ADVERTISEMENTREMOVE AD

झारखंड चुनाव: आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों पर टिकी निगाहें, BJP और JMM में टक्कर

Jharkhand Elections: 2019 में बीजेपी ने आदिवासियों के लिए आरक्षित केवल दो सीटें जीतीं और 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी को 5 में से एक भी सीट नहीं मिली.

Published
story-hero-img
i
Aa
Aa
Small
Aa
Medium
Aa
Large

झारखंड में जैसे-जैसे पहले चरण के मतदान का वक्त नजदीक आ रहा है, विधानसभा चुनाव की गर्मी पठारी क्षेत्र में ठंड को पीछे छोड़ती जा रही है.

इस सियासी जंग में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 28 सीटें सत्तारूढ़ जेएमएम-कांग्रेस और बीजेपी के लिए बेहद अहम हैं.

बीजेपी लगातार "घुसपैठ" के मुद्दे को आदिवासियों की पहचान से जोड़कर उन्हें आंदोलित करने के अभियान में लगी हुई है, जबकि जेएमएम-कांग्रेस ने सरना धर्म कोड और अधिवास नीति (भूमि अभिलेखों के लिए कट-ऑफ वर्ष 1932 के आधार पर) पर ध्यान केंद्रित करके जवाब दिया है.

तो फिर झारखंड में कौन जीत रहा है?

81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए पहले चरण में 43 सीटों के लिए 13 नवंबर को और दूसरे चरण में 38 सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होगा. नतीजे महाराष्ट्र चुनाव के साथ 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे.

पहले चरण में जिन 43 सीटों पर मतदान होगा, उनमें कोल्हान क्षेत्र की 14, पलामू क्षेत्र की नौ और छोटानागपुर क्षेत्र की 20 सीटें शामिल हैं. पहले चरण में आदिवासियों के लिए आरक्षित 20 सीटों पर मतदान होना है.

सत्तारूढ़ इंडिया ब्लॉक से, जेएमएम कुल 43 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, कांग्रेस 30, आरजेडी 6 और CPI-ML चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है. विपक्षी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बीजेपी ने 68 सीटों पर, AJSU पार्टी ने 10, जेडीयू ने दो और एलजेपी(आर) ने एक सीट पर उम्मीदवार खड़े किए हैं.

कांग्रेस और आरजेडी ने पलामू क्षेत्र की दो सीटों- छतरपुर और बिश्रामपुर में अपने-अपने उम्मीदवार उतारे हैं. जेएमएम और CPI-ML ने धनवार सीट पर उम्मीदवार उतारे हैं. धनवार राज्य की प्रतिष्ठित सीटों में से एक है, जहां से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी चुनाव लड़ रहे हैं.

इनके अलावा कई अन्य क्षेत्रीय और वामपंथी दलों ने भी अलग-अलग विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीजेपी खोई जमीन वापस पाने के लिए बेताब

अलग राज्य के रूप में गठन (15 नवंबर 2000) के बाद, खनिज समृद्ध और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस प्रदेश में यह पांचवां चुनाव है, जहां कोल्हान, उत्तरी छोटानागपुर और संथाल परगना प्रमंडलों में 28 विधानसभा सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं, जहां से सत्ता का रास्ता निकलता है.

2019 में कांग्रेस और आरजेडी के साथ जेएमएम ने 36.35 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 47 सीटें जीती थीं. दूसरी ओर, बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा और 33.37 प्रतिशत वोट के साथ 25 सीटें जीतीं. पार्टी को आदिवासियों के लिए आरक्षित केवल दो सीटें ही मिलीं. हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 संसदीय सीटों में से बीजेपी ने आठ सीटें जीतीं, लेकिन सभी पांच आदिवासी सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा. इससे बीजेपी के भीतर काफी बेचैनी है.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्रा ने क्विंट को बताया, "झारखंड में पहले कभी इतना कड़ा चुनाव नहीं हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे हेमंत सोरेन से सत्ता हासिल करने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पैनी नजर बनाए हुए हैं. हेमंत आदिवासियों के बीच सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन इसके भी पर्याप्त कारण हैं कि इस बार बीजेपी आदिवासी इलाकों में अपने सूखे को खत्म करती दिख रही है. इस आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें साफ दिखाई दे रही हैं. अगर कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हुआ तो जेएमएम के लिए भी मुश्किलें खड़ी होंगी."

