कुछ बातें हैं संसार की
कुछ बातें हैं बेकार की.
कुछ फूलों के रंग हैं इसमें
कुछ तितलियों के पंख हैं इसमें.
कुछ अनकही सी बातें हैं
कुछ भूली हुई सी यादें हैं.
यह मेरे क़लम की दुनिया है
जो मुझे मेरे होने का एहसास दिलाती है.
अगर अंधेरा भी है तो मंज़ूर है मुझे
यह जुगनुओं के चमकने का एहसास दिलाती है.
ढ़लती रैना भी समझो तो भी है अज़ीज़ मुझे
यह सूरज के फिर उगने का एहसास दिलाती है.
कोई छीने ना इसे मुझ से
बस यही तो मांगा है दुनिया से.
एक यही तो आसरा है
जो समाज को बदलने का हौसला दिलाती है.
हां! यह मेरे क़लम की दुनिया है
जो मुझे मेरे होने का एहसास दिलाती है…
Afshan Khan’s ‘Bol’
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