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दिल्ली: AAP के सामने एंटी इनकंबेंसी, भ्रष्टाचार सहित चुनौतियां तमाम, लेकिन वोटिंग पैटर्न में छिपा जीत का राज

Delhi Elections: आम आदमी पार्टी ने अब तक 31 उम्मीदवारों का ऐलान किया है और 20 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे हैं.

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देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ती ठंड के बीच विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) की सरगर्मियां तेज हो गई हैं. आम आदमी पार्टी (AAP) ने अब तक अपने प्रत्याशियों की दो लिस्ट जारी की है, जिसमें 31 उम्मीदवारों के नाम हैं. विधानसभा चुनाव में AAP अकेले उतरेगी, इसका ऐलान अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने किया है. बता दें इससे पहले INDIA गठबंधन के तहत AAP ने कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ा था. हालांकि, INDIA ब्लॉक एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

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AAP उम्मीदवारों की लिस्ट की बड़ी बातें

21 नवंबर को AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 11 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी की थी. पार्टी ने मौजूदा पांच विधायकों के टिकट काट दिए थे. वहीं तीन सीटों पर पिछली बार चुनाव हार चुके प्रत्याशियों पर AAP ने दोबारा भरोसा जताया है. बता दें कि पिछली बार इन 11 सीटों में से 6 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.

बीजेपी से आए तीन नेताओं ब्रह्म सिंह तंवर, अनिल झा और बीबी त्यागी को AAP ने अपना उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस से आए तीन नेताओं चौधरी जुबैर अहमद, वीर सिंह धिंगान और सुमेश शौकीन को भी पार्टी ने टिकट दिया है.

वहीं 9 दिसंबर को पार्टी ने 20 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में 15 मौजूदा विधायकों का टिकट कटा है. वहीं तीन विधायकों की सीटें बदली गई है.

इस तरह से आम आदमी पार्टी ने अब तक घोषित 31 उम्मीदवारों में से 20 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है.

उम्मीदवारों के ऐलान से पहले शाहदरा विधायक राम निवास गोयल और तिमारपुर विधायक दिलीप पांडे ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था. शहादरा से पार्टी ने पूर्व बीजेपी नेता जितेंद्र सिंह शंटी को टिकट दिया है. वहीं तिमारपुर से पार्टी ने सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू पर भरोसा जताया है. बिट्टू हाल ही में बीजेपी छोड़कर AAP में शामिल हुए हैं. वो तिमारपुर से विधायक भी रह चुके हैं. इसके अलावा AAP ने पटेल नगर सीट पर पूर्व बीजेपी नेता प्रवेश रत्न पर दांव लगाया है.

टिकट कटने के बाद इस्तीफे का दौर भी शुरू हो गया है. सीलमपुर विधायक अब्दुल रहमान पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. AAP ने सीलमपुर से चौधरी जुबेर अहमद को प्रत्याशी बनाया है, जो पूर्व कांग्रेस विधायक चौधरी मतीन अहमद के बेटे हैं

अब्दुल रहमान ने अपने इस्तीफे को लेकर पार्टी को चिट्ठी लिखी है. अपनी चिट्ठी में रहमान ने आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि "...बीते वर्षों में आम आदमी पार्टी ने बार-बार यह साबित किया है कि वह केवल वोट बैंक की राजनीति करती है और जब किसी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की बात आती है, तो पार्टी चुप्पी साध लेती है."

सिसोदिया की सीट क्यों बदली गई?

पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पटपड़गंज की जगह जंगपुरा से चुनाव लड़ेंगे. पार्टी ने अवध ओझा को पटपड़गंज से टिकट दिया है. ओझा हाल ही में AAP में शामिल हुए हैं.

वरिष्ठ पत्रकार आरती आर जेरथ कहती हैं, "मनीष सिसोदिया के पटपड़गंज छोड़ने से एक बहुत बड़ा संदेश गया है. MCD चुनाव में पार्टी इस क्षेत्र में जीत नहीं पाई थी. दूसरे- सिसोदिया के जेल जाने का भी असर हो सकता है, जिसकी वजह से पार्टी ने उनकी सीट बदली है."

2022 में हुए MCD चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र में AAP को हार का सामना करना पड़ा था. पटपड़गंज की 4 में से सिर्फ 1 वार्ड में AAP को जीत मिली थी, जबकि तीन वार्डों में 'कमल' खिला था.

2020 विधानसभा चुनाव में पटपड़गंज सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. मनीष सिसोदिया मात्रा 3207 वोटों से जीते थे. सिसोदिया को जहां 70,163 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी के रवींद्र सिंह नेगी को 66 हजार 956 वोट मिले थे. जबकि, 2015 में सिसोदिया ने इस सीट पर 28,761 वोटों से जीत दर्ज की थी.

