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‘कैदी बना लिया’-देखिए बिहार के मजदूरों पर कर्नाटक में क्या बीत रही

कर्नाटक सरकार ने यू-टर्न लेते हुए प्रवासी मजदूरों के लिए ट्रेनें बहाल कर दी हैं

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(वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान)

“न रहने का सही कमरा, न सोने की ठीक जगह.”

ये कहना है कर्नाटक में फंसे बिहार-झारखंड के मजदूरों, जिनसे क्विंट ने बातचीत की. हमारे कैमरे ने जो दिखा वो हिलाकर रख देने वाला था.

मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत... इन तमाम बड़े शहरों में बिहार-झारखंड-यूपी-ओडिशा के मजदूर फंसे हुए हैं. वो घर लौटना चाहते हैं. केंद्र ने जब इनके लिए ट्रेन चलाने का ऐलान किया तो उम्मीद जगी, लेकिन कर्नाटक सरकार ने ट्रेन रद्द करवा दी. क्विंट ने सबसे पहले ये खबर दी. जब कर्नाटक सरकार के इस फैसली की चौतरफा आलोचना हुई तो सरकार ने यू-टर्न लिया. इस बीच क्विंट ने ये जानने की कोशिश की, आखिर कर्नाटक में मजदूरों की हालत कैसी है. वो कैसे जी रहे हैं? इस ग्राउंड रिपोर्ट में हमें जो पता चला उसमें मजदूरों का दर्द है, कर्नाटक की बेदर्दी है.

हमने साउथ बंगलुरु में रोके गए कुछ मजदूरों से बात की. ये सभी कंस्ट्रक्शन वर्कर हैं. यानी ये बिल्डरों के लिए काम करते हैं. वही बिल्डर जिनसे बातचीत के बाद सरकार ने ट्रेन रुकवाई थी. हमने उनसे वहां जाकर बात की, जहां उन्हें रखा गया है. हमने देखा कि मजदूरों को बिल्कुल अमानवीय स्थिति में रखा गया है. टिन से बने तपते कमरे, जिनमें एक बिस्तर तक नहीं. मई की तपती गर्मी में टिन के ये डिब्बे तंदूर बन जाते हैं. वो भी बंगलुरु की उमर भरी गर्मी. जरा सोचिए इन मजदूरों पर क्या बीत रही होगी. कोई ताज्जुब नहीं कि ये मजदूर कमरों से बाहर निकलकर पतली तंग गलियों में सोते नजर आए.

“ऐसे कमरे में रहेंगे तो हम मर जाएंगे. कोरोना से नहीं लेकिन बीमार होकर मर जाएंगे.”
एक प्रवासी मजदूर

मजदूरों ने बताया कि न तो लौटने के लिए उनका रजिस्ट्रेशन हो रहा है और न ही हफ्तों से तनख्वाह मिली है. हालत ये है कि मजदूर पैदल घर जाने को मजदूर हैं. वो कहते हैं रास्ते में मर जाएंगो तो कोई बात नहीं, क्योंकि मरना तो यहां भी है. जरा सोचिए जिस सरकार ने इन मजदूरों को रोकने का फैसला कर लिया उसने ये तक नहीं सोचा कि इनके लिए तनिक सुविधाएं भी जुटा दी जाएं.

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