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Kanhaiya Kumar: कांग्रेस से टिकट लेकिन कन्हैया की ताकत, कमजोरी और खतरे क्या?

Kanhaiya Kumar: 2019 में उन्होंने CPI के टिकट पर बिहार के बेगूसराय से गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे.

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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के लिए कांग्रेस (Congress) ने दिल्ली की नॉर्थ-ईस्ट सीट से कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को मैदान में उतारा है. उनका सीधा मुकाबला बीजेपी सांसद मनोज तिवारी से होगा. पहले कन्हैया के बिहार से चुनाव लड़ने की चर्चा थी लेकिन बेगूसराय सीट महागठबंधन के तहत CPI को मिलने के बाद, उनके चुनाव लड़ने पर सस्पेंस बरकरार था. हालांकि पार्टी ने उन्हें दिल्ली से टिकट देकर सबको चौंका दिया है.

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चलिए आपको बताते हैं कि लोकसभा के चुनावी रण में कन्हैया कुमार की ताकत और कमजोरी क्या है? एक युवा नेता के रूप में उनके सामने कौन से अवसर हैं? इसके साथ ही बताएंगे कि सांसद बनने की दौड़ में क्या-क्या खतरा है? पढ़िए कन्हैया कुमार का पूरा SWOT एनालिसिस.

कन्हैया की ताकत

युवा नेता और मुखर वक्ता: स्टूडेंट पॉलिटिक्स से मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में आए कन्हैया कुमार की पहचान एक तेज-तर्रार युवा नेता के रूप में है जो लेफ्ट की विचारधारा से प्रभावित हुए. उनकी पहचान एक मुखर वक्ता के रूप में भी है जो किसी भी मुद्दे पर तर्क और तथ्यों के साथ अपनी बात रखते हैं. वो अपने विरोधियों को करारा जवाब देने और हमलावर तेवर के लिए जाने जाते हैं.

टीवी चैनलों पर डिबेट में उन्होंने धारदार तर्कों से अलग पहचान बना ली है. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ डिबेट का उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर आज भी खूब देखा जाता है.

कन्हैया कुमार 28 सितंबर 2021 को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. फिलहाल वो कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI के प्रभारी भी हैं.

कांग्रेस में शामिल होते समय कन्हैया ने कहा था, "मैं कांग्रेस में शामिल हो रहा हूं क्योंकि मुझे दृढ़ता से लगता है कि अगर देश को बचाना है तो कांग्रेस को जीवित रहना होगा."

कन्हैया कुमार को राहुल गांधी का भी करीबी माना जाता है. 2022 भारत जोड़ो यात्रा और 2024 भारत जोड़ो न्याय यात्रा में उनकी सक्रिय भूमिका रही. उन्होंने कांग्रेस सांसद के साथ दौरा किया.

क्विंट हिंदी से बातचीत में बेगूसराय के सीपीआई नेता और कन्हैया के साथ काम कर चुके शम्भू रेगर बताते हैं, "कन्हैया जी की राजनीति- छात्र, नौजवान और महिला सुरक्षा से जुड़ी है. मतलब कि छात्रों के लिए समान शिक्षा प्रणाली लागू हो. युवाओं को रोजगार मिले, महिला सुरक्षा हो और आपस में भाई-चारा हो. इसी एजेंडा पर वो काम कर रहे हैं."

मिडिल क्लास चेहरा: कन्हैया की पहचान एक मिडिल क्लास युवा के रूप में भी है. वो बेगूसराय के एक किसान परिवार से आते हैं. उनकी मां आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं. उनके भाषणों में गरीबों, किसानों, मजदूरों, युवाओं और महिलाओं का जिक्र अक्सर सुनने को मिल जाएगा.

2019 में चुनाव आयोग को दी गई जानकारी में उन्होंने कहा था कि वो बेरोजगार और स्वतंत्र लेखक हैं. उन्होंने आयोग को बताया था कि उनके पास खुद की कोई जमीन और घर नहीं है, बीहट में विरासत में मिली 1.5 डिसमिल की गैर कृषि भूमि है. कन्हैया ने तब बताया था कि उनके एक खाते में 50 रुपये हैं जबकि दूसरे में 1,63,648 रुपये हैं. साथ ही उन्होंने बताया था कि म्यूच्युअल फंड में 1,70,150 रुपये इन्वेस्ट किए हैं.