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ तिवारी कहते हैं, "जेल जाने की वजह से पिछले डेढ़ साल से मनीष सिसोदिया अपने क्षेत्र में नहीं थे. एक रणनीति के तहत पार्टी ने ये फैसला लिया होगा. इस बार वे जिस सीट से चुनाव लड़ेंगे, वहां पिछली बार जीत का मार्जिन 16 हजार था. जबकि उनके खुद के निर्वाचन क्षेत्र में मार्जिन 3 हजार था."

इसके साथ ही वो कहते हैं,

"सिसोदिया जैसे बड़े नेता के पास अपने क्षेत्र में प्रचार के लिए बहुत ज्यादा समय नहीं है. उन्हें पूरी दिल्ली में पार्टी के लिए प्रचार करना है. ऐसे में पार्टी ने एक ऐसी सीट चुनी है, जहां से जीतना आसान हो सकता है."

राखी बिरला को मादीपुर से टिकट मिला है. पिछली बार उन्होंने मंगोलपुरी से चुनाव लड़ा था और 30 हजार वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. वहीं जंगपुरा से मौजूदा विधायक प्रवीण कुमार इस बार जनकपुरी से चुनाव लड़ेंगे. पिछली बार उन्होंने 16 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी.

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AAP ने मौजूदा विधायकों के टिकट क्यों काटे?

आम आदमी पार्टी की नजर लगातार चौथी बार दिल्ली की सत्ता में काबिज होने पर है. लेकिन इस बार पार्टी को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. पिछले 5 साल में अरविंद केजरीवाल सहित पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. इसके अलावा एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी है, जिसे पार्टी नजरअंदाज नहीं कर सकती.

जानकारों की मानें तो मौजूदा विधायकों के टिकट कटने के पीछे यही सबसे बड़ी वजह है. नए प्रत्याशियों को लाकर पार्टी इस फैक्टर को कम करने की कोशिश में है.

चांदनी चौक से विधायक प्रह्लाद सिंह साहनी के बेटे पुरंदीप सिंह साहनी और कृष्णा नगर से विधायक एस के बग्गा के बेटे विकास बग्गा को टिकट दिया गया है.

मटियाला से विधायक गुलाब सिंह और तिमारपुर से विधायक दिलीप पांडे को भी इस बार टिकट नहीं मिला है. दोनों नेता पार्टी में संगठनात्मक जिम्मेदारियां निभा चुके हैं. 2022 गुजरात विधानसभा चुनाव में गुलाब सिंह को पार्टी ने राज्य प्रभारी और चुनाव अभियान प्रभारी बनाया था. वहीं दिलीप पांडे पार्टी के दिल्ली संयोजक और दिल्ली नगर निगम के प्रभारी रह चुके थे.

वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ तिवारी कहते हैं, "एंटी इनकंबेंसी के तीन लेवल होते हैं. पहला- लीडर के खिलाफ यानी जो मुख्यमंत्री है. दूसरा- सरकार और उसके मंत्री के खिलाफ और तीसरा विधायकों के खिलाफ. MLA के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी काफी स्वाभाविक बात है. मौजूदा विधायकों की जगह नए चेहरों को मौका देकर पार्टी जनता के बीच एक संदेश देने की कोशिश करती है. इसमें उन्हें सफलता मिलने की उम्मीद रहती है."

बता दें कि 2020 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने करीब 30 फीसदी यानी 20 विधायकों के टिकट काटे थे.

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चुनौतियां और संभावनाएं

एंटी इनकंबेंसी के अलावा आम आदमी पार्टी के लिए भ्रष्टाचार के आरोपों से निपटना भी एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है. AAP सरकार पर चर्चित दिल्ली शराब नीति मामले से लेकर जल बोर्ड, स्कूल क्साल रूम, मुख्यमंत्री आवास नवीनीकरण मामले में घोटाले के आरोप लगे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और सांसद संजय सिंह भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जा चुके हैं. सितंबर में AAP विधायक अमानतुल्लाह खान को ED ने मनी लॉन्डिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह गिरफ्तारी दिल्ली वक्फ बोर्ड में नियुक्तियों और इसकी संपत्तियों को पट्टे पर देने में कथित अनियमितताओं के संबंध में की गई थी.

इस साल की शुरुआत में दिल्ली के उपराज्यपाल ने AAP सरकार की ओर से चलाए जा रहे मोहल्ला क्लिनिक में फर्जीवाड़े के आरोपों की CBI जांच के आदेश दिए थे.

