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टिकैत के इलाके में बीजेपी का वोट वाकई 'कोको ले गई'

राकेश टिकैत और किसान आंदोलन का असर भले ही ओवर ऑल पिक्चर में कम दिखे लेकिन बीजेपी के वोट में डेंट तो लगा है.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में पहले फेज की वोटिंग के दौरान किसान नेता राकेश टिकैत जब वोट देने पहुंचे तो मीडिया के सवालों के जवाब में उन्होंने बीजेपी के वोट को लेकर कोको शब्द का इस्तेमाल किया था. तब चर्चा शुरू हुई कि ये कोको क्या है? आप कोको को ऐसे समझें कि कोई चीज आंखों से ओझल कर देना या गायब कर देना.. ये मुहावरा पश्चिमी यूपी में ज्यादा इस्तेमाल होता है.. लेकिन अब चुनावी नतीजे आ गए हैं, बीजेपी की जीत हुई है और सोशल मीडिया पर लोग राकेश टिकैत से पूछ रहे हैं कि किसका वोट कोको ले गई? चलिए तो आपको इस वीडियो में हम बताते हैं कि राकेश टिकैत के प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कोको किसका वोट ले गई है? और कैसे ले गई?

शुगर बाऊल कहे जाने वाले वेस्ट यूपी में ऐसे तो करीब 20 जिले आते हैं, लेकिन अगर राकेश टिकैत के असर की बात करें तो वेस्ट यूपी में 6-7 जिले ही हैं, जहां माना जाता है कि राकेश टिकैत की बात वोटरों को प्रभावित कर सकती थी. वो जिले हैं- मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, शामली, बागपत, सहारनपुर. हालांकि माना जा रहा था कि वेस्ट यूपी के इन छह जिलों के अलावा भी बाकी जिलों में भी किसान आंदोलन का असर देखने को मिलेगा.

चलिए तो पहले इन 6 जिलों का हाल और राकेश टिकैत के असर की बात करते हैं.

सबसे पहले बात शामली की. शामली जनपद में बीजेपी तीनों सीट पर चुनाव हार गई है. प्रदेश में बीजेपी की हवा के बावजूद शामली जिले की कैराना, थाना भवन और शामली विधानसभा सीट पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. बीजेपी के गन्ना मंत्री सुरेश राणा को भी शामली की थानाभवन सीट से हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि 2017 में बीजेपी ने यहां की तीन में से दो सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार सारे समीकरण फेल हो गए और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

राकेश टिकैत के प्रभाव वाली दूसरा जिला है बागपत

बागपत की बात करें तो यहां कुल तीन विधानसभा सीटें है. जिनमें से बागपत, बड़ौत और छपरौली शामिल हैं. बागपत में बीजेपी ने 2-1 से सीरीज जीत ली. हालांकि बागपत की सबसे हॉट सीट छपरौली से एक बार फिर हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि छपरौली सीट राकेश टिकैत की नहीं बल्कि चौधरी चरण सिंह की विरासतीय सीट मानी जाती है. क्योंकि इस सीट पर चाहे किसी भी पार्टी की लहर रही हो, कब्जा आरएलडी का ही रहा है. पिछली बार 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी बागपत, बड़ौत में बीजेपी और छपरौली सीट पर आरएलडी ने जीत हासिल की थी.

तीसरी जिला है- मुजफ्फरनगर. यानी राकेश टिकैत का घर. मुजफ्फरनगर में बीजेपी को जोर का झटका लगा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में सभी छह सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी की इस बार सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई. मुजफ्फरनगर की शहरी सीट पर बीजेपी के कपिलदेव अग्रवाल ने समाजवादी गठबंधन के उम्मदवार को हराया है. वहीं मुजफ्फरनगर की खतौली सीट पर बीजेपी के विक्रम सैनी ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की है. इसके अलावा मुजफ्फरनगर जिले की बुढ़ाना, मीरापुर, चरथावल और पुरकाजी पर बीजेपी को हार का सामना करना पडट़ा है. यानी टिकैट के गढ़ में बीजेपी का वोट कोको ले गई है.

मेरठ जिला- वेस्ट यूपी की राजनैतिक राजधानी कहे जाने वाले मेरठ में समाजवादी गठबंधन ने BJP को तगड़ी शिकस्त दी है. 2017 के चुनाव में मेरठ की सात सीटों में से 6 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी गठबंधन ने 4 सीटें जीती हैं. यही नहीं बीजेपी की प्रतिष्ठा से जुड़ी मेरठ की सरधना विधानसभा सीट से बीजेपी के बड़बोले नेता संगीत सोम को भी समाजवादी पार्टी ने 18 हजार वोटों के अंतर से हराया है.

सहारनपुर जिला- सहारनपुर में सात सीटें आती हैं. इन 7 में में 5 पर बीजेपी और 2 पर समाजवादी पार्टी गठबंधन ने जीत दर्ज की है. जिन सीटों पर बीजेपी जीती है वो हैं- गंगोह, देवबंद, नकुड़, रामपुर मनिहांरन और सराहनपुर नगर. सहारनपुर जिले की दो सीट बेहट और सहारनपुर देहात समाजवादी पार्टी के खाते में गई है. यानी सहारनपुर में किसान आंदोलन और राकेश टिकैत का जलवा नहीं चला.

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बिजनौर

बिजनौर जिले की आठ विधानसभा सीटों पर बीजेपी-एसपी में कड़ा मुकाबला देखने को मिला. दोनों ही पार्टिय़ों ने जिले की चार-चार सीटें जीती हैं. बिजनौर, धामपुर, नहटौर और बढ़ापुर सीट बीजेपी के हाथ लगी है, वहीं चांदपुर, नजीबाबाद, और नूरपुर, नगीना, समाजवादी पार्टी के खाते में गई है. यहां 50-50 का खेल तो हुआ लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले समाजवादी पार्टी ने दो सीटों पर बढ़त हासिल की है.

अब अगर हम वेस्ट यूपी के पहले और दूसरे फेज में किसान आंदोलन और राकेश टिकैत से जोड़ें तो यहां अलग कहानी दिखती है. पहले फेज में 58 में से 46 सीटों पर हुए चुनाव में BJP का कब्जा हुआ. यानी 80% सीटें. मतलब किसान आंदोलन और राकेश टिकैत फैक्टर बीजेपी को कमजोर नहीं कर सका. वहीं दूसरे फेज में 9 जिलों की 55 सीटों पर वोट पड़े थे. जिसमें BJP को 31 और SP को 24 सीट मिली. यानी एसपी ने 43% सीटों पर कब्जा किया. पिछले चुनाव की तुलना में समाजवादी पार्टी को यहां फायदा जरूर हुआ है, अब इसकी एक बड़ी वजह किसान आंदोलन को भी मान सकते हैं.

अगर पूरे आंकड़ों के जाल को समेटेंगे तो जवाब यही मिलेगा कि राकेश टिकैत और किसान आंदोलन का असर भले ही ओवर ऑल पिक्चर में कम दिखे लेकिन बीजेपी के वोट में डेंट तो लगा है. 2017 के मुकाबले बीजेपी का वोट कोको तो ले गई है.

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