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2020 बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल में महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा था. गठबंधन 24 में से केवल 7 सीटें ही जीत सका. कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने 11-11 सीटों पर चुनाव लड़ा. इनमें से कांग्रेस ने 5 सीटें जीतीं, जबकि आरजेडी सिर्फ एक सीट जीत पाई. बाकी दो सीटों पर इसके सहयोगी दल- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से सीपीआई(एमएल) ने अपनी सीट बरकरार रखी. इन सात विजेताओं में छह मुस्लिम और एक आदिवासी उम्मीदवार थे.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने सीमांचल की आधी सीटों पर जीत हासिल की, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आठ और जनता दल (यूनाइटेड) [जेडीयू] ने चार सीटें जीतीं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पांच सीटें जीतीं- जिनमें से तीन आरजेडी और दो कांग्रेस से छीनी.
महागठबंधन में अब सात पार्टियां हैं: कांग्रेस, RJD, लेफ्ट पार्टियां- CPI(M-L)L, CPI, और CPI(M), मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP), और IP गुप्ता की इंडियन इंक्लूसिव पार्टी (IIP).
इस बार RJD नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है. उसने अपनी तीन पुरानी सीटें- कटिहार, सिकटी और बनमनखी अपने सहयोगी VIP और कांग्रेस को दे दी हैं. कांग्रेस 12 सीटों पर, VIP दो सीटों पर और CPI(ML)L एक सीट पर चुनाव लड़ रही है.
NDA की तरफ से, BJP 11 सीटों पर, JDU 10 सीटों पर और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) बाकी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सीमांचल में 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (JSP) ने सभी 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. कम से कम आधे दर्जन सीटों पर बागी उम्मीदवार बड़ी पार्टियों के आधिकारिक उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकते हैं.
पिछले पांच सालों में सीमांचल की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है. पूर्णिया की रूपौली सीट से पांच बार की विधायक और जानी-मानी OBC महिला नेता, बीमा भारती ने पिछले साल जेडीयू छोड़कर आरजेडी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा. पूर्णिया लोकसभा सीट से पप्पू यादव की जीत ने इस क्षेत्र में गठबंधन की पकड़ को और मजबूत किया. वहीं, ओबीसी समुदाय के एक और प्रभावशाली नेता और पूर्णिया के दो बार के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा, जिन्हें कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी माना जाता था, चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद आरजेडी में शामिल हो गए.
बीमा भारती एक बार फिर अपने गढ़ रूपौली से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि कुशवाहा को पड़ोसी धमदाहा सीट से उम्मीदवार बनाया गया है. वर्तमान में दोनों सीटों पर राजपूत विधायक शंकर सिंह और लेशी सिंह का प्रतिनिधित्व है. शंकर सिंह ने 2024 के उपचुनाव में एलजेपी(आर) से टिकट न मिलने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी, जबकि लेशी सिंह, जो नीतीश सरकार में मंत्री हैं, धमदाहा में निर्विवाद नेता मानी जाती हैं.
धमदाहा में कुशवाहा का कैंपेन इस मुकाबले को कुछ सामंती सोच वाले मनुवादी नेताओं के खिलाफ लड़ाई के तौर पर दिखाता है. अगर धमदाहा और रूपौली इलाके में पिछड़ी जातियों का एकीकरण सफल होता है, तो RJD पूर्णिया लोकसभा सीट के तहत आने वाली छह विधानसभा सीटों पर दो दशकों से जारी सूखे को समाप्त कर सकती है.
