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भारत-पाकिस्तान तनाव: क्या चीन पर 'तटस्थ' बने रहने का भरोसा किया जा सकता है?

सैबल दासगुप्ता लिखते हैं, पाकिस्तान की युद्ध योजना इस धारणा पर निर्भर है कि उसे चीन से पर्याप्त फंडिंग मिलेगी.

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(इस लेख को अपडेट किया गया है. यह पहली बार 30 अप्रैल को प्रकाशित हुआ था.)

भारत और पाकिस्तान के दरम्यान बढ़ते तनाव के बीच क्या चीन अपने 'सदाबहार' दोस्त पाकिस्तान का समर्थन करेगा? या फिर वह एक अच्छा पड़ोसी बनकर वैश्विक स्तर पर निंदनीय आतंकी कृत्य के खिलाफ भारत की संप्रभु जवाबी कार्रवाई को स्वीकार करेगा?

8 मई की तनावपूर्ण रात में भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान के ड्रोन/मिसाइल हमलों के प्रयास को सफलतापूर्वक विफल करने के बाद, भारत और चीन सहित उसके पड़ोसियों के वर्तमान भू-राजनीतिक समीकरणों पर एक नजर डालना जरूरी है- क्योंकि उनकी भागीदारी भविष्य में किसी भी एस्केलेशन और संभावित नतीजों को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारक होगी.

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PoK में चीन की रियल एस्टेट

सालों से चीन भारत के इस अनुरोध को नजरअंदाज करता रहा है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में नई परियोजनाएं न लगाई जाएं क्योंकि यह भारतीय क्षेत्र का हिस्सा है. फिर भी चीन ने इस क्षेत्र को 60 बिलियन डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में शामिल कर लिया है और भू-राजनीतिक कारणों से इस क्षेत्र में कई परियोजनाएं बनाई हैं.

चीन की सीमा पर गिलगित-बाल्टिस्तान है, जो पीओके का एक हिस्सा है, जो पूरे पाकिस्तान में फैले 2,400 किलोमीटर लंबे सीपीईसी का प्रवेश द्वार है. चीन से आने वाले काराकोरम राजमार्ग (केकेएच) को उन्नत और विस्तारित करना एक भौगोलिक आवश्यकता थी. लेकिन भारत के अनुरोध का सम्मान करते हुए चीन अन्य परियोजनाओं के निर्माण से बच सकता था.

इसके बावजूद भी चीन ने आगे बढ़कर अन्य परियोजनाओं में निवेश किया, ताकि क्षेत्र पर पाकिस्तान के दावे को राजनीतिक वैधता मिल सके और बाद में भारत के लिए इस पर पुनः कब्जा करना कठिन हो जाए.

22 अप्रैल को पहलगाम में हुई हत्याओं और भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई की घोषणा के बाद चीन ने पाकिस्तान को J-10C लड़ाकू विमानों सहित सैन्य हार्डवेयर की ताजा आपूर्ति की थी. लेकिन पाकिस्तान को मिसाइलों और गोला-बारूद की निरंतर और निर्बाध आपूर्ति का आश्वासन नहीं दिया गया है, क्योंकि वह सालों से इनका भुगतान करने की स्थिति में नहीं है.

पाकिस्तान अलग-अलग विदेशी स्रोतों से और फंड की मांग कर रहा है, क्योंकि उसे दवाइयों सहित कई तरह के सामानों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. वहीं ये चीजें उसे चीन से उधार में नहीं मिल रही है. बीजिंग से उसके सहयोगी को और अधिक फंड मिलने की संभावना नहीं है, क्योंकि इस्लामाबाद द्वारा पिछला कर्ज नहीं चुका पाने से वह दुखी है.

पीओके में चीन की सबसे बड़ी परियोजना झेलम नदी पर 1.54 बिलियन डॉलर की आजाद पुत्तन हाइड्रोपावर प्लांट है. अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं में गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में डायमर-भाषा बांध और केकेएच का अपग्रेडेशन शामिल है.

