बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों में सीट शेयरिंग को लेकर मंथन का दौर जारी है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) सहित अन्य सहयोगी दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ये अभी तक फाइनल नहीं हो पाया है.
इस बीच शनिवार, 6 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबको चौंकाते हुए बक्सर में आयोजित एनडीए कार्यकर्ता संवाद कार्यक्रम के दौरान जिले की राजपुर विधानसभा सीट से जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर पूर्व मंत्री संतोष निराला का नाम घोषित कर दिया. कार्यक्रम में बीजेपी नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी मौजूद थे.
संतोष निराला की ओर इशारा करते हुए सीएम नीतीश ने कहा, "अब कुछ ही दिनों में चुनाव होने वाले हैं. ध्यान दीजिएगा. इस बार आप जिताइएगा न इनको? फिर जिताइएगा न?"
नीतीश ने एनडीए में सीट शेयरिंग के फैसले से पहले ही ये ऐलान किया.
कौन हैं संतोष कुमार निराला?
दलित (रविदास) समुदाय से आने वाले 51 वर्षीय निराला ने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत 1990 के दशक के मध्य में की थी. दो बार उन्होंने बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद वे जेडीयू में शामिल हो गए. 2010 में जेडीयू के टिकट पर राजपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2015 में जब आरजेडी-जेडीयू गठबंधन बनी तब भी वो इसी सीट से लड़े और जीतने में कामयाब रहे.
निराला बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं. 2015 से 2017 के बीच उन्होंने एससी-एसटी विभाग संभाला और 2017 से 2020 के बीच उन्हें परिवहन विभाग दिया गया था.
हालांकि, 2020 विधानसभा चुनाव में निराला जीत की हैट्रिक लगाने से चूक गए. बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए विश्वनाथ राम ने उन्हें 21,204 वोटों से हराया.
जब हमने बिना सीट शेयरिंग उम्मीदवार के ऐलान को लेकर जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार से बात की तो उन्होंने कहा,
"सीएम साहब एनडीए के सर्वसम्मत नेता हैं और उन्होंने घोषणा की है. एनडीए के सहयोगियों में कहीं कोई परेशानी नहीं है. राजपुर सीट से संतोष निराला पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं."
वहीं बिहार बीजेपी प्रवक्ता कुंतल कृष्णा कहते हैं, "उनका (संतोष निराला) एक राजनीतिक इतिहास रहा है. वे बहुत अच्छे से चुनाव जीते हैं और अंतिम चुनाव वे बहुत कम वोटों से हारे थे. जनता के मन में उनके लिए कोई नाराजगी नहीं है. कभी-कभी कुछ ऐसी बातें हो जाती है."
बिहार में नीतीश कुमार ही 'बिग ब्रदर'!
नीरज कुमार कहते हैं, "कुछ ऐसे सीट होते ही हैं जिसके बारे में सब लोग जानते हैं कि वहां क्या होना है. चूकि वे (नीतीश कुमार) एनडीए के लीडर हैं, सब पार्टियों को उनपर विश्वास है. इसका कोई राजनीतिक मतलब न निकाला जाए."
हालांकि बीजेपी के कुंतल कृष्णा नीतीश कुमार को गार्जियन जरूर मानते हैं लेकिन मिलकर फैसले की बात भी कहते हैं. कुंतल कृष्णा कहते हैं, "ये एनडीए का साझा चुनाव है. सीएम हमारे गार्जियन हैं, अगर वो चाहते हैं कि कोई किसी सीट से चुनाव लड़े तो उसको ध्यान में रखा जाएगा. लेकिन अंततः एक सामूहिक निर्णय लिया जाना है."
सीट शेयरिंग तय होने से पहले एकतरफा तरीके से उम्मीदवार के ऐलान के सवाल पर वे कहते हैं,
"ये कोई एकतरफा बात नहीं है. नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री और हमारे सबसे बड़े नेता हैं. तो उन्होंने ये बात सोच समझ कर ही कही होगी. बात हो रखी होगी. राजनीति में बहुत सी चीजें जनता के सामने नहीं आती है. और एक सामूहिक निर्णय लिया जाना है. आधिकारिक फैसला होना बाकी है."