कटिहार में सीनियर बीजेपी नेता और तीन बार के स्थानीय निकायों के MLC रहे अशोक अग्रवाल ने अपने बेटे सौरभ कुमार अग्रवाल के साथ मिलकर बगावत कर दी है. सौरभ अब पूर्व डिप्टी सीएम और चार बार के बीजेपी विधायक तारकिशोर प्रसाद के खिलाफ महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. अपने ऐलान से एक दिन पहले अशोक अग्रवाल ने तारकिशोर की नॉमिनेशन रैली में भी हिस्सा लिया था. BJP और उससे जुड़े संगठनों के साथ लंबे जुड़ाव के बावजूद, अग्रवाल का सामाजिक रूप से कमजोर मुस्लिम तबकों में काफी दबदबा है, जिसकी वजह से उनकी पत्नी उषा देवी अग्रवाल ने 2022 के मेयर चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी. अग्रवाल परिवार की बगावत और तारकिशोर के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी की वजह से कटिहार में महागठबंधन को साफ बढ़त मिलती दिख रही है.
सौरव विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे महागठबंधन को पड़ोसी बरारी और प्राणपुर विधानसभा क्षेत्रों में भी फायदा मिल सकता है, जहां मल्लाह समुदाय के मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है. बरारी से मौजूदा जेडीयू विधायक विजय निषाद मल्लाह समुदाय से आते हैं और नगर निकाय चुनावों में अग्रवाल परिवार के कट्टर प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं.
किशनगंज में एनडीए के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे, दो बार के पूर्व विधायक और 2024 लोकसभा चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी रहे मास्टर मुजाहिद आलम अब आरजेडी में शामिल हो गए हैं. एक अन्य सुरजापुरी मुस्लिम नेता, ठाकुरगंज के पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री नौशाद आलम ने 2020 में जमानत जब्त होने के बाद इस बार चुनावी दौड़ से दूरी बना ली है.
बिहार के अपने चीफ अख्तरुल इमान को छोड़कर, 2020 से लगभग सभी बड़े AIMIM नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है. पार्टी के चार विधायक और एक पूर्व विधायक RJD-कांग्रेस खेमे में चले गए हैं.
ओवैसी के ‘विश्वासघात कार्ड’ खेलकर सहानुभूति पाने के प्रयासों के बावजूद, एआईएमआईएम मतदाताओं का भरोसा दोबारा कायम करने में नाकाम रही है. 2019 की तरह 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी सिर्फ कोचाधामन और बहादुरगंज में ही आगे रही, हालांकि वहां भी उसके वोट शेयर में गिरावट आई. अपनी खुद की अमौर विधानसभा सीट पर अख्तरुल इमान को 2020 की तुलना में मुश्किल से आधे वोट ही मिले.
AIMIM के 2020 के मुख्य सहयोगी, उपेंद्र कुशवाहा और देवेंद्र प्रसाद यादव और BSP विधायक जमा खान भी गठबंधन टूटने के तुरंत बाद NDA में शामिल हो गए.
इस बार AIMIM ने सीमांचल में 15 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें तीन ऐसे पूर्व बागी भी शामिल हैं जिन्होंने ओवैसी और इमान की खुलेआम आलोचना की थी. अमौर से मौजूदा विधायक अख्तरुल इमान को कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें बाहरी कहा जा रहा है. वे मूल रूप से कोचाधामन के रहने वाले हैं, जहां से वे आरजेडी के टिकट पर तीन बार विधायक रह चुके हैं. अमौर की सीमा कोचाधामन से लगती है और यह किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां से इमान लगातार दो लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं.
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने 2020 में सीमांचल में 5 सीटें जीती थीं.
(फोटो: कामरान अख्तर/द क्विंट)
पार्टी के अन्य मजबूत दावेदार में बहादुरगंज से तौसीफ आलम हैं, जो चार बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं, कोचाधामन से पूर्व आरजेडी जिलाध्यक्ष सरवर आलम, जो पूर्णिया जिला परिषद की अध्यक्ष वहिदा के पति हैं, बायसी से गुलाम सरवर और जोकीहाट से जेडीयू के पूर्व उम्मीदवार मुरशिद आलम शामिल हैं.