पीओके और पाकिस्तान के अन्य हिस्सों में चीन की बड़ी हिस्सेदारी को देखते हुए, क्या यह भरोसा किया जा सकता है कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के मद्देनजर वह तटस्थ रहेगा?

यह एक गंभीर मुद्दा है. पाकिस्तान से लड़ना भारत के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है, क्योंकि उसकी सैन्य क्षमता वाकई बेहतर है. हालांकि, अगर चीन इस समय पाकिस्तानी सेना को मिसाइलों और अन्य अत्याधुनिक उपकरणों की आपातकालीन आपूर्ति भेज देता है, तो स्थिति जटिल हो जाएगी.

इस्लामाबाद ने चीन से 40 J-35A लड़ाकू विमानों की मांग की है, जिनका इस्तेमाल वह भारत द्वारा हाल ही में खरीदे गए राफेल लड़ाकू विमानों के खिलाफ करने की योजना बना रहा है.

हालांकि पाकिस्तान के पास F-16 लड़ाकू विमानों का बेड़ा है, लेकिन अमेरिका के साथ एक अनुबंध के तहत वह इसका इस्तेमाल केवल आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में कर सकता है, न कि भारत के खिलाफ. इसका मतलब यह नहीं है कि पाकिस्तान मुश्किल समय में अनुबंध पर कायम रहेगा.

पाकिस्तान के हथियारों के आयात का लगभग 81 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता है, जिसके तहत उसे फ्रिगेट, ड्रोन और मिसाइलें मिली हैं. पाकिस्तान बीजिंग से मध्यम से लंबी दूरी की मिसाइलों की अतिरिक्त आपूर्ति की मांग कर रहा है. उसे छोटे हथियारों की भी अतिरिक्त आपूर्ति की आवश्यकता है.

शांति और अवरोध के बीच में

कुछ विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि दोनों देश संघर्ष को नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों ओर गोलीबारी तक सीमित रख सकते हैं- बजाय इसके कि पूरी सेना, वायुसेना और नौसेना को शामिल करते हुए एक व्यापक युद्ध छेड़ दिया जाए.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है. शनिवार, 10 मई को प्रेस ब्रीफिंग के दौरान भारतीय सेना में कर्नल सोफिया कुरैशी ने बताया कि पाकिस्तानी सेना की ओर से पश्चिम मोर्चे पर लगातार आक्रामक गतिविधियां जारी है. पाकिस्तान ने ड्रोन्स, लॉन्ग रेंज हथियार और लड़ाकू विमानों का उपयोग कर भारतीय सैन्य ढांचे को निशाना बनाया है. नियंत्रण रेखा पर भी ड्रोन घुसपैठ और भारी कैलिबर हथियारों से गोलाबारी की है. पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय सीमा और एलओसी पर 26 स्थानों पर हवाई घुसपैठ के प्रयास किए हैं.

वहीं भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है. सियालकोट एविएशन सेंटर को टारगेट किया है. इसके साथ ही रडार साइट्स, हथियार भंडार पर भी हमले किए गए हैं.

पाकिस्तान की युद्ध योजना इस धारणा पर आधारित है कि वह भारी खर्चों को पूरा करने के लिए चीन से पर्याप्त फंड हासिल कर लेगा.

दशकों से इस्लामाबाद सीमा पार आतंकवाद के माध्यम से भारत पर दबाव बनाए रखने की अपनी आवश्यकता का लाभ उठाकर चीन को सफलतापूर्वक ब्लैकमेल करता रहा है.

पाकिस्तान, जिसके पास मात्र 10 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है (भारत के पास 640 बिलियन डॉलर है), वह अतिरिक्त हथियारों के लिए भुगतान करने की स्थिति में नहीं है. इसके अलावा, पाकिस्तान CPEC के तहत अपने कर्ज का भुगतान करने में विफल रहा है, जिसके कारण बीजिंग को पिछले महीने 6 बिलियन डॉलर की किश्तों को फिर से जारी करना पड़ा.

