ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार चुनाव: शिक्षा का मुद्दा गायब? 20000 स्कूलों में बिजली नहीं,2600 में 1 टीचर

बिहार सरकार ने financial year 2025-26 में एजुकेशन पर अपने एक्सपेंडीचर का 21.7% आवंटित किया है.

Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

"हम लोग धरती पर बैठकर पढ़ते हैं. सब लोग बोरा लेकर आते हैं उसी पर बैठते हैं. सरकार से यही निवेदन है कि यहां स्कूल बनवा दीजिए, हम सब पढ़ना चाहते हैं. छोटा-छोटा बच्चा कहां जाएगा पढ़ने के लिए?" यह बोली है 5वीं क्लास में पढ़ने वाली मिनाक्षी कुमारी की.

बिहार के दरभंगा के एक गांव की मिनाक्षी का जब वीडियो वायरल हुआ तो नेता पहुंचे, एक्टर ने कॉल किया, सरकारी बाबू पहुंचे और इस पेड़ के नीचे वाले स्कूल को किसी पास वाले गांव के दूसरे स्कूल में मर्ज कर दिया. मतलब मानो सरकारी कामकाज के लिए जैसे वीडियो वायरल होना ही पैरामीटर है. वीडियो वायरल होगा तब ही और काम होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
'जनाब ऐसे कैसे' के इस एपिसोड में हम बिहार के स्कूली एजुकेशन की वो तस्वीर दिखाने जा रहे हैं जिसके बाद आप भी वोट मांगने आए नेताओं से और बड़े-बड़े भाषण देने वाले नेताओं से पूछिएगा जनाब ऐसे कैसे?

सितामढ़ी, दरभंगा, वैशाली- एक ही कहानी

सितामढ़ी में राम पट्टी का एक स्कूल है. ये गांव के सामुदायिक भवन में चलता है. सामुदायिक भवन यानी (community hall). द क्विंट ने स्कूल की पूर्व हेड मास्टर से बात की. वो कह रही हैं कि

स्कूल 15 साल से है, लेकिन अपनी बिल्डिंग नहीं है. जमीन है लेकिन बिल्डिंग के लिए पैसा नहीं आया. स्कूल में 20 बेंच डेस्क है, बाकि बच्चे जमीन पर पढ़ते हैं.

गया जिला जिसे अब गयाजी कहा जाता है वहां बकसूबिगहा मोहल्ले में जय मां देवी मंदिर के परिसर में राजकीय प्राथमिक विद्यालय चलता है. 27 साल से स्कूल के पास अपनी बिल्डिंग नहीं है. मंदिर परिसर में एक नीम के पेड़ के नीचे क्लास चलती हैं. बारिश के मौसम में बच्चे मंदिर में शरण लेते हैं. क्लास 1 और 2 के लिए लोहे के रॉड और करकट से बनी टेंपररी छत है, क्लास 3 से 5 तक के बच्चे खुले में पढ़ते हैं. ब्लैकबोर्ड दीवार पर बनाया गया है.

एक और जगह है वैशाली. जहां अभी हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 550 करोड़ रुपये की लागत से बने ‘बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय सह स्मृति स्तूप’ का उद्घाटन किया है. कई लोगों कहते हैं वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था. ऐसे एतिहासिक वैशाली के लालगंज में भी एक खंडहर इमारत में स्कूल चलता है. 1941 में बने बिहारी शुक्ल संस्कृत मध्य विद्यालय में पहली से 8वीं तक की पढ़ाई होती है. 80 से ज्यादा बच्चों पढ़ते हैं. लेकिन सबको स्कूल की जड़जड़ इमारत गिरने का डर है.

आप कहेंगे ये तो एक दो स्कूल की बात हो गई. तो बता दें कि RTI एक्टिविस्ट राकेश कुमार राय ने एक आरटीआई लगाया था, जिसमें शिक्षा विभाग ने माना कि राज्य के 183 सरकारी स्कूलों के पास अपना भवन नहीं है और ये स्कूल खुले मैदान या पेड़ के नीचे चलते हैं.

बिहार में स्कूल किस हाल में हैं वो आप आंकड़ों से समझिए..

