ADVERTISEMENTREMOVE AD

संडे व्यू: पहलगाम में आतंक के बीच सद्भाव, टैरिफ के झटके और भारत के लिए मौके

पढ़े इस रविवार रामचंद्र गुहा, तवलीन सिंह, पी चिदंबरम, पुष्पेश पंत और जनक राज के विचारों का सार.

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

आतंक के बीच सद्भाव की घटनाएं

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि आदर्श मानवीय भावना त्रासदी के बीच आशा की तलाश करता है. पहलगाम में आतंकियों के हाथों मारे गये पर्यटकों में से एक केरल के एन रामचंद्रन के परिजन ऐसा ही उदाहरण हैं. दिवंगत रामचंद्रन की बेटी आरती सारथ दो युवकों से मिली सहायता को लेकर भावुक हैं.

वह बताती हैं,

“एक मुसाफिर और अन्य स्थानीय ड्राइवर समीर पूरे समय मेरे साथ थे. यहां तक कि जब मैं सुबह 3 बजे तक मुर्दाघर के बाहर खड़ी थी, उन्होंने मेरे साथ छोटी बहन की तरह व्यवहार किया. कश्मीर ने अब मुझे दो भाई दिए हैं.”

घटनास्थल पर मौजूद कई पर्यटकों को उनके कश्मीरी गाइडों ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. कम से कम एक गाइड जो आस्था से मुस्लिम था, आतंकवादियों के हाथों मारा गया. जब पर्यटक घबराकर भागने लगे तो मौलवियों ने होटल बुकिंग न कराने वालों के लिए बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए मस्जिदें खोल दीं. टैक्सी चालकों ने श्रीनगर हवाई अड्डे पर जाने वाले यात्रियों से किराया लेने से इनकार कर दिया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि आतंकी घटना के अगले दिन कश्मीर में पूरी तरह से हड़ताल रही. दुकानें, होटल, स्कूल, कॉलेज सभी बंद रहे. सभी राजनीतिक दलों ने आतंकवादियों और सीमा पार से उनके समर्थकों की निंदा में रैलियां निकालीं. अतीत के झरोखे से लेखक याद दिलाते हैं कि विभाजन के बाद कश्मीर घाटी में पाकिस्तान की ओर से किए गये हमले के समय कश्मीरियों ने ऐसा ही अनुकरणीय व्यवहार किया था.

पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में बर्बर रक्तपात के बीच कश्मीर सांप्रदायिक सद्भाव का आश्रय स्थल था. यहां मुस्लिम, हिंदू और सिख सभी आक्रमणकारियों के खिलाफ एकजुट थे. निस्संदेह आतंकवादियों के मंसूबे विफल हुए.

मगर देश के अलग-अलग हिस्सों से खबरें अच्छी नहीं रहीं. राजस्थान में बीजेपी विधायक ने शुक्रवार की नमाज के दौरान मस्जिद में घुसकर ‘जय श्री राम’ और ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाए. ‘भारत विरोधी’ बताकर असम में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की गिरफ्तारी शुरू हुई. मध्यप्रदेश में मुस्लिम कांग्रेसी विधायक को जान से मारने की धमकियां दी गईं. गुजरात में ‘घुसपैठिया’ बताकर सैकड़ों लोगों को पकड़ा गया. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में कश्मीरी छात्रों के साथ गुंडागर्दी हुई और उन्हें कश्मीर लौटने को मजबूर किया गया.

फैसले की घड़ी

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि हमारे राजनेताओं ने कश्मीर को लेकर कभी दुनिया के सामने अपनी बात रखने की पूरी कोशिश ही नहीं की. यही कारण है कि पहलगाम हमले के बाद ज्यादातर

विदेशी प्रतिक्रियाएं पढ़कर ऐसा लगता है मानो कश्मीर पर भारत ने नाजायज कब्जा कर रखा है. माना कि हमारे शासकों ने गलतियां की हैं जिस वजह से पिछले 30 सालों से कश्मीरी नौजवानों ने बंदूक उठाकर हिंसा और अराजकता फैलाकर कश्मीर को भारत से अलग करने की मुहिम चलाई है. इन गलतियों में एक बड़ी गलती यही है कि हमने अपनी बात डटकर रखने का प्रयास नहीं किया है और इसका लाभ पाकिस्तान ने उठाया है.

