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‘भगवान हैं अल्लाह मियां के भाई’, वजह बता रहे हैं ‘नक्काश’

‘नक्काश’ के राइटर-डायरेक्टर जैगम इमाम और लीड एक्टर इनामुल हक से क्विंट हिंदी ने की खास बातचीत

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कैमरा: शिव कुमार मौर्य

वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

समाज में मुस्लिमों के साथ होने वाले भेदभाव और हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने वाली फिल्म 'नक्काश' की चर्चा इसके ट्रेलर लॉन्च के समय से ही शुरू हो चुकी थी. फिल्म की कहानी बनारस में रहने वाले एक ऐसे मुस्लिम शख्स पर आधारित है, जो मंदिर में नक्काशी का काम करता है. लेकिन उसे कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों की नफरत का शिकार होना पड़ता है.

सिल्वर स्क्रीन पर रिलीज होने जा रही इस फिल्म के राइटर-डायरेक्टर जैगम इमाम और फिल्म के लीड एक्टर इनामुल हक से क्विंट हिंदी ने की खास बातचीत.

'हिंदू-मुस्लिम' मुद्दों पर ही फिल्में क्यों?

कई साल तक पत्रकारिता कर चुके जैगम इमाम ने कुछ साल पहले अपने पेशे को अलविदा कहकर फिल्म मेकिंग के क्षेत्र में कदम रखा. सबसे पहले उन्होंने फिल्म बनाई 'दोजख- इन सर्च ऑफ हेवन', उसके बाद बनाई 'अलिफ', और अब तीसरी फिल्म है 'नक्काश'. तीनों की फिल्में 'हिंदू-मुस्लिम' मुद्दों पर आधारित हैं. इसकी वजह पूछने पर जैगम बताते है, "कई बार आप किसी चीज से निकल नहीं पाते. मेरी प्रेरणा, जिनकी वजह से मैं फिल्म मेकिंग में आया, जिनकी फिल्में देखकर आया, वो हैं सत्यजीत रे साहब. मैं उनको गुरू मानता हूं, मुझे लगता है कि उनसे बड़ा फिल्म मेकर कोई है नहीं. उन्होंने ने भी ट्रायोलॉजी बनाई - 'अपू' ट्रायोलॉजी. तो मन में था कि उनको फॉलो करो. इसलिए मैंने इस मुद्दे पर ट्रायोलॉजी बनाई."

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इनामुल ने क्यों चुनी ये फिल्म?

'एयरलिफ्ट', 'जॉली LLB 2', 'लखनऊ सेन्ट्रल' जैसी कई फिल्मों से बॉलीवुड में अपनी पहचान बना चुके इनामुल एक स्क्रिप्ट राइटर भी रहे हैं. इस फिल्म को चुनने की वजह पूछने पर वे बताते हैं, "बहुत लम्बे अरसे के बाद एक ऐसी स्क्रिप्ट आई कि मुझे लगा चलो हां रोजगार आ गया. मेरे सारे यार-दोस्त, घरवाले सब लोग मुझे बोलते हैं कि कितना काम मना करेगा, किसी को तो हां कर दे, कितना खाली बैठेगा? लेकिन जब तक मेरे दिल से आवाज नहीं आती, मैं हां नहीं कहता."

फिल्म में अपने किरदार के एक डायलॉग का जिक्र करते हुए इनामुल कहते हैं, “बच्चा अपने पापा से पूछता है कि भगवान कौन है? वो जवाब देता है कि ‘अल्लाह मियां के भाई’. इसमें कोई नयी बात नहीं कही गई, लेकिन उसमें भी लोग कह रहे हैं कि ऐसे कैसे हो सकता है.”

'अच्छी बातों को बुरी तरह से पेश किया जाता है'

क्या धर्म के आधार पर भेदभाव होता है हमारे समाज में? इस सवाल के जवाब में इनामुल बताते हैं, "हमेशा से समाज, देश और घर में अच्छाई और बुराई साथ-साथ चलती है. लेकिन जब छोटी बुराई बहुत बड़ी अच्छाई पर हावी हो जाए, तो वो चिंता का विषय रहता है. बहुत सारी घटनाएं हो रही हैं जो चिंता का विषय हैं, जो नहीं होनी चाहिए.

इसी बात पर जैगम कहते हैं, "कुछ घटनाओं को वाकई तूल दिया जाता है. कुछ बुरी बातों को ज्यादा तूल दिया जाता है. इस तरह की चीजें हैं, कुछ लोग अफवाहें फैला रहे हैं. कई तरह की अच्छी बातों को बुरी तरह से पेश किया जाता है. लेकिन इन सबके बावजूद मैं ये कहना चाहूंगा कि हिंदुस्तान के बारे में 5-10-25 साल में राय नहीं बनाई जा सकती. ये हजारों साल पुरानी सभ्यता है और बहुत लंबे समय तक चलने वाली है."

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