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बिहार- 'हर घर सरकारी नौकरी': आंकड़े बता रहे हकीकत से कितना दूर तेजस्वी का वादा

तेजस्वी यादव ने कानून बनाकर बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को 20 महीने में सरकारी नौकरी देने का वादा किया है.

मोहन कुमार
राजनीति
Published:
<div class="paragraphs"><p>'20 महीने के अंदर बिहार के हर परिवार को सरकारी नौकरी देंगे', चुनाव से पहले तेजस्वी यादव का बड़ा ऐलान</p></div>
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'20 महीने के अंदर बिहार के हर परिवार को सरकारी नौकरी देंगे', चुनाव से पहले तेजस्वी यादव का बड़ा ऐलान

(फोटो: द क्विंट)

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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने "हर घर सरकारी नौकरी" देने का वादा कर एक नई बहस छेड़ दी है.

तेजस्वी ने घोषणा की है कि अगर प्रदेश में उनकी सरकार बनती है तो सत्ता में आने के 20 दिन के अंदर 'एक विशेष नौकरी-रोजगार अधिनियम' बनाएंगे. इस कानून के तहत प्रदेश के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी. इसके लिए उन्होंने 20 महीनों का लक्ष्य भी निर्धारित किया है.

हालांकि, तेजस्वी के इस ऐलान के बाद सवाल उठ रहे हैं, क्या बिहार जैसे प्रदेश में हर परिवार को सरकारी नौकरी देना संभव है? क्या प्रदेश में इतनी सरकारी नौकरी है? तेजस्वी जो बोल रहे हैं, उसको कैसे लागू करेंगे?

क्या कहता है गणित?

बिहार जाति आधारित गणना 2022-23 की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश की कुल आबादी लगभग 13 करोड़ 7 लाख है. राज्य में 2 करोड़ 76 लाख परिवार रहते हैं. सर्वेक्षण के अनुसार, प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की संख्या राज्य की जनसंख्या का मात्र 1.57 प्रतिशत यानी 20 लाख 49 हजार है, जिनमें केंद्रीय कर्मचारी भी शामिल होंगे. अगर इन लोगों को अलग-अलग परिवारों से माना जाए तब भी तेजस्वी को 2 करोड़ 55 लाख परिवारों को नौकरियां देनी होगी.

अब, अगर तेजस्वी को अपना वादा निभाना है, तो राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों की संख्या में 13 गुने की बढ़ोतरी करनी होगी, जिससे सरकार का सैलरी पर खर्च भी उसी अनुपात में बढ़ जाएगा. 2025-26 में बिहार सरकार ने बजट में सिर्फ सैलरी पर 51,690 करोड़ खर्च का अनुमान लगाया है. अगर इस रकम को 13 से गुणा करें, तो यह 6.71 लाख करोड़ होता है, जो कि 2025-26 के कुल बजट 3.16 लाख करोड़ का दोगुना से भी ज्यादा है.

अर्थशास्त्री और पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी इसे पॉलिटिकल स्टंट करार देते हुए कहते हैं कि ये नामुमकिन है.

द क्विंट से वे कहते हैं, "प्रदेश में करीब 3 करोड़ परिवार हैं. उतने पद स्वीकृत ही नहीं हैं, वैकेंसी की तो बात ही छोड़ दीजिए. दूसरी बात, अगर आप पद सृजित करते भी हैं, तो इसके पीछे तर्क होना चाहिए. राज्य के खजाने पर अतिरिक्त भार पड़ेगा, जिससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी."

हालांकि, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, पटना के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर का मानना है कि ये संभव है. वे कहते हैं, "बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़क, बिजली, इत्यादि) पर जितना खर्च होना था वो हो चुका है. उसपर खर्चे के लिए जो बजट आता था, वो तो बचेगा. जिसे इसमें लगाया जा सकता है."

"जब सही मायने में विकास शुरू होगा तो वो आत्मनिर्भर हो जाएगा और खुद फंड जैनरेट करने लगेगा. उसके लिए अलग से कुछ करने की जरूरत नहीं होगी."
डीएम दिवाकर

क्या 20 महीने में ये लक्ष्य पूरा हो सकता है?

तेजस्वी ने सरकार बनने के 20 महीने में सभी परिवारों को नौकरी देने का लक्ष्य रखा है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि इतने कम समय में ये कर पाना बेहद मुश्किल है.