आश्चर्य नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप से जब पहलगाम के बारे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह समस्या हजार साल पुरानी है और उनकी हमदर्दी भारत के साथ है लेकिन पाकिस्तान के साथ भी. अमेरिकी राष्ट्रपति को इतना भी नहीं मालूम कि हजार साल पहले पाकिस्तान था ही नहीं.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि नरेंद्र मोदी ने हमारे सेनाध्यक्षों को बीते हफ्ते पाकिस्तान पर हमले की पूरी छूट दी है. इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने आधी रात को पत्रकारों को बुलाकर कहा कि भारत अगले चौबीस घंटों में पाकिस्तान पर आक्रमण कर सकता है. भारत की ओर से जवाबी कार्रवाई का इशारा गृहमंत्री ने यह कहकर दिया है कि पहलगाम के दरिंदे “चुन-चुन के मारे जाएंगे”.

पाकिस्तान की ओर से कई लोगों ने साबित करने का प्रयास किया कि पहलगाम में बेगुनाह लोगों को उनका मजहब पूछ कर मारने वालों से उनका कोई वास्ता नहीं. उनकी बात विदेशी पत्रकार संभव है मान ले लेकिन हम बिल्कुल नहीं मान सकते. मुंबई हमले के समय कराची में बैठकर आतंकियों को निर्देश देने वाले लोगों को दंडित करने के लिए पाकिस्तान ने कुछ नहीं किया. सारे सबूत दिए गये. हाफिज सईद आज भी दंडित नहीं हुआ. जब नरेंद्र मोदी अचानक लाहौर पहुंचे थे तो उसके फौरन बाद पठानकोट में जिहादी हमला हुआ था. इस बार अगर भारत युद्ध की तैयारी कर रहा है तो इसलिए कि कोई दूसरा चारा नहीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पहलगाम हमले पर जवाबी कार्रवाई कब?

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि प्रधानमंत्री ने पिछले हफ्ते ‘मन की बात’ में कश्मीर के पहलगाम हमले को लेकर जो बातें कहीं, वह पूरे देश की भावना थी. इसकी सराहना होनी चाहिए. मगर, खेद इस बात पर है कि इस मौके पर प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा सब सच नहीं था.

हमले से पहले कश्मीर की स्थिति पर मोदी ने कहा था,

“कश्मीर में शांति लौट रही है, स्कूलों और कॉलेजों में रौनक है, निर्माण कार्य ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है, लोकतंत्र मजबूत हो रहा है, पर्यटकों की संख्या रिकॉर्ड दर से बढ़ रही है, लोगों की आय बढ़ रही है, युवाओं के लिए नए अवसर पैदा हो रहे हैं...”

इन बातों से सभी सहमत नहीं होंगे और इस गहन चिंतन के क्षणों में मोदी भी अपने इन दावों को अतिशयोक्तिपूर्ण मानेंगे.

चिदंबरम लिखते हैं कि कश्मीर में शांति दूरगामी लक्ष्य है. 24 अप्रैल 2025 को सर्वदलीय बैठक में गृहमंत्रालय की तरफ से कहा गया कि जून 2014 से मर्ई 2024 के बीच की अवधि में 1643 आतंकी घटनाएं हुईं, 1925 घुसपैठ की कोशिशें हुईं, 726 सफल घुसपैठ हुईं. जम्मू-कश्मीर में सरकारी स्कूलों में दाखिले में गिरावट आयी है. राज्य का दर्जा छीना जा चुका है, उपराज्यपाल के पास अपार अधिकार हैं. बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय आय से नीचे बनी हुई है.

लेखक का कहना है कि सरकार ने घटना पर आश्चर्य तो जताया लेकिन पश्चाताप नहीं किया. किसी भी अफसर ने सुरक्षा में गंभीर चूक को स्वीकार नहीं किया. प्रधानमंत्री सऊदी अरब की यात्रा छोड़कर दिल्ली लौटे लेकिन पहलगाम या श्रीनगर नहीं गए. सर्वदलीय बैठक बुलाई लेकिन प्रधानमंत्री शरीक नहीं हुए. इसके बाद राजनीतिक दलों और व्यक्तियों ने अलग-अलग रुख लिया. लेखक का मनना है कि निर्णायक कार्रवाई की जरूरत है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पाकिस्तान का इलाज क्या है?