आरती जेरथ कहती हैं, "भ्रष्टाचार के आरोपों और पिछले पांच सालों में सरकार-एलजी और सरकार-बीजेपी के बीच जो खींचतान हमें देखने को मिली है, उसकी वजह से आम आदमी पार्टी को झटका लगा है. दिल्ली की हालत खराब हो गई है. जनता भी इससे परेशान हो गई है. ऐसे में जनता किसे चुनेगी, ये कहना मुश्किल है."

अमिताभ तिवारी कहते हैं, "हर चुनाव में आपको एक नैरेटिव लेकर जनता के बीच जाना होता है. पहले चुनाव में 'एक सवाल और एंटी करप्शन' का नैरेटिव था. दूसरे चुनाव में 'लगे रहो केजरीवाल' का नारा दिया गया. अबकी बार नारा है- 'फिर लाएंगे केजरीवाल', लेकिन क्यों और कैसे? पार्टी अपने इस नारे को ठीक से एक्सप्लेन नहीं पा रही है."

इसके साथ ही वे कहते हैं,

"अगर AAP के सोशल मीडिया को देखें तो वहां सिर्फ अटैक ही अटैक चल रहा है. लॉ एंड ऑर्डर को लेकर अमित शाह पर निशाना साध रहे हैं. पार्टी की ओर से पॉजिटिव कैंपन नहीं दिख रहा है. फ्री बिजली-पानी तो सरकार दे ही रही है, लेकिन उसमें नया क्या है?"
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हालांकि, आरती जेरथ कहती हैं,"आम आदमी पार्टी के पक्ष में दो बातें है. पहला- कांग्रेस दिल्ली में खत्म हो चुकी है. कांग्रेस का पूरा बेस AAP में शिफ्ट हो गया है. MCD चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रति मुस्लिम वोटर्स की नाराजगी देखने को मिली थी, जिसकी वजह से कुछ वोट कांग्रेस में वापस शिफ्ट हुए. इस वजह से MCD चुनाव में AAP को उतनी बहुमत नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी. लेकिन विधानसभा चुनाव में मुकाबला बाइपोलर (द्विध्रुवीय) यानी आम आदमी पार्टी बनाम बीजेपी का हो गया है. ऐसे में अल्पसंख्यक वोट AAP की तरफ फिर से एकजुट हो सकते हैं."

इसके साथ ही वे कहती हैं, "केजरीवाल के पक्ष में सबसे पड़ी बात है कि उनके मुकाबले में दूसरी तरफ से कोई नहीं है."

क्या बदलेगा वोटिंग पैटर्न?

नवंबर में द क्विंट में छपी एक लेख में अमिताभ तिवारी ने दिल्ली में वोटिंग पैटर्न पर बात करते हुए कहा था कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में दिल्ली की जनता अलग-अलग तरीके से वोट करती है. जो अपने-आप में एक अनूठा मामला है.

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी सातों लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रही. पार्टी का वोट शेयर क्रमश: 46% और 57% रहा. जबकि एक साल के भीतर 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में दिल्ली के मतदाताओं ने AAP को प्रचंड बहुमत दिया, बीजेपी दहाई का आंकड़ा भी छू नहीं पाई. पार्टी का वोट शेयर क्रमश: 54-54 फीसदी रहा.

2024 लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने 54% वोट शेयर के साथ सातों सीट पर कब्जा जमाया है. अब सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न बदलेगा?

अमिताभ तिवारी कहते हैं, "विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट करने वाले 30% वोटर्स, लोकसभा चुनाव में आधे-आधे बीजेपी और कांग्रेस में बंट जाते हैं. इसमें से 15% एंटी बीजेपी वोट है. लोगों को अभी लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस, बीजेपी को हरा सकती है. और 15% स्विंग वोटर हैं, जो कभी बीजेपी और कभी AAP को वोट करते हैं."

वे आगे कहते हैं, "पिछले चुनावों के ट्रेंड के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस को मिलने वाला 15-15% वोट विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो जाता है. कांग्रेस वाला वोट शिफ्ट होना ज्यादा आसान है क्योंकि ये एंटी बीजेपी और कॉम्प्लिमेंट्री वोट है."

अमिताभ तिवारी कहते हैं, "अगर बीजेपी को विधानसभा चुनाव जीतना है तो उसे 15% स्विंग वोटर्स को AAP में शिफ्ट होने से रोकना होगा. इस 15 फीसदी में पूर्वांचली, पंजाबी खत्री, बनिया, दलित और गरीब शामिल हैं."

बता दें कि 2020 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की 70 विधानसभा सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की थी. वहीं बीजेपी मात्र 8 सीट ही जीत पाई थी. बीजेपी का वोट शेयर करीब 39% था.

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