कुंतल कृष्णा आगे कहते हैं, "नीतीश कुमार जी ने जब कह दिया है तो जाहिर है कि एक विचारणीय बिंदु है. और जिसके नाम की उन्होंने घोषणा की है, ऐसा तो नहीं है कि वे बिल्कुल नौसिखिए हैं, जिसको कोई नहीं जानता. वे पूर्व मंत्री हैं, वहां (राजपुर) से विधायक रह चुके हैं. संभावित उम्मीदवार तो वे हैं ही."
पिछले दिनों जेडीयू ने साफ तौर पर कहा था कि वह बीजेपी से कम से कम एक सीट ज्यादा पर चुनाव लड़ेगी. जिससे साफ हो गया था कि बिहार एनडीए में जेडीयू बड़े भाई की भूमिका नहीं छोड़ना चाहती है. वहीं जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार द्वारा उम्मीदवार का ऐलान भी इसी ओर इशारा करता है.
नीतीश का ऐलान और सियासी संदेश
वरिष्ठ पत्रकार मनीष आनंद इसे नीतीश कुमार का एक सख्त और आत्मविश्वासी कदम बताते हैं. वे कहते हैं, "अगर दोनों पार्टियों के बीच सख्त मोल-भाव चल रहा है और बीजेपी इस बार बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है तो फिर ये ऐलान नीतीश कुमार की तरफ से एक मैसेजिंग हो सकती है कि हमें हलके में मत लीजिए."
"नीतीश कुमार एक चालाक नेता हैं. वे मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं कि पुराने फॉर्मूले पर ही सीटों का बंटवारा करना होगा. इसको बीजेपी को बैकफुट पर डालने की कोशिश के रूप में भी देखा जा सकता है."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का मानना है कि इसके पीछे दो चीजें हो सकती है. पहला- हो सकता है कि उनके (सीएम नीतीश) दिमाग में ये आया हो कि वे चुनाव का प्रचार कर रहे हैं, इसलिए उन्होंने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया. दूसरा- मैसेजिंग.
वे कहते हैं, "कांग्रेस ने राजेश कुमार को अपना अध्यक्ष बनाया है. वे रविदास समाज से हैं. रविदास का वोट 5.25 फीसदी है. दलितों में सबसे ज्यादा पासवान वोटर्स हैं- 5.35 फीसदी."
"नीतीश कुमार एक शातिर राजनेता हैं. इस घोषणा के जरिए उन्होंने एक मैसेज देने की कोशिश की है. जिस तरह से राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान पार्टी ने राजेश कुमार को आगे रखा. मंच का संचालन उनसे करवाया गया. ऐसे में कहा जा सकता है कि रविदास वोटर्स को साधने के लिए ये ऐलान किया गया हो."
दलित वोट बैंक और शाहाबाद क्षेत्र पर नजर
जानकारों के मुताबिक, सीएम नीतीश की नजर दलित वोट के साथ ही शाहाबाद क्षेत्र पर भी है. उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे इस इलाके में भोजपुर, बक्सर, रोहतास और कैमूर जिले आते हैं. 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था.
दरअसल, 2015 के चुनाव में नीतीश और लालू यादव के हाथ मिलने के बाद यहां का सियासी समीकरण बदलने लगा. वहीं बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के भी मैदान में होने से एनडीए को नुकसान हुआ है. जानकारों की मानें तो यूपी की सीमा से सटे होने की वजह से इन इलाकों में मायावती का भी प्रभाव दिखता है.
2020 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 11, जेडीयू ने 10 और मुकेश सहनी की वीआईपी ने 1 सीट पर चुनाव लड़ा. 2015 में इस क्षेत्र में पांच सीट जीतने वाली जेडीयू का खाता भी नहीं खुला. वहीं बीजेपी को मात्र 2 सीटों पर जीत मिली. 19 सीटें महागठबंधन के खाते में गई. हालांकि, 2024 में हुए उपचुनाव में तरारी और रामगढ़ में बीजेपी ने कब्जा जमा लिया.