महागठबंधन द्वारा कोचाधामन, बहादुरगंज और बायसी में चार में से तीन पूर्व एआईएमआईएम विधायकों को टिकट न दिए जाने के बाद ओवैसी ने अब ‘विश्वासघात’ वाला राग अलापना छोड़ दिया है. वे इन नेताओं को फिर से पार्टी में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनमें से एक पहले ही लौट आए हैं. चौथी सीट जोकीहाट पर चौर तरफा मुकाबला देखने को मिल रहा है. यहां से आरजेडी के दिग्गज नेता रहे तस्लीमुद्दीन के दो बेटों- शाहनवाज (आरजेडी) और सरफराज (जेएसपी) के साथ ही जेडीयू के पूर्व विधायक मंजर आलम और एआईएमआईएम के मुरशिद आलम मैदान में हैं.
कोचाधामन में सीधा मुकाबला आरजेडी के मुजाहिद आलम और एआईएमआईएम के सरवर आलम के बीच है. बागी इजहार आसफी का एआईएमआईएम को समर्थन पार्टी के प्रदर्शन में थोड़ा सुधार ला सकता है, लेकिन यहां बीजेपी के मजबूत उम्मीदवार की अनुपस्थिति और आरजेडी के मुजाहिद आलम के एनडीए मतदाताओं से पुराने संबंधों के कारण महागठबंधन को बढ़त मिलती दिख रही है.
बायसी में आरजेडी ने एक बार फिर छह बार के पूर्व विधायक अब्दुस सुब्हान पर भरोसा जताया है. पार्टी ने एआईएमआईएम से आए बागी और मौजूदा विधायक सैयद रुकनुद्दीन को टिकट नहीं दिया है. रुकनुद्दीन अब सुब्हान का समर्थन कर रहे हैं, और यह देखना अहम होगा कि वे अपना वोट आरजेडी के पक्ष में कितनी प्रभावी ढंग से ट्रांसफर कर पाते हैं.
2020 के विपरीत, अख्तरुल इमान इस बार ज्यादातर अपनी अमौर सीट तक सीमित हैं, जिससे एआईएमआईएम को उनके पारंपरिक गढ़ कोचाधामन और बहादुरगंज में नुकसान हो सकता है. 2020 में जोकीहाट के विधायक शाहनवाज, जो प्रमुख कुलहैया नेता तस्लीमुद्दीन के पुत्र हैं, ने अमौर और बायसी- दोनों कुलहैया बहुल क्षेत्रों में एआईएमआईएम के लिए प्रचार किया था. लेकिन इस बार पार्टी के पास ऐसा कोई कुलहैया नेता नहीं है जिसका प्रभाव अपनी सीट से बाहर तक फैला हो.
किशनगंज और ठाकुरगंज में AIMIM अभी भी कमज़ोर है, हालांकि उसके वोट शेयर में कोई भी बढ़ोतरी इस बार NDA उम्मीदवारों को सीधे तौर पर मदद कर सकती है, जो मुस्लिम वोटरों को लुभाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा और मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के बाद, महागठबंधन एक मुस्लिम उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा भी घोषित कर सकता है, जिससे AIMIM की संभावनाओं को और नुकसान हो सकता है.
एक और फैक्टर जो AIMIM को नुकसान पहुंचा सकता है, वह है पारंपरिक NDA वोटरों के एक हिस्से का धीरे-धीरे महागठबंधन की ओर जाना, जो AIMIM के उभार के डर से हो रहा है. यह ट्रेंड आम पैटर्न से बिल्कुल उल्टा है, जहां BJP का डर मुस्लिम वोटिंग बिहेवियर पर असर डालता है.
सीमांचल में कांग्रेस के लगभग आधे उम्मीदवार वे हैं, जो नामांकन से कुछ हफ्ते या महीने पहले ही पार्टी में शामिल हुए हैं.