दिवालिया होने के कगार पर खड़े पाकिस्तान को चीन ने हाल ही में सऊदी अरब और यूएई के साथ मिलकर 5 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है. पाकिस्तान ने बीजिंग से अतिरिक्त 1.4 बिलियन डॉलर की मांग की है. अगर संघर्ष ने गति पकड़ी तो वह चीन और उसके अरब साझेदारों से और भी मांग करेगा.

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने की घोषणा के बाद, कई पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि चीन को तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह को रोककर भारत को इसका स्वाद चखाना चाहिए.

सवाल यह है कि क्या चीन पानी के बहाव को रोकने में सक्षम है और क्या वह पाकिस्तान के अनुरोध को सुनेगा. चीन ने यारलुंग जांगबो यानी ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने की योजना की घोषणा की है. लेकिन इस परियोजना को पूरा होने में 4-5 साल लगेंगे.

इसके पूरा हो जाने के बाद भी, चीन को अपने कुछ क्षेत्रों को डुबोए बिना इस विशाल नदी के प्रवाह को रोकना मुश्किल हो सकता है.

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बीजिंग के लिए इसमें क्या है?

भारत और चीन दोनों जानते हैं कि अगर पाकिस्तान को बीजिंग से अतिरिक्त हथियार और फंड नहीं मिलता है तो वह भारत का सामना नहीं कर सकता है. सवाल यह है कि क्या चीन खुद को ऐसी स्थिति में आने देगा, जिसकी संभावनाएं अनिश्चित हैं.

चीन के लिए कूटनीतिक रूप से समझदारी इसी में है कि वह भारत से अनौपचारिक आश्वासन हासिल करे कि युद्ध में चीन द्वारा फंडेड परियोजनाओं को नुकसान नहीं पहुंचेगा और बदले में वह पाकिस्तान का समर्थन नहीं करेगा. भारत चीन के लिए 113 बिलियन डॉलर का निर्यात बाजार है, जो इसे पाकिस्तान की तुलना में आर्थिक रूप से अधिक महत्वपूर्ण देश बनाता है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ दरों में थोड़ी कमी के बावजूद चीन से अमेरिका में होने वाले 440 अरब डॉलर के एक्सपोर्ट में 20-25 प्रतिशत की कमी आने की आशंका है.

घरेलू अर्थव्यवस्था में गंभीर मंदी का सामना कर रहे चीन के लिए पाकिस्तान को समर्थन देना का यह सही समय नहीं है.

कुछ पाकिस्तानी नेताओं ने गैर-जिम्मेदाराना तरीके से परमाणु विकल्प का इस्तेमाल करने की बात कही है. यह ऐसी चीज नहीं है जिसका चीन समर्थन करेगा क्योंकि परमाणु युद्ध अप्रत्याशित होता है और एक साथ कई देशों को प्रभावित करता है.

पाकिस्तान का ऐसा कदम उसके आर्थिक विकास के कार्यक्रम को पूरी तरह से खत्म कर देगा, जिससे ताइवान पर कब्ज़ा करने की बीजिंग की योजना पर गंभीर असर पड़ेगा.

भारत ने पहले ही संकेत दिया है कि वह चीनी निवेश के लिए दरवाजे खोलने के लिए तैयार है, जिससे बीजिंग को पाकिस्तान का समर्थन न करने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन मिलेगा. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग जो भी निर्णय लेंगे, उससे उनकी समझदारी का पता चलेगा.

(सैबल दासगुप्ता 18 साल से विदेशी संवाददाता हैं और उन्होंने रनिंग विद द ड्रैगन: हाउ इंडिया शुड डू बिजनेस विद चाइना नामक पुस्तक लिखी है. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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