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महाराष्ट्र की सस्पेंस थ्रिलर के किरदार और अस्सी के दशक की फिल्में 

महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे के किरदार और डायरेक्टर

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अस्सी के दशक की फिल्मों के क्लाइमैक्स याद कीजिए.

दो पार्टियां लड़ रही हैं. कभी बाजी इधर, कभी उधर. द एंड की प्लेट आने से पहले कोई कह नहीं सकता कि कौन जीतेगा. जिस मुंबई में ये फिल्में बनीं, लगता है कि वहां के नेताओं ने क्लाइमैक्स की ये स्टाइल सियासत में भी कॉपी पेस्ट कर ली है. वैसे तब की फिल्मों से महाराष्ट्र की फिल्म इस मायने में अलग है कि- किरदारों और उनकी भूमिका अलग है. लेकिन वो बाद में. फिलहाल किसी को लग रहा है कि महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे का आखिरी पन्ना लिखा जा चुका है, फिल्म की आखिरी रील में BJP का मुस्कुराता चेहरा है, तो मुगालते में है. पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त.

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पलपल बदलती पिक्चर देखिए

शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के नेता 22 नवंबर को इस भरोसे के साथ सोए होंगे कि नई सुबह उनके लिए नई उम्मीदें लेकर आएगी..लेकिन जब सुबह उठे तो जमीन तले पैरों खिसक चुकी थी.

देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण की तस्वीरें देख ऐसा लगा कि महाराष्ट्र में महाभारत खत्म और जीत आखिर बीजेपी की हो गई. लेकिन चंद घंटे बाद शरद पवार और उद्धव ठाकरे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में नजर आए. तीन ऐसे विधायकों को पेश किया जो अजित पवार के साथ चले गए थे.

बीजेपी बहुमत सिद्ध नहीं कर पाएगी और आज भी नंबर हमारे पास है. सरकार हम ही बनाएंगे.
शरद पवार, नेता, एनसीपी

एक डर ये था कि चूंकि अजित पवार NCP विधायक दल के नेता हैं तो कहीं वो फ्लोर टेस्ट के लिए व्हिप जारी न कर दें? ऐसी हालत में भले कोई विधायक शरद पवार के साथ होता, वो व्हिप नहीं मानता तो अयोग्य घोषित हो जाता. शरद पवार ने इसका भी इलाज निकाला.

अजित पवार को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया गया और NCP प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल को विधायक दल का नेता बना दिया गया.

तो आज की हकीकत ये है कि शरद पवार को पावर तो मिली नहीं, परिवार जरूर टूटता हुआ दिख रहा है. लेकिन मैदान उन्होंने छोड़ा नहीं है. यानी सीन बदलता दिख रहा है... जिस अंदाज में शरद पवार ने कमबैक किया है, उससे सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने आधी रात का तख्तापलट इसलिए किया है ताकि उद्धव के रथ रोका जा सके, न कि देवेंद्र का पताका फहराए? और फिर वही बात - पिक्चर अभी बाकी है.

महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे के किरदार और डायरेक्टर

अगर गौर करें तो बीजेपी ने कभी हार मानी ही नहीं थी. नितिन गडकरी ने कहा था कि क्रिकेट और राजनीति में आखिरी गेंद तक नतीजे बदल सकते हैं. मोदी NCP की तारीफ कर रहे थे. वो पवार से मिल रहे थे. शरद पवार के दावों और बयानों को सुनकर भी सवाल उठते हैं.

अजित पवार- शरद पवार के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए विधायकों ने आरोप लगाया कि अजित पवार ने उन्हें धोखे से बुलाया और फिर राज्यपाल के सामने पेश कर दिया. शरद पवार ने आरोप लगाया कि अजित पवार ने जालसाजी की है. NCP विधायकों के हस्ताक्षर वाली जो चिट्ठियां पार्टी ने रखी थीं, उस पर कवर लेटर लगाया और राज्यपाल को दे दिया.

धनंजय मुंडे- वो NCP नेता जिनके घर पर अजित पवार ने बैठक की और फिर अजित पवार के साथ राजभवन में भी दिखे. धनजंय मुंडे दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे और NCP विधायक हैं. कहा जा रहा है कि धनंजय मुंडे ने ही NCP विधायकों को फोन कर बुलाया, अपने घर पर जमा किया और फिर राजभवन पहुंचे. ताज्जुब की बात है कि सुबह जिन धनंजय मुंडे को NCP की जमीन खिसकाने के लिए जिम्मेदार माना जा रहा था, वो दिन ढलते ही शरद पवार के नेतृत्व में हुई NCP बैठक में भी नजर आए.

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भगत सिंह कोश्यारी: महाराष्ट्र के सियासी उलटफेर में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का बड़ा हाथ है. 12 नवंबर को उन्होंने NCP को रात साढ़े आठ बजे तक का वक्त देकर दोपहर में ही राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर दी और अब लगभग पूरी रात बिजी रहे.

