बिहार के 1.11 करोड़ से अधिक लोगों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन के रूप में अब में हर महीने 1100 रुपये मिलेंगे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तहत मिलने वाली राशि में ढाई गुना से भी ज्यादा का इजाफा किया है. पहले यह पेंशन 400 रुपये मासिक थी.
मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों 'महिला संवाद' कार्यक्रम की समीक्षा बैठक में पेंशन की राशि में 175 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा की थी. जुलाई महीने से बढ़ी हुई राशि लोगों के खातों में ट्रांसफर होगी.
बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने रह गए हैं. सीएम नीतीश के इस फैसले को मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है- लेकिन क्या ऐसा है? इलेक्शन से ठीक पहले सरकार के इस फैसले के क्या मायने हैं? क्या ये दवाब में लिया गया फैसला है? चुनाव में ये कितना असरदार साबित होगा? इस लेख में हम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.
तेजस्वी के ₹1500 के वादे का जवाब ₹1100 से?
वरिष्ठ पत्रकार मनीष आनंद का मानना है कि नीतीश कुमार के इस फैसले को सिर्फ आइसोलेशन (अलग रूप से) के तौर पर नहीं बल्कि इसे टोटैलिटी में देखाना चाहिए. "नीतीश कुमार के सामाजिक सुरक्षा का जो ओवरऑल आर्किटेक्चर है, उसके अंदर ही इसे देखना चाहिए. नीतीश कुमार ने इसी चीज को लेकर अपना नाम बनाया है," वे आगे कहते हैं.
नीतीश कुमार की घोषणा को नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव के वादों के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है.
दिसंबर 2024 में पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 400 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये करने का वादा किया था. इसके साथ ही उन्होंने 'माई-बहन मान सम्मान' योजना के तहत महिलाओं को 2500 रुपये देने का भी वादा किया था. 500 रुपये में गैस सिलेंडर के साथ ही तेजस्वी ने सत्ता में आने पर 200 यूनिट मुफ्त बिजली की भी घोषणा की थी.
तेजस्वी यादव ने इसे अपनी योजना की नकल बताते हुए प्रदेश सरकार को "नकलची" करार दिया है. उन्होंने कहा, "महागठबंधन सरकार आ रही है इससे हो रही टेंशन, इसलिए NDA के नकलची हमारी घोषणाओं की नकल कर बढ़ा रहे पेंशन!"
एएन सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान, पटना के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर इसे देर से लिया हुआ बेहतर फैसला मानते हैं. वे कहते हैं,
"सामाजिक सुरक्षा में पैसा बढ़ता है ये तो अच्छी बात है. लेकिन सवाल उठता है कि ये फैसला अंत समय में क्यों लिया गया? नीतीश कुमार इतने सालों से सत्ता में हैं. ये 400 रुपये पर कब से अटका हुआ था. जब विपक्ष ने 1500 रुपये देने की बात की, तब इन्होंने अंत में ऐलान किया."
CPI(ML) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि मोदी-नीतीश सरकार ने वृद्ध और दिव्यांग पेंशन को 400 रुपये से बढ़ाकर 1100 रुपये कर दिया है- यानी सिर्फ 13 रुपये से 37 रुपये प्रतिदिन! क्या यह बुजुर्गों और दिव्यांगों के जीवन की कीमत है?
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, "अभी तक इस पर नीतीश कुमार या उनकी पार्टी की ओर से कोई सुगबुगाहट नहीं हुई थी. जबकि तेजस्वी लगातार इस बात को कह रहे हैं. गांवों में इसकी चर्चा होने लगी. महागठबंधन/ इंडिया ब्लॉक को बेहतर रिस्पॉन्स मिलने लगा. इससे जेडीयू और एनडीए में अंदरखाने बौखलाहट मच गई. जिसके बाद सरकार ने जल्दबाजी में 1100 रुपये की घोषणा की है."
पेंशन की राशि बढ़ाना क्या मास्टरस्ट्रोक है?
देश में सशक्तिकरण के नाम पर किसानों, महिलाओं के बैंक अकाउंट में सीधे पैसे ट्रांसफर करने का ट्रेंड देखने को मिला है. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने किसान सम्मान निधि की शुरुआत की थी. मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार लाडली बहना योजना लेकर आई थी. झारखंड में हेमंत सरकार मईयां योजना चला रही है. चुनावों में इन योजनाओं से पार्टियों को फायदा मिला है.
डीएम दिवाकर मानते हैं कि नीतीश सरकार के इस फैसले का चुनाव पर थोड़ा असर होगा. वे कहते हैं, "केंद्र की मोदी सरकार ने किसान सम्मान योजना के तहत हर महीने 500 रुपये यानी सालाना 6000 हजार रुपये देना तय कर दिया तो इतना असर हुआ कि चुनाव जीत गए. आप सीधे किसी के खाते में पैसा पहुंचाते हैं तो उसका असर तो पड़ता है."
सत्ता में रहते हुए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने 2024-25 के बजट में 'महिला सम्मान योजना' का ऐलान किया था. जिसके तहत 18 साल की उम्र से ज्यादा की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने की बात कही गई थी. दिसंबर में 2024 में केजरीवाल सरकार ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन शुरू किया था. चुनाव के बाद इसे बढ़ाकर 2100 रुपये करने का वादा भी किया. लेकिन पार्टी को इसका फायदा नहीं मिला और आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता से बेदखल हो गई.
जानकारों का कहना है कि आम आदमी पार्टी की हार के कई और कारण भी थे.
