advertisement
"महाकुंभ भगदड़ में मेरी मां की मौत हुई. अब डेथ सर्टिफिकेट और मुआवजे के लिए 15-20 दिनों से प्रयागराज में भटक रहा हूं. मौत संगम नोज पर हुई, लेकिन अधिकारी कह रहे कि झूंसी में हुई. पता नहीं अधिकारी झूठ क्यों बोल रहे. शायद झूंसी में मौत दिखाकर मुआवजा नहीं देना चाहते."
ये दर्द और सवाल आजमगढ़ के रत्नेश मिश्रा के हैं. घर से 180 किमी. दूर प्रयागराज में 20 दिनों से किराया देकर रह रहे हैं. 29 जनवरी की महाकुंभ भगदड़ में मां की मौत हो गई. अब आधा मार्च बीत गया, लेकिन डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिला. मुआवजे पर कोई अधिकारी कुछ नहीं बता रहा. रत्नेश की तरह ही अजय सिंह और गोरखपुर के सिंकदर निषाद और न जाने कितने पीड़ित और उनके सवाल है. ऐसे परिवारों और उनके सवालों पर ये पूरी रिपोर्ट है. परिजनों के सवाल-
क्या सरकार की मांश है कि डेथ सर्टिफिकेट में मौत की जगह बदलकर दिया जाए, जिससे मुआवजा न देना पड़े?
क्या जिनकी मौत झूंसी में ही हुई उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा?
हादसे के वक्त डॉक्टरों ने पोस्टमार्टम करने से मना कर दिया, अब मौत की वजह का पता कैसे लगाएंगे?
क्या झूंसी में हुई मौतों को नेचुरल डेथ की कैटेगरी में डाल दिया जाएगा?
आजमगढ़ के रत्नेश मिश्रा की मां रवि कला की मौत 29 जनवरी को महाकुंभ भगदड़ में हुई. जब शव घर पहुंचा तो उनसे वादा किया गया था कि एक हफ्ते में डेथ सर्टिफिकेट मिल जाएगा. लेकिन हफ्ते तो छोड़िए महीना बीत गया. किसी ने कुछ खोज खबर नहीं ली. रत्नेश खुद प्रयागराज पहुंच गए. हॉस्पिटल, डॉक्टर और अधिकारियों के चक्कर काटते हुए 15 दिन बीत गए, लेकिन डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिला. द क्विंट से बात करते हुए उन्होंने बताया कि अब उम्मीद टूटने लगी है. पता नहीं कब और किसके जरिए डेथ सर्टिफिकेट मिलेगा. सिर्फ एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के पास भेज रहा है. उन्होंने कहा
रत्नेश मिश्रा ने बताया, भगदड़ के वक्त मां के साथ मौसी थी. दोनों बहन हाथ पकड़कर साथ में जा रही थीं तभी मम्मी का हाथ छूट गया. रत्नेश को इस बात का जवाब नहीं मिल रहा है कि जब मां की मौत संगम नोज पर हुई तो झूंसी में क्यों दिखाया जा रहा है?
इस सवाल पर द क्विंट ने ऑफिस सुप्रीटेंडेंट डॉक्टर अश्वनी यादव से बात की. उन्होंने बताया,
रत्नेश मिश्रा की तरह ही अजय सिंह भी परेशान हैं. 29 जनवरी की भगदड़ में उनके पिता दया शंकर सिंह की डेथ हो गई थी. सर्टिफिकेट के लिए वो भी प्रयागराज पहुंचे तो कहा गया कि सर्टिफिकेट महाकुंभ खत्म होने के बाद मिलेगा. 11 मार्च बीत चुका है. लेकिन उनका इंतजार अभी जारी है. अजय सिंह ने बताया,
गोरखपुर के सिंकदर निषाद भी डेथ सर्टिफिकेट और मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं. महाकुंभ हादसे में इनकी मां नगीना देवी की डेथ हो गई थी. द क्विंट से बात करते हुए सिकंदर निषाद ने कहा कि जब डेथ हुई तब सभी ने मुआवजे का आश्वासन दिया. घर पर डीएम साहब और सांसद प्रतिनिधी पहुंचे थे. सांसद रवि किशन से फोन पर बात भी हुई थी. लेकिन अब तक किसी ने भी मुआवजा मिलने का कोई प्रोसेस ही नहीं बताया. सिकंदर निषाद ने बताया,
आजमगढ़ की कमलावती देवी की भी महाकुंभ हादसे में मौत हो गई थी. उनकी बहू सुषमा चौहान ने बताया, हम अपनी सास के साथ मौनी अमावस्या का स्नान करने प्रयागराज गए थे.वहां से संगम में गंगा स्नान के लिए गए थे और इसी दौरान रात में हादसे का शिकार हो गए. उन्होंने कहा, 29 जनवरी को भगदड़ के बाद जब थोड़ी भीड़ छटी तो देखा कि सास का शव पड़ा था. वहां करीब 16-17 शव थे.
