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पवन सिंह-अंजली राघव विवाद: भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की 'Dirty Picture' का सच

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को अश्लीलता के दाग धोने के लिए कई अहम कदम उठाने होंगे.

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"मैं दो दिनों से परेशान हूं, स्टेज पर बिना सहमति के टच करना गलत है. मुझे लगातार लोग मैसेज कर रहे हैं कि मैंने एक्शन क्यों नहीं लिया, थप्पड़ क्यों नहीं मारा. कुछ लोग तो मुझे ही गलत कह रहे हैं. लेकिन, किसी भी लड़की को पब्लिक में ऐसे टच करके कोई जाएगा तो क्या मुझे खुशी होगी? मुझे मजा आएगा? मैं अब भोजपुरी इंडस्ट्री में काम नहीं करूंगी, मैं अपने परिवार में, हरियाणा में खुश हूं. कलाकार हूं, इसलिए नए-नए फॉर्मेट ट्राई करना अच्छा लगता है, लेकिन अब नहीं." यह हरियाणवी एक्ट्रेस अंजलि राघव का कहना है.

भोजपुरी के पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. 29 अगस्त 2025 की शाम लखनऊ में एक म्यूजिक शो आयोजित किया गया था. इस शो में हरियाणवी एक्ट्रेस अंजलि राघव और भोजपुरी इंडस्ट्री के पावर स्टार पवन सिंह स्टेज पर परफॉर्मेंस करने पहुंचे थे. इसी दौरान पवन सिंह ने अंजलि के पेट को यह कहते हुए छुआ कि "यहां कुछ लगा है". इस घटना के बाद एक बार फिर से भोजपुरी इंडस्ट्री सवालों के घेरे में आ गई है.

लेकिन हम यह कहना चाहेंगे कि इन्हें देखकर भोजपुरी को जज मत कीजिए. क्योंकि भोजपुरी फिल्मों में लहंगा, कमर, छाती और नाभी युग की खोज से पहले मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसे गायकों की आवाज में भोजपुरी गूंजती थी. भारतीय शास्त्रीय संगीत के उस्ताद पंडित रविशंकर और कवियों में शैलेंद्र से लेकर मजरूह सुल्तानपुरी जैसे रचनाकारों की कलम से भोजपुरी गीत जन्म लेते थे.

'जनाब ऐसे कैसे' के इस एपिसोड में हम बताएंगे कि भोजपुरी गानों और फिल्म इंडस्ट्री में जो बदबूदार पवन चली है, उसमें खुशबू कैसे भरी जा सकती है. इस वीडियो में हम भोजपुरी गानों की इंडस्ट्री में स्त्री के बदन को स्कैन करने की आदत के साथ-साथ एक ऐसे एजेंडा से भी पर्दा उठाएंगे, जिसकी चर्चा कम होती है. इस वीडियो में हम भोजपुरी इंडस्ट्री की समस्याओं पर भी बात करेंगे और उनके समाधान भी बताएंगे.

द क्विंट ने पवन सिंह और भोजपुरी इंडस्ट्री को लेकर द क्विंट ने पत्रकार और भोजपुरी इंडस्ट्री को नजदीक से फॉलो करने वाले निराला बिदेसिया से बात की. निराला बिदेसिया बिहार-झारखण्ड और पूर्वांचल में सक्रिय पत्रकार और लेखक हैं, जो भोजपुरी-पुरबिया लोकसंस्कृति पर लेखन करते हैं.

पवन जी ने जो किया वो पहली घटना तो है नहीं. इससे पहले भी उन्होंने स्टेज पर ऐसा ही कुछ किया था. स्टेज पर किस कर लेना. सो कॉल्ड बड़े स्टारों से कहिए सिर्फ गाना गाना है या परफॉर्म करना है तो नहीं करेंगे. इनको लड़कियां चाहिए.
निराला बिदेसिया

निराला जो कह रहे हैं वो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की एक कड़वी सच्चाई है.

देश के पहले राष्ट्रपति ने भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को दिखाई नई राह

आज जो भोजपुरी फिल्में और गाने औरतों के जिस्म के अंगों पर अटकी पड़ी है वो पहले ऐसी नहीं थी. तब भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जैसे लोगों के आइडिया से इस इंडस्ट्री को जन्म दिया.

भोजपुरी भाषी राजेंद्र प्रसाद ने मशहूर एक्टर नजीर हुसैन से एक अवार्ड फंक्शन में भोजपुरी मूवी बनाने को लेकर बात कही और फिर 22 फरवरी 1963 में भोजपुरी की पहली फिल्म 'हे गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' रिलीज हुई. इसमें मोहम्मद रफी, आशा भोसले और लता मंगेशकर ने गाने गाए थे.

हालांकि इससे भी पहले फिल्मों में भोजपुरी की एंट्री हो चुकी थी. बात साल 1948 की है. मूवी का नाम था "नदिया के पार". दिलीप कुमार हीरो थे और साथ में थीं कामिनी कौशल. इस फिल्म में कई गाने भोजपुरी में थे.

हां, तब भोजपुरी गानों में नाभी और कमर को कामुकता के चश्मे से दिखाने वाली संस्कृति नहीं थी. तब बिदेसिया से लेकर "लागी नाही छूटे राम" जैसी फिल्में बन रही थीं. इन फिल्मों में कहीं गांव में बसे भारत की तस्वीर थी, तो कहीं समानता (equality) की बात. हां, वही समानता, जिसकी बात करने से बॉलीवुड वाले अब कतराते हैं.

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"अच्छा काम करने वाले लोग भोजपुरी भाषा से कट चुके हैं"

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में वल्गैरिटी के मुद्दे पर हमने बिहार के नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर नितिन चंद्रा से भी बात की. नितिन चंद्रा कहते हैं-

भोजपुरी में स्किन शो है, डबल मीनिंग गाने हैं, कई बार बॉडी पार्ट्स की बातें होती हैं. अब इसके कारण क्या हैं? कई लोग कहते हैं कि ऐसी डिमांड है, लेकिन यह सच नहीं है. पहले समझना होगा कि सिनेमा कौन बना रहा है. यह मुश्किल काम है और वही बना रहा है जिसके पास संसाधन हैं. भोजपुरी का ज्यादा पैसा मुंबई से आता है. भोजपुरी का दर्शक रिक्शा वाला, सब्जी बेचने वाला, गांव के बच्चे और लोअर इनकम ग्रुप हैं. इन्हें फंसाना बहुत आसान है. यह इसलिए हुआ क्योंकि जिन्हें अच्छा सिनेमा बनाना आता था, वे इसमें नहीं आए. पढ़े-लिखे लोगों ने छोड़ दिया और कम पढ़े-लिखे लोग देखने लगे. अच्छा काम करने वाले लोग भोजपुरी भाषा से कट चुके हैं. जो कला को समझते थे, वे भाषा छोड़ चुके थे. लोग इस पर बात नहीं करते. बनाने वालों ने ऐसा कंटेंट बनाया कि उस स्ट्राटा को टारगेट कर सकें. फूहड़ कंटेंट बनाना बहुत आसान है.

अब सवाल ये है कि भोजपुरी इंडस्ट्री का ये नाभी युग कब शुरू हुआ? भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अश्लीलता के लिए किसे जिम्मेदार माना जा सकता है? निराला कहते हैं-

90% लोग गैर-भोजपुरी भाषी होते हैं, जो भोजपुरी को सिर्फ खिलंदड़पन की तरह बोलते हैं. वही रस उभारते हैं और बेकार की बातें करते हैं. यह काम बुद्धिजीवी वर्ग भी करता है, इसलिए इसमें सब लोग दोषी हैं. अब देखिए समीकरण कैसे बना है कहा जाता है कि पब्लिक डिमांड यही है, तो हम क्या करें? लेकिन पब्लिक डिमांड का मतलब यह नहीं है कि सब कुछ दिखाया जाए. बहुत सारी चीजें पब्लिक देखना चाहती है, तो क्या सब दिखाना चाहिए? दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि यही आता है, तो पब्लिक क्या देखे? यह भी गलत है. सोचिए, आप होटल में जाते हैं तो वहां बहुत सारी चीजें होती हैं. क्या आप सब ऑर्डर करते हैं या अपनी पसंद का? यही समीकरण भोजपुरी सिनेमा में भी बना हुआ है और यह बहुत घातक है.

जब हम जनाब ऐसे कैसे के इस एपिसोड के लिए रिसर्च कर रहे थे तब हमें भोजपुरी एक्टर और बीजेपी नेता निरहुआ यानी दिनेश लाल का एक इंटरव्यू दिखा. इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा अपने शो जनता की अदालत में भोजपुरी गानों में अश्लीलता को लेकर सवाल पूछते हैं, जवाब में निरहुआ कहते हैं- क्या सिर्फ ऐसे गाने भोजपुरी में बनते हैं? फिर वो एक-एक कर बॉलिवुड फिल्मों के गाने बताने लगते हैं.

हमने इस लॉजिक को लेकर भोजपुरी सिंगर नेहा राठौर से बात की. नेहा भोजपुरी में गाने लिखती और गाती भी हैं. और साथ ही भोजपुरी गानों में फूहड़ता के खिलाफ काफी वोकल भी हैं. नेहा कहती है,

देखिए, आइटम सॉन्ग और नंगे नाच में फर्क होता है. आइटम सॉन्ग सभी भाषाओं की फिल्मों में होते हैं और वह ठीक भी है. लेकिन भोजपुरी फिल्म उद्योग के आइटम सॉन्ग्स में अश्लीलता का स्तर इतना अधिक है कि वह सॉफ्ट पोर्न की श्रेणी में आ जाता है. महिलाओं को जिस तरह से यहां ऑब्जेक्टिफाई किया जाता है, उसके कारण ज्यादातर भोजपुरी गीतों को एक सभ्य समाज की कला के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.
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भोजपुरी इंडस्ट्री और हिंदुत्वा का एजेंडा

भोजपुरी इंडस्ट्री में डबल मीनिंग के साथ-साथ समाज को बांटने और नफरत फैलाने वाले गाने भी बन रहे हैं. हिंदुत्व एजेंडा या कहें एंटी मुस्लिम एजेंडा वाले गाने. आप इन गानों के बोल देखें-

मिया के न दाल गली, हिंदु के राज चली.. कोई राम मंदिर के नाम पर निशाना बना रहा इसके साथ ही खास धर्म की लड़कियों के लिए अपशब्द कहे गए. यहां तक कि कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने पर कश्मीरी लड़कियों से शादी करने को लेकर गाने बने. साल 2020 में जब सीएए- एनआरसी को लेकर प्रोटेस्ट हो रहा था तब भोजपुरी में इसे लहंगा से जोड़कर गाना बनाया जा रहा था.

गुड्डू रंगीला और फूहड़पन

कई लोगों का मानना है कि भोजपुरी इंडस्ट्री में 90 के दशक में गुड्डू रंगीला और गानों के एल्बम के आने के बाद से भोजपुरी इंडस्ट्री ने फूहड़पन को अपने प्रोडक्शन का एक अहम हिस्सा बना लिया. फिर क्या था यूट्यूब का दौर आया और कुकुर्मुत्ते की तरह रिक़र्डिंग स्टूडियो खुल गए, जहां ऑटो ट्यून पर नाभी, चोली, लहंगा पर गाने होलसेल में बनने लगे.

भोजपुरी में सब बुरा भी नहीं है

देखिए ऐसा भी नहीं है कि भोजपुरी में सब कुछ अश्लील है. इसके साहित्य और इतिहास को पढ़ेंगे तो भिखारी ठाकुर भी मिलेंगे और शारदा सिन्हा भी.

  • भोजपुरी में बच्चे के पैदा होने पर सोहर गाए जाते हैं- हां वही जो पंचायत सिरीज में मनोज तिवारी की आवाज में सुनने को मिला था. ए राजा जी..

  • भोजपुरी में माइग्रेशन का दर्द बयान करने के लिए बिरहा जैसे गीत गाए जाते हैं.

  • बारिश का मौसन यानी सावन-भादो में कजरी.

  • चैत यानी मार्च अप्रैल के महीने में चैता गीत. यानी spring season में जब पेड़-पौधों में नई कोपलें और फूल खिलते हैं, खेतों में फसल पकती है. छठ से लेकर अलग-अलग शादी ब्याह के गीत मिल जाएंगे.

भोजपुरी को आज के लहंगा रिमोट से उठाने वाले गानों से मत तौलिए. क्योंकि जब 1947 में देश बंटवारा और विस्थापन देख रहा था तब उससे भी पहले भिखारी ठाकुर अपने नाटक 'बिदेसिया' के जरिए गांव से रोजगार की तलाश में बाहर जाने वाले लोगों की तकलीफो को आवाज दे रहे थे. अपने नाटक बेटी बेचवा में भिखारी ठाकुर ज़मींदारों को बेटी बेचने की प्रथा को दुनिया के सामने रख रहे थे, जहां कम उम्र की लड़कियों को बूढ़े जमींदारों को बेच दिया जाता था.

बात साफ है, भोजपुरी को बदनाम होने से बचना है तो बैक टू बेसिक आना होगा. मतलब कंटेंट पर काम करना होगा. अगर कोई कहे कि भोजपुरी में लोग यही देखना चाहते हैं तो क्या करें तो उन्हें कोविड के दौर में मजदूरों के पलायन पर मनोज वाजपेई और अनुभव सिन्हा का 'बंबई में का बा' रैप सॉन्ग सुनना और देखना चाहिए.

कैसे भोजपुरी सिनेमा को नाभी की चक्र से निकाला जाए?

इसके लिए नितिन चंद्रा कहते हैं, भोजपुरी में अच्छा करना है तो तीन चीजें करनी होगी-

  • कैमरा के सामने वाले चेहरे बदलने होंगे

  • कैमरा के पीछे- यानी प्रोडक्शन क्वॉलिटी को इंप्रूव करना होगा. और

  • तीसरा मीडियम यानी सिनेमाघरों में भोजपुरी फिल्म रिलीज कर के नया भोजपुरी वर्ग खड़ा करें. ऐसा कंटेट बनाएं कि लोग भोजपुरी की तरफ आएं.

भोजपुरी के पास और भी कई रास्ते हैं. टीवीएफ से लेकर ओटीटी प्लेटफॉर्म भोजपुरी, मैथिली, मग्धी भाषाओं के घालमेल से कंटेंट पर कंटेट बनाकर पैसा, स्पेस, नाम सब पा रही है, कई लोग नोस्टालजिया वाली फीलिंग की वजह से इन कंटेंट को देख रहे हैं या फिर कहानी, किरदार, बोली रिलेटेबल है इसलिए देख रहे हैं. फिर भोजपुरी के पास तो यूपी, बिहार से लेकर मॉरिशस और दुबई में भी ऑडियंस है.

अब देखना है कि भोजपुरी के स्टार लोग इस बात को समझकर क्या करते हैं. गाने वाली अश्लीलता को स्टेज पर भी बनाए रखते हैं या फिर वो मुहावरा है न-- ढाक के तीन पात.. मतलब सुधरना नहीं है.

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