ट्रंप 2.0 के ज्वलंत मुद्दे
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बन जाने के बाद भविष्य में क्या होने वाला है, इसका उत्तर सवालों के जरिए जानने की कोशिश की है. उत्तर मिले या न मिले, संकेत हासिल करने की कोशिश दिखलाई है. ट्रंप के साथ मिलकर काम करने वाले पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली और उनके पूर्व संचार निदेशक एंथनी स्कारामुची ने उन्हें फासीवादी कहा है. क्या यह सही साबित होगा? स्वास्थ्य सचिव के रूप में रॉबर्ट कैनेडी, एफबीआई डायरेक्टर के रूप में काश पटेल और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के रूप में तुलसी गबार्ड की पुष्टि होगी या उन्हें नामंजूर कर दिया जाएगा? विदेश सचिव के रूप में मार्को रुपियो और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में माइकल वाल्ट्ज क्या वास्तव में ट्रंप की विदेश नीति को निर्धारित करेंगे?
करन थापर ने आगे सवाल उठाए हैं कि एलन मस्क को क्या बड़ी भूमिका मिलेगी जिन्होंने ट्रंप को जीत दिलाने के लिए 270 मिलियन डॉलर खर्च किए?
ट्रंप ने सभी आयातों पर 20 फीसद टैरिफ लगाने और चीनी निर्यात पर कहीं ज्यादा टैरिफ लगाने की बात कही है. कनाडा और मैक्सिको को 25 फीसद टैरिफ लगाने की भी धमकी दी है. क्या हम खतरनाक रूप से व्यापार युद्ध के करीब पहुंच सकते हैं? विदेश नीति के मोर्चे पर ट्रंप ने दावा किया था कि वे एक दिन में रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कर सकते हैं. क्या यह सिर्फ बयानबाजी है या असली इरादा? क्या यह जेलेंस्की के लिए बुरी खबर है? नाटो का भविष्य क्या होगा? क्या ट्रंप सिर्फ अपने सदस्यों से उनकी सुरक्षा के लिए ज्यादा भुगतान की मांग करेंगे या वे संगठन की एकता और अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं?
मोदी-ट्रंप की नई केमिस्ट्री का इंतजार
प्रभु चावला ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 78 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार व्हाइट हाउस में प्रवेश कर रहे हैं. कुछ महीने पहले ही मोदी 3.0 की भी शुरुआत हुई है. डोनाल्ड ट्रंप घोटाले, महाभियोग और आपराधिक सजा की असंभव बाधाओं को पार करते हुए व्हाइट हाउस दोबारा पहुंच रहे हैं. अप्रत्याशित यू टर्न और विचारधाराओं का टकराव फिर से शुरू हो सकता है. ट्रंप 1.0 के दौरान ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ और अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे आयोजनों ने वैश्विक भाईचारे का संकेत दिया था जिसके बाद भारत अमेरिका के सबसे मजबूत सहयोगियों में से एक बना गया. 2020 में ट्रंप हार गये और मोदी ने व्हाइट हाउस में एक दोस्त खो दिया. हालांकि मोदी ने रिश्ते को फिर से बनाने का मौका नहीं गंवाया.
प्रभु चावला लिखते हैं कि मेक अमेरिका ग्रेट अगेन एंड अगेन यानी एमएजीएए डोनाल्ड ट्रंप का नारा रहा है जो नरेंद्र मोदी के इंडिया फर्स्ट की तरह है. मोदी का मिशन भारत को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विश्वगुरु बनाना है. अमेरिका वैश्विक सामरिक और आर्थिक शक्ति है. मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत का अंतरराष्ट्रीय दायरा बदल गया है. कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं है केवल स्थायी महत्वाकांक्षा है.
डोनाल्ड ट्रंप की जीत की आधिकारिक घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर मोदी बधाई देने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय नेताओं में से एक थे. उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया, “जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं पर काम कर रहे हैं, हम भारत-अमेरिका के बीच व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को और मजूबत करने के लिए हमारे सहयोग को नवीनीकृत करने के लिए तत्पर हैं. हम अपने लोगों की बेहतरी के लिए और वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए साथ मिलकर काम करेंगे.” भारत को टैरिफ किंग कहने वाले ट्रंप आगे क्या कदम उठान वाले हैं, इस पर सबकी नजर रहेगी. भारतीयों के लिए वीजा नियमों को लेकर भी उनके रुख पर सबकी नजर रहेगी.