बिहार में 2637 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक टीचर हैं, और इन 2637 स्कूलों में 291127 बच्चों का दाखिला है. मतलब इन स्कूलों में 110 बच्चो को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक टीचर हैं.

बिहार में 117 स्कूल ऐसे हैं जहां किसी zero enrolment है. इन 117 स्कूलों में जहां एक भी स्टूडेंट नहीं है वहां 544 टीचर हैं. मतलब जहां कोई बच्चा पढ़ने नहीं आ रहा है, वहां भी शिक्षक अपनी सेवाएं दे रहे हैं. ऐसा नहीं है कि बिहार में टीचर ज्यादा हैं और बच्चे कम.

दरअसल, बिहार में शिक्षकों के कुल ढाई लाख से ज्यादा पोस्ट खाली हैं. एक अप्रैल 2025 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सामने बिहार सरकार ने खुद ये जानकारी दी थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सामने बिहार सरकार ने राज्य समग्र शिक्षा की वार्षिक कार्य योजना रिपोर्ट में कहा था कि राज्य के प्राथमिक स्कूलों में ही टीचरों के 208784 पद खाली हैं. तो वहीं सेकेंडरी स्तर पर 36035 टीचर के पद खाली हैं. इसी तरह सीनियर सेकेंडरी स्तर के स्कूलों में 33035 शिक्षकों के पद खाली हैं.

बिहार में 69% स्कूलों में मेडिकल फैसिलिटी नहीं है.

20 हजार स्कूल ऐसे हैं जहां बिजली का कनेकशन नहीं है. बस आप सोचकर देखिए कि इस झुलसती गर्मी में बिना पंखे के इन स्कूलों में बच्चे कैसे पढ़ते होंगे?

बिहार में 94 हजार में से सिर्फ 17 हजार स्कूलों में functional कंप्यूटर फैसलिटी है. मतलब ये हुआ कि लगभग 81.91% स्कूलों में कंप्यूटर सुविधा नहीं है. सिर्फ 17492 स्कूलों में इंटरनेट है. बताइए ये बच्चे इस डिजिटल एज में पीछे रहेंगे या नहीं. बिहार के ये बच्चे, दिल्ली जैसे शहरों या प्राइवेट स्कूल के बच्चों के सामने कैसे कमपीट करेंगे? टेकनोलॉजी के दौर में हम इन्हें अंधकार में धकेल रहे हैं.

बिहार में करीब 94686 स्कूल हैं, जिनमें से 37590 स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है. मतलब 41 फीसदी स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है. डिजिटल लाइब्रेरी की बात करें तो सिर्फ और सिर्फ 1.29% स्कूलों में ही डिजिटल लाइब्रेरी है.
  • टेक्नोलॉजी तो दूर की बात यहां 6 हजार स्कूलों में पीने का पानी नहीं है,

  • करीब 7 हजार 400 स्कूलों में लड़कियों के लिए functional टॉलेट नहीं हैं

  • 9 हजार 500 ऐसे स्कूल हैं जहां लड़कों के लिए functional टॉलेट नहीं हैं.

  • 94 हजार में 52 हजार स्कूल में प्लेग्राउंड नहीं है.

बिहार सरकार ने financial year 2025-26 में एजुकेशन पर अपने एक्सपेंडीचर का 21.7% आवंटित किया है.

अब आप ही बताइए फिर आखिर ये पैसे कहां जा रहे हैं? पिछले 20 सालों में 9 महीना माइनस कर दें तो भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहे हैं, 17 साल बीजेपी के साथ जेडीयू की सरकार रही है. फिर भी क्यों मिनाक्षी जैसे हजारों बच्चों के पास 2025 में भी स्मार्ट क्लास तो दूर स्कूल की बिल्डिंग नहीं है. बस एक बात, अगर इन बच्चों को बेहतर फैसिलिटी नहीं दे सकते हैं, तो क्यों न मंत्री, विधायक भी अपने AC कमरों को छोड़कर खुले में बैठें, क्यों न संसद और विधानसभा का सत्र AC वाले हॉल में न होकर खुले धूप की तपिश के बीच हो. फिर शायद मिनाक्षी जैसे बच्चों की पीड़ा देश को समझ आए.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×