ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाराज BJP Vs नाराज BJP: MP चुनाव से पहले कैसे सिंधिया गुट ने बीजेपी में किया दो फाड़?

MP Election 2023: जिन विधानसभा क्षेत्रों में सिंधिया समर्थित विधायक चुनाव लड़ रहे हैं, उन सभी क्षेत्रों में बीजेपी के 'नाराज बीजेपी' और 'शिवराज बीजेपी' गुट सक्रिय हो गए हैं.

story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

मार्च 2020 से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) मध्य प्रदेश (MP Election 2023) की राजनीति के केंद्र बिंदु में रहे, जब सिंधिया अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और कमलनाथ सरकार गिर गई. तब से, पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैडर कभी भी उनकी उपस्थिति को पचा नहीं पाए और उन लोगों ने हमेशा सिंधिया को अपने राजनीतिक करियर के लिए खतरे के रूप में देखा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अब, आगामी मध्य प्रदेश चुनाव में बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है. इसी बीच बीजेपी ने अब तक उन 22 विधायकों में से लगभग 50 प्रतिशत को टिकट दिया है, जिन्होंने सिंधिया के साथ दलबदल किया था. बाकी बचे लोगों में से कुछ को टिकट नहीं दिया गया. वहीं, कुछ लोगों को टिकट देने के फैसले को होल्ड पर रख दिया गया है.

जिन विधानसभा क्षेत्रों में सिंधिया समर्थित विधायक चुनाव लड़ रहे हैं, उन सभी क्षेत्रों में बीजेपी के 'नाराज बीजेपी' और 'शिवराज बीजेपी' गुट सक्रिय हो गए हैं, जो सिंधिया और उनके समर्थकों का विरोध कर रहे हैं. नतीजतन, राज्य विधानसभा चुनाव में मुकाबला बीजेपी बनाम बीजेपी है, जिसके लिए 17 नवंबर को मतदान होगा.

सिंधिया खेमे से किसे मिला टिकट?

एक बार फिर सुर्खियों में राज्य का ग्वालियर-चंबल क्षेत्र होगा, जो कि सिंधिया का गढ़ है. इस क्षेत्र में 34 विधानसभा सीटें हैं. 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने 26 सीटें जीती थीं, जिससे पार्टी को 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने में मदद मिली थी.

सिंधिया के समर्थक, जो इस चुनाव के लिए टिकट पाने में कामयाब रहे, उनमें शिवराज सिंह चौहान के कैबिनेट में मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर, अदल सिंह कंसाना और रघुराज सिंह कंसाना, दोनों क्रमशः चंबल क्षेत्र के सुमावली और मुरैना से गुर्जर नेता हैं. 2018 में दलबदल के बाद हुए उपचुनाव में दोनों चुनाव हार गए थे.

डबरा से कट्टर सिंधिया समर्थक इमरती देवी भी स्थानीय बीजेपी नेताओं के विरोध के बावजूद टिकट हासिल करने में सफल रही हैं. वह भी 2018 का उपचुनाव हार गई थीं लेकिन सिंधिया इतने हावी रहे कि इन सभी को टिकट दे दिया गया.

प्रमुख विभागों वाले सिंधिया के दो कट्टर समर्थकों को भी टिकट मिला है. इनमें सागर जिले के सुरखी से गोविंद सिंह राजपूत और इंदौर के सांवेर से तुलसी सिलावट शामिल हैं. कैबिनेट मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव भी बदनावर से चुनाव लड़ेंगे.

सिंधिया के विधायक Vs एमपी बीजेपी के पुराने नेता

2018 में बीजेपी में एंट्री के बाद गोविंद सिंह राजपूत ने सागर का राजनीतिक संतुलन बिगाड़ दिया. उनका विरोध शिवराज कैबिनेट के दो ताकतवर मंत्री-भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव कर रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में सरकार की ओर से शुरू की गई कई कार्रवाइयों से यह भी संकेत मिला है कि शिवराज भी गोविंद सिंह राजपूत के पक्ष में नहीं हैं.

दूसरी ओर, सिलावट को सांवेर में बीजेपी की स्थानीय इकाई के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, जो उम्मीदवार आम तौर पर सांवेर में चुनाव लड़ता था, बीजेपी ने उसे सोनकच्छ में एक अन्य आरक्षित सीट पर टिकट दिया है. वहीं, नाराज बीजेपी की यहां नजर है.

पड़ोसी धार जिले में, जहां राजवर्धन सिंह दत्तीगांव चुनाव लड़ रहे हैं, वहां भंवर सिंह शेखावत चुनौती देने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. 2018 के चुनावों में शेखावत बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए थे.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिलचस्पी लेते हुए कहा...