प्रो. नवल किशोर चौधरी कहते हैं, "एक तरफ सरकारी विभागों में रिफॉर्म के नाम पर नौकरी में कटौती हो रही है. ऐसे में सिर्फ नौकरी देकर पैसे तो नहीं बांटे जा सकते. जिन लोगों को नौकरी दी जाएगी, उनसे क्या काम लिया जाएगा? हालांकि, इसमें कोई कानूनी बंधन नहीं है, लेकिन क्या यह टिकऊ है?"

चौधरी सवाल करते हैं, "इसे लागू कैसे करेंगे? एक्शन प्लान कहा हैं? सिर्फ एक लक्ष्य निर्धारित कर देने से तो नहीं होगा. जनता को ब्लू प्रिंट मांगना चाहिए. ये सूर्य पर जाने के बराबर है."

इस साल बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने बताया था कि साल 2024-25 में सरकारी क्षेत्र में कुल 4,27,866 नियुक्तियां की गई हैं, जबकि 23,707 पदों पर नियुक्तियां प्रक्रियाधीन है. वहीं साल 2025-26 में करीब 1.40 लाख नई नियुक्तियां की जाएंगी.

सरकारी क्षेत्र में नियुक्तियों का दो साल (2024-25 और 2025-26) का औसत देखें तो करीब 3 लाख होता है. सत्ता में आने के बाद अगर तेजस्वी हर साल 3 लाख नौकरी भी देते हैं तो उन्हें बिना सरकारी नौकरी वाले परिवारों के एक-एक सदस्य को नौकरी देने में 85 साल लेंगे.

हालांकि, वे 17 महीने (अगस्त 2022 से जनवरी 2024) में 5 लाख लोगों को नौकरी देने का दावा करते हैं. इसके मुताबिक, हर महीने 29 हजार लोगों को नौकरियां दी गई. अगर इस रफ्तार से भी वे नौकरियां देते हैं, तब भी 73 साल लगेंगे.

डीएम दिवाकर कहते हैं, "भले ही ये 20 महीने में नहीं हो, लेकिन ये विकास के विमर्श को बदल देगा. और इससे निजीकरण की ओर बढ़ते बिहार को रोका जा सकता है."

"ये सरकार की राजनीतिक मंशा पर निर्भर करता है. अगर सरकार की मंशा है तो वो अपने बजट को reprioritise यानी बजट प्राथमिकताओं को नए सिरे से तय करेंगे. बजट जस का तस नहीं रहेगा. उसको phaseout किया जाएगा," वे आगे कहते हैं.

BPSC ने 4 सालों में औसतन 1.21 लाख वैकेंसी निकाली

फरवरी, 2025 में आई आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट 2024-25 के मुताबिक, बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने 2020-21 से 30 सितंबर 2024 तक कुल 4,85,138 पदों पर भर्ती निकाली. सबसे ज्यादा साल 2023-24 में 4,29,015 पदों के लिए विज्ञापन निकाले गए, जिनमें 2,23,153 अभ्यर्थियों का चयन हुआ.

वहीं, 30 सितंबर, 2024 तक 3,420 विज्ञापित पदों के लिए आयोग को 2,00,592 आवेदन मिले और सिर्फ 65 अभ्यर्थी सिलेक्ट हुए.

बिहार तकनीकी सेवा आयोग (BTSC) ने 2019-20 से 2023-24 तक 43,745 पदों के लिए वैकेंसी निकली, जिनमें से 16,625 अभ्यर्थियों का चयन हुआ. वहीं 2024-25 में 30 सितंबर तक 638 अभ्यर्थी सिलेक्ट हुए.

आयोग ग्रुप 'बी' और 'सी' के लिए 4800 रुपये से कम ग्रेड-पे वाली नौकरियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करवाता है.

2024-25 के आंकड़े को छोड़ दें तो 2020-21 से 2023-24 तक औसतन BPSC ने 1,21,284 पदों पर वैकेंसी निकाली है. जबकि BTSC द्वारा 5 साल में निकाली गई नौकरियों का औसत मात्र 5,468 है.

2021-22 से सितंबर, 2024 तक बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग के जरिए 6,432 पुलिसकर्मियों की नियुक्ति हुई है. वहीं तीन सालों में 2021-22 से 2023-24 तक केंद्रीय कांस्टेबल चयन बोर्ड ने 27,846 पदों पर विज्ञापन दिया और 27,204 उम्मीदवारों की भर्ती की है.

