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एक शेरशाहबादी मुस्लिम मुखिया, एक स्थानीय आदिवासी महिला नेता, अपने पिता और हमशक्ल दिखने वाले भाई के साथ सैफ अली खान गंगा नदी के लंबे तटबंध पर तेजी से चलते हुए नजर आते हैं. वे लोगों से हाथ मिलाते हैं, कभी-कभी गले लगाते हैं और हर सेल्फी की गुजारिश पूरी करते हैं.
28 वर्षीय सैफ अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित कटिहार जिले की मनिहारी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जो बहुत कम देखने को मिलता है. बिहार विधानसभा में मनिहारी के अलावा केवल बांका जिले की कटोरिया सीट ST आरक्षित है.
बिहार में लगभग 22 लाख आदिवासी आबादी है, जो राज्य की कुल आबादी का 1.68 प्रतिशत हिस्सा हैं और इनमें सभी धर्मों के लोग शामिल हैं.
सैफ बनजारा जाति से हैं जिसकी आबादी बिहार में सिर्फ 8,349 है, जो 1,596 परिवारों में बंटी हुई है. इसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं. हालांकि सैफ का मानना है कि असली संख्या इससे कहीं ज्यादा है. उनका कहना है कि उनकी बिरादरी के कई लोग अपनी असली पहचान छिपाते हैं.
सैफ अली खान के साथ सेल्फी लेता हुआ उनका एक समर्थक.
(फोटो: शाह फैसल)
बंजारा समुदाय बिहार और झारखंड दोनों में अनुसूचित जनजाति सूची में दर्ज है. ऐतिहासिक रूप से यह समुदाय घुमंतू जीवन जीता था और सड़कों के किनारे टेंट में रहता था, लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोगों ने जमीन खरीदकर बसना शुरू किया.
सैफ का परिवार उत्तर प्रदेश के अयोध्या से बिहार के सुपौल और फिर 1989 में अररिया जिले में आकर बस गया.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की नौ ST आरक्षित सीटों और लक्षद्वीप लोकसभा सीट से मुसलमान चुने जाते हैं, लेकिन हिंदी पट्टी में किसी मुस्लिम प्रत्याशी का ST आरक्षित सीट से चुनाव लड़ना बेहद दुर्लभ है.
पसमांदा मुस्लिम महाज के संस्थापक और पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर कहते हैं, “पिछले कई दशकों से मैं पासमांदा मुसलमानों के बीच काम कर रहा हूं, मैंने ऐसा कोई उम्मीदवार नहीं देखा.”
द क्विंट (अंग्रेजी) में खबर छपने के बाद पसमांदा मुस्लिम महाज ने सैफ को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है.
मनिहारी, जो झारखंड की सीमा से सटा है, कटिहार के मनिहारी, मानसाही और अमदाबाद प्रखंडों को मिलाकर बना है. स्थानीय नेताओं के अनुसार यहां लगभग 45 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है (ज्यादातर शेरशाहबादी मुसलमान) और करीब 15 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या है. यह सीट 2008 के परिसीमन में आदिवासी के लिए आरक्षित की गई थी.
सीमांचल के सबसे बड़े शेरशाहबादी मुस्लिम नेता मुबारक हुसैन यहां से 2006 में अपनी मृत्यु तक चार बार विधायक रहे. 2010 में स्थानीय मुसलमानों ने गीता किस्कू को, जो एक मुस्लिम से विवाहित आदिवासी महिला हैं, अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह केवल 4,000 वोटों से हार गईं. अब गीता किस्कू सैफ का समर्थन कर रही हैं.
लंबे इंतजार के बाद स्थानीय मुसलमानों की उम्मीदें सैफ की उम्मीदवारी से फिर से जागी हैं.
पूर्व आईपीएस अधिकारी मनोहर प्रसाद सिंह फिलहाल यहां से विधायक हैं. उन्होंने 2010 में जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर जीत हासिल की थी और पिछले दो चुनाव से कांग्रेस से जुड़े हैं.
इस बार मैदान में कुल सात उम्मीदवार हैं जिनमें कांग्रेस के मौजूदा विधायक मनोहर, जेडीयू के शंभू कुमार सुमन और जन सुराज पार्टी के बाबलू सोरेन शामिल हैं.
सैफ स्वीकार करते हैं कि इस मुद्दे पर मुसलमानों में जागरूकता की कमी है. वे कहते हैं, “ये तो संविधान में पहले से था. हमारी हालत देखिए, हमें सिर्फ यह जानने में 75 साल लग जाते हैं. जब मुझे कुछ साल पहले यह बात पता चली तो ऐसा लगा जैसे जमीन पैरों के नीचे से खिसक गई हो.”
अररिया के फॉरबिसगंज के रहने वाले सैफ ने अपनी राजनीति की शुरुआत छात्र नेता के रूप में फॉरबिसगंज कॉलेज से की थी. उन्होंने 2020 के चुनाव में मनिहारी में काम शुरू किया, लेकिन तब उनकी उम्र चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु से कम थी, इसलिए 2025 की तैयारी में लग गए.
सैफ आरोप लगाते हैं, “मेरे खिलाफ एक लॉबी काम कर रही थी, वे एक आदिवासी मुसलमान को बर्दाश्त नहीं कर पाए. मुझे जन सुराज से सिर्फ इसलिए टिकट नहीं मिला क्योंकि मैं मुसलमान हूं.”
