advertisement
"नौकरी थी तो मैं आत्मनिर्भर थी. लेकिन अचानक से इस तरह से नौकरी से निकाले जाने से मुझे लग रहा है कि मेरी आत्मनिर्भरता भी चली गई है. नौकरी जाने से मेंटली थोड़ा असर तो पड़ता ही है. मुझे अब कुछ समझ नहीं आ रहा. मैं अपने भविष्य को लेकर चिंतित हूं."
ये कहना है पटना की रहने वाली संस्कृति सिंह का, जो नालांदा में विशेष सर्वेक्षण कानूनगो के पद पर कार्यरत थीं. वे पिछले 5 सालों से बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में काम कर रही थीं. पहले वे अमीन के पद पर कार्यरत थी. साल 2024 में वे कानूनगो बन गईं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा था.
संघ की अध्यक्ष रौशन आरा की तबीयत पिछले 20 दिनों से खराब है. वो अस्पताल में भर्ती हैं. इस बीच उनकी भी नौकरी चली गई. वे कहती हैं, "हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है. समय पर सैलरी तक नहीं मिल रही थी. और जो सैलरी आती थी, वो भी कट कर आती थी. अप्रैल-मई की सैलरी मिली, उसके बाद से सैलरी नहीं मिली."
रौशन आरा पिछले एक साल से विशेष सर्वेक्षण अमीन के रूप में काम कर रही थी. 2024 में उनकी भर्ती हुई थी.
जुलाई 2024 में संस्कृति सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नियुक्ति पत्र सौंपा था.
(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)
संघ के सचिव विभूति कुमार कहते हैं, "हम लोग गरीब परिवार से आते हैं. हम लोगों का घर-परिवार इसी से चलता था. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर माता-पिता की दवाइयां सब इसी से पूरी होती थी. लेकिन, अब सरकार ने हम लोगों को नौकरी से निकाल दिया है. बताइए, 7500 लोग अब कहां जाएंगे. सब सड़क पर आ गए हैं."
विभूति कुमार मोतिहारी के रहने वाले हैं और जमुई में विशेष सर्वेक्षण अमीन के रूप में पोस्टेड थे.
नौकरी जाने की वजह से विशेष सर्वेक्षण अमीन मोहम्मद फरजान भी चिंतित हैं, वे अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे. वे कहते हैं,
फरजान बताते हैं कि 2023 में वैकेंसी आई थी. परीक्षा देने के बाद 2024 में उनकी नियुक्ति हुई. वे कहते हैं, "सैलरी भी 4-5 महीने में एक बार मिलती थी. वो भी चारों-पांच महीने का एक साथ नहीं मिलता था. एक-दो महीने का ही मिलता था. बहुत जिल्लत वाली जिंदगी हम लोगों की है. समाज में भी लोग सविंदाकर्मी कहकर हमारा उपहास करते हैं. "
पटना में धरना पर बैठे संविदाकर्मी
(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)
संस्कृति सिंह कहती हैं, "पिछले साल दिपावली के समय हमारा इनक्रिमेंट भी हुआ था. कहा गया था कि अगस्त से बढ़ी हुई सैलरी एरियर के साथ मिलेगी. सभी जिलों में कर्मचारियों को एरियर मिल गया, लेकिन नालंदा जिले के कर्मचारियों को अभी तक एरियर नहीं मिला."
संविदाकर्मियों की 5 प्रमुख मांगें हैं:
विशेष सर्वेक्षण सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी, कानूनगो, अमीन और लिपिक की नौकरी को नियमित किया जाए और इनकी सेवा आयु 60 साल तय की जाए.
इन पदों पर काम कर चुके लोगों को सहायक अभियंता (AE), कनिष्ठ अभियंता (JE) या उच्चवर्गीय लिपिक (UDC) के पद पर नियमित नियुक्ति में हर साल के अनुभव के लिए 5 अंक दिए जाएं.
इन सर्वेक्षण पदों को क्रमशः AE, JE और UDC के बराबर माना जाए और उसी के अनुसार वेतन दिया जाए.
2022 और 2023 की वार्ताओं में जिन मांगों पर सहमति बनी थी, उनके आधार पर तुरंत आदेश जारी किया जाए.
सभी सर्वेक्षण कर्मियों को ESIC कार्ड दिया जाए और EPFO में सरकार की ओर से अंशदान (योगदान) किया जाए.