जरा सोचिए 22 नवंबर की रात 12:30 बजे कोश्यारी ने मुंबई से दिल्ली जाने के लिए अपनी यात्रा रद्द की. फिर राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश भेज दी. रात 2.10 बजे राज्यपाल के सचिव को कहा गया कि तड़के 5.47 बजे राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दाखिल करें और 6.30 बजे शपथ ग्रहण कराने का प्रबंध करें. जब ज्यादातर देश सो रहा था तो कोश्यारी जगे हुए थे. सुबह 8 बजे उन्होंने देवेंद्र फडणवीस को शपथ दिलाई. कोई ताज्जुब नहीं कि शिवसेना-NCP-कांग्रेस कोश्यारी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई हैं.

देवेंद्र फडणवीस : इस 'तख्तापलट' में अजित पवार ने भले ही मुख्य भूमिका निभाई लेकिन लीड रोल में देवेंद्र फडणवीस न हों, ऐसा हो नहीं सकता. देवेंद्र फडणवीस ने लंबी चुप्पी के बाद ऐसा धमाका किया, जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी. जो शिवसेना उन्हें झूठा बता रही थी, जो शिवसेना उनके सामने झुकने को तैयार नहीं थी, उसका पत्ता साफ कर दिया (फिलहाल तो यही स्थिति है).  ऐसा तो हो नहीं सकता कि अजित पवार को पटाने में उनकी कोई भूमिका नहीं हो. सवाल उठता है  कि क्या उन्होंने अकेले दम ऐसा किया या फिर बीजेपी आलाकमान का भी इसमें हाथ रहा?

बीजेपी आलाकमान: 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र चुनाव नतीजे आने के बाद से बीजेपी आलाकमान ने वो सक्रियता नहीं दिखाई जैसी सक्रियता हरियाणा में दिखाई गई थी. अब महाराष्ट्र में हालात बदले हैं तो क्या इसके पीछे आलाकमान की दखल है? संसद  के शीतकालीन सत्र के पहले दिन पीएम मोदी ने NCP की तारीफ की थी, याद रखिएगा.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक महाराष्ट्र के प्रभारी भूपेंद्र यादव 22 नवंबर की शाम 7  बजे आलाकमान के कहने पर ही मुंबई पहुंचे और सेटिंग शुरू हुई. ये भी याद रखना चाहिए कि अजित पवार के खिलाफ MSCB घोटाले में ED ने दर्ज किया. अगर इस हवाले से उनपर कोई दबाव बना है तो ये समझना मुश्किल नहीं है कि ये चाबी कहां से घुमाई गई होगी.

शरद पवार : सामने से कह रहे हैं कि अजित ने धोखा दिया. NCP शिवसेना-कांग्रेस के साथ है लेकिन कुछ बातें चौंकाती हैं. ये याद रखना चाहिए कि शरद पवार कुछ दिन पहले पीएम मोदी से मुलाकात कर चुके हैं? क्या सही में सिर्फ किसानों के मुआवजे पर बात हुई थी? ये भी पहेली है कि अजित पवार पर जालसाजी का आरोप लगाने के बाद भी उन्होंने अजित को पार्टी से निकाला क्यों नहीं? 2014 में अपने विधायकों को विधानसभा से गैरहाजिर कराकर वो बीजेपी की सरकार  बनवा चुके हैं. 1978 में शरद कांग्रेस के 7 विधायकों को लेकर जनसंघ की सरकार बनवा चुके हैं.

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इस सियासी फिल्म में कोई हीरो नहीं

अब वापस लौटता हूं उस अंदाजे पर कि महाराष्ट्र की सियासी फिल्म में पल-पल हालात बदल रहे हैं इसलिए ये अस्सी की दशक की फिल्मों की तरह हो गई है लेकिन किरदारों की भूमिका अलग है. तब फिल्मों में एक हीरो होता था और एक विलेन होता था. हीरो अच्छाई के लिए लड़ता था, प्रेम के लिए प्राण देने को तैयार हो जाता था, समाज के लिए मर मिटना चाहता था. आज की सियासी फिल्म में कोई हीरो नहीं.

ये नया भारत है और ये नए भारत की राजनीति है. यहां पांच राज्यों में एक ऐसी पार्टी सरकार बना लेती है जो बहुमत में नहीं. विपक्षी पार्टी के कर्ताधर्ता ही पाला बदल लेते हैं. कुर्सी के लिए पूरी पार्टी सत्ता में बैठी पार्टी में विलीन हो जाती है. कुछ भी संभव है.

शुचिता, नैतिकता की बात बेमानी है. और सबके लिए बेमानी है. संवैधानिक पद पर बैठे शख्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि वो पार्टी लाइन में बह जा रहे हैं. कांग्रेस कट्टर हिंदूवादी पार्टी शिवसेना के साथ जाने को तैयार है. बीजेपी चुनावी शत्रु NCP को गले लगाने के लिए तैयार है. बीजेपी के नेता जिसे चंद रोज पहले भ्रष्ट कह रहे थे, उसे डिप्टी सीएम बनाने के लिए तैयार हैं. शर्त सिर्फ एक है सत्ता मिल जाए, कुर्सी जम जाए, बाकी सब मंजूर है.

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