वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
उत्तर प्रदेश में एक महिला वकील ने लखनऊ नगर निगम के चीफ स्टैंडिंग काउंसल और सीनियर वकील शैलेंद्र सिंह चौहान पर रेप का आरोप लगाया है. ये महिला वकील सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं. घटना 24 जुलाई की है और लेकिन आरोपी की गिरफ्तारी के लिए महिला को थाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा. लेकिन अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई है.
महिला वकील कोराना लॉकडाउन में अपने गृह शहर लखनऊ आई थीं. यहां आने के बाद उनको पता चला कि उनके पिता का एक केस अदालत में विचाराधीन है, जिसकी फाइल शैलेंद्र के पास थी. महिला वकील इस केस को खुद लड़ना चाहती थीं. उनके एक मित्र शैलेंद्र के जूनियर थे. ऐसे में फाइल पाने के लिए महिला ने अपने उस मित्र की सहायता से शैलेंद्र से संपर्क किया. इस सिलसिले में वह दो बार अपने मित्र की मौजूदगी में शैलेंद्र से मिलीं. महिला के मुताबिक, शैलेंद्र ने उनको 24 जुलाई को 11 बजे गोमती नगर स्थित अपने कार्यालय बुलाया था.
“मैं अधिवक्ता के कार्यालय 11:20 बजे पहुंची. वहां पहुंचने के बाद अधिवक्ता ने जूस ऑफर किया. जूनियर होने के नाते मैंने जूस स्वीकार करते हुए जैसे ही पिया, टेस्ट ठीक नहीं लगा. हमने खराब टेस्ट की बात कही तो वह कहने लगे पुराना रखा हुआ है इसलिए ऐसा टेस्ट है. कुछ देर बाद मैं सब-कॉन्शियस हो गई.”महिला वकील
विभूति खंड थाने में दर्ज FIR में लगाए गए आरोपों के मुताबिक, अधिवक्ता ने महिला के सब-कॉन्शियस होने का फायदा उठाते हुए रेप किया. महिला का कहना है कि जब उन्हें होश आया तो अधिवक्ता ने उनको धमकियां दीं, लेकिन वह वहां से किसी तरह बाहर निकलीं और अपने भाई के साथ विभूति खंड थाना पहुंचीं.
“पुलिस स्टेशन पहुंचने के बाद थाने द्वारा FIR 4 घंटे के इंतजार के बाद रजिस्टर हुई. थाने की तरफ से सपोर्ट मिलना तो दूर, वहां मुझसे तीन बार आवेदन लिखवाया गया. उन्हें FIR हिंदी में चाहिए थी, मेरी हिंदी कमजोर है. सवाल उठता है कि FIR दर्ज होने में 4 घंटे की देरी क्यों हुई?”महिला वकील
क्विंट ने जांच अधिकारी ज्ञानेंद्र कुमार से FIR प्रक्रिया लेट होने का कारण पूछा तो अधिकारी ने कहा कि "महिला ने 3 बार आवेदन लिख कर दिया जिसमें काट-छांट भी थीं. इस वजह से समय लग गया. उसके बाद हमने फौरन उन्हें मेडिकल जांच के लिए भेज दिया. वहां कितनी देर हुई हमें नहीं पता."
महिला वकील कहती हैं कि "रात के 9:30 बजे मेडिकल जांच के लिए झलकारीबाई अस्पताल पहुंचने के बाद मुझ से वहां कहा गया कि तुम रात में क्यों चली आई हो, सुबह आना चाहिए था, ऐसा कोई बड़ा केस नहीं था कि रात में आई हो. डॉक्टर ने इतने सीरियस मसले पर खुद जांच न करते हुए नर्सों से कराई. काफी एविडेंस थे जो वह कलेक्ट कर सकती थीं, मैंने कहा भी लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं. रात के लगभग 2:30 बजे मेडिकल जांच हुई. मैं सुबह 4:30 बजे मैं घर गई. सवाल यह है कि इतना डिले क्यों किया गया? अब समझौता करने के लिए दबाव से लेकर, धमकियां भी जारी हैं, जिसकी शिकायत मैंने की, लेकिन कहीं रजिस्टर नहीं हुई."
24 जुलाई को मामला दर्ज हुआ, लेकिन सर्च वॉरंट का इंतजार करती रही पुलिस
ज्ञानेंद्र कुमार के अनुसार 30 जुलाई को कोर्ट से सर्च वॉरंट मिला. ऐसे में सवाल उठता है कि हर प्रक्रिया में इतनी देर क्यों हुई? इसके अलावा महिला का कहना है कि 31 जुलाई को हाई कोर्ट ने उनका पक्ष सुने बिना ही शैलेंद्र की गिरफ्तारी पर स्टे लगा दिया.
“जज राजीव सिंह परमानेंट जज नहीं हैं, वह अधिवक्ता शैलेंद्र सिंह के साथ प्रैक्टिस किया करते थे. राजीव सिंह ने हमारी सुनने की कोशिश ही नहीं की. अब सवाल यह उठता है कि इतना बड़ा अपराध करने वाले शैलेंद्र सिंह चौहान को नगर निगम के अधिवक्ता से सरकार क्यों नहीं हटा रही है? अधिवक्ता अपने जूनियर अभिराम के भाई अभिराज मिश्रा के घर में छिपे हुए थे. 5 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट से स्टे निरस्त होने के बाद भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो रही. 6 अगस्त को हमने जब आरोपी को देखा तो थाने के SHO संजय शुक्ल को खबर की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब सिस्टम से विश्वास उठ गया.”महिला वकील
महिला के वकील आदित्य विक्रम शाही के मुताबिक, इस मामले में FIR से लेकर मेडिकल जांच तक की प्रक्रिया टाली गई, जबकि FIR के वर्जन के हिसाब से जांच अधिकारी और डॉक्टर की जिम्मेदारी थी कि वे सभी प्रक्रियाएं समय पर पूरी कराएं. आरोप है कि हाई कोर्ट में मेडिकल रिपोर्ट स्टेट की तरफ से दी जानी थीं, लेकिन जांच अधिकारी ने कुछ नहीं दिया.
अधिवक्ता शैलेंद्र के वकील सुशील कुमार सिंह ने इस मामले पर कहा, "हाई कोर्ट में सुनवाई हुई, जो आदेश पास हुआ उसे लेकर आरोप लगाने वाला पक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. वहां इस आदेश पर स्टे लगा अब आप और क्या सुनना चाहते हैं? मैं दोषी निर्दोषी का फैसला तो कर नहीं सकता.'' उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई होगी और कोर्ट फैसला सुनाएगा.