अगर बीएसपी की बात करें तो 2020 में पार्टी ने इस क्षेत्र की 8 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. चैनपुर से जमा खान ने जीत दर्ज की. लेकिन वे बाद में जेडीयू में शामिल हो गए. वहीं रामगढ़ सीट पर 2020 विधानसभा और 2024 उपचुनाव में पार्टी दूसरे स्थान पर रही.
राजपुर और करगहर सीट पर बीएसपी तीसरे स्थान पर रही. लेकिन इन दोनों सीटों पर बीएसपी ने जेडीयू का खेला बिगाड़ दिया. राजपुर में जीत-हार का अंतर 21,204 वोट था. वहीं बीएसपी उम्मीदवार संजय राम को 43,836 वोट मिले थे. दूसरी तरफ करगहर में जेडीयू प्रत्याशी मात्र 4,083 वोट से चुनाव हार गए. यहां बीएसपी के खाते में 47,321 वोट गए थे.
ऐसे में कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने पूर्व मंत्री संतोष निराला का नाम घोषित कर दलित समाज को सीधे संदेश देने की कोशिश की है.
दूसरी तरफ 2024 लोकसभा चुनाव में भी एनडीए को झटका लगा था. शाहाबाद क्षेत्र की 4 लोकसभा सीट में से एनडीए एक भी सीट नहीं बचा सकी. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरके सिंह आरा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए. बक्सर से बीजेपी के मिथिलेश तिवारी और सासाराम से शिवेश राम को भी हार का सामना करना पड़ा. काराकाट में उपेंद्र कुशवाहा तीसरे नंबर पर रहे.
क्या होगा सीट शेयरिंग का फॉर्मूला?
बहरहाल, इन सब के बीच एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. बीजेपी प्रवक्ता कुंतल कृष्णा ने कहा, "सीट शेयरिंग का फॉर्मूला हमारे जिम्मेदार लोग के दिमाग में ऑलरेडी है. आप देखेंगे कि हमारे कार्यकर्ता सम्मेलन हो रहे हैं. अगर सीट शेयरिंग और चुनावी रणनीति हमारे दिमाग में नहीं होती तो हम लोग इतने प्रो-एक्टिव कैसे होते. हर चीज के लिए जिम्मेदार लोग हैं. उन लोगों के दिमाग में पहले से ही एक फॉर्मूला है. बातचीत हो रही है. हम लोग एक सहमति पर पहुंच चुके हैं, फाइनल डिसीजन आएगा तो सबके लिए आ जाएगा."
इसके साथ ही वे कहते हैं, "जेडीयू सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, क्योंकि एनडीए 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बीजेपी भी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. अब अलग-अलग सीट है ही नहीं, सभी एनडीए की सीट है."
वहीं नीरज कुमार ने कहा कि उन्हें सीट बंटवारे को लेकर जानकारी नहीं है, इसलिए वे इसको लेकर कुछ नहीं कह सकते.
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, "जो बातें छन कर आ रही हैं, उसके मुताबिक 102 सीटों पर नीतीश कुमार और 101 पर बीजेपी चुनाव लड़ सकती है. 20 सीटें चिराग पासवान की एलजेपी (आर) को मिलने की संभावना है. वहीं जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 10-10 सीटें मिल सकती हैं."
इसके साथ ही वे कहते हैं कि जो जानकारी मिल रही है, उसके मुताबिक इसबार 18-20 सीटों की अदला-बदली हो रही है.
बता दें कि 2020 में जेडीयू 115 सीटों पर लड़कर 43 सीटें जीती थी, जबकि बीजेपी ने 110 में से 74 सीटों पर जीत दर्ज किया था. जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने 7 में से 4 और मुकेश सहनी की वीआईपी 11 में 4 सीट जीतने में कामयाब रही थी.