“तो, सिंधिया समर्थकों को बीजेपी की स्थानीय इकाई, भंवर सिंह शेखावत और कांग्रेस के खिलाफ मिलकर लड़ना होगा, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो जाएगा”,

ऐसा लगता है कि पार्टी के चुनाव प्रबंधकों ने अपनी सम्मानित सीटों पर जहां कोई बेहतर विकल्प उपलब्ध नहीं था, वहां सिंधिया खेमे के उम्मीदवारों को उतारा है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बेहतर विकल्पों के मामले में, कम से कम 11 दल बदलुओं को या तो टिकट देने से इनकार कर दिया गया है या उनके नाम रोक दिए गए हैं. इनमें गिर्राज दंडोतिया भी शामिल हैं, जिन्होंने मुरैना के दिमनी से चुनाव लड़ा था, लेकिन अब उन्हें टिकट नहीं दिया गया है क्योंकि बीजेपी ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है.

बीजेपी ने तोमर और दो अन्य केंद्रीय मंत्रियों -प्रह्लाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते सहित छह अन्य मौजूदा सांसदों को मैदान में उतारकर सबको हैरान कर दिया है.

एक और सिंधिया समर्थक जिसका टिकट काटा गया है, वे गोहद से रणवीर जाटव हैं. जाटव एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल हैं, उनके पिता माखनलाल जाटव विधायक थे. 2009 में उनकी हत्या के बाद कांग्रेस ने रणवीर को टिकट दिया था.

जाटव के परिवार ने बीजेपी नेता लाल सिंह आर्य पर माखनलाल जाटव की हत्या का आरोप लगाया था और उन पर हत्या का मामला भी दर्ज किया गया था लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया. 2009 में कांग्रेस ने रणवीर को मैदान में उतारा और वह चुनाव जीत गए लेकिन 2013 में उन्हें आर्य से हार मिली थी. रणवीर ने 2018 में फिर से जीत दर्ज की, जब उन्होंने सिंधिया के साथ दलबदल किया, लेकिन 2020 में कांग्रेस उम्मीदवार से उपचुनाव में हार गए.

अब गोहद में जाटव की जगह आर्य ने ले ली है और सिंधिया के समर्थक नाखुश है. बीजेपी नेताओं का दावा है, ''यहां, 'महाराज बीजेपी' आर्य के लिए चुनाव को कठिन बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.''

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सिंधिया के तख्तापलट से बीजेपी को एक और कार्यकाल और झटका दोनों मिला

बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के एकता के कई प्रयासों के बावजूद, महाराज बीजेपी (सिंधिया गुट) और नाराज बीजेपी के बीच दरार चौड़ी हो गई है. ऐसे मौके आए हैं, जब शिवराज सिंह चौहान के सिंधिया-समर्थक कैबिनेट सहयोगियों ने निजी तौर पर स्वीकार किया है कि वे कांग्रेस पार्टी में बेहतर स्थिति में थे.

कमलेश जाटव, ओपीएस भदोरिया, मुन्नालाल गोयल, रक्षा सिरोनिया, सुरेश धाकड़, ब्रजेंद्र यादव, जजपाल सिंह जज्जी और ब्रजेंद्र यादव सहित अन्य लोग बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची में अपना नाम आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

बीजेपी में सिंधिया फैक्टर का असर उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया की संभावनाओं पर भी पड़ा है. यशोधरा राजे ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की बहन हैं. हालांकि, खेल और युवा कल्याण मंत्री यशोधरा ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ने का हवाला दिया, लेकिन माना जाता है कि पार्टी ने उन्हें संकेत दिया था कि उन्हें टिकट नहीं मिलेगा. भोपाल में एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा...

“राजस्थान में अपनी बहन, वसुंधरा राजे सिंधिया की तरह, मध्य प्रदेश में यशोधरा भी पार्टी नेतृत्व गुड बुक में नहीं थीं."

हालांकि, भले ही 2020 में सिंधिया के तख्तापलट ने मध्य प्रदेश में बीजेपी को एक और कार्यकाल के लिए सत्ता में काबिज किया, लेकिन इसने पार्टी को परेशान भी किया. विधानसभा चुनावों से पहले, बीजेपी को न केवल राज्य में भारी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अंदरूनी कलह का भी सामना करना पड़ रहा है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिलचस्प टिप्पणी की. मप्र में लगभग सभी बीजेपी नेता, जिनमें शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता भी शामिल हैं, सिंधिया को एक खतरे के रूप में देखते हैं और नरेंद्र सिंह तोमर, जो सिंधिया को पसंद करते हैं, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र को अपना राजनीतिक क्षेत्र मानते हैं. वरिष्ठ नेता ने सवाल किया...

ADVERTISEMENTREMOVE AD
यदि मध्य प्रदेश में बीजेपी जीतती है तो शिवराज, तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल सहित कई मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं, “उनमें से केवल एक ही सीएम की कुर्सी तक पहुंच सकता है. या तो केंद्रीय नेतृत्व एक प्रयोग करेगा, जैसा उन्होंने असम, उत्तराखंड या हरियाणा में किया था, जहां किसी भी पसंदीदा को शीर्ष पद नहीं दिया गया. तो क्या मध्य प्रदेश में, सिंधिया सीएम हो सकते हैं?"

यह एक पेचीदा मसला है. और अभी भी जीत के लिए कई गड़बड़ियां दूर करना बाकी है.

(लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक विचारात्मक लेख है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×