ADVERTISEMENTREMOVE AD

Valentine's Day Special: प्रेम में क्यों होती है इतनी दीवानगी?

Valentine's Day:प्रेम के बारे में जो कुछ भी लिखा जाता है, वो बीत चुका होता है. हर कही और लिखी बात अधूरी रह जाती है

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

प्रेम के बारे में जो कुछ भी लिखा जाता है, वो बीत चुका होता है. हर कही हुई और लिखी हुई बात अधूरी रह जाती है. प्रेम का वर्तमान क्षण दर्ज नहीं किया जा सकता. इसका विश्लेषण और वर्णन उसके बीतने के बाद ही होता है; वो एक मृत प्रेम की थेर गाथा भर है. जिंदा प्रेम को सिर्फ जिया जाता है. उसकी गुनगुनी सांसों को अपनी पीठ पर महसूस किया जा सकता है, उसकी मौजूदगी में तो प्रेमी को अनुपस्थित होना होता है. प्रेम का होना, प्रेमी का न होना है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस अर्थ में प्रेम एक मृत्यु भी है. उस केंद्र की मृत्यु, उस ‘मैं’ का विघटन जो प्रेम करने का दावा करता है. गुरुदेव टैगोर अज्ञात से इसी 'मैं' या अहंकार को ‘आसुओं में बहाकर खत्म करने की गुहार लगाते हैं.’ कबीर इसी प्रेम में साफ-साफ देख लेते हैं कि ‘मैं’ के होते, प्रेम कहां!

आइंस्टाइन ने लिखा प्रेम के बारे में-

बताते हैं अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने अपनी बेटी लीजर्ल को एक पत्र लिखा था. पत्र विवादित है, पर इसमें लिखी गई बातें तो वही लिख सकता है, जो प्रेम के मर्म को समझता हो. इसलिए विवाद में पड़े बगैर इसकी खूबसूरती का लुत्फ उठायें.  

“जब मैंने सापेक्षता के सिद्धांत को सामने रखा, बहुत ही कम लोग मुझे समझ पाए. अब जब मैं अपनी बातें खोल कर लोगों के सामने रखूंगा तो वे दुनिया में लोगों के पूर्वग्रहों और नासमझी के साथ उन बातों का कलह होगा. एक बहुत ही मजबूत ताकत है, और अभी तक विज्ञान इसकी कोई औपचारिक व्याख्या नहीं ढूंढ पाया है. ये एक ऐसी शक्ति है जो सभी को अपने में शामिल किये हुए है और सब पर शासन भी करती है. ब्रह्मांड का संचालन करने वाली ताकत के पीछे भी यही है और फिर भी हम इसे पहचान नहीं पाए हैं. ये विश्वव्यापी ताकत है प्रेम की. जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के एकीकृत सिद्धांत की खोज चालू की तो वे सबसे प्रबल अदृश्य शक्ति को भूल गए. प्रेम रोशनी है, जो देने वाले और पाने वाले, दोनों को ही प्रकाशित करती है. ये गुरुत्वाकर्षण है, क्योंकि ये लोगों के एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने का कारण है. प्रेम शक्ति है क्योंकि ये उस हर चीज को बढ़ा देता है जो हमारे भीतर सर्वश्रेष्ठ है और इसके कारण ही मानवता अपनी अंधी स्वार्थ परायणता में अब तक खाक नहीं हुई है. प्रेम उद्घाटित करता है. प्रेम के लिए ही हम जीते और मरते हैं. यही ताकत हर चीज की व्याख्या करती है और जीवन को अर्थ देती है. …यदि हम चाहते हैं कि मानव जाती बची रहे तो प्रेम और अकेला प्रेम ही एक समाधान है हमारे लिए.”

प्यार नहीं पा जाने में है-

प्रेम प्रतीक्षा है. ‘प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में. पा जाता तो हाय न इतनी प्यारी लगती मधुशाला. बच्चन जी उस प्रतीक्षा की ही बात करते हैं,स जिसके दर्द में मीरा ने जीवन बिता दिया, ये जाने बगैर कि कांटों के पार सेज पर बैठे प्रिय तक वो पहुंचे भी तो किस विधि से. नेरुदा तो इस बात को इस मासूम बेरहमी के साथ कहते हैं कि इंतजार में खाक होने वाली गालिब की बात भी थोड़ा मुरझा जाती है. नेरुदा कहते हैं कि, मैं एक खाली पड़े घर की तरह तुम्हारा इंतजार करुंगा, और दुखती रहेंगी मेरी खिड़कियां तुम्हारे आने तक. प्रेमी के लिए सबसे खूबसूरत लम्हा शायद वही होता है जब प्रेम उससे इतनी दूर भी न रहे कि वो हिम्मत हार जाए, और इतनी पास भी न हो, कि उसे वो पा जाए. एक अनवरत प्रतीक्षा, अपने ज्ञात या अज्ञात प्रेमी या प्रेयसी के लिए...ऐसी प्रतीक्षा जिसमें न कोई शिकायत हो, न कोई कुंठा, न अधैर्य और न ही कोई पीड़ा...प्रेम ऐसा ही कुछ नहीं क्या!  