वे बताते हैं, “नामांकन की जांच के दौरान मेरा पर्चा पहले स्वीकार कर लिया गया लेकिन दो घंटे बाद कांग्रेस ने आपत्ति जताई कि मेरा जाति प्रमाणपत्र फर्जी है. उन्होंने एक दस्तावेज पेश किया जिसमें लिखा था कि मेरा प्रमाणपत्र कुछ दिन पहले ही रद्द कर दिया गया है. विधायक मनोहर प्रसाद सिंह ने जांच की मांग की और मेरा नामांकन रद्द कराने की कोशिश की.”
जांच के बाद अगले दिन सैफ का नामांकन स्वीकार कर लिया गया. कांग्रेस विधायक मनोहर प्रसाद सिंह ने पुष्टि की, “हां, हमने आपत्ति की थी क्योंकि उनका प्रमाणपत्र पहले रद्द हुआ था, लेकिन बाद में कहा गया कि वह गलती से हुआ था.”
अब सैफ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के टिकट पर मैदान में हैं, जो सीमांचल में एक समय कटिहार के सांसद तारिक़ अनवर की पहचान मानी जाती थी. 1999 से लेकर 2018 तक जब तक अनवर ने कांग्रेस में वापसी नहीं की, तब तक NCP सीमांचल में सक्रिय रही. 2000, फरवरी 2005 और 2010 के चुनावों में NCP मनिहारी में दूसरे स्थान पर रही थी. सैफ अब पार्टी के “घड़ी” वाले चुनाव चिन्ह से जुड़ी मनिहारी के लोगों की पुरानी यादों को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
सैफ अली खान (बीच में) AIMIM नेता सरदार खान (बाएं), पूर्व NCP उम्मीदवार गीता किस्कू और उनके पिता फारुख खान.
(फोटो: शाह फैसल)
विधायक मनोहर प्रसाद सिंह, सैफ से किसी तरह की चुनौती को खारिज करते हुए कहते हैं, “आज की NCP महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी है, इसलिए वे असल में बीजेपी के उम्मीदवार हैं. उन्हें मुस्लिम वोट बांटने और मुझे हराने के लिए उतारा गया है.”
सिंह राजनीति में आने से पहले कटिहार के पुलिस अधीक्षक (SP) और मुंगेर के पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG) रहे हैं.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों की परिभाषा देता है जिसमें धर्म का कोई उल्लेख नहीं है, जबकि अनुच्छेद 341 में मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जाति की सूची से स्पष्ट रूप से बाहर रखा गया है.
पूर्व राज्यसभा सांसद और यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के संस्थापक डॉ. एजाज अली, सैफ की उम्मीदवारी को सकारात्मक कदम मानते हैं. वे मानते हैं कि बिहार और आसपास के इलाकों में मुस्लिम नेतृत्व ने आदिवासी मुसलमानों की अलग पहचान विकसित करने में नाकामी दिखाई है.
डॉ. एजाज कहते हैं, “छोटा नागपुर पठार के जो आदिवासी इस्लाम में धर्मांतरित हुए, उन्होंने खुद को ‘मोमिन’ कहना शुरू कर दिया, न के 'आदिवासी मोमिन' या 'आदिवासी मुस्लिम' और विभिन्न मुस्लिम जातियों में शामिल हो गए. जबकि जो ईसाई बने, उन्होंने अपनी आदिवासी पहचान को ‘आदिवासी ईसाई’ के रूप में बनाए रखा. यह उस समय की मुस्लिम नेतृत्व की विफलता थी.”
छोटा नागपुर पठार झारखंड और छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा बिहार के कुछ हिस्सों में फैला इलाका है, जहां बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी रहती है.
यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब बीजेपी नेता, जिनमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय भी शामिल हैं, खुले तौर पर यह मांग कर रहे हैं कि जो आदिवासी इस्लाम या ईसाई धर्म में धर्मांतरित हो गए हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाया जाए. उनका कहना है कि ऐसे धर्मांतरण अवैध हैं.
लेकिन डॉ. एजाज का कहना है, “जो लोग अब धर्मांतरण कर रहे हैं उन्हें ST का दर्जा मत दीजिए, लेकिन जो बहुत पहले धर्मांतरित हुए, उनकी पहचान तो स्वीकार कीजिए.”
बिहार राज्य बक्खो सेवा समाज संघ के अध्यक्ष रियाजुद्दीन बक्को लंबे समय से अपनी बिरादरी को ST सूची में शामिल कराने के लिए अभियान चला रहे हैं. वे कहते हैं, “बक्खो समुदाय मूल रूप से आदिवासी स्वभाव का है, इसलिए इसे अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाना चाहिए.”
बिहार में बक्को समुदाय की आबादी 36,830 है.
सैफ कहते हैं, “यह तो बस शुरुआत है. शेरशाहबादी समुदाय की भी जड़ें आदिवासी हैं. बहुत सी मुस्लिम जातियां ST दर्जे की हकदार हैं.” यह कहते हुए वे पास के गांव में एक जनाजे में शामिल होने के लिए गंगा के तटबंध पर तेजी से आगे बढ़ जाते हैं.