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 55 दिनों में चार बार झारखंड का दौरा किया और सात रैलियों को संबोधित किया है. उन्होंने 10 नवंबर को रांची में रोड शो भी किया था. लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी लोहरदगा, धनबाद और जमशेदपुर पश्चिम में चुनावी रैलियां की हैं.

दूसरी तरफ, जेएमएम के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन (जो खुद विधायक और हेमंत सोरेन की पत्नी हैं) पूरे राज्य में जेएमएम और कांग्रेस दोनों उम्मीदवारों के लिए ताबड़तोड़ रैलियां और बैठकें कर रही हैं. हेमंत बरहेट सीट (संथाल परगना) से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कल्पना को गांडेय सीट (उत्तरी छोटानागपुर) से मैदान में उतारा गया है.

इन दो महत्वपूर्ण सीटों पर मतदान 20 नवंबर को होगा.

हेमंत और कल्पना लगातार कोयला कंपनियों पर राज्य सरकार के 1,36,000 करोड़ रुपये बकाया होने के दावे को जोरदार तरीके से उठाकर बीजेपी और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं. हेमंत अपनी सभाओं में कहना नहीं भूलते कि यह "झारखंड के सभी लोगों का है. यह हमारी मेहनत और जमीन का पैसा है. इसकी मांग करने की वजह से ही मुझे जेल में डाला गया."

हो महासभा के केंद्रीय अध्यक्ष मुकेश बिरुआ ने क्विंट को बताया, "कोल्हान में आदिवासियों की मांगें सीधे तौर पर जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा से जुड़ी हैं. चुनावी माहौल में घुसपैठियों का मुद्दा उठाना अनावश्यक लगता है." कोल्हान में संथाल आदिवासियों की अच्छी-खासी आबादी के साथ-साथ हो आदिवासी भी एक प्रभावी वोट फैक्टर हैं.

प्रमुख उम्मीदवार

बीजेपी ने उन सभी बड़े आदिवासी चेहरों को मैदान में उतारा है जो लोकसभा चुनाव हार गए थे या जिन्हें टिकट नहीं दिया गया था, जबकि कुछ सीटों पर बागी भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं.

कोल्हान क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे जेएमएम के दिग्गज दीपक बिरुआ, दशरथ गगराई, रामदास सोरेन और निरल पूर्ति बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती हैं. वहीं पलामू और छोटानागपुर क्षेत्र में भी वे सत्तारूढ़ दलों के लिए चुनौती बनते दिख रहे हैं.

2019 के चुनावों में कोल्हान क्षेत्र में एक भी सीट नहीं मिलने के बाद बीजेपी को पूर्व मुख्यमंत्री और छह बार के विधायक चंपई सोरेन से भी बड़ी उम्मीदें हैं, जो इस साल 30 अगस्त को जेएमएम छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए और सरायकेला से चुनाव लड़ रहे हैं. हाल ही में बीजेपी छोड़कर जेएमएम में शामिल हुए गणेश महाली को चंपई सोरेन के खिलाफ मैदान में उतारा गया है.

एक अन्य हाई-प्रोफाइल उम्मीदवार ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू हैं, जिन्हें बीजेपी ने पूर्वी जमशेदपुर की अनारक्षित सीट से मैदान में उतारा है. रघुबर दास 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार सरयू रॉय से सीट हार गए थे. इस बार सरयू रॉय जमशेदपुर पश्चिम में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उनका मुकाबला कांग्रेस विधायक और मंत्री बन्ना गुप्ता से होगा.

पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, जिन्हें इस बार सिंहभूम संसदीय क्षेत्र में करारी हार का सामना करना पड़ा, जगन्नाथपुर सीट से चुनाव लड़ रही हैं. मधु और गीता कोड़ा दोनों ही जगन्नाथपुर से दो बार विधायक रह चुकी हैं. उनका मुकाबला कांग्रेस विधायक सोनाराम सिंकू से होगा. कोल्हान और दक्षिणी छोटानागपुर क्षेत्र में कम से कम पांच सीटों पर AJSU पार्टी और जेडीयू के साथ बीजेपी गठबंधन का भी शक्ति परीक्षण होना है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

चुनावी मुद्दे

झारखंड के चुनावी घोषणापत्रों में आदिवासी हितों की सुरक्षा, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), सरना धर्म संहिता, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए रोजगार में आरक्षण बढ़ाना, युवाओं के लिए रोजगार और महिलाओं के खातों में हर महीने पैसा भेजना जैसे प्रमुख मुद्दे केंद्र में हैं.

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र को 'संकल्प पत्र' नाम दिया है, और इंडिया ब्लॉक ने अपने घोषणापत्र को 'एक वोट सात गारंटी' नाम दिया है, जिसमें सात गारंटियां, यानी शिक्षा, अधिवास नीति, सामाजिक न्याय, भोजन, 'मंईयां सम्मान योजना', नौकरियां और किसानों के कल्याण का आश्वासन दिया गया है.

घोषणापत्र जारी करते हुए हेमंत सोरेन ने कहा, "हम भूमि रिकॉर्ड के लिए कट-ऑफ साल 1932 के आधार पर डोमिसाइल नीति लाने, सरना धर्म कोड लागू करने और ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के लिए क्रमशः 27 प्रतिशत, 12 प्रतिशत और 28 प्रतिशत आरक्षण लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. हमारी सरकार ने इन सभी प्रस्तावों को विधानसभा से पारित करवाकर केंद्र को पहले ही भेज दिया है, लेकिन केंद्र इन मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है. हम इसे फिर से पारित करके उनके पास भेजेंगे."

जनगणना में अलग सरना कोड की मांग लंबे समय से आदिवासी आंदोलन का केंद्र रही है. जेएमएम और कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस साल जून में झारखंड की आदिवासी सीटों पर हार का सामना करने वाली बीजेपी ने संथाल परगना में "बांग्लादेशी" घुसपैठियों के कारण 'जनसांख्यिकीय परिवर्तन' का मुद्दा उठाया है. साथ ही, बीजेपी ने राज्य की 'रोटी माटी और बेटी' को बचाकर झारखंडी अस्मिता (पहचान) को बनाए रखने का वादा किया है.

3 नवंबर को बीजेपी का 'संकल्प पत्र' जारी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की, सत्ता में आने पर पार्टी राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करेगी, लेकिन आदिवासी समुदायों को इससे बाहर रखा जाएगा.

झारखंड में बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष रवींद्र कुमार राय ने क्विंट से कहा, "अब जेएमएम-कांग्रेस हार का खेल खेल रहे हैं. इस बार बीजेपी सामान्य सीटों के साथ आदिवासी इलाकों में भी अच्छा प्रदर्शन करेगी."

जेएमएम प्रवक्ता डॉ तनुज खत्री ने पलटवार करते हुए कहा, "झूठ और नफरत फैलाकर चुनाव नहीं जीता जा सकता. बीजेपी गलतफहमी में है. इंडिया ब्लॉक की सात गारंटी ने बीजेपी के घोषणापत्र की पोल खोल दी है. जेएमएम कार्यकर्ता और समर्थक एकजुट हैं. हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ने पहले चरण के मतदान से पहले ही मोदी की पूरी सेना को थका दिया है."

(लेखक झारखंड स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

Speaking truth to power requires allies like you.
Become a Member
Monthly
6-Monthly
Annual
Check Member Benefits
×
×