आयोग को दिए हलफनामे में कन्हैया ने बताया था कि साल 2017-18 में उनकी कुल आय 6,30,360 रुपये थी जबकि 2018-19 में ये घटकर 2,28,290 रुपये हो गई थी.

JNU फैक्टर: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से कन्हैया ने पीएचडी की है. वो साल 2015 में छात्र संघ अध्यक्ष भी चुने गए थे. तब वो पहली बार सुर्खियों में आए थे. उनकी पहचान एक पढ़े-लिखे नेता के रूप में भी है. इसके साथ ही उन्हें छात्रों और युवाओं का समर्थन भी प्राप्त है. जिसे उनके पक्ष में देखा जा रहा है.

हालांकि, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के प्रोफेसर हिमांशु रॉय की राय अलग है. क्विंट हिंदी से बातचीत में वो कहते हैं,

"JNU के अंदर जो छात्रों की असल समस्याएं थीं. उसको उठाने और उसका समाधान करने की जगह वो इससे अलग हटकर फिलिस्तीन, हमास और इजरायल के मुद्दे उठाते थे. छात्र संघ के अध्यक्ष होने के नाते उनका फोकस जिन मुख्य मुद्दों पर होना चाहिए था, उसके बजाय वो सिर्फ गोल-मोल बातें करते थे. यही JNU में उनकी राजनीति रही है."

कन्हैया की कमजोरी

अपना जनाधार नहीं: अगर कन्हैया कुमार की कमजोरी की बात करें तो उनके पास राजनीतिक अनुभव ज्यादा नहीं है. जानकारों की मानें तो कन्हैया कुमार के पास अपना कोई जनाधार नहीं है.

2019 के चुनाव में कन्हैया को लेफ्ट ने मोदी सरकार के फायरब्रांड मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ बेगूसराय सीट से उम्मीदवार बनाया था. हालांकि, तब वह हार गए थे. कभी लेफ्ट का चेहरा रहे कन्हैया कुमार को अब कांग्रेस ने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया है लेकिन इस सीट पर पिछले दो बार से बीजेपी का कब्जा है.

मनोज तिवारी ने 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी शीला दीक्षित और 2014 में AAP प्रत्याशी प्रोफेसर आनंद कुमार को हराया था.

धार्मिक मुद्दों पर तटस्थ: कन्हैया कुमार धार्मिक मुद्दों पर तटस्थ दिखे हैं. चाहे वो राम मंदिर निर्माण हो या फिर कोई अन्य धार्मिक मुद्दा. कन्हैया ने कभी भी खुलकर न तो धार्मिक मुद्दों का समर्थन किया है और न ही उसका विरोध किया है.

जनवरी में हुई राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर बयान देते हुए उन्होंने कहा था,

"धर्म का मतलब होता है धारण करना. धर्म का मतलब होता है प्रेम. धर्म का मतलब होता है सत्य. धर्म का मतलब होता है न्याय. धर्म का मतलब होता है समानता. धर्म का मतलब होता है कि आपके कर्म में ही ईश्वर वास करते हैं. हमारे लिए धर्म का मतलब है लोगों से प्रेम, मोहब्बत, न्याय, बराबरी, खुशहाली और शांति."

साल 2022 में कन्हैया कुमार 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान केरल के त्रिशूर में एक मंदिर के दर्शन करने धोती पहनकर पहुंचे थे. इसके बाद सोशल मीडिया पर वो जबरदस्त ट्रोल हुए थे. तब लोगों ने उनके मंदिर जाने पर पूछा कि "जो कभी ब्राह्मणवाद और मनुवाद से आजादी चाहते थे आज वह खुद धार्मिक हो गए हैं."

पैराशूट उम्मीदवार: नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में कन्हैया कुमार को पैराशूट उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है. न तो दिल्ली के रहने वाले हैं और न ही उन्होंने दिल्ली कांग्रेस संगठन में काम किया है. JNU में पढ़ाई के अलावा कन्हैया का दिल्ली से कोई और जुड़ाव नहीं है. ऐसे में जनता के बीच एक मजबूत प्रत्याशी के रूप में खुद को पेश करना उनके लिए बड़ी चुनौती है.