नालंदा में पोस्टेड विशेष सर्वेक्षण अमीन नेयाज अंसारी बताते हैं कि जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया है वे सभी सिविल इंजीनियर हैं. कुछ लोग डिप्लोमा किए हुए हैं, वहीं कुछ के पास बीटेक की डिग्री है.
वे आगे बताते हैं कि 2018 में एक गजट पास हुआ था. लेकिन 2019 में उसमें बदलाव करते हुए पदों के नाम बदल दिए गए. वे कहते हैं,
संविदाकर्मियों के मांग पत्र की कॉपी
(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)
नेयाज अंसारी बताते हैं कि "इस विभाग में संविदा पर जूनियर इंजीनियर को 35 हजार रुपया मिलता है. वहीं दूसरे विभाग में संविदा पर ही सेम क्वालीफिकेशन वाले कर्मचारी को 60 हजार मिलता है. ये सबसे बड़ी विषमता है."
नेयाज अंसारी कहते हैं कि जब हम लोग भी सेम सिलेबस और कोर्स पढ़कर आए हैं, हमारे पास भी जब वही डिग्री है तो हमारे साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है? इंजीनियर होते हुए भी हमें इंजीनियर नहीं माना जा रहा है.
1 सितंबर से संविदाकर्मी आमरण अनशन पर बैठ गए.
(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)
6 अगस्त को विशेष सर्वेक्षण संविदा कर्मी एवं अभियंता संघ ने मांग पत्र दिया.
11 अगस्त से 14 अगस्त तक काला पट्टी बांधकर विरोध जताया गया.
16 अगस्त से संविदाकर्मी अनिश्चितकालीन धरना पर चले गए. इसी दिन से विभाग की ओर से पूरे प्रदेश में 'राजस्व महा-अभियान' की शुरुआत हुई थी, जो 20 सितंबर तक चलेगा.
18 अगस्त को विभाग ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
नेयाज़ अंसारी बतात हैं कि कारण बताओ नोटिस जारी होने के 24 घंटे के अंदर संघ की अध्यक्ष और सचिव को बर्खास्त कर दिया गया था. इनेक साथ ही 110 अन्य लोगों को भी बर्खास्त कर दिया गया. दूसरे दिन 146 और कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया.
30 अगस्त तक विभाग ने संविदाकर्मियों से की काम पर लौटने की अपील.
1 सितंबर से संविदाकर्मी आमरण अनशन पर बैठ गए. तबीयत खराब होने के बाद कुछ को PMCH में भर्ती करवाया गया.
3 सितंबर शाम 5 बजे तक काम पर लौटने की अंतिम डेडलाइन थी.
विभाग की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, "हड़ताल पर बने हुए संविदाकर्मियों की संविदा भू-अभिलेख एवं परिमाप निदेशालाय द्वारा समाप्त कर दी गई है, जिसका आदेश जारी किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त संविदा समाप्त किए गए सभी कर्मियों के पदों को रिक्त घोषित करते हुए उन सभी पदों पर नियोजन के लिए विज्ञापन प्रकाशन की कार्यवाही इस महीने के अंत तक करने की कार्यवाही भी की जा रही है."
विभाग की ओर से 3 सितंबर को जारी सूचना की कॉपी.
(फोटो: X/ @BiharRevenue)
विभूति कुमार, भू राजस्व विभाग पर भी तानाशाही का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि हमें नोटिस का जवाब देने तक का वक्त नहीं दिया गया. एक झटके में हमें नौकरी से निकाल दिया गया.
जो संविदा कर्मी काम पर लौट गए थे. उनको लेकर वे कहते हैं, "विभाग के दबाव में आकर वे नौकरी पर वापस लौटे हैं. घर की परिस्थितियों को देखते हुए मजबूरन वे लोग नौकरी पर वापस गए हैं." इसके साथ ही वे आरोप लगाते हुए कहते हैं कि बहुत जगह तो लोगों को काम पर वापस लौटने के लिए धमकी तक दी गई है.
वहीं संस्कृति सिंह कहती हैं, "जॉब जाने से क्या दिक्कत आती है, आप समझ ही सकते हैं. अचानक एक साथ इतने लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया. हम लोगों से तो स्पष्टीकरण तक नहीं लिया गया. अचानक से रात में सबका टर्मिनेशन लेटर डाल दिया गया."
