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हिंदुस्तानी – मेरी जुबान: देश को जोड़ना का एक जरिया है

हिंदी और उर्दू को मिलाकर जो हिंदुस्तानी ज़ुबान बनी है उसमें मेरे देश की मिट्टी की खुशबू है।
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फिल्मों और गीतों ने भी हिंदुस्तानी ज़ुबान को देशभर में प्रचलित करने में अहम भूमिका निभाई है.
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(Photo: Saumya Pankaj/The Quint)
फिल्मों और गीतों ने भी हिंदुस्तानी ज़ुबान को देशभर में प्रचलित करने में अहम भूमिका निभाई है.
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हिंदी और उर्दू को मिलाकर जो हिंदुस्तानी जुबान बनी है उसमें मेरे देश की मिट्टी की खुशबू है. ये विशुद्ध हिंदी या खालिस उर्दू की तुलना में ज दा मज़ेदार है. उत्तर भारत में पले-बढ़े होने की वजह से बचपन से ही मैंने हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सभी धर्मों के लोगों को इसी खूबसूरत ज़ुबान में बातचीत करते देखा है. मज़े की बात ये है कि ये भाषा किसी पर थोपी नहीं गई और अभी भी कोई उत्तर भारतीय देश के पूर्वी, पश्चिमी या दक्षिणी हिस्से में जाता है तो बिना अंग्रेज़ी बोले भी काम चल जाता है. फिल्मों और गीतों ने भी हिंदुस्तानी ज़ुबान को देशभर में प्रचलित करने में अहम भूमिका निभाई है. मैं हिंदुस्तानी ज़ुबान को इसलिए पसंद करता हूँ क्योंकि यह भारतीयों को जोड़ने का एक बेहतरीन ज़रिया है.

(This article was sent to The Quint by Navneet Yadav for our Independence Day campaign, BOL – Love your Bhasha.

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