मनीष आनंद का कहना है कि नीतीश कुमार सिर्फ इसी से चुनाव जीत जाएंगे ऐसा हम नहीं कह सकते, लेकिन ये एक कारण हो सकता है. इससे उनकी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को बल मिलेगा और चुनावी भाषण में काम आएगा.
"चुनाव में जीत ओवरऑल नैरेटिव से ही मिलेगी. ओवरऑल नैरेटिव से मतलब है- NDA का डबल इंजन सरकार. ब्रांड मोदी. वहीं महागठबंधन का नैरेटिव है कि बिहार की जनता नीतीश कुमार से उब चुकी है और बदलाव चाहती है."
हालांकि, रवि उपाध्याय का कहना है कि "प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है. पावर इन्हीं (नीतीश) के पास है. इसलिए इसको तुरंत इम्लिमेंट किया जा रहा है. लेकिन जनता बहुत होशियार है. हर चीज को समझती है. आने वाले समय में उन्हें किस चीज से फायदा होगा, उन्हें पता है."
इम्प्लिमेंटेशन बनाम वादा
दूसरी तरफ जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसे दवाब का असर बताया है. नीतीश और तेजस्वी से दो कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने छठ पूजा के बाद से 2000 रुपये पेंशन देने का वादा किया है.
पीके ने कहा, "जन सुराज ने पिछले तीन सालों में जो आवाज उठाई है ये उसका असर है. इस महंगाई के जमाने में पेंशन के नाम पर सरकार जो 400 रुपये का भीख दे रही थी, कम से कम अब उनकी आंख खुली है और उसको 1100 रुपये किया है."
इसके साथ ही उन्होंने कहा,
"यह सिर्फ पेंशन की बात नहीं है. ये लोकतंत्र की ताकत है. जैसे ही विकल्प सामने दिखेगा तो निश्चित तौर पर सभी दलों को कुछ न कुछ काम करना पड़ेगा. सरकार पर दवाब है कि अगर काम नहीं करोगे तो जनता किसी तीसरे विकल्प को चुन लेगी."
विपक्ष के ऐलान पर मनीष आनंद कहते है कि अपोजिशन तो कुछ भी ऐलान कर सकता है. लेकिन सत्ता में आकर उसे लागू करना बहुत बड़ी चुनौती होती है.
"विश्वसनीयता एक बड़ा फैक्टर है. लोगों का मानना होता है कि सरकार कुछ कम ही आर्थिक सहायता दे लेकिन लगातार दे. ऐसे में विश्वसनीयता के मामले में तेजस्वी के मुकाबले नीतीश के पास एडवांटेज होगा. क्योंकि नीतीश पिछले 20 सालों से सत्ता में हैं. वहीं तेजस्वी के ऐलान पर एक प्रश्न चिन्ह बना रहेगा कि वे पैसा कहां से लाएंगे."
कांग्रेस पार्टी ने अपनी गारंटी के तहत प्रदेश की महिलाओं के लिए 'माई बहिन मान योजना' का ऐलान किया है. इसके तहत महागठबंधन सरकार बनने पर महिलाओं को प्रति माह ₹2,500 की आर्थिक सहायता दी जाएगी. इसके लिए पार्टी जागरुकता अभियान भी चला रही है.
क्या चुनाव पर पड़ेगा इसका असर?
प्रदेश में अगले कुछ महीनों में चुनाव होने हैं. नीतीश कुमार की सेहत से लेकर उनके नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में क्या इसका असर चुनावों पर पड़ेगा? इस पर डीएम दिवाकर कहते हैं, "इनकी चिंता दूसरी है. अब इनकी नजर वोट बैंक पर है. इन्हें डर है कि कहीं उनका वोट बैंक न खिसक जाए, इसलिए वो प्रलोभन का राग आलाप रहे हैं."
2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू मात्र 15.39 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 सीटों पर सिमट गई थी. पार्टी को 28 सीटों का नुकसान हुआ था. जबकि बीजेपी 74 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. आरजेडी 75 सीट जीतकर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. उसका वोट शेयर 23.11 फीसदी था.
वरिष्ठ पत्रकार मनीष आनंद कहते हैं, "जो सरकार में रहते हैं उनके द्वारा लाए गए स्कीम की लोगों में ज्यादा एक्सेप्टेंस होती है." इसके साथ ही वे कहते हैं कि नीतीश कुमार को इसका फायदा मिल सकता है क्योंकि "वह पिछले 20 सालों से सरकार में बने हुए हैं. यहां कंटिन्यूटी वाली बात है. जो सत्ता में हैं उनपर लोगों को ज्यादा भरोसा होता है."
9202 करोड़ का अतिरिक्त भार
बिहार में सामाजिक सुरक्षा पेंशन की छह योजनाएं चल रही हैं. कुल लाभार्थियों की संख्या 1 करोड़ 11 लाख 22 हजार 825 है. केंद्र की सहायता से चलने वाली योजनाएं:
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृदधावस्था पेंशन
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय नि:शक्तता पेंशन योजनाएं शामिल हैं.
इन योजनाओं पर खर्च होने वाली धनराशि में केंद्र सरकार 50 से 75 प्रतिशत की राशि का वहन करती है.
जबकि बिहार सरकार अपने संसाधनों से
लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना
बिहार नि:शक्तता पेंशन योजना
मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना चला रही है.
इन योजनाओं पर खर्च होने वाली शत-प्रतिशत धनराशि बिहार सरकार खुद वहन करती है. इन सभी छह योजनाओं के संचालन पर कुल 14,682 करोड़ का खर्च आएगा. बिहार सरकार के खजाने पर हर साल 9,202 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा.