- कोलकाता में रिपब्लिक डे परेड रिहर्सल के दौरान एमएलए के बेटे ने एक वायुसेना अधिकारी को अपनी मिंट फ्रेश ऑडी क्यू 7 कार से टक्कर मार दी.
- यह कार अंबिया व संबिया सोहराब की थी. ये दोनों पूर्व आरजेडी एमएलए व वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस नेता मुहम्मद सोहराब के बेटे हैं.
- सोहराब को कोलकाता के बुर्राबाजार का फल माफिया सरगना के तौर पर जाना जाता है. ये पूरे प्रदेश में फलों की कीमत निर्धारित करता है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उस तरह के लोगों की बेहतरीन मिसाल हैं, जिन्हें भगवा धड़ा ‘सेकुलर’ कहता है. यानी जिन्हें अल्पसंख्यकों के हितों के रखवाले बनकर अपना उल्लू सीधा करने में महारत हासिल होती है.
फिर ममता को तो आने वाले चुनावों में सूबे के 30 फीसदी मुस्लिम वोटों को भी बचाना भी है.
13 जनवरी की धुंध भरी सुबह 6:30 बजे जब IAF अधिकारी अभिमन्यु गौड़ रेड रोड पर रिपब्लिक डे परेड रिहर्सल का निरीक्षण कर रहे थे, तब विद्यासागर ब्रिज से उतरकर तीन रेलिंग तोड़ते हुए एक मिंट फ्रेश ऑडी क्यू 7 कार ने उन्हें सामने से आकर टक्कर मार दी.
उस वक्त ड्यूटी पर पुलिस भी तैनात थी, जिसने कोई कदम नहीं उठाया. तेज गति दौड़ती हुई वह गाड़ी अभिमन्यु को अपने साथ 20 मीटर तक घसीटते हुए ले गई और आगे जाकर एक और बैरीकेड से टकरा गई, जिससे कार का बोनट टूट गया.
मौके पर ही अभिमन्यु की मौत हो गई. गाड़ी का ड्राइवर फरार हो गया, पर वह जाते वक्त गाड़ी के पीछे से वह कागज फाड़ना नहीं भूला, जिस पर डीलर के इस्तेमाल किए गए ट्रेड नंबर पड़े थे.
अपना महल छोड़कर भाग गए सोहराब
पुलिस ने देर से कार्रवाई की, पर उन्हें यह पता करने में आधा घंटे से ज्यादा वक्त नहीं लगा कि इस 77 लाख की गाड़ी का मालिक कौन है. यह गाड़ी अंबिया सोहराब की थी, जो पूर्व आरजेडी एमएलए व वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस नेता मुहम्मद सोहराब का बड़ा बेटा है.
बाद में पता चला कि अंबिया ने यह कार अपने छोटे भाई को तोहफे में दी थी, जिसकी हाल ही में शादी हुई है. तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य सुदीप बंदोपाध्याय इस शादी में शामिल हुए थे.
कार को अंबिया चला रहे थे या संबिया, या फिर कोई और, यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है, पर IAF प्रवक्ता का कहना है कि कार में ड्राइवर के अलावा कोई और नहीं था, जबकि पुलिस का कहना है कि कार में एक से अधिक व्यक्ति थे. पुलिस के बयान पर शक करने के कई कारण मौजूद हैं.
सोहराब कार के मालिक हैं, पुलिस को इस बात का पता घटना के कुछ मिनट बाद ही चल गया था. कॉल रिकॉर्ड से ये भी पता चल गया कि घटना के समय पूरा सोहराब परिवार घटनास्थल के बेहद नजदीक, पार्क स्ट्रीट पर था, पर पुलिस बड़े आराम से 10:30 पर हरकत में आई.
तब तक सोहराब परिवार जोरसांको की अपनी कोठी से फरार हो चुका था. यह कोठी जोरसांको पुलिस स्टेशन के ठीक सामने है.
हैरानी की बात नहीं कि पुलिस ने गाड़ी में एक से अधिक यात्री होने की बात कही है. जांच को भटकाने का सबसे आसान तरीका यही है. पुलिस का कहना है कि सुबह कोहरा अधिक होने की वजह से यात्रियों की संख्या के लिए सीसीटीवी फुटेज पर भरोसा नहीं किया जा सकता.
