिकायतों से जुड़े कई डॉक्यूमेंट्स भेजे. जिसमें से कई पर अधिकारियों के रिसीविंग भी है. फिर भी इन शिकायतों को चुनाव आयोग ने शिकायत नहीं माना.

हमने आरजेडी की प्रभारी मुकुंद से बात की तो उन्होंने कहा-  "हमें कोई अलग से फॉर्म नहीं मिला है. हम लोगों ने काफी शिकायत की लेकिन चुनाव आयोग नहीं सुन रहा."

जब हमने सीपीआईएमएल के बिहार के मीडिया इंचार्ज से बात की तो उन्होंने भी यही कहा कि "शिकायत करने के लिए ऐसा कोई फॉर्म चुनाव आयोग ने हम लोगों को नहीं दिया है."

इसी सवाल को लेकर हमने बिहार के अलग-अलग जिले के कई डीएम को कॉल किया. हमारी बात पहले मुजफ्फरपुर के डीएम से हुई.

फॉर्म 6, 7 और 8 वही जमा करेगा, जिसे किसी निर्वाचक (elector) ने भरकर दिया है या जो संभावित निर्वाचक (prospective elector) है. इसके साथ एक घोषणा-पत्र (declaration) देना अनिवार्य होगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई फर्जी जानकारी न दी जाए और उसकी एंट्री न हो जाए. उस घोषणा-पत्र में यह उल्लेख होगा कि यदि कोई गलती या गड़बड़ी पाई जाती है या फर्जीवाड़ा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी उसी व्यक्ति की होगी. इसके अलावा, एक फॉर्म वोटिंग अधिकारी (ERO) के नाम पर जमा करना है, जिस पर रिसीविंग दी जाएगी. यही दो चीजे अनिवार्य हैं और इन्हीं के अनुसार कार्य करना होगा
सुब्रत कुमार सेन, डीएम सह जिला निर्वाचन पदाधिकारी
ड्राफ्ट पब्लिकेशन से पहले हुई राजनीतिक दलों की बैठकों में, जिन फॉर्म पर आपत्तियां प्राप्त करनी थीं, वे पर्याप्त संख्या में हमने स्वयं राजनीतिक पार्टियों को उपलब्ध कराए. सभी पार्टियों के जिला अध्यक्ष वे फॉर्म लेकर गए हैं और उसकी रिसीविंग भी हमें दी है.
डॉ. त्यागराजन एस.एम., डीएम के पटना
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बिना डिक्लेरेशन फॉर्म के शिकायत मान्य नहीं

आखिर ये कौन सा फॉर्म है जिसे लेकर चुनाव आयोग अब कह रहा है कि बिना इस फॉर्म के राजनीतिक दलों की शिकायत को शिकायत नहीं माना जाएगा? आखिर ये कौन सा फॉर्म है जिसकी जानकारी राजनीतिक दल को नहीं है?

दरअसल, चुनाव आयोग के अधिकारी से लेकर चुनाव आयोग राजनीतिक दल को जिस प्रिस्क्राइब्ड डिक्लेरेशन फॉर्म के साथ शिकायत करने के लिए कह रहे हैं वो पहली बार 18 अगस्त को सोशल मीडिया x पर चुनाव आयोग ने शेयर किया. मतलब शिकायत की तारीख पर तारीख बीतती गई और 17 दिन बाद वो फॉर्म सोशल मीडिया पर प्रकट हुआ.

  • 01/02

    18 अगस्त को अपने बुलेटिन में चुनाव आयोग ने कई लिंक दिए हैं-

  • 02/02

    डिक्लेरेशन फॉर्म गूगल ड्राइव पर अपलोड किया गया है. यही वही फॉर्म है, जिसे चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से माँगा था.

18 अगस्त को अपने बुलेटिन में चुनाव आयोग ने कई लिंक दिए हैं, जिसमें से एक लिंक पर क्लिक करने पर हमें एक बीएलए यानी पॉलिटिकल पार्टी के बूथ लेवल एजेंट के लिए डिक्लेरशन फॉर्म मिलता है. ये फॉर्म गूगल ड्राइव पर अपलोड किया गया है. इसके अपलोड की तारीख है 16 अगस्त है. इसी तरह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म x पर 18 अगस्त के बुलेटिन में एक और लिंक दिया गया है. उसपर क्लिक करने पर एक और फॉर्म दिखता है. ये वही oath फॉर्म या कहें डिक्लेरशन फॉर्म है जो चुनाव आयोग ने राहुल गांधी से मांगा था, जब राहुल ने कर्नाटक के महादेवपुर सीट के वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों की बात कही थी.

इस फॉर्म के जरिए ये डिक्लेयर करना होगा कि दी गई जानकारी अगर झूठी निकली तो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के तहत कार्रवाई होगी. जिसमें जेल तक की सजा है.

डिक्लेरेशन फॉर्म के जरिए चुनाव आयोग के रवैये पर उठे सवाल

  •  राजनीतिक दल बार-बार कह रहे हैं कि हमें आपत्ति दर्ज कराने के लिए कोई फॉर्म नहीं मिला तो चुनाव आयोग ने बीएलए के लिए बनाए गए डिक्लेरेशन फॉर्म को खुलेआम एक अगस्त से ही सोशल मीडिया पर क्यों नहीं रखा. या राजनीतिक दल को सही से कम्यूनिकेट क्यों नहीं किया?

  • क्या राजनीतिक दलों को 1 अगस्त 2025 या उससे पहले औपचारिक रूप से इस फॉर्म की जानकारी दी गई थी?

  • चुनाव आयोग ने BLA के द्वारा शिकायत करने वाले डिक्लेरेशन फॉर्म के फॉर्मेट को 18 अगस्त तक सोशल मीडिया शेयर करने का इंतजार क्यों किया?

  • मान लीजिए कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग के बताए फॉर्मेट में शिकायत नहीं दर्ज करा रही थी, तो फिर चुनाव आयोग से जुड़े अधिकारी उन शिकायतों को रिसीव क्यों कर रहे थे, और अगर रिसीव कर रहे थे तो राजनीतिक दल को सही फॉर्म भी तुरंत दे देते और उनकी गलती सुधार देते.

द क्विंट ने प्रिस्क्राइब्ड डिक्लेरेशन फॉर्म को लेकर चुनाव आयोग को मेल भी किया है, जवाब का इंतजार है.

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सिर्फ 28.6% लोगों को चुनाव आयोग पर गहरा भरोसा: CSDS सर्वे

अभी हाल ही में लोकनीति–सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) ने 5 राज्यों में 3,054 लोगों के बीच एक सर्वे किया था जिसके (जुलाई–अगस्त 2025) के मुताबिक, केवल 28.6% लोगों को चुनाव आयोग पर गहरा भरोसा है. वहीं, बड़ी संख्या मानती है कि आयोग केंद्र सरकार के दबाव में काम कर रहा है.

अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है वोटर लिस्ट और चुनावी प्रोसेस में ट्रांस्पैरेंसी और ईमानदारी के साथ लोगों का भरोसा मजबूत करती है या फिर सवाल पूछने वालों को डराकर असली मुद्दों से मुंह फेरती है?

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