अलग-अलग मत-अभिमत
आसिम अली ने टेलीग्राफ में लिखा है कि भारत के 76वें गणतंत्र दिवस मनाने से एक पखवाड़ा पहले मोहन भागवत ने दावा किया कि अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन भारत ने ‘सच्ची आजादी’ आजादी हासिल की. यह संवैधानिक ढांचे के प्रति आरएसएस के नफरत से आगे की बात है. मोहन भागवत के पूर्ववर्ती एमएस गोलवलकर ने स्पष्ट किया था, “हमारा संविधान भी पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों के विभिन्न अनुच्छेदों का बोझिल और विषम संयोजन मात्र है. इसमे ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हम अपना कह सकें.” आरएसएस द्वारा संविधान को स्वीकार करने की दुविधा को समझने के लिए हमें सबसे पहले बुनियादी सवाल पूछना चाहिए. भारतीय संविधान का महत्व क्या है?
आसिम अली बताते है कि पहला जवाब यह है कि संविधान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज को परिभाषित करने वाले नियमों की संरचना प्रदान करता है. दूसरा जवाब यह है कि संविधान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मार्गदर्शक सिद्धांतों और मूल्यों का एक समूह है, एक चार्टर है जो हमारी राष्ट्रीयता को परिभाषित करता है.
संविधान को भारत सरकार अधिनियम से अलग बनाने वाली बात मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों पर अध्याय थे. ‘अधिकारों के विधेयक’ के प्रति प्रतिबद्धता 1928 की नेहरू रिपोर्ट से जुड़ी है. मौलिक अधिकारों को शामिल करने का समर्थन बाद में बीआर अंबेडकर ने किया. यह ठीक वैसे ही था जैसे निर्देशक सिद्धांतों को शामिल करने का समर्थन गांधीवादी और विधानसभा के समाजवादी सदस्यों ने किया था. इसलिए, ये भाग संविधान के समतावादी और उपनिवेशवाद विरोधी दर्शन को मूर्त रूप देते हैं जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्गदर्शक सिद्धांतों को स्पष्ट करते हैं.
शिवराज की अनदेखी आसान नहीं
अदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि शिवराज सिंह चौहान को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरा समर्थन हासिल है. पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना है और उस पद के लिए चौहान भी दावेदार हो सकते हैं. जब शिवराज सिंह चौहान भोपाल से विदा हुए तो उनके चाहने वालों की आंखें नम थीं. सैद्धांतिक तौर पर देखें तो उनको दिल्ली बुलाकर केंद्रीय मंत्री बनाया जाना उनके कदम में एक बड़े इजाफे की तरह था. उनके मंत्रालयों को एक साथ रखें तो देश के कुल सालाना बजट में 4.15 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा उन्हीं को आवंटित होते हैं.
मगर, शिवराज सिंह चौहान की दिक्कत कुछ अलग किस्म की है. दिल्ली बॉर्डर पर हड़ताली किसानों को बातचीत के लिए जब चौहान कृषि भवन आमंत्रित करते हैं तो हिमाचल प्रदेश की सांसद कंगना रनौत किसानों को ‘अलगाववादी’ बोल देती हैं. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सार्वजनिक रूप से शिवराज की क्लास लगा देते हैं जिस बारे में उन्हें सफाई देनी पड़ जाती है.