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कन्हैया के पास अवसर

राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने का मौका: कन्हैया कुमार के पास एक बार फिर से खुद को साबित और स्थापित करने का मौका है. जानकारों की मानें तो कन्हैया नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली सीट पर मनोज तिवारी को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं,

"कन्हैया को उस पार्टी का सपोर्ट मिल रहा है, जिसका दिल्ली विधानसभा और एमसीडी पर कब्जा है. AAP का एक अच्छा नेटवर्क है. ये सारी चीजें कन्हैया के पक्ष में हैं. कन्हैया के लिए ये गोल्डन चांस है."

बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव में भले ही कन्हैया को हार का समाना करना पड़ा था लेकिन उन्हें RJD प्रत्याशी से ज्यादा वोट मिले थे और वो दूसरे नंबर पर रहे थे. 2014 चुनाव में तीसरे नंबर पर रहने वाली CPI को 2019 में कन्हैया दूसरे नंबर पर लेकर आए थे.

दिल्ली नॉर्थ-ईस्ट सीट से टिकट मिलने के बाद कन्हैया कुमार ने कहा,

"इससे देश में एक मैसेज जाएगा कि हम मजबूती से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. मैं पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा. देश के हर के वर्ग के न्याय के लिए काम करेंगे."
कन्हैया कुमार, कांग्रेस उम्मीदवार

कांग्रेस संगठन में बड़ी जिम्मेदारी: अगर कन्हैया चुनाव जीतते हैं तो कांग्रेस के अंदर भी उनकी पकड़ और मजबूत बनेगी. इसके साथ ही लोकसभा में कांग्रेस को एक और मुखर वक्ता मिलेगा जो लोगों की बात पुरजोर तरीके से उठा सकता है.

कन्हैया को राहुल की टीम का हिस्सा माना जाता है. ऐसे में चुनाव में जीत के बाद उन्हें कांग्रेस संगठन में भी बड़ा पद मिल सकता है. अगर ऐसा होता है तो ये कन्हैया की आगे की राजनीति के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है.

मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने का मौका: कन्हैया के पास इस चुनाव में अपनी पिछली गलती को सुधारने का मौका है. नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली की स्थानीय मुद्दों से भले ही वो अपरिचित हों लेकिन एक नेता के रूप में जनता उन्हें जानती है. उनके पास दिल्ली की जनता को कांग्रेस से जोड़ने का अच्छा मौका है. एक पढ़े-लिखे नेता के तौर पर वो युवाओं और साक्षर मतदाताओं की पहली पसंद बन सकते हैं. इसके साथ ही गैर-सेलिब्रिटी वाली छवि के जरिए वो गरीब और मिडिल क्लास से आसानी से कनेक्ट कर सकते हैं.

एंटी इनकंबेंसी: मनोज तिवारी के खिलाफ इस बार एंटी इनकंबेंसी फैक्टर हावी है. वो पिछले 10 सालों से सांसद हैं. ऐसे में कन्हैया एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर को कैश कराने की कोशिश कर सकते हैं.

कांग्रेस को AAP का समर्थन: इंडिया गठबंधन के तहत दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को अपना समर्थन दिया है. ऐसे में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के समर्थन से एकमुश्त दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोट की आस है. अगर पूर्वांचली वोट छिटकता है तो पार्टी के यहां से जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी. दूसरी तरफ नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा के अंदर 10 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से 7 पर AAP का कब्जा है. कन्हैया को AAP के कैडर का फायदा मिल सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं,

"कन्हैया अगर दिल्ली से चुनाव जीतते हैं तो वो पूरे देश के लिए एक बड़ा मैसेज होगा. कांग्रेस के लिए ये सीट इसलिए मुफीद हो गई है क्योंकि कांग्रेस अकेले नहीं है. उसके साथ AAP का एक वॉलंटियर प्रूफ है और AAP का सोशल सिक्योरिटी प्रोग्राम का सपोर्ट है."

लेफ्ट वाली छवि: कन्हैया कुमार की सियासत का आधार लेफ्ट की लाइन रही है. कन्हैया के भाषणों में गरीब-मजदूर-दलित-शोषित-वंचित की बात अधिक रहती है. कांग्रेस भी देश के गरीब, किसानों, युवाओं और महिलाओं की बात कर रही है. इसके लिए कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में 'पांच न्याय' का भी ऐलान किया है.

