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मैं सुप्रिया का सपोर्टर हूं और भाई सुनेत्रा का" पवार के गढ़ बारामती में कौन मजूबत?

पांच दशक में पहली बार, बारामती के मतदाता दो पवारों - सुप्रिया और सुनेत्रा में से किसी एक को चुनेंगे.

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वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

Lok Sabha Election 2024: "ऐसे परिवार हैं, जहां बेटा दादा (अजित पवार) के साथ है और पिता साहेब (शरद पवार) के साथ है. मतभेद केवल पवार परिवार में नहीं हैं." ये बात स्वप्निल काटे (40) ने कही, जो महाराष्ट्र के बारामती के काटेवाडी गांव के निवासी हैं.

बारामती शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर काटेवाडी शरद पवार का पैतृक गांव है.

इस बीच, स्वप्निल के चचेरे भाई और काटेवाडी के उपसरपंच मिलिंद काटे (42) अजित पवार की पत्नी और अब सुप्रिया की प्रतिद्वंद्वी सुनेत्रा के समर्थन में खड़े हैं.

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मिलिंद ने कहा, "काटेवाडी सुनेत्र वाहिनी के साथ खड़ा है. आप गांव में जो विकास देख रहे हैं वह अजीत दादा और सुनेत्रा वाहिनी के कारण है. इसलिए, हम उनका समर्थन कर रहे हैं."

पांच दशक में पहली बार, बारामती के मतदाता दो पवारों - सुप्रिया और सुनेत्रा में से किसी एक को चुनेंगे.

पवार परिवार अब दो धड़ों में बंटकर खड़ा है

पवार परिवार स्पष्ट रूप से विभाजित है, जहां अजित पवार और उनका परिवार एक तरफ है, वहीं बाकी सभी पवार शरद पवार और सुले के साथ खड़े हैं.

हालांकि, सुनेत्रा सक्रिय राजनीति से दूर रहीं और अतीत में अक्सर चुनाव लड़ने से इंकार करती रही हैं. वो चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही अपने सामाजिक कार्यों के कारण घर-घर में मशहूर थीं.

उदाहरण के लिए, काटेवाड़ी के निवासी उन्हें अपने गांव के 'आदर्श ग्राम' होने का श्रेय देते हैं, जिसने पिछले कुछ वर्षों में एक आत्मनिर्भर इको गांव होने के लिए कई पुरस्कार जीते हैं.

2001 में सुनेत्रा पवार ने कटेवाडी में विकास कार्य शुरू किया. यहां एक भी शौचालय नहीं था. अब हमारे पास हर घर में शौचालय है. हमारे पास सीमेंट की सड़कें हैं, भूमिगत जल निकासी है, 15,000-20,000 पेड़ लगाए गए हैं.
मिलिंद काटे, उपसरपंच, काटेवाडी

इस बीच, स्वप्निल का दृष्टिकोण उल्टा तो नहीं है लेकिन अलग है.

"सुनेत्रा ने विकास के लिए काम भी किया तो काम की शुरुआत शरद पवार ने की. हर चीज पर उनकी हमेशा पैनी नजर रही है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अजीत दादा ने विकास के लिए काम किया है. लेकिन उस सारे काम के बीज तो साहब ने ही बोये थे. ये वक्त साहब को छोड़ने का नहीं था, उनके साथ खड़े होने का था. दादा ने जाने का फैसला किया, ठीक है. लेकिन जनता शरद पवार के साथ खड़ी है."
स्वप्निल काटे

लेकिन विपरीत पक्षों में होने के बावजूद, मिलिंद और स्वप्निल दोनों ने बारामती में कई पवार वफादारों की तरह एक ही विचार व्यक्त किया: "पवार परिवार के एक साथ आने से ज्यादा खुशी हमें कुछ नहीं होगी."

चाहे शरद पवार के समर्थक हों या अजित पवार के, एक बात पर आम सहमति है कि अजित पवार ने बारामती का विकास किया.

लेकिन बारामती में कई वफादार पवार मतदाताओं के लिए, यह चुनाव एक मुद्दे के बारे में लगता है - वह है असली एनसीपी के रूप में एक पवार की विरासत पर मुहर लगाना.

साहेब बनाम दादा, ताई बनाम वाहिनी

दिलचस्प बात यह है कि गांवों में ज्यादातर लोग मीडिया से बात करने से कतराते हैं और खुलकर किसी का पक्ष लेते हुए नहीं दिखना चाहते.

लेकिन अपने विचारों के बारे में मुखर लोगों के लिए, यह चुनाव एक मुद्दे के बारे में है - एक पवार की विरासत को 'असली एनसीपी' के रूप में दिखाना है.

अजित पवार के अधिकांश समर्थकों ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) या पीएम नरेंद्र मोदी को बारामती में कोई रैली नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे केवल शरद पवार के प्रति सहानुभूति बढ़ेगी और यह 'मोदी बनाम पवार' मुकाबला बन जाएगा.

हालांकि, पीएम मोदी ने 30 अप्रैल को पुणे में सुनेत्रा पवार के साथ मंच साझा किया, जहां उन्होंने शरद पवार पर कटाक्ष करते हुए उन्हें "भटकती आत्मा" (जिनकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं) कहा.

वहीं, एनसीपी की सुपा परगना इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष तुषार भोसले ने कहा कि यह चुनाव परिवारों को तोड़ने का चुनाव है.

काटेवाडी के बालकृष्ण काटे (60) ने कहा, "यह राजनीति है. महाभारत में क्या हुआ? वे अपने पिता के खिलाफ लड़े, अपने रिश्तेदारों के खिलाफ लड़े, वही जारी है. अगर यह सतयुग में हुआ, तो यह कलयुग में भी होगा."

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