अब सवाल उठता है कि क्या सुषमा की सास की मौत संगम नोज पर हुई थी? दरअसर, सुषमा हादसे का जो समय बता रही हैं और सरकार के भी मुताबिक, रात 2 बजे के करीब संगम नोज पर भगदड़ मची थी. सरकार ने माना है कि संगम नोज पर 30 लोगों की मौत हुई थी. सुषमा का भी कहना है कि जहां उनकी सास की मौत हुई, वहां 16-17 शव पड़े थे. क्या ये महज संयोग है या फिर कुछ और?
महाकुंभ में भगदड़, डेथ सर्टिफिकेट और मुआवजे से जुड़े कुछ सवालों पर द क्विंट ने मेला अधिकारी विजय किरण आनंद से बात की.
महाकुंभ भगदड़ में जिनकी मौत संगम नोज पर हुई, क्या उन्हीं के परिजनों को मुआवजा मिलेगा या फिर उन्हें भी जिनकी मौत झूंसी या अन्य जगहों पर हुई?
विजय किरण आनंद का जवाब- अभी आयोग गठित है. कॉज ऑफ डेथ (मरने की वजह) का पता लगाया जा रहा है. उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई की जाएगी. अगर कॉज ऑफ डेथ भगदड़ आती है तो झूंसी में मृतकों के परिजनों को भी मुआवजे मिलेगा. लेकिन अगर नेचुरल डेथ है तो मुआवजा का कोई प्रावधान नहीं है.
महाकुंभ मेले में 29 जनवरी को क्या झूंसी में भी भगदड़ हुई थी या फिर सिर्फ संगम नोज पर?
विजय किरण आनंद का जवाब- झूंसी में घटना का क्या कारण था वह एसआईटी की रिपोर्ट में ही सामने आएगा. अभी ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि वहां कोई भगदड़ हुई थी. हालांकि हम नहीं कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ था. रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा.
क्या संगम नोज पर भगदड़ हुई थी? कितने लोगों को डेथ सर्टिफिकेट और मुआवजा दिया जा चुका है?
विजय किरण आनंद का जवाब- ये तो सभी जगह बताया गया है. सभी को डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया है. मुआवजा भी दिया जा चुका है.
डेथ सर्टिफिकेट और मुआवजे के अलाना 29 जनवरी की भगदड़ से जुड़ा एक मामला पोस्ट मार्टम का भी है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा,
लेकिन रजामंदी के दावे से अलग मृतकों के परिजनों का कुछ और ही कहना है. मृतकों के परिजन रत्नेश मिश्रा और अजय सिंह का आरोप है कि शव लेने के दौरान जब उन लोगों ने पोस्टमार्टम के लिए कहा तो उन्हें मना कर दिया गया था.
मुआवजा, पोस्टमार्टम के बाद अब गुमशुदा लोगों की भी बात जरूरी है. महाकुंभ के जिस खोया पाया केंद्र में अपनों को खोजने की भीड़ लगा करती थी अब वहां सन्नाटा पसरा है. लेकिन दीवारों पर कुछ लोगों के पोस्टर लगे हैं जो गवाही दे रहे हैं कि अब भी कई घर अपनों की वापसी के इंतजार में हैं. कुछ पोस्टरों में तो इनाम देने की घोषणा की गई है. नीचे फोन नंबर लिखे हैं.
द क्विंट ने इन्हीं में से एक बिहार की रहने वाली द्रोपदी देवी के बेटे मंटू कुमार से बात की. उन्होंने बताया-
महाकुंभ के वक्त यूपी सरकार ने एक वेबसाइट पर गुमशुदा लोगों की तस्वीरें प्रदर्शित की थीं, जिन्हें गिनने पर उनकी संख्या 25 से 28 के बीच दिखी. लेकिन महाकुंभ में कुल कितने लोग गुमशुदा हुए इसकी जानकारी नहीं मिली. इस संबंध में द क्विंट ने मेला अधिकारी विजय किरण आनंद से बात की तो उन्होंने कहा, डिजिटल लॉस्ट एंड फाउंड का डेटा हम लोगों ने दिया हुआ है.
अब रत्नेश मिश्रा, अजय सिंह और सिकंदर निषाद की कहानी पर वापस लौटते हैं. 11 मार्च तक डेथ सर्टिफिकेट इश्यू न होने और मेला अधिकारी के बयान से कुछ सवाल उठते हैं.
महाकुंभ में किसकी मौत भगदड़ से हुई और किसकी नेचुरल डेथ, इसका पता कैसे लगाया जाएगा? जब हादसे के वक्त पोस्ट मार्टम नहीं हुआ तो कॉज ऑफ डेथ का पता कैसे लगेगा? क्या सिर्फ ये मान लिया जाएगा कि जिन लोगों की जान झूंसी में गईं वो भगदड़ से नहीं बल्कि नेचुरल डेथ थी?
अगर इसका जवाब हां है तो फिर रत्नेश मिश्रा की मां के शव सहित अजय सिंह और सिकंदर निषाद के परिजनों के शवों की तस्वीर को भी देखना चाहिए और जवाब देना चाहिए कि क्या ये नेचुरल डेथ लग रही हैं? मौतों और मुआवजे से अलग मंटू कुमार जैसे न जाने कितने परिवार भी हैं जो उम्मीद और इंतजार के सहारे जिंदा हैं. उम्मीद मां के जिंदा होने की . इंतजार उनके घर लौटने का.
न्यूज और वीडियो इनपुट: शिवम उपाध्यान