वीडियो एडिटर: दीप्ती रामदास
देश की आर्थिक राजधानी और दुनिया की सबसे ज़्यादा आबादी वाले शहरों में से एक मुंबई में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है. मुंबई की पालिका यानी बीएमसी एशिया की सबसे बड़ी महानगर पालिका है. इसका सालाना बजट 30 करोड़ के पार है और इसके पास 50 हज़ार करोड़ का फिक्स डिपॉजिट है. यानी बीएमसी के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. इसके बावजूद क्यों बीएमसी मुंबई में कोरोना संक्रमण को रोकने में कामयाब नहीं हो पा रही है? तीन वजहें सामने समझ में आ रही हैं.
मुंबई में कोरोना का पहला मामला मार्च महीने में सामने आया था. इसके बाद केवल 25 दिनों में मुंबई में संक्रमितों की संख्या 2 हजार पार पहुंच गई. 16 अप्रैल को 2043 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव थी. इसके बाद अगले 7 दिनों में संक्रमितों की संख्या दोगुनी होकर 4,232 पर पहुंच गई. इसके अगले 9 दिन बाद यानी 2 मई को संक्रमितों की संख्या 8172 पर पहुंच गई. और 7 मई आते-आते ये आंकड़ा 10 हजार पार कर गया. शहर में कोरोना की वजह से अब तक 387 लोगों की मौत हो चुकी है
मुंबई की ये दुर्गति क्यों हुई?
1. घनी आबादी: जब तक वैक्सीन न आए तब तक सोशल डिस्टेंसिंग ही उपाय है. लेकिन मुंबई के स्लम इलाकों में इसका पालन करना बहुत मुश्किल हो रहा है. मुंबई में बतौर टाउन प्लानर काम करने वाले चंद्रशेखर प्रभु बताते हैं कि मुंबई में तकरीबन 70 लाख लोग स्लम में रहते हैं. तंग गलियां, तंग कमरे-जहां एक साथ पांच-पांच छह-छह लोग रहते हैं. कॉमन टॉयलेट, खुले सीवर, पानी लेने की कॉमन जगह..ये MY इंफेक्शन फैलने की वजह बनते हैं.
मुंबई में घर छोटे होने की वजह से कई घरों में खिड़कियां भी नहीं होती हैं, ऐसे में वेंटिलेशन नहीं होना भी खतरे को बढ़ाता है. कोई ताज्जुब नहीं कि मुंबई के कुल पॉजिटिव मामलों में से 50% से ज़्यादा मामले घनी आबादी वाले वार्डों से हैं.
कोरोना के खतरे को बढ़ता देख शहर में आइसोलेशन बेड्स की संख्या बढ़ाई गई है. BKC के MMRDA के ग्राउंड पर 1000 बेड्ज़ का व्यवस्था की जा रही है. महालक्ष्मी रेस कोर्स में भी तैयारी चल रही है. बीएमसी की ओर से 16 अप्रैल को जारी किए आंकड़ों के मुताबिक, मुंबई के COVID अस्पतालों में 2038 आइसोलेशन बेड्स थे.
डायरेक्टोरेट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन आदेश जारी कर चुका है कि मुंबई निजी अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टरो को काम पर पहुँचे नहीं तो उनका रजिस्ट्रशं रद्द हो सकता है
2. कम टेस्टिंग: बीएमसी के मुताबिक 29 अप्रैल तक शहर में 66,000 लोगों के टेस्ट हुए थे. यानी प्रति दस लाख लोगों पर करीब 5 हजार टेस्ट. लेकिन समस्या ये है कि टेस्ट की संख्या बढ़ाने में लंबा वक्त लग गया. क्योंकि अप्रैल की शुरुआत में शहर में प्रति दस लाख महज 884 टेस्ट हो रहे थे. DDEP के डायरेक्टर प्रोफेसर रामनन लक्ष्मी नारायण कहते हैं कि जैसे -जैसे नए मामलों के आऩे में तेजी हो रही है, वैसे-वैसे ही टेस्ट की संख्या भी बढ़ाने की जरूरत है.
बीएमसी के पूर्व कमिश्नर का कहना है कि टेस्ट बढ़ाने के साथ ही मास्क और हैंड ग्लव्स जैसी वस्तुएं, ज्यादा उपलब्ध कराने की जरूरत है. पूर्व कमिश्नर ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो बीएमसी को अपने फिक्स डिपॉजिट को हाथ लगाने में भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए.
3. तालमेल की कमी: हालांकि बीएमसी और राज्य सरकार दोनों में शिवसेना सत्ता में है लेकिन तालमेल की कमी भी कोरोना से जंग को कमजोर कर रही है. एक तरफ सरकार कहती है कि रेड जोन के इलाक़ों की दुकानें खोली जाएं, तो वहीं बीएमसी ने रेड जोन की दुकानों को खोलने पर रोक लगाई हुई है.
तो मुद्दे की बात ये है कि बहुत देर हो चुकी है कि मुंबई चलाने वालों को अब भी संभलने की जरूरत है, वक्त रेत की तरह मुट्ठी से निकला जा रहा है. आगे मॉनसून है जब डेंगू, मलेरिया, चिकुनगुनिया जैसी बीमारियों का हमला होगा और अस्पतालों पर बोझ बढ़ेगा, तो अभी भी वक्त है बेड्स, icu, वेंटिलेटर बढ़ाएं