अदिति फडणीस लिखती हैं कि मध्य प्रदेश सरकार शिवराज सिंह चौहान के फैसले बदल रही है. रातापानी वन्य जीव अभयारण्य को टाइगर रिजर्व में बदलने का फैसला ऐसा ही फैसला है. कमलनाथ सरकार ने 2019 में टाइगर रिजर्व बनाने की अधिसूचना जारी कर दी थी लेकिन मार्च 2020 में जब शिवराज सरकार दोबारा सत्ता में आयी तो अधिसूचना रद्द कर दी गयी. रातापानी इलाके में करीब सौ गांव हैं जिनका पुनर्वास करना होगा और यह पूरा इलाका सीहोर जिले में आता है जो चौहान का गृहक्षेत्र भी है. अगर रातापानी टाइगर रिजर्व बन गया तो इस इलाके की जमीन, जंगलों और उपज पर सख्त किस्म के प्रतिबंध लागू हो जाएंगे. सियासी तौर पर चौहान को यह बात रास नहीं आएगी.
इन सब बातों से इतर इसमें संदेह नहीं कि शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई न सिर्फ विधानसभा चुनाव में, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी सारी 29 सीटें बीजेपी की झोली में लाकर रख दी. अब आगे क्या? चौहान कभी विवाद में नहीं उलझते. किसी से ऊंची आवाज में नहीं बोलते. उन्हें आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल है. पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाना है और उस पद के लिए चौहान भी मजबूत दावेदार हो सकते हैं.
'मोक्ष' से ज्यादा 'शक्ति' से जुड़ा है कुंभ
देवदत्त पटनायक ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि कुंभ ‘मोक्ष’ से ज्यादा ‘शक्ति’ से जुड़ा है. कुंभ मेला हिन्दू धर्म के उस पहलू को उजागर करता है जिसके बारे में अक्सर बात नहीं की जाती. इसमे कोई मंदिर नहीं है, कोई देवता नहीं है, कोई भक्ति नहीं है, कोई गीत नहीं है, कोई संत नहीं है. यह मुख्य रूप से एक अनुष्ठान है जिसमें नग्न तपस्वियों (दिगंबर) में निहित (उग्र पुरुष) ऊर्जा का प्रभुत्व है जो राख से ढंके होते हैं, जटाओं के साथ, डंडे पकड़े हुए, विभिन्न व्यायामशालाओं से संबंधित होते हैं, जो शिव के जंगली रूप के अनुयायियों को आह्वान करते हैं.
कुंभ अनुष्ठान है जिसका ध्यान या चिंतन से कोई लेना-देना नहीं होता. नदी में विशेष स्थान पर सही समय पर डुबकी लगाने से जुड़ा है कुंभ. तपस्वी स्नान कर इसे पवित्र करते हैं. हम तर्क दे सकते हैं कि इसकी जड़ें तांत्रिक हैं क्योंकि इसमें शरीर शामिल होता है.
देवदत्त पटनायक लिखते हैं कि ऐसे अनुष्ठान भारत के कई हिस्सों में होते हैं जहां राख से सने तपस्वी अपनी लयबद्ध यात्रा के हिस्से के रूप में एकत्रित होते हैं. ये तपस्वी संभवत: पूर्व में तराई क्षेत्र में उत्पन्न हुए थे और उन्होंने वैदिक व्यवस्था को चुनौती दी थी जो संभवत: हजार साल ईसा पूर्व पश्चिमी पंजाब क्षेत्र से आयी थी. वे गंगाद्वार में भिड़ गये जिसे अब हरिद्वार कहा जाता है.
यह घटना महाभारत में पहली वर्णित कहानी में दर्ज है जिसमें तपस्वी शिव ने ब्राह्मण कुलपिता दक्ष का सिर काटा था. तब से इन तपस्वियों को जिनमें कुछ खोपड़ी रखते हैं, को कई नामों से जाना जाता है- पशुपति, कपालिक, कालमुख. समय के साथ वे बदल गये.
नाथवाद, वैष्णववाद, यहां तक कि सिख धर्म जैसे बाद के विचारों से प्रभावित होकर वे अधिक सौम्य हो गया. वर्तमान में उन्हें नागा कहा जाता है. भटकने वाले तपस्वियों का कैलेंडर राशि चक्र के माध्यम से चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति की चाल से निर्धारित होता था. इसे हरिद्वार में कुंभ और नासिक में सिंहस्थ के रूप में जाना जाता था जब बृहस्पति कुंभ और सिंह नक्षत्रों में था.