इन आंकड़ों के आधार पर भी ये कहा जा सकता है कि 20 महीने में बिहार के हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का लक्ष्य हासिल करना बेहद मुश्किल है.

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शिक्षा विभाग में ढाई लाख से ज्यादा पोस्ट खाली

बिहार में शिक्षकों के ढाई लाख से ज्यादा पोस्ट खाली हैं. एक अप्रैल 2025 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सामने बिहार सरकार ने खुद ये जानकारी दी थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सामने बिहार सरकार ने राज्य समग्र शिक्षा की वार्षिक कार्य योजना रिपोर्ट में कहा था:

  • 2,08,784 पद प्राथमिक स्कूलों में खाली हैं.

  • 36,035 टीचर के पद सेकेंडरी लेवल पर खाली हैं.

  • 33,035 शिक्षकों की पोस्ट सीनियर सेकेंडरी लेवल के स्कूलों में वेकेंट हैं.

इसके अलावा राज्य द्वारा स्वीकृत पदों के अनुसार SCERT में 31% और DIET में 19.69% शैक्षणिक पद खाली हैं.

बिहार राज्य के लिए समग्र शिक्षा पर आयोजित बैठक में पेश की गई रिपोर्ट की कॉपी.

(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)

इससे पहले 3 मार्च को बजट के दौरान सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए वित्त मंत्री ने बताया था कि प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में दो चरणों में कुल 2,17,272 शिक्षकों की नियुक्ति की गई है. तीसरे चरण में 66,800 शिक्षकों की नियुक्ति का काम प्रक्रियाधीन है. साथ ही 36,947 प्रधान शिक्षक और 5,971 प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति का काम भी प्रोसेस में है.

डॉक्टर, नर्स और ANM के कुल 27,835 पद खाली

स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो डॉक्टर, नर्स और ANM के कुल 27,835 पद खाली हैं. आर्थिक सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक, रेगुलर डॉक्टर के 12,895 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 5,751 पद खाली हैं. वहीं 4,751 स्वीकृत कॉन्ट्रैक्चुअल पोस्ट में से 2023-24 में 4,149 पोस्ट खाली हैं. 2023-24 तक रेगुलर ग्रेड-ए नर्स के 7,810 और ANM के 14,274 पोस्ट खाली हैं. कॉन्ट्रैक्चुअल नर्स और ANM के क्रमशः 3,280 और 1,564 पद वैकेंट हैं.

बिहार में स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या

(स्क्रीनशॉट: बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)

आंकड़ों से पता चलता है कि 2022-23 और 2023-24 के बीच रेगुलर डॉक्टर, नर्स और ANM की नई भर्ती नहीं हुई. वहीं इन दो सालों में कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे लोगों की संख्या भी कम हुई है. सिर्फ आशा वर्कर्स की संख्या बढ़ी है.

सितंबर 2024 तक आंगनवाड़ी सेवाओं में बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) के 25.2%, महिला सुपरवाइजर के 35.8%, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के 2.3% और आंगनवाड़ी हेल्पर के 10.8% पोस्ट खाली हैं.

आंगनवाड़ी सेवाओं में स्टाफ की संख्या

(स्क्रीनशॉट: बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2024 में सामान्य प्रशासनिक विभाग की ओर से जुटाए गए आंकड़े के मुताबिक, राज्य सरकार के 45 विभागों में सरकारी कर्मियों के कुल 16.26 लाख पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 4.72 लाख पोस्ट खाली थे.

डीएम दिवाकर कहते हैं, "प्रदेश में लाखों पद रिक्त हैं. इन पदों को भरने से बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी मिलेगी. बहुत से गांवों में स्कूल नहीं है. इन सबको भरा जा सकता है. गांवों में एएनएम की पोस्टिंग होनी है. उसके लिए ट्रेनिंग सेंटर खोलने की जरूरत है. अगर सरकार जिला स्तर पर ट्रेनिंग सेंटर बनाती है, तो उसके लिए भी बड़ी संख्या में लोग चाहिए होंगे. शिक्षा और स्वास्थ्य में बहुत स्कोप है."

बता दें कि अगस्त, 2025 में बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति ने 5 हजार पदों पर एएनएम की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था. इससे पहले अप्रैल में बिहार तकनीकी सेवा आयोग ने 11 हजार पदों पर स्टाफ नर्स की वैकेंसी निकाली थी.

इसके साथ ही वे कहते हैं,

"कृषि और कृषि आधारित उद्योगों को सहयोग प्रदान करने वाली संस्थाएं नहीं है. ब्लॉक लेवल पर अनाज और खाद के भंडारण के लिए स्टोरेज नहीं है. ये सब बनाने की जरूरत है. अगर आप इंफ्रास्ट्रक्चर के बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज को देखेंगे तो कृषि क्षेत्र में रोजगार के लिए बहुत संभावनाएं हैं."

नीतीश का दावा- 10 लाख युवाओं को मिली सरकारी नौकरी

इससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगले पांच साल में (2025 से 2030) 2020-25 के लक्ष्य को दोगुना करते हुए एक करोड़ युवाओं को सरकारी नौकरी और रोजगार देने का लक्ष्य निर्धारित किया था.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक ट्वीट में उन्होंने कहा, "इसके लिए निजी विशेषकर औद्योगिक क्षेत्रों में भी नौकरी एवं रोजगार के नए अवसर सृजित किए जाएंगे. इसे लेकर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जा रहा है."

सरकार ने 2020 में सात निश्चय-2 के तहत 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और 10 लाख लोगों को रोजगार देने का संकल्प लिया था. बाद में इसे बढ़ाकर अगस्त 2025 तक 12 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और 38 लाख लोगों को रोजगार का लक्ष्य निर्धारित करते हुए कुल 50 लाख नौकरी/रोजगार देने का लक्ष्य रखा था.

अपने ट्वीट में सीएम नीतीश ने दावा करते हुए कहा, "मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि राज्य में अब तक 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और लगभग 39 लाख लोगों को रोजगार दिया जा चुका है."

सिर्फ सरकारी नौकरी नहीं, रोजगार सृजन की हो बात

वादों और दावों के बीच असल बात रोजगार सृजन की होनी चाहिए. जाति आधारित गणना में 6000 रुपये से कम मासिक आय वाले परिवार को गरीब माना गया है. 34.13% परिवार इस श्रेणी में हैं.

प्रदेश में संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की संख्या 15.9 लाख है, जो कि जनसंख्या का 1.22% है. वहीं 27.9 लाख या 2.14% लोग असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं. 1.07 करोड़ लोग किसान या कृषि सहायक के रूप में काम करते हैं, जो जनसंख्या का 7.7% है. जबकि 2.18 करोड़ या 16.73% लोग लोग मजदूर के रूप में काम करते हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023-24 में बिहार में प्रति व्यक्ति आया 66,828 रुपये है, जो कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में बेहद कम है. ऐसे में रोजगार सृजन और लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए प्रदेश में अधिक से अधिक निवेश की जरूरत है.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2024 तक, राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (SIPB) को कुल 3,752 निवेश प्रस्ताव मिले, जिनकी अनुमानित राशि ₹75,293.76 करोड़ है. वित्त वर्ष 2023-24 में 706 परियोजनाओं से जुड़े निवेश प्रस्तावों की कुल राशि ₹5,642.57 करोड़ थी. इसके अलावा, 769 कार्यरत इकाइयों में कुल ₹8,464.35 करोड़ का निवेश हुआ, जिससे 31,749 लोगों को रोजगार मिला.

रोजगार सृजन के लिए बजट में 'बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति-2025' की घोषणा की गई थी. इसका उद्देश्य एक औद्योगिक विकास को गति देने और निवेश आकर्षित करना है. वहीं सरकार ने बिहार बिजनेस कनेक्ट-2024 में अलग-अलग क्षेत्रों की 423 कंपनियों के साथ कुल 1,80,000 करोड़ रुपये से अधिक के MoU साइन किए हैं.

हालांकि, सरकार को अपना राजस्व खर्च भी कम करने की जरूरत है. 2025-26 के बजट में अनुमानित राजस्व खर्च 2.52 लाख करोड़ है, जो कि कुल बजट का करीब 80 फीसदी है. वहीं पूंजीगत खर्च 64,894 करोड़ रुपये अनुमानित है– जो बजट का 20 प्रतिशत है.

ऐसे में 'हर घर सरकारी नौकरी' का तेजस्वी ने जो वादा किया है, उसके लिए प्रदेश में बड़े स्तर पर आर्थिक सुधार की भी जरूरत होगी.

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