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कन्हैया के सामने खतरा

टुकड़े-टुकड़ें गैंग वाला आरोप: कन्हैया पर टुकड़े-टुकड़े गैंग में शामिल होने का आरोप लगता रहा है. बता दें कि 9 फरवरी 2016 को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में अफजल गुरु की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगे थे. इस मामले में तत्कालीन JNU स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष कन्‍हैया कुमार पर भी देश विरोधी नारे लगाने के आरोप लगे थे. जिसके बाद उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया था. इस मामले में कन्हैया बाद में जमानत पर छूट गए लेकिन उन्हें इससे पहले 23 दिन जेल रहना पड़ा था. कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह का केस अब भी अदालत में है.

क्विंट हिंदी से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, "टुकड़े-टुकड़े गैंग वाला मामला बहुत पुराना हो गया है. टुकड़े-टुकड़े गैंग, हिंदू-मुस्लिम और राम मंदिर का मुद्दा सिर्फ कन्हैया के निर्वाचन क्षेत्र में नहीं है. बीजेपी इसे पूरे देश में उठाती रही है. तमाम हिंदू-मुस्लिम मुद्दों के बावजूद AAP ने विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पटखनी दी है. AAP ने अपने सोशल वेलफेयर स्कीम के दम पर जीत दर्ज की है."

कन्हैया के बहाने कांग्रेस पर निशाना: नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से बीजेपी उम्मीदवार मनोज तिवारी ने कन्हैया पर तंज करते हुए कहा है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग विचारों वाले कन्हैया कुमार 40 दिन के भ्रमण पर दिल्ली आए हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा,

"कांग्रेस की मानसिकता ने आश्चर्यचकित कर दिया है. क्या कांग्रेस पार्टी में देश की सेना और संस्कृति का सम्मान करने वाला कोई नहीं है, जिसे वे टिकट दे सकें."

बता दें कि बीजेपी अक्सर कांग्रेस पर हिंदू या सनातनी विरोधी होने का आरोप लगाती रही है. ऐसे में बीजेपी कन्हैया को इन मुद्दों पर घेर रही है. राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का न्योता कांग्रेस ने ये कहते हुए अस्वीकार किया था कि धर्म एक निजी मामला है लेकिन RSS/बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. कन्हैया ने भी इसे बीजेपी और आरएसएस का कार्यक्रम बताया था.

बीजेपी की मजबूती कन्हैया के लिए खतरा: नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में आंकड़े मनोज तिवारी के पक्ष हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोटों से हराया था. उन्होंने 53.90 फीसदी वोट मिले थे जबकि शीला दीक्षित के खाते में सिर्फ 28.85 फीसदी वोट ही आए थे. अगर कांग्रेस और AAP उम्मीदवार के वोट्स को भी मिला दें तो भी मनोज तिवारी बहुत आगे थे.

2014 में भी मनोज तिवारी ने बड़ी जीत हासिल की थी. तब उन्होंने AAP प्रत्याशी प्रोफेसर आनंद कुमार को करीब 1.50 लाख वोटों से हराया था.

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मनोज तिवारी के सामने कितनी बड़ी चुनौती?

पूर्वांचल फैक्टर: दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से सिर्फ नॉर्थ ईस्ट सीट पर मौजूदा सांसद मनोज तिवारी अपना टिकट बचाने में कामयाब रहे. बीजेपी ने 6 सांसदों के टिकट काट दिए. बीजेपी ने दो बार के सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है तो उसके पीछे उनका पूर्वांचली होना बड़ी वजह माना जा रहा है.

कांग्रेस की तरफ से कन्हैया को चुनावी मैदान में उतारना काउंटर प्लान के रूप में देखा जा रहा है. मनोज तिवारी जहां वाराणसी के हैं तो वहीं कन्हैया कुमार बिहार से आते हैं.

कांग्रेस की रणनीति कन्हैया के सहारे मनोज तिवारी के पूर्वांचली वोटबैंक में सेंध लगाने के साथ ही दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यक और मजदूर वर्ग को साथ लाकर वोटों का नया समीकरण गढ़ने की भी है.

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