हालांकि जनता और मीडिया के बढ़ते दबाव के चलते संबिया को 14 दिन की पुलिस हिरासत में लिया गया है. संबिया पर हत्या, हत्या की कोशिश और सबूत मिटाने के आरोप लगाए गए हैं.
सोहराब पर 2002 में लगा था हत्या का आरोप
सोहराब को कोलकाता के बुर्राबाजार का फल माफिया सरगना के तौर पर जाना जाता है. ये पूरे प्रदेश में फलों की कीमत निर्धारित करता है. सोहराब का गैराज मर्सिडीज, बीएमडब्लू, लैंड रोवर जैसी महंगी कारों से भरा पड़ा है. सोहराब एक अमीर व्यक्ति हैं और वे लालू यादव की आरजेडी में तब भी एमएलए की सीट खरीदने का माद्दा रखते हैं, जब उनकी पार्टी ने CPI(M) के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी.
बाद में उन्होंने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर मुकुल रॉय की सरपरस्ती में ममता बनर्जी का विश्वास हासिल कर लिया.
वर्ष 2002 में सोहराब का नाम का एक व्यापारी की हत्या के मामले में सामने आया था, पर तब से उस मामले की जांच न तो CPI(M) सरकार के कार्यकाल में आगे बढ़ी और न ही तृणमूल के कार्यकाल में.
इस हिट एंड रन मामले की जांच के भी 2011 के पार्क स्ट्रीट रेप केस मामले की तरह भटका दिए जाने की आशंका है, ताकि दोषियों को बच निकलने का मौका मिल सके.
ममता की ‘राजनीति’
ममता बनर्जी की अपने मुस्लिम वोट बैंक के प्रति आवश्यकता से अधिक संवेदनशीलता ने सत्ताधारी पार्टी के सामने सर झुकाने वाली राज्य नीति को और अधिक नुकसान पहुंचाया है.
हाल ही में जब मुसलमानों की 1,50,000 की बड़ी संख्या वाली भीड़ ने कोलकाता के 345 किमी दक्षिण में मालदा जिले के कालियाचक में सरकारी वाहनों और पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, तब पुलिस कहीं भी स्थिति संभालती नजर नहीं आ रही थी.
इस घटना की जांच कराने की बजाय ममता ने साफ कह दिया कि यह कोई सांप्रदायिक घटना नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों और बीएसएफ के बीच हुई झड़प की एक आम घटना थी.
मालदा जिले में 51 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जबकि मालदा के कालियाचक इलाके में मुसलमानों की आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक 89 है.
मालदा के सबसे प्रभावशाली नेता एबीए गनी खान चौधरी की मृत्यु को लगभग एक दशक बीत चुका है. इस क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव लगातार कम हो रहा है और धार्मिक ताकतें फल-फूल रही हैं. ऐसे में एक बड़ी घटना पर मुख्यमंत्री की उदासीनता सवाल खड़े करती है और घटना में अपनी पार्टी की मिलीभगत की ओर इशारा करती है.
आतंक को पूरब आने का न्योता दे सकती हैं ममता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछले काफी समय से बिना किसी स्पष्ट कारण के ममता पर कृपा बरसाते रहे हैं.
शारदा चिटफंड घोटाले की सीबीआई जांच अभी तक बीच में ही अटकी है और बर्दमान जिले की बम बनाने वाली खागरागढ़ फैक्ट्री की जांच का भी यही हाल है, जबकि इस कंपनी के बांग्लादेश की कुख्यात जेएमबी के साथ संबंध जाहिर हो चुके थे. जेएमबी बांग्लादेश की हसीना सरकार को गिराने की कोशिशों के लिए कुख्यात है.
वोट के नशे में डूबी ममता अपनी लापरवाही से पूर्व में कुछ वैसे ही आतंकवाद को पनाह दे सकती हैं, जैसा मध्यपूर्व के देशों में नजर आता है.
(लेखक सुमित मित्रा दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार है.)