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MCD Exit Polls: दिल्ली पर केजरीवाल का फुल कंट्रोल, डेढ़ दशक बाद MCD से BJP बाहर

MCD Chunav Exit Poll नतीजों के मायने: काम न आया एकीकरण-परिसीमन?

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दिल्ली पर केजरीवाल का फुल कंट्रोल, एमसीडी चुनाव एग्जिट पोल नतीजे तो यही बता रहे हैं. डेढ़ दशक बाद केजरीवाल ने दिल्ली से बीजेपी का सफाया कर दिया है. केजरीवाल ने वादा किया था कि आप का झाड़ू दिल्ली से गंदगी बाहर कर देगा, लग रहा है कि दिल्ली का दिल इस वादे पर आया और गंदगी से पहले बीजेपी एमसीडी से बाहर हो गई. लेकिन ये नौबत आई क्यों? एग्जिट पोल नतीजों का मतलब क्या है

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क्या कहते हैं एग्जिट पोल के नतीजे?

इंडिया टुडे- एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक AAP को 149-171 सीटें मिल रही है, जबकि बीजेपी को 69-91 सीटें मिल रही हैं. वहीं, कांग्रेस को 3-7 और निर्दलीय को 5-9 सीटें मिल रही है.

ETG-TNN के मुताबिक AAP को 146-156 सीटें मिल रही है, जबकि बीजेपी को 84-94 सीटें मिल रही हैं. वहीं, कांग्रेस को 6-10 और निर्दलीय को 0 सीटें मिल रही है.

जन की बात के मुताबिक AAP को 159-175 सीटें मिल रही है, जबकि बीजेपी को 70-92 सीटें मिल रही हैं. वहीं, कांग्रेस को 4-7 सीटें मिल रही है.

करीब हर एग्जिट पोल के आंकड़ों में AAP को बढ़त दिखाई दे रही है. सिर्फ बढ़त ही नहीं पूर्ण बहुमत के साथ वो MCD पर काबिज होने जा रही है. 250 वार्डों वाली नगर निगम पर काबिज होने के लिए 126 सीटों की जरूरत है.

अब समझते हैं एमसीडी चुनाव के नतीजो का मतलब क्या है?

BJP पर हावी केजरीवाल की 'कचरा पॉलिटिक्स'

एग्जिट पोल के आए नतीजों ने ये साफ कर दिया है कि दिल्ली को केजरीवाल की 'कचरा पॉलिटिक्स' पसंद आई है. क्योंकि साफ सफाई के मुद्दे पर AAP हमेशा बीजेपी को घेरती रही है. दिल्ली वासियों से हमेशा अपील करती रही है कि अगर MCD में भी AAP की सरकार बनती है तो सबसे पहले वो कचरा निवारण का काम करेगी. अंतिम समय में केजरीवाल का RWAs के लिए बंपर ऑफर भी काम आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर MCD में AAP की सरकार बनती है तो RWAs को मिनी पार्षद का दर्जा देंगे, जो लोगों की समस्याओं का निवारण करेंगे.

केजरीवाल के खिलाफ एक बात जाती है कि उनका केंद्र से झगड़ा चलता है और इसलिए उनके शासन वाले इलाके में काम नहीं होता है..फिर दिल्ली की जनता ने केंद्र में बैठी बीजेपी को क्यों हटाया? शायद जवाब ये है कि एमसीडी में काम नहीं होता,,,ये बात दिल्ली के मन में बैठी हुई है. ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी आती है तो ज्यादा से ज्यादा वही होगा जो पहले से हो रहा है..लेकिन शायद जनता एक बार एमसीडी में केजीरवाल को मौका देकर देखना चाह रही है.

जब से केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में हैं, शिक्षा और अस्पताल दो ऐसी चीजें जिनके बारे में वो दावा करते हैं कि उन्होंने कमाल का काम किया है. अब यही चीजें एमसीडी के पास भी हैं...एमसीडी के स्कूल हैं, एमसीडी के अस्पताल हैं. जाहिर है दिल्ली की जनता ने केजरीवाल के स्कूल और अस्पताल की तुलना एमसीडी के स्कूल और अस्पतालों से की है. अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते हैं तो फिर ये कि दिल्ली को केजरीवाल का स्कूल और अस्पताल मॉडल बेहतर लग रहा है.

बीजेपी के लिए ये कितनी बड़ी हार है?

बहुत बड़ी. क्योंकि बीजेपी ने इसे नाक का सवाल बना लिया था. है तो निगम का चुनाव लेकिन मामला राजधानी का है. उस दिल्ली का जहां बीजपी के बड़े नेता ही नहीं, खुद मोदी खुद बैठते हैं...दिल्ली में हार बीजेपी के लिए हमेशा एक शर्मनाक स्थिति रही है.

दिल्ली नगर निगम 2 करोड़ लोगों के लिए काम करता है. MCD का बजट 2022-23 के लिए 15,276 करोड़ रुपए था. MCD की ताकत झुग्गी झोपड़ियों, गलियों से लेकर बड़ी-बड़ी इमारतों तक एक जैसी है. नगर निगम के पास अस्पताल, बाजार से संबंधित अधिकार, पार्क, पार्किंग स्थल, प्राथमिक स्कूलों का संचालन, ड्रेनेज सिस्टम का प्रबंधन, टैक्स कलेक्शन, शवदाह गृहों के संचालन से संबंधित अधिकार हैं. स्ट्रीट लाइटिंग, रोड निर्माण से लेकर लोगों के परिवार रजिस्टर से संबंधित सारे अधिकार एमसीडी के पास हैं.एमसीडी के पास सारी स्थानीय ताकतें हैं. इन्हीं ताकतों की वजह से MCD पर काबिज होने खास हो जाता है.

यही कारण है कि बीजेपी ने इन चुनावों से पहले निगम का एकीकरण किया और परिसीमन भी...आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि ये सब चुनाव टालने के लिए किया जा रहा है. याद कीजिए तब आम आदमी पार्टी ने पंजाब में बड़ी जीत हासिल की थी और उसके बाद एमसीडी चुनाव होने थे.

दिल्ली नगर निगम पहले तीन हिस्सों (पूर्वी नगर निगम, उत्तरी नगर निगम और दक्षिणी नगर निगम) में बंटी होती थी. लेकिन, इस साल के शुरुआत में तीनों नगर निगमों का विलय कर एक निगम कर दिया गया था. जिसकी वजह से अप्रैल में चुनाव स्थगित करने पड़े थे. एकीकरण के बाद अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा. पहले के मुकाबले इनकी शक्तियां ज्यादा होंगी. अब एक ही मेयर पूरे दिल्ली की जिम्मेदारी संभालेगा.

यही नहीं, परिसीमन के साथ-साथ वार्डों की संख्या भी कम कर दी गई थी. जानकारों का मानना था कि परसीमन और एकीकरण से बीजेपी बाइलेंस बनाना चाहती थी. जाहिर है परिसीमन से लेकर एकीकरण तक बीजेपी के काम नहीं आया.

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