पुष्पेश पंत ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि हर बार जब आतंकवादी हमला करते हैं तो हम ‘कायरों द्वारा किए गये जघन्य अपराध’ की निंदा करते हैं और उन्हें ‘करारा जवाब’ देने का संकल्प दिखाते हैं. शोकाकुल परिवारों द्वारा छाती पीटने और हमारी रक्षा के लिए चुने गये लोगों द्वारा छाती पीटने में फर्क है. बालाकोट और पुलवामा की यादें ताजा हैं. मुंबई, अक्षरधाम और भारतीय संसद पर हमले भी नहीं भूले हैं. ये रक्तपात की नाटकीय घटनाएं हैं जिनका जवाब सर्जिकल स्ट्राइक या उचित रूप से सैन्य और कूटनीतिक प्रतिक्रिया से दिया गया है. दुख की बात है कि कुछ भी काम नहीं आया.

पुष्पेश पंत लिखते हैं कि चीन और अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान अपना ‘हजारों घावों का युद्ध’ जारी रखता है. दोनों ही देशों ने पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने से बचाने के लिए या फिर दुर्दांत आतंकियों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव पर यूएन में वीटो का उपयोग किया है. ट्रंप ने जो अशांति फैलाई है उसने भारतीय राष्ट्रीय हितों की खोज के लिए वैश्विक वातावरण को प्रतिकूल रूप से बदल दिया है.

पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों के नरसंहार के बाद असंख्य भारतीयों को जो पीड़ा हो रही है वह उन्हें कर्कश चीख के साथ पूछने के लिए मजबूर करती है- यह कब तक चलेगा? पाकिस्तान सरकार ने हमेशा की तरह भारत से इस भीषण आतंकी हमले में पाकिस्तान की मिलीभगत के ‘विश्वसनीय सबूत’ देने के लिए कहा है. इससे पहले जब भी सबूत साझा किए गये तो पाकिस्तान ने उन्हें नकारा है. यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि पाकिस्तान के नापाक इरादों से लड़ने के दृढ़ संकल्प के बीच भारतीय मुसलमानों को ‘पाकिस्तानी एजेंट’ के रूप में संदिग्ध नहीं बनाया जाना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

टैरिफ के झटकों के बीच भारत के लिए मौका

बिजनेस स्टैंडर्ड में जनक राज ने लिखा है कि अमेरिका की ओर से टैरिफ को लेकर किए गये एलान और उसकी प्रतिक्रिया में चीन की ओर से की गयी घोषणा वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक झटका है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि 2025 में वैश्विक आर्थिक विकास दर धीमी होकर 2.8 फीसदी रह जाएगी. अनुमानों से यह आधा प्रतिशत कम है. भारत पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. हालांकि कई अन्य प्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में उतना प्रभावित नहीं होगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू मांग के दम पर चलती है जिसमें दुनिया और अमेरिका को कुल निर्यात भारत के जीडीपी का क्रमश: 22 फीसदी और 2 फीसदी हैं. यह हिस्सेदारी कई उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है. आईएमएफ ने 2025-26 के लिए भारत के विकास दर में वृद्धि के पूर्वानुमान को संशोधित कर 6.2 फीसद कर दिया है.

जनक राज ने लिखा है कि व्यापार युद्ध भारत के आईटी सेवा निर्यात को भी प्रभावित करेगा. अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मे 1 फीसदी की मंदी से आईटी निर्यात में 2 फीसदी से ज्यादा की कमी आती है.

यह बात भी गौर करने लायक है कि 2018-20 के दौरान अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध का फायदा भारत को हुआ था. भारत के आईटी सेवाओं की मांग में बढ़ोतरी हुई. अमेरिकी कंपनियों ने चीन की आईटी सेवाओं पर अपनी निर्भरता कम कर दी और भारत की आईटी कंपनियों से अपनी आउटसोर्सिंग बढ़ा दी.

दवाओं के निर्यात मामले में भी ऐसा ही देखने को मिला था. वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कुछ हद तक सकारात्मक है. आईएमएफ ने 2025 में तेल की कीमतों में 15.5 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया है. इससे भारत के चालू खाता घाटे को कम करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलनी चाहिए. अमेरिका ने भारत में जवाबी टैरिफ अन्य देशों की तुलना में बहुत कम 26 फीसद लगाया है. इससे अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत को ज्यादा तुलनात्मक लाभ मिलेगा. उदाहरण परिधान और वस्त्रों में चीन, वियतनाम और बांग्लादेश की तुलना में बढ़त हासिल होगी. कुल मिलाकर व्यापार युद्ध ने भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का प्रमुख खिलाड़ी बनने का शानदार मौका दिया है.

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×