उदाहरण के लिए, फारबिसगंज के उम्मीदवार मनोज विश्वास टिकट वितरण से सिर्फ 10 दिन पहले कांग्रेस में शामिल हुए. बहादुरगंज के मुसव्विर आलम ने करीब 15 दिन पहले ही जेएसपी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था. किशनगंज के कमरुल होदा डेढ़ महीने पहले पार्टी में आए. इसी तरह पूर्णिया के जितेंद्र यादव, कसबा के इरफान आलम और बनमनखी के देव नारायण रजक पिछले कुछ महीनों के भीतर कांग्रेस में शामिल हुए हैं.
इनमें से चार उम्मीदवार- मुसव्विर आलम, जितेंद्र यादव, इरफान आलम और देव नारायण रजक, पप्पू यादव के करीबी माने जाते हैं. हालांकि, विधानसभा चुनावों में पप्पू यादव का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. उनकी पार्टी, जन अधिकार पार्टी (लो) को 2015 और 2020 चुनावों में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. खुद पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन ने सीमांचल-कोसी क्षेत्र से अब तक पांच विधानसभा चुनाव लड़े हैं, जिनमें से वे केवल एक बार-अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत में 1990 में जीत पाए थे. यहां तक कि 2024 लोकसभा चुनाव में जीत के तुरंत बाद जब उन्होंने रूपौली उपचुनाव में आरजेडी की बीमा भारती का समर्थन किया, तब भी वह तीसरे स्थान पर रहीं.
फिर भी, अगर पप्पू यादव कसबा, बनमनखी, पूर्णिया और कोरहा जैसे क्षेत्रों में मतदाताओं को सक्रिय कर पाते हैं, जो सभी कांग्रेस की सीटें हैं और जहां वे 2024 में आगे रहे थे- तो यह महागठबंधन को अतिरिक्त बढ़त दे सकता है. बनमनखी और पूर्णिया बीजेपी के पारंपरिक गढ़ हैं, जबकि कोरहा, जो वर्तमान में बीजेपी के कब्जे में है, लगभग हर चुनाव में पाला बदलता रहा है. कसबा में पार्टी को मौजूदा विधायक अफाक आलम की बगावत का सामना करना पड़ रहा है.
पप्पू यादव इस इलाके की कई सीटों पर अहम भूमिका निभाते हैं.
(फोटो: X)
कांग्रेस ने नॉमिनेशन के आखिरी दिन अपने युवा नेता तौकीर आलम को प्राणपुर से बरारी शिफ्ट कर दिया, जिससे उन्हें तैयारी के लिए बहुत कम समय मिला. बरारी तौकीर का गृह सीट है, और उनके पिता मंसूर आलम यहां से तीन बार चुने गए थे. फिर भी, थोड़ी पहले से तैयारी करने से कांग्रेस के लिए यह सीट जीतना आसान हो सकता था. अब, बरारी में तौकीर के जीतने के चांस यादव और मल्लाह वोटर्स पर निर्भर करते हैं.
हालांकि, इस आखिरी मिनट के बदलाव से महागठबंधन की प्राणपुर में जीतने की उम्मीदें बढ़ गई हैं. पिछले दो चुनावों में तौकीर आलम और RJD उम्मीदवार इशरत परवीन के बीच दुश्मनी की वजह से गठबंधन यह सीट हार गया था.
NDA के पास सीमांचल में कोई भी सुरजापुरी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है, जो कि एक बड़ा झटका है, क्योंकि किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार जिलों में इस समुदाय की अनुमानित आबादी 24.5 लाख है. सुरजापुरी मुसलमानों का नौ विधानसभा सीटों पर निर्णायक वोट शेयर है: कोचाधामन, बहादुरगंज, किशनगंज, ठाकुरगंज, बलरामपुर, अमौर, बायसी, प्राणपुर और कदवा. NDA 2020 में सिर्फ प्राणपुर सीट ही जीत पाई थी.