इतनी दीवानगी क्यों होती है प्रेम में?

प्रेम में इतनी दीवानगी क्यों होती है? जायज सवाल है और इसे खंगाला भी गया है. इसके मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, दैहिक, रासायनिक और कई तरह के निहितार्थ हैं. शेक्सपियर का ऑथेलो देख या पढ़ लें. कैसे ईर्ष्या प्रेम की जगह हथिया लेती है और किस हद तक चली जाती है. शेक्सपियर ऐज यू लाइक इट में अपनी नायिका से कहलवाते हैं-

“प्रेम तो बस एक पागलपन है और मैं बताऊं, इसे एक अंधेरे कारागाह में चाबुक मारने वालों के साथ रखा जाना चाहिए. पर प्रेमियों को इस तरह की सजा इसलिए नहीं मिलती, क्योंकि यह पागलपन इतना अधिक फैला हुआ है कि चाबुक मारने वाले भी प्रेमी ही होते हैं!”

इस दीवानगी के कई रासायनिक और दैहिक कारण हैं. कई हारमांस हैं, कई विद्युतीय-चुंबकीय तरंगें हैं मस्तिष्क की जो दीवानगी का कारण बन सकती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सेक्स के सुख की तलाश अक्सर प्रेम की खोज का लबादा ओढ़कर आती है और लोग यौनिक सुख की खोज को ही प्रेम की तीव्रता समझ बैठते हैं. बहुत समझदारी चाहिए प्रेम को लगाव, कब्जा जमाने की प्रवित्ति, सेक्स के सुख की खोज, ईर्ष्या और असुरक्षा से बचने की इच्छा से अलग करने के लिए. बहुत गहरी अंतर्दृष्टि भी. पूरी उम्र बीत जाया करती है और ये समझ नहीं आती कि प्रेम क्या है और क्या नहीं है. अक्सर प्रेम में मन दीवानगी और उदासीनता के दो छोर के बीच झूलता रहता है. संतुलन नहीं ढूंढ पाता.

मैत्री में है खालिस प्रेम

खालिस, शांत करने वाला, शीतलता देने वाला प्रेम शायद दोनों अवस्थाओं के बीच कहीं ठहरा हुआ है. उसमें प्रेम, करुणा, मैत्री, मुदिता के साथ उपेक्षा का भाव भी है, जैसा कि बुद्ध कहते थे. करुणा के स्पर्श के बिना प्रेम खतरनाक हो जाता है. ईर्ष्या के बगैर वो बदतमीज हो सकता है और यदि वो नफरत में बदल जाए, तो प्रेम कैसा. प्रेम बहुत अधिक संयम और सजगता की मांग करता है. वो हमेशा दूसरों की जरूरत का ख्याल रखता है. अस्थिर मन से प्रेम करना खिसकती हुई रेत पर घर बनाने जैसा है, वो क्षण क्षण बदलता है, तूफानी मानसिक उद्वेलन का शिकार बना रहता है.

धैर्य, संयम, दूसरों को स्पेस देना, संवेदनशील होना, न सिर्फ अपने प्रेम के विषय के प्रति, बल्कि सभी के प्रति, विनम्रता और थोड़ी सी उपेक्षा के बगैर क्या प्रेम एक आफत में परिवर्तित नहीं हो जाता? जरुरत है इन सवालों को पूछने की. यदि आप अपनी माशूका को प्रेमवश चिकेन खिलाते हैं, तो वह तो खुश हो जाती है, पर उस मुर्गे का क्या जिसकी जान आपने अपने प्रेम को खुश करने के लिए ले ली! प्रेम शायद समग्रता में जीवन को देखने का ही दूसरा नाम है. अगर हमें सभी से प्रेम नहीं, तो शायद किसी से प्रेम नहीं!

प्रेम का विज्ञान

प्रेम के बारे में कुछ दिलचस्प वैज्ञानिक बातें भी हैं. हम सोचते हैं कि हम बड़े वफादार प्रेमी हैं पर भेड़िये, हंस, काले गिद्ध, और यहां तक दीमक भी पूरे जीवन एक ही साथी के साथ रहते हैं. वफादारी का ठेका हम इंसानों ने ही नहीं लिया है. सिर्फ चार मिनट लगते हैं ये पता लगाने में कि आप किसके प्रति आकर्षित हैं. वैज्ञानिक बताते हैं कि इसका संबंध देहभाषा, आवाज और बोलने के तरीके से है, न कि आप क्या कह रहे हैं उससे.

प्रेम कोकीन की एक मात्रा के बराबर होता है. दोनों ही मस्तिष्क को एक ही तरह से प्रभावित करते हैं और आनंद का भाव पैदा करते हैं. शोध बताता है कि प्रेम आनंद का भाव पैदा करने वाले रसायन पैदा करता है जो मस्तिष्क के 12 हिस्सों पर एक साथ असर डालता है. ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन को प्रेम हॉर्मोन भी कहा जाता है. आलिंगन या स्पर्श से इसका रिसाव होता है. यह एक स्वाभाविक दर्दनाशक का काम भी करता है, अब पेन किलर खाना है या प्रेम करना है, आप फैसला कर लें.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×