संविदाकर्मियों की हड़ताल को एक महीना होने को हैं. इस बीच बुधवार, 10 सितंबर को पटना में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कार्यालय के बाहर संविदाकर्मियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. जिसमें कई संविदाकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए.
बेगूसराय के रहने वाले उत्कर्ष सिंह के सिर में गंभीर चोट आई है. वे कहते हैं, "विपरीत प्रतिक्रिया में हम लोगों को टर्मिनेट कर दिया गया. सब कुछ सहते हुए हम लोग अपनी मांगों को लेकर बीजेपी कार्यालय के बाहर शांति तरीके से धरने पर बैठे थे. लेकिन हमारी मांगें सुनने की बजाय हमें लाठी-डंडों से पीटा गया. लाठीचार्ज में मेरे सिर फूट गया. 10 टांका लगा है. वहीं हमारे कुछ साथियों का हाथ-पैर टूट गया."
उत्कर्ष पश्चिमी चंपारण में विशेष सर्वेक्षण अमीन के पद पर कार्यरत थे. वे आगे कहते हैं,
वे बताते हैं कि फीस नहीं भर पाने की वजह से बच्चों के स्कूल से भी फोन आ रहे है. बच्चों को स्कूल से निकालने की चेतावनी मिल रही है. इन सब वजह से बच्चे अलग मानसिक दबाव से जूझ रहे हैं.
नेयाज़ अंसारी कहते हैं, "इस नौकरी पर ही हम लोगों का परिवार निर्भर था. हम लोगों के बच्चे स्कूल में बढ़ते हैं. हम लोग बच्चों का स्कूल फीस तक नहीं दे पा रहे हैं. इसकी वजह से उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है. एक तो कई महीनों से सैलरी नहीं मिली, दूसरे नौकरी भी चली गई."
प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. सविंदाकर्मियों का कहना है कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं होंगी तो वे सरकार का विरोध करेंगे. रौशन आरा कहती हैं, "हम सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि हम लोगों को वापस लिया जाए. अगर हम लोगों को वापस नौकरी पर नहीं रखा जाएगा तो हम लोग सरकार से विरोध करेंगे."
वहीं विभूति कुमार कहते हैं, "चुनाव को देखते हुए नीतीश सरकार सबको कुछ न कुछ दे रही है. हम भी संविदाकर्मी हैं. सरकार को हमारी मांगों पर भी ध्यान देना चाहिए. पता नहीं सरकार को हमसे ऐसी क्या दुश्मनी है."
पुलिस के लाठीचार्ज के बाद गुरुवार, 11 सितंबर को संविदाकर्मियों ने कैंडल मार्च निकालकर अपना विरोध जताया.
(फोटो: द क्विंट द्वारा प्राप्त)
संविदाकर्मियों के विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने बर्खास्त कर्मियों की सेवा बहाल करने का फैसला किया है. इसके लिए संविदा कर्मियों को अपील करनी होगी. पहले दिन 100 से अधिक कर्मियों ने आवेदन किया.
विभाग की ओर से जारी सूचना में कहा गया है, "पूर्व में संविदा पर कार्यरत विशेष सर्वेक्षण अमीन, कानूनगो, सहायक बंदोबस्त पदाधिकारी और लिपिक, जिनकी संविदा समाप्त कर दी गई है, वे संविदा समाप्ति आदेश के खिलाफ अपील राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में कर सकते हैं."
विभाग ने स्पष्ट किया है कि सेवा समाप्त किए गए कर्मी राजस्व विभाग में आकर या ईमेल से अपील भेज सकते हैं.
विभाग ने बर्खास्त संविदाकर्मियों की सेवा बहाली का लिया फैसला
(फोटो: X/ @BiharRevenue)
विभाग के इस फैसले के बीच संविदाकर्मियों का धरना-प्रदर्शन जारी है. नेयाज़ अंसारी कहते हैं, "विभाग कोई नई बात नहीं कह रहा है. अपील करने का हमारे पास पहले से ही अधिकार है. जो भी बर्खास्त कर्मी हैं वो 45 दिन के अंदर अपील कर सकते हैं."
इसके साथ ही वे कहते हैं, "मांगें पूरी होने तक हम डटे हैं."