पार्टी पास शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय का भी कोई उम्मीदवार नहीं है, जिसकी आबादी लगभग 13 लाख है और बरारी, मनिहारी, कोढ़ा, ठाकुरगंज और किशनगंज सीटों पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव है.
जेडीयू ने दो कुलहैया मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, दोनों ही पूर्व विधायक हैं- जोकीहाट से मंजर आलम और अमौर से सबा जफर. कुलहैया समुदाय की आबादी सीमांचल में लगभग 12.5 लाख है और जोकीहाट, अररिया, अमौर, बैसी और कस्बा सीटों पर उनका निर्णायक वोट शेयर है.
इसके उलट, महागठबंधन, AIMIM और जन सुराज ने तीनों मुख्य समुदायों से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.
इस बार, महागठबंधन ने 13 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. इनमें से आठ सुरजापुरी, दो कुलहैया, एक शेरशाहबादी, एक पठान और एक धुनिया हैं.
अपने दो कुलहैया उम्मीदवारों के अलावा, NDA ने एक सेखरा और एक अंसारी उम्मीदवार को भी मैदान में उतारा है. हालांकि, NDA को मुस्लिम वोटों का बहुत छोटा हिस्सा ही मिलता है, लेकिन यह काफी हद तक उम्मीदवार पर निर्भर करता है.
AIMIM, जन सुराज और NCP के बागी उम्मीदवार और नॉमिनी सीमांचल की कम से कम आठ सीटों पर अहम भूमिका निभा सकते हैं.
रूपौली में, निर्दलीय विधायक शंकर सिंह एक बार फिर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी मौजूदगी से इस सीट पर JDU की संभावनाओं को झटका लग सकता है.
कसबा में मौजूदा कांग्रेस विधायक अफाक आलम ने टिकट न मिलने पर बगावत कर दी है, जबकि BJP के तीन बार के पूर्व विधायक प्रदीप दास भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतर गए हैं. इन दोनों बागियों की वजह से यह मुकाबला चार-तरफा हो गया है.
नरपतगंज में RJD के दो बार के पूर्व विधायक अनिल यादव की बगावत ने पार्टी की स्थिति कमजोर कर दी है. हालांकि चार बार के पूर्व BJP विधायक जनार्दन यादव जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन जमीन पर उनका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है.
जोकीहाट में RJD के बागी और पूर्व MP-MLA सरफराज जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं और कड़ी टक्कर दे रहे हैं. RJD को यहां यादव वोटों को मजबूत करना होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट RJD, JSP और AIMIM के बीच बंटने की उम्मीद है.
रानीगंज, जहां 2020 में RJD सिर्फ 2,304 वोटों के कम अंतर से हार गई थी, वहां BJP के बागी अमन राज इस बार JDU का खेल बिगाड़ सकते हैं.
बलरामपुर में, जहां CPI(M-L)L के महबूब आलम ने 2020 के बिहार चुनावों में सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, उनके पूर्व सहयोगी मोअज्जम हुसैन, जो अब बागी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, और AIMIM के आदिल हसन, LJP(R) की संगीता देवी के साथ मुकाबले को कड़ा बना सकते हैं.
कटिहार की अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व मनिहारी सीट से NCP के आदिवासी मुस्लिम उम्मीदवार सैफ अली खान, कांग्रेस के मौकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
फारबिसगंज और सिकटी, दोनों ही NDA के पारंपरिक गढ़ हैं, वहां महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने मनोज बिश्वास और VIP ने हरि नारायण प्रमाणिक को मैदान में उतारा है. उनका प्रदर्शन काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपनी-अपनी जाति के वोट बैंक, अमात और केवट को NDA से महागठबंधन की ओर कितनी अच्छी तरह से मोड़ पाते हैं.
(तंज़ील आसिफ़ बिहार के एक पत्रकार हैं और मैं मीडिया के संस्थापक हैं, जो सीमांचल क्षेत्र पर केंद्रित एक हाइपरलोकल न्यूज प्लेटफॉर्म है.)